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शानदार लगा “मरुधर” पत्रिका का नवंबर-दिसम्बर अंक

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जमशेदपुर के प्रवासी राजस्थानियों हेतु निकलने वाली द्विमासिक मासिक राजस्थानी-हिंदी पत्रिका “मरुधर” का नवम्बर-दिसंबर अंक आखिर भारतीय डाक विभाग की मेहरबानी से इस बार मिल ही गया| वरना पिछले साल से मरुधर टीम द्वारा पत्रिका भेजे जाने के बावजूद डाक विभाग की मेहरबानी ना होने के चलते हम पत्रिका प्राप्त करने से वंचित ही रहते है! खैर......भारत की लोकतांत्रिक सरकार का डाक विभाग है जिसे लोकतांत्रिक आजादी तो हासिल है ही साथ ही उसके कर्मियों को सरकारी कर्मचारी होने का विशेषाधिकार भी प्राप्त जो है सो मर्जी उनकी, डाक पहुंचाये या नहीं|

मरुधर के इस अंक में मेरे एक लेख “कहाँ है रानी पद्मिनी का जन्म स्थान”के साथ ही चितौड़ जिले का सामान्य परिचय देते हुए चितौड़ किले व उसमें दर्शनीय स्थलों पर संक्षिप्त किन्तु शानदार जानकारी दी गई है, इस लेख को पढ़कर पाठक को चितौड़ के ऐतिहासिक दुर्ग, उसमें बने स्थापत्य कला व इतिहास से जुड़े स्मारकों की सुन्दर चित्रों के साथ जानकारी व चितौड़ की कला एवं संस्कृति पर अच्छा खासा प्रकाश डाला गया| लेख के लेखक को इसके लिए साधुवाद|

राजस्थान के प्रमुख राष्ट्रीय पार्क एवं वन्य जीव अभ्यारणों की जानकारी वाले लेख में सुन्दर चित्रों के साथ प्रदेश के सात वन्य जीव अभ्यारणों की जानकारी दी गई जो निश्चित ही पाठक के मन में इन अभ्यारणों को देखने की इच्छा प्रबल कर देती है, इस तरह की जानकारी राजस्थान में पर्यटन विकास के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है|

इतिहासकार मोहनलाल गुप्ता के लेख “राजस्थान के ऐतिहासिक पुरुष” में ८ महापुरुषों का संक्षिप्त परिचय लिखा गया पर पृथ्वीराज चौहान पर लिखते वक्त विद्वान लेखक ने इतिहासकार होने के बावजूद पृथ्वीराज के तराइन के युद्ध में हारने के कारणों पर लिखते हुए जयचंद की नीचता का जिक्र अखरा कि आखिर एक इतिहासकार ने बिना तथ्यों को जाने सुनी सुनाई बातों के आधार पर जयचंद पर यह घृणित आरोप मढ़ दिया| जबकि पृथ्वीराज के पतन में जयचंद का कोई हाथ नहीं था, ना जयचंद ने गौरी को बुलाया था, ना उसकी सैनिक सहायता की थी|

डा. चेतन स्वामी ने अपने लेख में फतेहपुर शेखावाटी की चित्रांकित हवेलियों की चित्रकला उनका इतिहास और उनकी स्थापत्य कला का अच्छा चित्रण किया है| पत्रिका में लघु कथाओं, कविताओं, राजस्थान के राज्य पक्षी गोडावण के बारे जानकारी के साथ कन्याकुमारी व महातीर्थ गया के बारे में शानदार जानकारी दी गई जो वहां जाने वाले पर्यटकों व श्रद्धालुओं के लिए वाकई बेहद काम की व उपयोगी है|

राजस्थान की बात चले और राजस्थान के खान-पान की चर्चा ना हो ये कैसे हो सकता है ? सो राजस्थान के खान-पान कालम में राजस्थान के विभिन्न वर्गों द्वारा इस्तेमाल व्यंजनों आदि की सटीक जानकारी के साथ नमिता अग्रवाल द्वारा दी गई मिर्ची बड़ा बनाने की विधि ने पत्रिका के अंक को वाकई तीखा व चटपटा बना दिया|
राजस्थान के इतिहास,संस्कृति, पर्यटन, कहानियां, कविताएँ व प्रवासी राजस्थानियों द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों की ख़बरें अपनी पत्रिका "मरुधर" के माध्यम से दूर दूर तक पहुँचाने व इसके प्रचार प्रसार के लिए पत्रिका के प्रधान संपादक डा.नरेश अग्रवाल सहित संपादक मंडल का बहुत बहुत आभार व हार्दिक धन्यवाद |

वीर दुर्गादास राठौड़ की पूण्यतिथि पर शत शत नमन

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मायड़ ऐड़ा पुत जाण,जेड़ा दुर्गादास
भार मुंडासा धामियो, बिन थम्ब आकाश

घर घोड़ों,खग कामनी,हियो हाथ निज मीत
सेलां बाटी सेकणी, श्याम धरम रण नीत

उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुग़ल शक्ति उनके दृढ हृदय को पीछे हटा सकी वह एक वीर था जिसमे राजपूती साहस व मुग़ल मंत्री सी कूटनीति थी|(सर जदुनाथ सरकार)

295वीं पूण्यतिथि पर वीर शिरोमणि को शत शत नमन

वीर दुर्गादास का निधन 22 nov. 1718 में हुआ था, इनका अन्तिम संस्कार शिप्रा नदी के तट पर किया गया था|

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वर्डप्रेस स्क्रिप्ट से मेट्रीमोनियल वेब साईट कैसे बनायें ?

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वर्डप्रेस अंतरजाल पर मुफ्त मिलने वाली वह ओपन सोर्स वेबसाइट स्क्रिप्ट है जिसकी मदद से आप अपनी जरुरत के अनुसार मनचाही वेब साईट बना सकते है जैसे- ब्लॉग, न्यूज वेब साईट,अपने व्यवसाय की वेबसाइट, ऑनलाइन सामान बेचने वाली वेबसाइट और भी बहुत सी तरह की वेब साइट्स !

इसी वेब साईट स्क्रिप्ट के जरिये वैवाहिक वेबसाइट भी बनाई जा सकती है जबकि वैवाहिक वेब साईट बनवाने के लिए काफी धन खर्च करना पड़ता है पर वर्डप्रेस के उपलब्ध प्लगइन्स में एक एक वैवाहिक प्लगइन्स का इस्तेमाल कर एक साधारण वैवाहिक बनाई जा सकती है | आइये आज चर्चा करते है वर्डप्रेस के इस्तेमाल से वैवाहिक वेब साईट बनाने के तरीके पर-

१- सबसे पहले अपने डोमेन पर वर्डप्रेस स्क्रिप्टइनस्टॉलकरें|
२- अब वैवाहिक वेब साईट से मिलती जुलती कोई वर्डप्रेस थीम इंस्टालकरें ताकि आपकी वेब साईट वैवाहिक लगे|
३- यहाँ क्लिक कर वैवाहिक प्लगइन Genie WP Matrimonyडाउनलोड कर इनस्टॉल करें|
४- अब इस प्लगइन को कोनिफिगर करने के लिए डेशबोर्ड में सेटिंग्स में Genie WP Matrimony पर क्लिक करें और चित्र के अनुसार अपडेट ऑप्शन बटन पर चटका लगा दें| ऐसा करते है यह प्लगइन अपनी जरुरत अनुसार account, gallery, search आदि पेज बना देगा!


५- अब ऊपर चित्र में दिखाये अनुसार डेशबोर्ड में Matrimony पर क्लिक करें, क्लीक करते ही नीचे अनुसार प्रोफाइल फॉर्म खुलेगा जिसे भरकर किसी की भी प्रोफाइल बनाई जा सकती है|


अब आपकी वैवाहिक वेबसाइट Matrimony, Account, Gallery, Activity, Messages, Search.आदि पृष्ठों के साथ तैयार है, इस वेब साईट में किसी को भी अपने आपको रजिस्टर करने के लिए सबसे पहले साईट प्रयोगकर्ता की तरह रजिस्टर कर फिर डेशबोर्ड में Matrimony टेब पर चटका लगा अपनी प्रोफाइल बनाई जा सकती है|


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आग्यो राज लुगायां को

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काका-ताऊ ना भायां को
आग्यो राज लुगायां को ।|

कोंग्रेस का च्यारूं मेर सूं कर दिन्या है सफाया
गहलोत सरकार की कुर्सी का तोड़ नाख्या पाया

ना यो पराया जाया , और ना ही माँ का जाया को
आग्यो राज लुगायां को ॥

जनता अर पाणी का रुख न कोई जाण ना पायो
वोट दिन्या वसुंधरा नै ,माल गेहलोत को खायो

ना यो बाणया-बामण अर न ही राज है नायां को
आग्यो राज लुगायां को ॥

राजसत्ता कब किसी की, एक छत्र रह पायी है
जनता के करवट की कीमत हर किसी ने चुकाई है

मंदिर देवता साधू -सन्यासी, हिन्दू धर्म की गायां को
आग्यो राज लुगायां को ||

गजेन्द्र सिंह शेखावत

आबू पर्वत पर अग्निकुण्ड से कैसे उत्पन्न हुये थे क्षत्रिय ?

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क्षत्रियों की उत्पत्ति के बारे में अक्सर सुनने पढने को मिलता है कि क्षत्रिय राजस्थान में आबू पर्वत पर आयोजित यज्ञ से उत्पन्न हुये है पर क्या यज्ञ के अग्निकुण्ड से मानव की उत्पत्ति संभव है ? यदि नहीं तो फिर यह कहानी व मान्यता कैसे प्रचलित हुई ? क्षत्रियों की अग्निकुंड से उत्पत्ति के पीछे प्रचलित इस कहानी के पीछे कुछ तो ऐसा होगा जिसकी वजह से यह कहानी प्रचलित हुई और अग्निवंश और अग्निकुंड से क्षत्रियों की उत्पत्ति को मिथ बताने वाले इतिहासकारों व विद्वानों ने भी क्षत्रियों को अग्नि द्वारा शुद्ध करने की बात को मान्यता देते हुए अपनी बात को अपरोक्ष रूप से काट कर इस प्रचलित कहानी को मान्यता दे डाली है|

इतिहासकार और विद्वान ओझा, वैद्य और गांगोली के अलावा सभी विद्वानों ने अग्निवंश की मान्यता को प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष रूप से स्वीकार किया है| इसी कहानी पर राजस्थान के इतिहासकार श्री देवीसिंह जी मंडावा लिखते है कि – “जब वैदिक धर्म ब्राह्मणों के नियंत्रण में आ गया था और बुद्ध ने इसके विरुद्ध बगावत कर अपना नया बौद्ध धर्म चलाया तो शनै: शनै: क्षत्रिय वर्ग वैदिक धर्म त्यागकर बौद्ध धर्मी बन गया| क्षत्रियों के साथ साथ वैश्यों ने भी बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया|

क्षत्रियों के बौद्ध धर्म ग्रहण करने के पश्चात उनकी वैदिक परम्परायें भी नष्ट हो गई और वैदिक क्षत्रिय जो कि सूर्य व चंद्रवंशी कहलाते थे, उन परम्पराओं के सम्राट हो गये तथा सूर्य व चन्द्रवंशी कहलाने से वंचित हो गये| क्योंकि ये मान्यतायें और परम्परायें तो वैदिक धर्म की थी जिन्हें वे परित्याग कर चुके थे| यही कारण है कि ब्राह्मणों ने पुराणों तक में यह लिख दिया कलियुग में ब्राह्मण व शुद्र ही रह जायेंगे व कलियुग के राजा शुद्र होंगे, बौद्ध के अत्याचारों से पीड़ित होकर ब्राह्मणों ने बुद्ध धर्मावलम्बी क्षत्रिय शासकों को भी शुद्र की संज्ञा दे डाली| दुराग्रह से ग्रसित हो उन्होंने यह भी लिख दिया कि कलियुग में वैश्य और क्षत्रिय दोनों लोप हो जायेंगे|

उस काल में समाज की रक्षा करना व शासन चलाना क्षत्रियों का उतरदायित्व था, चूँकि वे बौद्ध हो गये थे अत: वैदिक धर्म की रक्षा का जटिल प्रश्न ब्राह्मणों के सामने उपस्थित हो गया| इस पर ब्राह्मणों के मुखिया ऋषियों ने अपने अथक प्रयासों से चार क्षत्रिय कुलों को वापस वैदिक धर्म में दीक्षित करने में सफलता प्राप्त कर ली| आबू पर्वत पर यज्ञ करके बौद्ध धर्म से वैदिक धर्म में उनका समावेश किया गया| यही अग्निकुंड का स्वरूप है| वे प्राचीन सूर्यवंशी व चन्द्रवंशी ही थे इसलिए बाद में शिलालेखों में भी तीन वंश अपने प्राचीन वंश का हवाला देते रहे लेकिन परमारवंश ने प्राचीन वंश न लिखकर अपने आपको अग्निवंश लिखना शुरू कर दिया|

कुमारिल भट्ट ई.७०० वि. ७५७ ने बड़ी संख्या में बौद्धों को वापस वैदिक धर्म में लाने का कार्य शुरू किया जिसे आगे चलकर आदि शंकराचार्य ने पूर्ण किया| अत: इन चार क्षत्रिय वंशों को वैदिक धर्म में वापस दीक्षा दिलाने का कार्य उसी युग में होना चाहिए| आबू के यज्ञ में दीक्षा का एक ऐतिहासिक कार्यक्रम था जो ६ठी या ७वीं सदी में हुआ है| यह कोई कपोल कल्पना या मिथ नहीं था बल्कि वैदिक धर्म को वापस सशक्त बनाने का प्रथम कदम था जिसकी स्मृति में बाद में ये वंश अपने आपको अग्निकुंड से उत्पन्न अग्निवंशी कहने लग गये| आज भी आबू पर यह यज्ञ स्थल मौजूद है|”

मुग़ल इतिहासकार अबुलफजल ने भी “आईने अकबरी” में इसी मान्यता का उल्लेख किया है| उसने यज्ञ का समय वि. ८१८ दिया है| वंश भास्कर में भी बौद्धों के उत्पात मचाने से उनका दमन करने हेतु अग्निकुल वालों को उत्पन्न किया जाना माना गया है| अबुलफजल के समय किन्हीं प्राचीन ग्रंथों अथवा मान्यताओं से विदित होता है कि ये चारों (प्रतिहार, सोलंकी, परमार और चौहान) वंश बौद्ध धर्म का परित्याग कर वापस अपने पूर्व वैदिक धर्म में लौट आये थे|

चूँकि बौद्ध धर्म अपना चुके क्षत्रियों का वापस धर्म परिवर्तन करने व वैदिक धर्म में दीक्षित करने हेतु यज्ञ कर शुद्धिकरण करने को क्षत्रियों को यज्ञ के अग्निकुंड से उत्पन्न माना जाने की मान्यता प्रचलित हो गयी और धीरे धीरे कहानियां बन गई कि – क्षत्रिय आबू पर्वत पर अग्निकुंड से पैदा हुए थे| जबकि इसी धरा पर मौजूद बौद्ध धर्म में दीक्षित चार क्षत्रिय वंश (प्रतिहार, सोलंकी, परमार और चौहान) यज्ञ के अग्निकुंड के पास बैठ वापस वैदिक धर्म में दीक्षित हुये|


राजस्थान विधानसभा चुनाव : मोदी लहर के बावजूद

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राजस्थान विधानसभा की २०० सीटों पर अभी हाल ही में संपन्न हुये चुनावों में भाजपा ने रिकोर्ड १६३ सीटें जीतकर अप्रत्याशित जीत दर्ज की जिसकी उम्मीद भाजपा को भी नहीं थी, ज्यादातर भाजपा नेता १२० सीटों के आस-पास संख्या मान रहे थे, पर नरेंद्र मोदी की रैलियों में उमड़ी भीड़ के बाद मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में एकतरफा मतदान कर साबित कर दिया कि राज्य में मोदी की जबरदस्त लहर थी|

यह इस मोदी लहर व केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार और काले कारनामों के विरुद्ध आम जनता के रोष का ही कमाल था कि – सीकर जिले की धोद विधानसभा क्षेत्र जहाँ से आजतक कभी भाजपा उम्मीदवार जीतना तो दूर टक्कर में भी नहीं रहा, वहीँ इस बार इस सीट से भाजपा के गोवर्धन वर्मा ने पिछले चार चुनावों में लगातार जीत रही माकपा को ४५०७१ वोटों के तगड़े अंतर से हराया| मजे की बात है कि खुद भाजपा समर्थक मान रहे थे कि जीत कुछ हजार मतों के अंतर से होगी, क्योंकि माकपा का इस सीट पर तगड़ा जनाधार व समर्पित कार्यकर्ताओं की फ़ौज वाला कैडर है, के बावजूद भाजपा जितने वोटों से जीती उतने वोट भी माकपा को नहीं मिले| धोद ही क्यों डीडवाना विधानसभा की बात करें तो चुनाव में बसपा से श्यामप्रताप सिंह द्वारा मैदान में ताल ठोकने के बाद भाजपा प्रत्त्याशी युनुस खान द्वारा वहां से चुनाव लड़ने से ही कतराने की ख़बरें आ रही थी, और डीडवाना क्षेत्र का शुरू में चुनावी माहौल देखने से लग रहा था कि – यहाँ भाजपा जीतना तो दूर टक्कर में भी नहीं रहेगी, लेकिन चुनावों से एन वक्त पहले चली मोदी लहर और डीडवाना के पास लाडनू क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी ठा. मनोहरसिंह का डीडवाना क्षेत्र के राजपूत मतदाताओं से भाजपा को वोट देने का सन्देश पहुँचने के बाद इस सीट पर भाजपा ने अप्रत्यषित ११४४४ मतों से विजय प्राप्त की|

इसी तरह परबतसर में भी अधिसंख्य जाट मतों का कांग्रेस के जाट प्रत्याशी के पक्ष में लामबंद होने की खबरों के बाद भाजपा की जीत की क्षीण आशंकाएं ही बची रह गयी थी, पर इस सीट पर ही भाजपा उम्मीदवार की रणनीति व मोदी लहर के चलते सभी जातीय समीकरण बिगड़ गये और भाजपा ने १६२९८ वोटों से चुनाव जीता|

इस तरह कई और भी सीटें है जहाँ भाजपा की जीत की क्षीण संभावनाएं थी पर प्रदेश में मोदी लहर के चलते ऐसी जगहों पर भाजपा भारी मतों से जीती| पर इस लहर के बावजूद प्रदेश में कुछ क्षेत्र ऐसे भी रहे जहाँ स्थानीय मुद्दों, जातिवाद आदि पर मोदी लहर कोई असर नहीं डाल पाई और भाजपा के अजेय समझे जाने वाले देवीसिंह भाटी सरीखे नेता चुनाव हार गये, हालाँकि भाटी सिर्फ ११३४ वोटों के बहुत ही कम अंतर से चुनाव हारे पर एक जनप्रिय और बड़े नेता की हार ने हर किसी को सोचने पर मजबूर किया| वहीँ करौली की महारानी रोहिणी कुमारी अपनी अच्छी छवि व भाजपा के पक्ष में चली लहर के बावजूद १७१६७ वोटों से हार गई|

भाजपा के ही पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुभाष महरिया मोदी लहर के बावजूद १०७२३ वोटों से बुरी तरह से चुनाव हार गये| सुभाष महरिया के क्षेत्र लक्ष्मणगढ़ में महरिया द्वारा पूर्व चुनावों में अनेक नेताओं के साथ किये भीतरघात की चर्चा पर मोदी लहर असर नहीं कर सकी| लोगों में महरिया द्वारा जातिवाद के आधार पर पूर्व व इन चुनावों में भीतरघात की चर्चाओं को लेकर रोष था और बहुत से जातीय सामाजिक संगठन उससे बदला लेने को सक्रीय हो गये और आखिर मोदी लहर के बावजूद महरिया को हराने में कामयाब हुये|

अलवर जिले की बानसूर विधानसभा में कांग्रेस उम्मीदवार शकुंतला रावत की भाजपा पर २३९१६ वोटों से जीत ने भी चौंकाया| इस क्षेत्र में भी भाजपा विधायक रोहताश शर्मा अजेय माने जाते थे, पर राज्य में मोदी लहर के बावजूद रोहताश शर्मा कांग्रेस के हाथों बुरी तरह पराजित हुये जबकि उन्हें जिन निर्दलीय उम्मीदवारों की वजह से हार का डर था वे ज्यादा वोट भी नहीं ले पाये, पर चर्चा कि रोहताश शर्मा ने कुछ जातियों के वोटों के लिये गलत बयान दिये थे अत: हो सकता है उनके गलत बयानों से आहत होकर कुछ जातियों ने उसके खिलाफ मत दे उन्हें हार का मुंह दिखा दिया|

गंगानगर आँचल की बात करें तो वहां भी मोदी लहर के बावजूद जमींदारा पार्टी की कामिनी जिंदल और रायसिंहनगर से सोनादेवी ने भाजपा पर क्रमश: ३७०६८ और ४४५४४ मतों की शानदार बढ़त से जीत हासिल की| बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवारों ने भी भाजपा को कई जगहों पर तीसरे स्थान पर धकलते हुए हराकर मोदी लहर की हवा निकालते हुए तीन स्थानों पर जीत दर्ज की| यही नहीं प्रदेश की जिन सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीते वहां ज्यादातर पर भाजपा तीसरे स्थान पर रही| नवलगढ़, वल्लभनगर, मंडावा, खीमसर, बस्सी आदि जगह निर्दलीय चुनाव जीते और यहाँ भाजपा तीसरे स्थान पर रही| वल्लभनगर से भाजपा के ही रणजीतसिंह भिंडर ने टिकट नहीं मिलने के चलते बागी होकर चुनाव लड़ा और १३१६७ वोटों से जीते, यहाँ भाजपा टक्कर में भी नहीं आ पाई| नवलगढ़ से पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे राजकुमार शर्मा को कांग्रेस के एक बड़े नेता की जिद्द के कारण टिकट नहीं मिलने के कारण निर्दलीय चुनाव लड़ा और मोदी लहर की हवा निकालते हुये और कांग्रेस सरकार के खिलाफ जनता के रोष को दरकिनार करते हुए ३३५६६ मतों के भारी अंतर से जीत दर्ज कराने में कामयाब हुये|

इसी तरह खीमसर में भी भाजपा से निष्कासित पूर्व विधायक हनुमान बेनीवाल ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और २३०२० मतों के भारी अंतर से जीता, जबकि इस सीट पर जीत हासिल करने को वसुंधरा राजे ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रखा था और भाजपा के कई बड़े नेता कुछ जातीय सामाजिक संगठनों के ठेकेदारों के साथ हनुमान बेनीवाल को हराने में जुटे थे, लेकिन मोदी लहर पर यहाँ भी स्थानीय जातिवाद भारी पड़ा और बेनीवाल के स्वजातीय मत उनके पक्ष में लामबंद हो गये और भाजपा यहाँ तीसरे नंबर पर धकेल दी गई, इस सीट पर दुसरे स्थान पर बसपा के दुर्गसिंह चौहान रहे, कांग्रेस यहाँ चौथे नंबरपर सिमट गई|

उपरोक्त विश्लेषण से साफ़ जाहिर है कि राज्य में मोदी लहर का व्यापक असर रहा फिर भी बहुत से क्षेत्रों में स्थानीय या जातीय मुद्दे मोदी लहर पर भारी रहे|


कार स्वेपिंग : खुद की गाड़ी का सा अहसास और प्रयोग दुसरे शहर में भी

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अक्सर यात्रा में रहने वाले लोगों को दुसरे शहरों में घुमने के लिये एक ऐसी गाड़ी की कमी खलती है जिसे वे अपनी समझ मन चाहे प्रयोग कर सकें, वहीँ ज्यादातर समय यात्रा पर रहने वाले ऐसे लोगों की अपनी कारें उनके घर गैराज में धुल फांकती खड़ी रहती है| पर यदि ऐसे यात्रा करने वाले लोगों को यदि दुसरे शहर में ठीक अपने जैसी कार यानी उसी मोडल वाली कार जो वह अपने शहर में प्रयोग करता है मिल जाये तो कैसा महसूस होगा और वो भी निशुल्क !

जी हां ! ऐसे ही लोगों के लिये यात्रा के दौरान पब्लिक ट्रांसपोर्ट से निजात पाने व अपनी जैसी कार के प्रयोग करने की सुविधा हेतु जोधपुर निवासी प्रमोद राठी ने “कार स्वेपिंग”नाम से एक शानदार योजना शुरू की है, इस योजनाके अनुसार यदि आपके पास कार है और आप इस कम्पनी के सदस्य है तो दुसरे शहर में आपको टैक्सी नहीं लेनी पड़ेगी और आप इस योजना के उस शहर के सदस्य की कार निशुल्क प्राप्त कर प्रयोग कर सकतें है| बदले में आपको भी अपने शहर में आये कम्पनी की योजनाके सदस्य को अपनी कार निशुल्क मुहैया करानी होगी| इस योजना में एक तो आपको अपनी जरुरत के दुसरे शहर में प्रयोग हेतु कार की सुविधा मिल जायेगी वहीँ आपकी कार को योजना के सदस्य द्वारा इस्तेमाल करते रहने पर वह गैराज में खड़ी खड़ी धुल नहीं फांकेगी|

कम्पनी की यह योजना देश के कई महत्त्वपूर्ण शहरों में शुरू हो गई है और जल्द ही कम्पनी इस योजना को देश के व्यापारिक दृष्टि महत्त्वपूर्ण कई अन्य शहरों में शुरू कर रही है|

इस योजना के बारे में पूरी जानकारी और योजना की सदस्यता हेतु नियम व शर्तें आदि कम्पनी की वेब साईटपर जाकर पता की जा सकती है, साथ ही वेब साईट पर सदस्यता भी ली जा सकती है|

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आजाद भारत में कब तक विस्थापित रहेंगे महाराणा प्रताप ?

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महाराणा प्रताप ने शक्तिशाली मुग़ल बादशाह अकबर से अल्प संसाधनों के सहारे स्वतंत्रता की रक्षा हेतु वर्षों संघर्ष किया, महल छोड़ जंगल जंगल भटके, सोने चांदी के बर्तनों में छप्पन भोग करने करने वाले महाराणा ने परिवार सहित घास की रोटियां खाई, पर अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं किया और लम्बे संघर्ष के बाद भी अपने से कई गुना शक्तिशाली अकबर की अधीनता नहीं स्वीकार की| उनके इसी संघर्ष का हवाला देते हुये कुछ दोहे सुनाकर क्रांतिकारी कवि केसरीसिंह बारहट ने १९०३ में लार्ड कर्जन द्वारा आयोजित दरबार में जाने से उदयपुर के तत्कालीन महाराणा फतेहसिंह को रोक दिया था –

पग पग भम्या पहाड,धरा छांड राख्यो धरम |
(ईंसू) महाराणा'र मेवाङ, हिरदे बसिया हिन्द रै ||


“भयंकर मुसीबतों में दुःख सहते हुए मेवाड़ के महाराणा नंगे पैर पहाडों में घुमे ,घास की रोटियां खाई फिर भी उन्होंने हमेशा धर्म की रक्षा की | मातृभूमि के गौरव के लिए वे कभी कितनी ही बड़ी मुसीबत से विचलित नहीं हुए उन्होंने हमेशा मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है वे कभी किसी के आगे नहीं झुके | इसीलिए आज मेवाड़ के महाराणा हिंदुस्तान के जन जन के हृदय में बसे है|”

यही कारण था कि देश की आजादी के आन्दोलन में स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्र्य चेता महाराणा प्रताप के संघर्षमय जीवन से प्रेरणा लेकर देश की स्वतंत्रता हेतु अपना सब कुछ बलिदान दे, स्वतंत्रता आन्दोलन को सफल बनाया| कितने ही स्वतंत्रता सेनानी अपने प्रेरणा स्रोत महाराणा का अनुसरण कर स्वतंत्रता संग्राम की बलिवेदी पर हँसते हँसते चढ़ गये| आज भी जब देश की नई पीढ़ी को देशभक्ति का पाठ पढाया जाता है तो महाराणा प्रताप को सर्वप्रथम याद किया जाता है, देश के नागरिकों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों को राष्ट्रवादी प्रचारित करने के लिये भी मंच पर महाराणा का चित्र लगाया जाता है| राष्ट्रवाद का ढोंग रचने वाले लोग भी अपने आपको राष्ट्रवादी साबित करने के लिए अपने भाषणों में महाराणा प्रताप का नाम लेकर खूब गाल बजाते है|

स्वाधीनता के बाद राष्ट्र नायक महाराणा को कृतज्ञ राष्ट्र द्वारा आदर देने हेतु देश के विभिन्न स्थानों पर उनकी प्रतिमाएं लगाईं| उन प्रतिमाओं से आज भी देश की नई पीढ़ी राष्ट्र के स्वातंत्र्य संघर्ष में मर मिटने की प्रेरणा ग्रहण कर देश सीमाओं को सुरक्षित रखती है| देश की राजधानी दिल्ली में भी कई वर्षों पूर्व दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ने इस महान राष्ट्र गौरव को सम्मान देने व उनकी स्मृति को चिरस्थाई बनाये रखने हेतु कश्मीर गेट स्थित अंतर्राज्य बस अड्डे का नामकरण महाराणा प्रताप के नाम पर किया गया| साथ ही अंतर्राज्य बस अड्डे के साथ लगे कुदसिया पार्क में महाराणा की एक विशाल प्रतिमा स्थापित की गई| जो उधर से आते जाते हर राहगीर को दिखाई देती थी| इस तरह जीवन भर जंगल में रहकर स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहने वाले महाराणा प्रताप दिल्ली शहर में स्वातंत्र्य प्रेम का संदेश देने हेतु लोगों के बीच प्रतिमा के रूप में उपस्थित हुये|

पर महाराणा प्रताप को क्या पता था कि आजाद भारत में भी उन्हें फिर विस्थापित होना पड़ेगा ? उन्हें क्या पता था कि उनके नाम पर गाल बजाने वाले भी उनसे मुंह फेर लेंगे ? क्योंकि कश्मीरी गेट के पास बन रहे मेट्रो रेल के निर्माण के बीच में आने की वजह से उस मेट्रो रेल ने जिसने एक खास समुदाय की भावनाओं का ख्याल रखते हुए अपने निर्माण बजट में करोड़ों रूपये का इजाफा कर अपना निर्धारित रेल लाइन का रूट तक बदल दिया था ने महाराणा प्रताप की इस प्रतिमा को उखाड़ कर एक कोने में रख विस्थापित कर दिया जिसे राजस्थान व देश के अन्य भागों के कुछ राजपूत संगठनों व दिल्ली के ही एक विधायक के विरोध करने के बाद मूल जगह से दूर कुदसिया पार्क में अस्थाई चबूतरा बनाकर अस्थाई तौर पर स्थापित किया| पर आज प्रतिमा को हटाये कई वर्ष बीत जाने व मेट्रो रेल प्रशासन द्वारा प्रतिमा वापस लगाने की जिम्मेदारी लिखित में स्वीकार करने के बावजूद मेट्रो रेल प्रशासन ने इस प्रतिमा को सम्मान के साथ वापस लगाने की जहमत नहीं उठाई|

आज महाराणा प्रताप की प्रतिमा जहाँ अपने पुनर्वास के लिये मेट्रो रेल कार्पोरेशन के रहमोकरम पर बाट जोह रही है वहीँ उन कथित राष्ट्रवादियों, हिन्दुत्त्व वादियों और अपने उन वंशजों जो उनके नाम पर अपने गाल बजाते नहीं थकते, की और टकटकी लगाये कुदसिया पार्क के एक कोने में खड़ी अपने पुनर्वास का इंतजार कर रही है|

पर मुझे नहीं लगता कि महाराणा प्रताप की इस प्रतिमा को ससम्मान वापस प्रतिष्ठित करवाने हेतु वे कथित राष्ट्रवादी जो अपने भाषणों में महाराणा की वीरता के बखान कर गाल फुलाते नहीं थकते, वे कथित हिन्दुत्त्व वादी जो उन्हें हिंदुआ सूरज कह कर संबोधित करते है, उनके वे कथित वंशज होने का दावा करने वाले, जो उनके नाम पर आज भी अपना सीना तानकर चलते है, आगे आयेंगे|

क्योंकि कथित राष्ट्रवादियों को राष्ट्रवाद के नाम सिर्फ वोट चाहिये ताकि उन्हें सत्ता मिल जाये और वे अपना घर भरते रहे| उन्हें क्या लेना देना महाराणा प्रताप प्रतिमा से|

उन हिन्दुत्त्ववादियों को भी अपने हिंदुआ सूरज की प्रतिमा से क्या लेना देना ? क्योंकि महाराणा की प्रतिमा के विस्थापन से उनके धर्म पर कोई आंच थोड़ी ही आने वाली है ? क्योंकि उनकी नजर में हिन्दू धर्म पर आंच तब आती है जब पुलिस बलात्कार के आरोपी आसाराम जैसों के जेल में डाल देती है और इसे लोगों को बचाने के लिये वे हिन्दू धर्म पर आंच आने का प्रचार कर हंगामा कर सकते है|

उनके वंशज होने का ढोंग करने वाले राजपूत समाज को भी क्या लेना देना ? क्योंकि वे तो इस व्यवस्था में अपने आपको किसी लायक ही नहीं समझ रहे फिर उन्हें जय राजपुताना आदि नारे लगाने से फुर्सत मिले तब तो इस और नजर डाले|

राजस्थान के उन राजपूत संगठनों को भी महाराणा के स्वाभिमान से क्या देना देना ? क्योंकि उनका काम तो चुनावों में किसी दल के साथ राजपूत जाति के उत्थान के नाम पर जातीय वोटों का सौदा करना मात्र रह गया है|

और मेरा आंकलन सही नहीं है तो आइये हम सब मिलकर महाराणा प्रताप की प्रतिमा को ससम्मान वापस पुनर्स्थापित करने हेतु मेट्रो रेल प्रशासन पर दबाव बनाये और यह साबित कर दे कि – हम राष्ट्रवादी सिर्फ महाराणा के नाम पर गाल नहीं फुलाते, हम हिन्दुत्त्व वादी व जातिवादी संगठन सिर्फ वोटों से जुड़े मुद्दे ही नहीं उठाते, हम उनके वंशज होने का दावा करने वाले सिर्फ उनके नाम पर गर्व से सीना तानकर ही नहीं चलते, समय आने पर अपने व अपने प्रेरणा स्रोत के स्वाभिमान के लिये दिल्ली को भी हिला सकते है |


जाड़ो (ठंडा मौसम)

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ठरगा भायला जाड़ा म
सूरज बड़गो खाडा म

पिसा लागै दवायां का
और दशमूल का काड़ा में
ठरगा भायला जाड़ा म


दुबला को बैरी है यो
क्यूँ कोण कर ठाडा म
ठरगा भायला जाड़ा म

टीबा पर चाले आथूणी
म्हे बच रिया हाँ आडा म
ठरगा भायला जाडा म


कई जिनावर बिल म बडग्या
कई छापलरया ढाँढाँ म
ठरगा भायला जाडा म

बावरिया रोही म कुरलावै
लुहार सीसाव गाडा म
ठरगा भायला जाडा म

लेखक : गजेन्द्र सिंह शेखावत


तीसरे मोर्चे का विकल्प बनी आम आदमी पार्टी

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चुनाव पूर्व अक्सर तीसरे मोर्चे की चर्चा चलना आम बात है, चुनाव की घोषणा होते ही छोटे बड़े क्षेत्रीय राजनैतिक दल केन्द्रीय सत्ता में ज्यादा से ज्यादा भागीदारी पाने को लालायित होकर तीसरे मोर्चे के गठन की कवायद तेज कर देते है, इस तरह के मोर्चे में ज्यादातर मौकापरस्त दल और नेता होते है जिन्हें एक दुसरे की नीतियों व विचारधारा से कोई मतलब नहीं होता, उनका मकसद येनकेन प्रकारेण संसद में सत्ता की मलाई से ओरों से ज्यादा चखने से रहता है|

पर इन चुनावों में तीसरे मोर्चे के गठन की कवायद शुरू होना तो दूर, बातचीत भी नहीं चली| कारण स्पष्ट था अरविंद केजरीवाल द्वारा गठित आम आदमी पार्टी|

आम आदमी पार्टी के गठन के बाद दिल्ली के कई मौकापरस्त व महत्त्वकांक्षी लोग जिनकी राष्ट्रीय पार्टियों में दाल नहीं गल रही थी, आसानी से आम आदमी पार्टी में घुस गये और दिल्ली में “आप” को मिली अप्रत्याशित विजय ने ऐसे लोगों को “आप” पार्टी का सदस्य बनने की लम्बी लाइन लगाने को मजबूर कर दिया| साथ ही “आप” की इस दिल्ली विजय ने सभी क्षेत्रीय दलों को नेपथ्य में धकेल तीसरे मोर्चे की गठन की कवायद व संभावना को ही ख़ारिज कर दिया| आज जहाँ भी चुनावी चर्चा सुनने को मिलती है वहां सिर्फ और सिर्फ “आप” और “भाजपा” की टक्कर की बात सुनाई देती है| कांग्रेस पार्टी भी चुनावी दंगल में नेपथ्य में चली गई है हालाँकि कांग्रेस अंदरखाने खुश नजर आ रही है कि आम आदमी पार्टी भाजपा के नरेंद्र मोदी का रथ दिल्ली के बीच रास्ते में ही रोक देगी और उन्हें गुजरात में रहने को ही मजबूर कर देगी, देखा जाय तो जो काम कांग्रेस को करना चाहिये था अब वह उस कार्य के लिए “आप” की और आशा भरी नजरों से टकटकी लगाये बैठी|

एक तरह से देखा जाय तो “आप” तीसरे मोर्चे का विकल्प बन चुकी| जो लोग सत्ता के गलियारों में घुसने के लिए तीसरे मोर्चे के गठन की आस लगाये बैठे रहते थे वे मौकपरस्त व महत्वकांक्षी लोग अब “आप” में घुस कर सत्ता की मलाई चाटना चाहते है|

आज दिल्ली विधानसभा की आम आदमी पार्टी सरकार में पनपे असंतोष की और नजर डालें तो इसके पीछे भी उपरोक्त किस्म के नेताओं की “आप” में घुसपैठ ही जिम्मेदार है| चूँकि “आप” से विजयी नेता और “आप” में घुसे ज्यादातर लोगों को अरविन्द केजरीवाल और उसकी खास टीम को भरोसा नहीं है अत: केजरीवाल एंड टीम उन्हें कोई फैसला नहीं लेने देती बल्कि अपने फैसले उन पर थोपती है, और ऐसा कर केजरीवाल कोई गलत नहीं कर रहे है (यदि उन्होंने बिना परखे इन नेताओं को छुट दे दी तो ये अपने कर्मों से आम आदमी पार्टी का बंटाढार करने में देर भी नहीं लगायेंगे) और यही कारण है कि ऐसे फैसलों व राजनीति में अबतक की परम्परा के अनुरूप मलाई बटोरने का मौका ना मिलना ही असंतोष को जन्म दे रहा है|

और ये सब होना ही था आखिर जो काम तीसरे मोर्चों में आजतक होते आये है वे मोर्चे के विकल्प में भी तो होंगे|


aam aadmi party, teesra morcha, arvind kejriwal

चुनावी कुरुक्षेत्र में कौरवों द्वारा जातीय भावनाओं का दोहन

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देश के आजाद होते ही अन्य देशी रियासतों के साथ महाराज ताऊ धृतराष्ट्र के हस्तिनापुर राज्य का भी देश में विलय हो गया| उसके बाद महाराज ताऊ धृतराष्ट्र अपने महलों में समय व्यतीत करने लगे, वैसे भी इतने युगों तक राज रहने से उनके मन में राज करने की भूख भी ना रही थी| इस तरह महलों में आराम फरमाते महाराज ताऊ धृतराष्ट्र को काफी समय बीत गया| इसी दौरान महाराज के कुछ समाज बंधुओं ने पतन की और अग्रसर अपने समाज को बचाने हेतु एक संगठन का निर्माण कर लिया, वे जगह जगह शिविर लगा अपने समाज बंधुओं का चरित्र निर्माण करने लगे और इसी सद्कार्य के चलते समाज में उस संगठन की अच्छी पैठ बन गई|

कुछ वर्षों बाद महाराज ताऊ धृतराष्ट्र को भी लगा कि बहुत राज कर लिया, आजादी के बाद आराम भी बहुत कर लिया क्यों ना अब कुछ समाज सेवा की जाय| और महाराज ताऊ धृतराष्ट्र समाज सेवा जैसे पुनीत कार्य में उतर पड़े| महाराज ताऊ धृतराष्ट्र की सदासयता व भलापन देख समाज के प्रबुद्ध लोगों ने उस चरित्र निर्माण कार्य में सलंग्न संगठन का उनको मुखिया बना दिया|

महाराज ताऊ धृतराष्ट्र का मुखिया बनते ही समझो कौरवों की तो बिगड़ी बन गई क्योंकि अब तक संगठन में भी पांडव गुट का कब्ज़ा था सो वे कौरवों को अपनी मर्जी से कुछ करने भी नहीं देते थे, सो अब महाराज ताऊ धृतराष्ट्र के मुखिया बनते ही कौरव ग्रुप संगठन के नाम पर स्वार्थी सिद्धि के ख्वाब देखने लगा| पर महाराज ताऊ धृतराष्ट्र ने महाभारत काल के विपरीत कौरवों को इस बार सहानुभूति तो रखी पर पूरा स्पोर्ट नहीं दिया| क्योंकि उस संगठन के मुखिया बनने के बाद समाज में महाराज ताऊ धृतराष्ट्र की इज्जत काफी बढ़ गई थी, जहाँ भी वे जाते समाज बंधू उनके चरणों में लोटपोट हो जाते पर फिर भी पांडव गुट के आदमी महाराज को आशंका की दृष्टि से देखते और वो आदर सत्कार नहीं देते जो उनको अन्यों से मिलता था|

महाराज ने अपने कई सलाहकारों से इस संबंध में चर्चा की तो बात आई कि महाराज ताऊ धृतराष्ट्र को दीक्षा लेकर साधू बाबा का मुखौटा लगा लेना चाहिये फिर समाज बंधू तो क्या ? और लोग भी चरणों में लोटपोट होने को तैयार हो जायेंगे| और साथियों की यह बात महाराज ताऊ धृतराष्ट्र को जंच गई| और वे इसे कार्यरूप देने जल्द ही एक साधू के आश्रम में जा पहुंचे| वहां दीक्षा देने से पहले महाराज ताऊ धृतराष्ट्र को बाबा के चेलों ने झाड़ू पकड़ा दी और बोले - महाराज ताऊ धृतराष्ट्र ! होंगे आप महाराज अपने हस्तिनापुर के ! पर यहाँ तो कई साल झाड़ू निकालोगे तब कहीं जाकर दीक्षा मिलेगी| और कुछ दिन आश्रम का झाड़ू पोछा करने से परेशान महाराज ताऊ धृतराष्ट्र कैसे जैसे अपना पीछा छुड़ा अपने संगठन मुख्यालय भाग आये|

पर महाराज ताऊ धृतराष्ट्र की इस तरह महत्वाकांक्षा भांप मामा शकुनी कौरवों के पक्ष में माहौल बनाने में जुट गये, मामा शकुनी की सलाह से कौरव महाराज ताऊ धृतराष्ट्र के नेतृत्व राजनीति में टांग अड़ाने हेतु बने एक अलग संगठन पर कब्ज़ा जमाने में कामयाब रहे और उसकी एक जनसभा में पांडू पक्ष के कुछ नेताओं पर हमला कर उन्हें संगठन से खदेड़ दिया| चूँकि कौरव गुट महाराज ताऊ धृतराष्ट्र को समझाने में सफल रहे कि – आपका काम चरित्र निर्माण का है अत: आप उसमें लगे रहे और हम आपके द्वारा चरित्र निर्माण हुए समाज बंधुओं की जातीय भावना का दोहन इस नए फाउंडेशन के नाम से राजनीति करते रहेंगे| इससे हमारा भी काम चलता रहेगा और आप पर भी कोई आरोप नहीं लगेगा|

इस तरह कौरव महाभारत काल के विपरीत बिना द्रोपदी का चीर हरण किये व जुआ खेले उस हस्तिनापुर रूपी फाउंडेशन से पांडू पक्ष को निकाल काबिज हो गये| और चुनाव आते ही सक्रीय हो अपना उल्लू सीधा करते और फिर पांच साल ऐश| इस तरह कौरव पांडू पक्ष की मेहनत से बने संगठन पर काबिज हो गए और पांडू पक्ष बेचारा खाली हाथ| पर पांडू पक्ष के साथ भी तो कृष्ण सरीखे बुद्धिजीवी थे सो उन्होंने अपने से हजार गुना संख्या में ज्यादा कौरवों का मुकाबला करने के लिए संसाधन तलाशने शुरू कर दिए कि अचानक उन्हें जुकरबर्ग नामक एक व्यक्ति का बनाया फेसबुक रूपी गांडीव मिल गया और फिर क्या था, संख्या में कुछ थोड़े बचे पांडू गुट ने कौरव सेना पर तीरों की बौछार करदी| सामने जो चुनाव आये उनमें पांडू पक्ष ने जुकरबर्ग का जयकारा लगाते हुये उस फेसबुक रूपी गांडीव से ऐसा हमला किया कि कौरव बौखला गये उनसे जबाब देते भी ना बना|

चुनाव रूपी कुरुक्षेत्र ख़त्म हुआ और पांडू पक्ष के यौधाओं ने भी गांडीव तीर हमले कम कर दिये फिर भी इस फेसबुक रूपी गांडीव के हमलों से घायल कौरव सेना के महारथी अभी भी फेसबुक दुनियां में बौखलाये घूमते देखे जा रहे है| नित्यप्रति एक कौरव बदले की भावना से टक्कर देने का प्रण लेकर आता है पर अर्जुन के गांडीव से छूटे तीरों की मार के आगे भाग खड़ा होता है|

अब सुना है नयी तकनीक से पैदल कौरवों के दल ने भी फेसबुक रूपी गांडीव प्रयोग कर पांडू पक्ष को जबाब देने के लिए एक युवा दल का गठन किया है पर गांडीव के सटीक प्रयोग के लिए अर्जुन चाहिये और वो कौरवों को मिल नहीं रहे| बेचारे महाराज ताऊ धृतराष्ट्र एक बार फिर कौरवों की महत्वाकांक्षा के चलते फंस गये|


चित्र : www.taau.inसे साभार

धंधे के लिये झुकने को तैयार बालाजी टेलीफिल्मस

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जोधा अकबर सीरियल में इतिहास से छेड़छाड़ को लेकर करणी सेना सहित देश के विभिन्न राजपूत युवा संगठनों ने सीरियल शुरू होने से पहले ही इसका विरोध शुरू कर दिया था, पर जी टीवी व बालाजी टेलीफिल्मस इस विरोध को भी सीरियल की टीआरपी बढाने में इस्तेमाल करने लगे| जी टीवी के साथ संगठनों की पहली बैठक IBF के ऑफिस में हुई जहाँ उन्होंने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि उनका सीरियल के निर्माण से कोई लेना देना नहीं है, उन्होंने सिर्फ बालाजी टेलीफिल्मस को सीरियल दिखाने के लिये समय आवंटित किया है|

सीरियल शुरू होने के एक दिन पहले गुडगांव में जी टीवी टीम के साथ बालाजी की और से खुद अभिनेता जितेन्द्र शामिल हुये| उस बैठक में भी जी टीवी ने सीरियल के स्वामित्व वाली उपरोक्त बात दोहराई और उस पर बालाजी की पूरी टीम चुप्पी साधे बैठी रही, सामाजिक संगठनों व लोकेन्द्र सिंह कालवी के लाख समझाने व खुद जितेन्द्र द्वारा यह मानने के बाद कि सामाजिक संगठन सही कह रहे है इतिहास से छेड़छाड़ हुई है पर अब हम इतने आगे बढ़ गये कि पीछे लौटना मुस्किल है और वार्ता बेनतीजा रही|

दुसरे दिन से सीरियल का प्रसारण शुरू हो गया, साथ विभिन्न जगह हुए विरोध प्रदर्शनों को भी जी टीवी व बालाजी ने टीआरपी के लिए खूब भुनाया| लेकिन जैसे ही बालाजी टेलीफिल्मस की एक फिल्म रिलीज हुई और करणी सेना के खौफ के चलते राजस्थान में कोई भी सिनेमा हाल मालिक फिल्म के प्रदर्शन को राजी नहीं हुआ तब एकता कपूर जयपुर आई और मीडिया के कैमरों के सामने करणी सेना की सभी मांगे मांगते हुए राजपूत समाज से माफ़ी मांगी और सीरियल से हटने की बात कही| पर जैसे ही उसकी फिल्म रिलीज हो गई तब एकता कपूर अपने वादे से मुकर गई, देशी भाषा में कहूँ तो एकता कपूर फ़िल्मी धंधे के लिये थूक कर चाट गई|

लेकिन अब एकता कपूर की आगामी दिनों में पांच फ़िल्में आनी वाली है कईयों का तो प्रदर्शन भी विरोध के डर से रोका गया है, ऐसे में धन कमाने व अपने धंधे के लिए किसी भी स्तर तक गिर जाने वाले फ़िल्मी लोग नुकसान कैसे सहन कर सकते है? फिर अब सीरियल की बची कड़ियों को छोड़ देना पांच फिल्मों से होने वाले नुकसान से कहीं बहुत कम है| सो बालाजी टेलीफिल्मस ने तय किया कि सीरियल का छोटा घाटा सहन कर फिल्मों में होने वाला बड़ा घाटा रोका जाय और इसी कवायद के चलते इस बार बालाजी टेलीफिल्मस की एकता कपूर ने अपने मामा रमेश सिप्पी को राजपूत युवा संगठनों से वार्ता करने भेजा|

वार्ता में रमेश सिप्पी ने बताया कि वे जोधा अकबर सीरियल निर्माण से हट रहे है और राजपूत समाज को इस बात पर भरोसा दिलवाकर ही वे अपनी किसी फिल्म को रिलीज करेंगे, जब तक समाज आश्वस्त नहीं होगा हम फिल्म रिलीज ही नहीं करेंगे लेकिन सीरियल पूरी तरह से रोकने में हम असमर्थ है वह सिर्फ जी टीवी ही रोक सकता है|

सीरियल के स्वामित्व को लेकर दोनों ही पक्ष शुरू से ही समाज को गुमराह करते आ रहे थे, पहले बालाजी के सामने जी टीवी सीरियल का स्वामी बालाजी को बता रहा था, तब बालाजी नहीं बोला, अब जब बालाजी टेलीफिल्मस अपनी फिल्मों के चलते फंस गया तो सीरियल का स्वामित्व जी का बता रहा है, साथ ही एक फिल्म चलवाने के लिये एकता कपूर पहले ही थूक कर चाट चुकी है अत: अब समाज के युवाओं को लग रहा है कि स्वामित्व के नाम पर ये फ़िल्मी भांड जिनके लिए पैसा ही माई-बाप है जिसके लिए वे किसी भी स्तर तक गिर सकते है पर कैसे भरोसा किया जाय ?

सीरियल में निर्माता बालाजी अपना नाम हटा कोई छद्म नाम भी तो दे सकता है, अपने किसी नौकर या रिश्तेदार के नाम पर खोली कम्पनी के नाम पर भी तो सीरियल बना सकता है| इन्हीं आशंकाओं के चलते राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, उतरप्रदेश, महाराष्ट्र व दिल्ली के युवा संगठनों ने तय किया है कि वे जब तक यह सीरियल पूरी तरह बंद ना हो तब तक बालाजी टेलीफिल्मस की कोई फिल्म नहीं चलने दी जायेगी| इस बार यह भी तय किया गया कि युवा कहीं भी प्रशासन से ना टकरायें सिर्फ और सिर्फ बालाजी टेलीफिल्मस को आर्थिक नुकसान पहुंचाएं ताकि भविष्य में भी किसी फिल्म निर्माता का राजपूत समाज की प्रतिष्ठा को आघात लगाने की हिम्मत ना पड़े|

एकता के थूककर चाटने के बाद अब बालाजी टेलीफिल्मस की नई चाल

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बालाजी टेलीफिल्मस द्वारा निर्मित जी टीवी पर चल रहे धारावाहिक जोधा अकबर के प्रदर्शन से पूर्व प्रोमो देख राजपुताना संघ के अध्यक्ष भंवर सिंह रेटा ने IBFआई.बी.एफ के अधिकारियों को सीरियल में इतिहास व राजपूत संस्कृति के साथ छेड़छाड़ के खिलाफ शिकायत की व उनके आव्हान पर राजपूत युवाओं ने आई.बी.एफ में हजारों शिकायती मेल भेजे| उधर जयपुर में करणी सेना जो पूर्व में भी अरुण गोवरिकर की फिल्म जोधा अकबर का राजस्थान में आजतक प्रदर्शन रोकने में सफल रही, इस सीरियल के खिलाफ ताल ठोक रही थी| तमाम शिकायतें मिलने के बाद आई.बी.एफ के अधिकारियों ने जी टीवी के साथ राजपूत संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक आयोजित की जिसमें करणी सेना संस्थापक लोकेन्द्र सिंह कालवी ने सीरियल में ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ पर प्रकाश डालते हुये, जोधा अकबर से सम्बंधित ऐतिहासिक तथ्य उपलब्ध कराये जिनमें कही नहीं लिखा था कि जोधा नाम की कोई अकबर की पत्नी थी|

सीरियल शुरू होने के एक दिन पहले बालाजी टेलीफिल्मस व जी टीवी प्रबंधन टीम ने एक बार फिर गुडगाँव के ओबेराय होटल में एक बैठक आयोजित की, जिसमें बालाजी टेलीफिल्मस के अभिनेता जितेन्द्र ने राजपूत प्रतिनिधियों द्वारा रखे गये ऐतिहासिक तथ्यों से सहमती जताने के बावजूद सीरियल बंद करने में असहमति जताई| इन दोनों बैठकों में जी टीवी ने अपने आपको सीरियल की कहानी व मालिकाना हक़ से अपने आपको दूर बताया और बालाजी टेलीफिल्मस की टीम ने भी इसका विरोध नहीं किया कि वे सीरियल के मालिक नहीं है| उस वक्त बालाजी टेलीफिल्मस जो धारावाहिक निर्माण क्षेत्र में एक बहुत बड़ी हस्ती है देशी भाषा में कहूँ तो सीरियल निर्माण के मामले में बालाजी किसी माफिया से कम नहीं, को घमंड था कि राजपूत समाज उनका बिगाड़ लेगा ? और समाज द्वारा लाख समझाने की कोशिश के बावजूद बालाजी ने हठधर्मितापूर्वक धारावाहिक का निर्माण जारी रखा जिसमें इतिहास को गलत ढंग से पेश कर राजपूतों की प्रतिष्ठा के साथ नंगा नाच किया गया|

इस बीच इस सीरियल के खिलाफ देशभर के राजपूत युवा सड़कों पर संघर्ष करते रहे, लाठियां खाते रहे पर निरंकुश बालाजी टेलीफिल्मस के मानस पटल पर कोई असर नहीं हुआ बल्कि वे उल्टा खुश हुए कि विरोध से उनके सीरियल की तीआरपी बढ़ रही है|

लेकिन “ऊंट कभी तो पहाड़ के नीचे आता है” कहावत के अनुसार बालाजी रूपी ऊंट उस वक्त राजपूत समाज रूपी पहाड़ के नीचे आ गया जब उसे अपनी एक फिल्म रिलीज करनी थी और रिलीज के एक दिन पहले करणी सेना ने राजस्थान में फिल्म का प्रदर्शन रुकवा दिया| तब एकता कपूर अपने बाप जितेन्द्र, माँ शोभा आदि को लेकर राजपूत समाज से वार्ता करने जयपुर आने को मजबूर हुई| जहाँ मीडिया के सामने जिन्दगी में किसी के आगे ना झकने वाली एकता कपूर ने राजपूत समाज के आगे घुटने टेकते हुए माफ़ी मांगी और करणी सेना की सभी मांगे मानते हुये सीरियल निर्माण से हटने का वादा किया| उस दिन पहली बार बालाजी ने माना कि सीरियल के मालिक जी टीवी वाले है हम नहीं|

खैर...समाज से मीडिया के कैमरों के आगे सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने के बाद जब करणी सेना ने बालाजी की फिल्म का प्रदर्शन होने दिया और फिल्म प्रदर्शित हो गई तब एकता कपूर अपने वादे से मुकर गई| इस तरह एकता कपूर ने साबित कर दिया कि धन कमाने के मामले में वह किसी भी स्तर तक गिर सकती है, उसके लिए उसकी जबान की कोई कीमत नहीं|

एकता कपूर के मुकरने के बाद सबसे ज्यादा करणी सेना व लोकेन्द्र सिंह कालवी की प्रतिष्ठा को आघात लगा| राजपूत समाज के युवाओं ने सोशियल साइट्स पर करणी सेना व कालवी पर बालाजी से धन लेने का आरोप तक लगाया| लेकिन करणी सेना चुप रही और एकता कपूर की आने वाली किसी फिल्म का इन्तजार करने लगी| अब एकता कपूर की आगामी कुछ दिनों में पांच फ़िल्में आने वाली है और वह समझ चुकी है कि करणी सेना उससे पूरा बदला लेगी| फ़िल्में नहीं चलने से बालाजी को तगड़ा आर्थिक नुकसान होगा और सब जानते है कि फ़िल्मी लोग धन को ही सबसे बड़ा समझते है|

अत: आने वाली फिल्मों में राजपूत समाज द्वारा आर्थिक नुकसान पहुँचाने की आशंका के चलते एकता कपूर एंड कम्पनी ने फिर एक नई चाल चली| 7 फरवरी को इस बार बालाजी टेलीफिल्मस की और से एकता कपूर के मामा रमेश सिप्पी वार्ता करने जयपुर आये, और राजपूत समाज को आश्वस्त किया कि वे 14 फरवरी के बाद जोधा अकबर सीरियल निर्माण से हट जायेंगे, इसके बाद सीरियल चलता है तो राजपूत समाज, जी टीवी व उसका वर्तमान निर्माता जाने| इस तरह बालाजी टेलीफिल्मस ने अपना वह आर्थिक नुकसान बचाने के लिए जिसके लिए वे कितना भी गिर सकते है के लिए एक नया दाँव खेला|

लेकिन बालाजी टेलीफिल्मस भूल गया कि ऐसे खेलों से आज किसी को मुर्ख नहीं बनाया जा सकता| सब जानते है कि व्यापारी वर्ग एक नहीं अनेक कम्पनियां बनाकर व्यवसाय करते है, आज सीरियल के निर्माता के तौर पर जिस किसी और का नाम आ रहा है हो सकता है वह बालाजी टेलीफिल्मस के मालिकों की ही कोई छद्म नाम वाली कम्पनी हो| और बालाजी टेलीफिल्मस सीरियल बना छद्म नाम से चला रहो हो| हर कोई जानता है कि एक सीरियल बनाने से पहले कितनी तैयारियां करनी पड़ती है पर यदि जोधा अकबर सीरियल मामले में देखें तो पायेंगे कि 14 फरवरी को बालाजी टेलीफिल्मस निर्माण से हट रही है और दूसरा निर्माता बिना किसी बाधा के या एक भी दिन सीरियल रुके, उन्हीं कलाकारों को लेकर सीरियल की कड़ियाँ बना प्रदर्शित करवा रहा है| यह कैसे संभव हो सकता है ? साफ़ जाहिर है अपनी फ़िल्में में अड़चन रोकने के लिए बालाजी टेलीफिल्मस ने निर्माण से अपना नाम हटा फिर एक नया खेल खेलने की तैयारी की है पर उसे समझना चाहिये कि इस बार राजपूत समाज के युवा उनके झांसे में नहीं आने वाले|

पिछले दिनों कई संगठनों की बैठकों व कार्यकर्ताओं से मिलने पर मेरे सामने सबका एक विचार आया कि- इस बार बालाजी से बिना कोई वार्ता किये, उसकी फ़िल्में रोक उसे आर्थिक चोट पहुंचाई जाय| ये आर्थिक नुकसान का डर ही इन फ़िल्मी भांडों को भारतीय संस्कृति व इतिहास से छेड़छाड़ करने को रोक सकता है फिर एकता कपूर तो अपने सीरियलों में भारतीय संस्कृति के साथ छेड़छाड़ के लिए कुख्यात है|

यही नहीं बालाजी टेलीफिल्मस की और से आजकल आने वाले ईमेल संदेशों की भाषा का शातिराना अंदाज देखिये कि - पिछले दिनों जयपुर में रमेश सिप्पी द्वारा सीरियल निर्माण से हटने की बात कहने के बाद वे मान बैठे है कि उनकी यह बात मान राजपूत युवा उनकी फ़िल्में चलने देंगे| और अब नाम हटा कर ऐसे प्रदर्शित कर रहे है जैसे कोई व्यक्ति अंगुली पर कट लगवाने से निकला खून दिखा कर शहादत का दावा करे| दुबारा फंसने पर तकनीकि तौर पर अपना हटा बालाजी वाले लिखते है हमने अपना वादा निभा उच्च मूल्य स्थापित किये है और अब राजपूत युवा उनकी फ़िल्में रोकने की धमकी देकर उन्हें हरेश कर रहे है| बालाजी वालों को खुद के हरेस्मेंट होने की इतनी चिंता है जबकि उन्होंने राजपूत इतिहास के साथ तोड़मरोड़ कर समाज की प्रतिष्ठा को जो आघात लगाया उनकी लिए वे रत्तीभर भी नहीं सोचते| यदि सोचते तो समझ आने के बाद तुरंत सीरियल रोक देते या उसकी कहानी को सही इतिहास के अनुरूप बदल लेते| पर जैसा कि एक बैठक में खुद जितेन्द्र ने बातों बातों में कहा- कि जो सबसे ज्यादा बुरा होता है वही बिकता है जैसे अफीम, हैरोइन आदि बहुत बुरी होती है पर बिना प्रचार के बिकती है| शायद ऐसी ही मानसिकता के चलते ये लोग भारतीय संस्कृति व इतिहास से छेड़छाड़ कर सीरियल बनाते है ताकि विवाद हो और उसकी टीआरपी बढे| लेकिन इस बार का माहौल देखते हुए लगता है कि- उग्र राजपूत युवा सिर्फ राजस्थान ही नहीं बल्कि गुजरात, हरियाणा, उतरप्रदेश और दिल्ली में भी बालाजी टेलीफिल्मस की फ़िल्में के प्रदर्शन में रूकावट डाल बालाजी को तगड़ा आर्थिक नुकसान पहुँचायेंगे| दिल्ली में पिछले कई दिनों से राजपूत युवा संगठित हो कालवी से फिल्म रुकवाने के गुर सीख सिनेमाघरों व डिस्टीब्यूटरस को खून से पत्र लिखकर बालाजी की किसी भी फिल्म का प्रदर्शन रोकने का अनुरोध कर रहे है|

देखते है अपने सीरियलों के माध्यम से भारतीय संस्कृति पर चोट करने के लिए कुख्यात और फ़िल्मी दुनियां में किसी के आगे ना झुकने के लिए मशहूर एकता कपूर दुबारा राजपूत युवाओं के आगे सिर झुकाती है या नहीं !! जो भी हो पर इस बार यह तय है कि एकता कपूर को पूर्व में अपने किये का खामियाजा भुगतना पड़ेगा ही| चाहे वो आर्थिक नुकसान व रातों की नींद हराम करके हो या कुछ और !!

दीनदयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी नामकरण : मिशन 272+ के पैरों में कुल्हाड़ी

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मोदी के मिशन 272+ को रोकने के लिए ताल ठोक रहे अरविन्द केजरीवाल भले ही मोदी मिशन का कुछ बिगाड़ पाये या नहीं, पर हाँ भाजपा के कई क्षत्रप अपनी हरकतों व अपनी मनमानी से अपने ही पारम्परिक वोट बैंक की भावनाओं को आहत कर पार्टी के मिशन 272+ की हवा जरुर निकाल देंगे|

ताजा उदाहरण राजस्थान का देखा जा सकता है, राजस्थान में राजपूत समुदाय भाजपा का पारम्परिक वोट बैंक रहा है, लेकिन इस बार राजस्थान भाजपा की अप्रत्याशित जीत ने वसुंधरा राजे को निरंकुश बना दिया है, इसी निरंकुशता के चलते राजे ने अपने पारम्परिक वोट बैंक राजपूत समुदाय की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हुए शेखावाटी आँचल में बनने वाले शेखावाटी विश्व विद्यालय का नामकरण कर दीनदयाल उपाध्याय विश्व विद्यालय कर दिया| जबकि शेखावाटी के आम निवासी व राजपूत समुदाय इस विश्व विद्यालय का नाम शेखावाटी के संस्थापक राव शेखा के नाम से करवाने की मांग करते आ रहे थे| राव शेखा शेखावाटी में निवास करने वाले राजपूत वंश के प्रवर्तक है और सभी शेखावत राव शेखा के वंशज है अत: राजपूत समाज की भावनाएं उनसे जुडी हुई है| इन चुनावों में भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में भी इस यूनिवर्सिटी का नाम राव शेखा के नाम पर करने की घोषणा की थी जिसकी ख़बरें विभिन्न अख़बारों में भी छपी थी लेकिन बीच चुनाव यह घोषणा चुनाव घोषणा पत्र से चुपचाप हटा दी गई| और सरकार बनने के बाद यह मांग दरकिनार करते हुए विश्व विद्यालय का नामकरण दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर कर दिया गया|

सरकार की इस हरकत से शेखावाटी के राजपूत समुदाय के साथ अन्य समुदायों में भारी रोष है, राजपूत समाज के जागरूक युवा भाजपा की इस हरकत का बदला चुकाने के लिए पार्टी लाइन से हट कर लोकसभा चुनावों में शेखावाटी की कई सीटों पर भाजपा को चुनाव हराने का मंसूबा पाले बैठे है|

ऐसे में सीकर, चुरू, झुंझुनू व जयपुर की सीटों पर खासा असर पड़ेगा जहाँ शेखावत राजपूत व उनके रिश्तेदार काफी संख्या में है और इस क्षेत्र में भाजपा का वजूद भी राजपूत समुदाय के इकतरफा वोट बैंक के चलते बना हुआ है| सोशियल साइट्स पर कई राजपूत लेखक इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखते है कि- पूर्व में राजस्थान में वसुंधरा राजे के पूर्वजों को युद्ध में बुरी तरह हराया गया था जिसमें शेखावाटी क्षेत्र के राजपूतों का भारी सहयोग था सो अब वसुंधरा अपने पूर्वजों की उस हार का बदला चुकाने में लगी है| ज्ञात हो अपने पूर्ववर्ती शासनकाल में वसुंधरा राजे उस जगह भी गई थी जहाँ उसके पूर्वज युद्ध हारे थे| जिससे आम लोगों में संदेश गया कि पूर्वजों की उस हार का दर्द आज भी राजे को है|

खैर...पूर्व में जो कुछ भी हुआ हो पर इतना तय है कि इस विश्व विद्यालय का नाम बदलना भाजपा के मिशन 272+ को भारी जरुर पड़ेगा| पर उससे राजे को क्या लेना देना ? उनके तो पांच साल पक्के हो ही गये|

धन्यवाद कांग्रेस विधायक गोविंद जी टोडासरा

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शेखावाटी विश्व विद्यालय का नाम शेखावाटी के संस्थापक महाराव शेखाजी के नाम पर रखने की मांग शेखावाटी वासियों खासकर राजपूत समुदाय काफी समय से कर रहा था पर प्रदेश के राजपूतों की पसंदीदा पार्टी भाजपा का शासन आते ही इस विश्व विद्यालय का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय विश्व विद्यालय कर दिया गया| भाजपा से इस कृत्य से भाजपा का ही पारम्परिक वोट बैंक राजपूत समुदाय ने जिसने आजतक भाजपा रूपी पौधे को सींच कर इस लायक बनाया हतप्रभ है|

समुदाय के नेताओं व विधायकों से सरकार के इस कृत्य का विरोध ना करते बन रहा है ना उगलते बन रहा है| पिछले दिनों में इस विश्व विद्यालय के नामकरण का प्रस्ताव विधानसभा में ध्वनिमत से पारित कर दिया, पर चाहते हुए भी राजपूत विधायक इसके खिलाफ नहीं बोल सके|

लेकिन राजपूतों के जातीय दुश्मन माने जाने वाले एक जाट विधायक गोविन्द सिंह टोडासरा ने सरकार के इस निर्णय का विरोध करते हुए यूनिवर्सिटी का नाम महाराव शेखाजी के नाम पर करने की मांग करते हुए कहा कि यदि भाजपा को अपने संस्थापक का नाम ही रखना है तो वे किसी अन्य कालेज का नाम उनपर रख दे या दीनदयाल के नाम से एक मेडिकल कालेज खोलदे पर शेखावाटी ने बनने वाली पहली यूनिवर्सिटी का नाम राव शेखाजी के नाम पर ही होना चाहिए|
विधायक टोडासरा ने राजपूत समाज की मांग विधानसभा में उठाकर एक तरह से सामाजिक समरसता का शानदार परिचय दिया है| इसके लिए धन्यवाद के पात्र है|

ज्ञात हो शेखावाटी का राजपूत समुदाय शुरू से ही कांग्रेस विरोधी रहा है और विधायक टोडासरा कांग्रेस विधायक है जिन्हें कभी भी राजपूत मत नहीं मिलते, इसके बावजूद उन्होंने यह मुद्दा उठाकर सराहनीय कार्य किया है इसके लिए ज्ञान दर्पण.कॉम उनको हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करता है|

गुलामों की आवाज की कभी कीमत नहीं होती

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कुछ दिन पहले राजस्थान के वरिष्ठ व चर्चित पत्रकार श्रीपाल शक्तावत ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा - “कांग्रेस के प्रति मुसलमानों की निष्ठा और भारतीय जनता पार्टी को लेकर राजपूतों के मन में गुलामी की हद तक के समर्पण को लेकर इन दिनों कई जगह सुनने को मिला है।” और इसके बाद शक्तावत जी ने इस सम्बन्ध को लेकर एक चटपटा किस्सा भी लिखा-

एक प्रशिक्षु तांत्रिक (अपने गुरु से)- मेरे बस में नहीं आत्माओं को जगाना और उन्हें वश में करके अपने काम निकलवाना। गुरु- क्या हुआ ? इतने जल्दी थक गये अपने मिशन से ?
प्रशिक्षु तांत्रिक - थकना ही था कितने दिन से आपके कहे मुताबिक आत्माओं को जगाने की मुहीम में लगा हूँ, लेकिन बात बन नहीं रही।
गुरु (मुस्कराते हुए) - चल आज से एक मन्त्र याद करले।
प्रशिक्षु तांत्रिक - क्या गुरुदेव ?
गुरु - कब्रिस्तान में जाकर कांग्रेस के नारे लगाना और राजपूतों के श्मशान में जाकर भाजपा के नारे लगाना, आत्माएं ही आत्माएं आयेंगी, जिसे चाहे काम लेना, जिसे चाहे छोड़ देना।
प्रशिक्षु तांत्रिक- जी गुरुदेव ! लेकिन ?
गुरु - लेकिन वेकिन कुछ नहीं। इनसे ज्यादा राजनैतिक दलों का मानसिक गुलाम कोई नहीं मिलेगा। सो नारे लगाते ही निकल आयेंगी हजारों आत्माएं, जो पूरी जिन्दगी इनके नारे लगाते लगाते ही मर गई।

श्रीपाल जी ने सही लिखा मुसलमानों पर तो दूसरा धर्म होने के नाते टिप्पणी करना मैं किसी भी लिहाज से ठीक नहीं समझता पर हाँ चूँकि खुद राजपूत जाति से हूँ इसलिए अपनी जाति की चर्चा करने को अपने आपको स्वतंत्र मानता हूँ।
आज देशभर का नहीं तो कम से कम राजस्थान का राजपूत भारतीय जनता पार्टी से इतना जुड़ गया कि उसे भाजपा के बाद कुछ भी दिखाई नहीं देता, भले भाजपा उसके स्वाभिमान से खेले या उसकी कभी कोई आवाज तक ना सुने। चुनावों में टिकट वितरण के समय जरुर भाजपा कुछ राजपूत उम्मीदवार उतारती है ताकि राजपूत समझते रहे कि अन्य दलों से ज्यादा हमें भाजपा ने टिकट दी है और इसी एक बिंदु को लेकर भाजपा के प्रति राजस्थान के राजपूतों का समर्पण मानसिक गुलामी तक पहुँच गया है। यही नहीं राजपूतों के अग्रणी सामाजिक संगठन भी भाजपा के मानसिक गुलाम बन अपने समाज को इसी धारा में बहाते रहने को कटिबद्द है।

इस मानसिक गुलामी की हद तक समर्पण करने वाले राजपूतों को ध्यान रखना चाहिये कि गुलामों की आवाज की कभी किसी जमाने में कोई कीमत व कद्र नहीं रही। तो आज क्या रहेगी ?

और इस बात को राजस्थान भाजपा सरकार ने चरितार्थ भी कर दिखाया। राजस्थान में तीन विश्व विद्यालय प्रस्तावित थे- अलवर में मत्स्य विश्व विद्यालय, भरतपुर में ब्रज विश्व विद्यालय और शेखावाटी में शेखावाटी विश्व विद्यालयद्य भाजपा सरकार ने आते ही इन तीनों विश्व विद्यालयों के नाम जो स्थानीय क्षेत्रों के नाम पर थे को स्थानीय महापुरुषों के नाम पर करते हुए अलवर में राजा भरतरी विश्व विद्यालय, भरतपुर में राजा सूरजमल विश्व विद्यालय और शेखावाटी में प्. दीनदयाल विश्व विद्यालय रख दिया जबकि शेखावाटी के राजपूत लंबे समय से शेखावाटी विश्व विद्यालय का नामकरण शेखावाटी के संस्थापक राव शेखाजी के नाम पर करने की मांग करते आ रहे थे।

लेकिन भाजपा सरकार को पता था कि राजपूत भाजपा के मानसिक गुलाम है अतः इनकी मांग मानी जाये या ना मानी जाये कोई फर्क नहीं पड़ता। राजपूत पारम्परिक तौर पर कांग्रेस विरोधी है अतः भाजपा को वोट देना उनकी मजबूरी है फिर अब राजपूत भाजपा के मानसिक गुलाम तक बन चुके तो ऐसी परिस्थिति में वे कहीं जाने वाले नहीं सो उनकी मांग ना सुनकर शेखावाटी विश्व विद्यालय का नामकरण दीनदयाल उपाध्याय पर कर दिया गया। जबकि दीनदयाल उपाध्याय का शेखावाटी में कोई योगदान नहीं। पर भाजपा ने अपना संघी एजेंडा शेखावाटी का जनता के माथे थोप दिया। और तो और भाजपा के राजपूत विधायक और सामाजिक संगठन चाहते हुए भी सिर्फ इसलिए आवाज नहीं उठा पाये कि इससे संघ नाराज हो जायेगा और उनकी स्थिति पार्टी में कमजोर हो जायेगी। लानत ऐसे विधायकों व सामाजिक संगठनों पर जो राजनीति तो समाज के नाम पर करते है पर समाज के स्वाभिमान व हित से स्व हित बड़ा समझते है।

इस घटना से साफ जाहिर है कि भाजपा ने राजपूतों को अपना मानसिक गुलाम समझ उनकी आवाज की कोई कीमत नहीं समझी। इसके ठीक विपरीत भाजपा को पता है कि जाट जातिय आधार पर वोट देते है अतः उनके वोट लेने के लिए भाजपा ने पहले उन्हें बिना मांगे राज्य में आरक्षण दिया और ब्रज विश्व विद्यालय का नाम बिना किसी मांग के जाट राजा सूरजमल के नाम पर किया ताकि जाटों को खुश कर वोट लिए जा सके। इस तुष्टिकरण की हद तो तब देखने को मिली जब कांग्रेस के अभी दिवंगत हुए नेता परसराम मदेरणा के नाम से वसुंधरा राजे कालेज खोलने की घोषणा से नहीं चुकी। अपने विपक्षी दल के मदेरणा के नाम कालेज खोलने की घोषणा के पीछे भी राजे की जाट तुष्टिकरण की मंशा साफ देखी जा सकती है।

हालाँकि हमें राजा सूरजमल व परसराम मदेरणा के नाम पर विश्व विद्यालय बनाने की कोई शिकायत नहीं है, बल्कि हम इस घोषणा का तहेदिल से स्वागत करते है पर इनकी तुलना यह समझाने के लिए काफी है कि गुलामों की आवाज की कोई कीमत नहीं होती।

शायद अब भी राजपूत समुदाय इस बात को समझे, राजपूत ही क्यों सभी समुदायों को यह बात समझनी चाहिये और किसी भी राजनैतिक दल के प्रति मानसिक गुलामी की हद तक समर्पण करने से बचना चाहिये।

अकबर - आमेर संधि के मायने

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अकबर के साथ आमेर के राजा भारमल द्वारा राजनैतिक संधि करने व बाद में उसके पूर्वजों द्वारा उसे निभाने को लेकर आज उस काल की परिस्थितियों को बिना समझे कई तरह की बातें की जाती है| कई अति कट्टर धार्मिक प्रवृति के लोग मुस्लिम शासकों की आलोचना करते समय आमेर के राजाओं का चरित्र हनन करने से भी नहीं चूकते, जबकि यदि आमेर के शासक जो उस वक्त अपने स्वजातीय बंधुओं, मीणाओं, पिंडारियों आदि से त्रस्त थे ने विरोधियों पर काबू पाने के लिए अकबर जैसे शक्तिशाली बादशाह से राजनैतिक संधि कर अपने राज्य की जनता की सुरक्षा व विकास का मार्ग ही प्रशस्त किया था|

मुसलमान शासकों से संधि के मामले में आलोचना करने वाले हिन्दू कट्टरपंथी आमेर के शासकों के की उस दूरगामी निति पर ध्यान नहीं देते जिस निति की वजह से आज वे अपने आपको हिन्दू कहने लायक बचे हुए है| आमेर के शासकों द्वारा अकबर से संधि कर भारत पर मुसलमान आक्रमणकारियों द्वारा आक्रमण कर इस्लामीकरण करने की उस गति पर जो लगाम लगाई उस निति पर प्रकाश डालते हुये मगध विश्व विद्यालय, गया के इतिहास रीडर राजीव नयन प्रसाद द्वारा लिखित और डा.रतनलाल मिश्र द्वारा अनुवादित पुस्तक "राजा मानसिंह आमेर" की भूमिका में लिखते हुये पूर्व पुलिस अधिकारी, क्षत्रिय चिंतक व लेखक श्री देवीसिंह जी महार लिखते है -

"कोई भी व्यक्ति अथवा समाज काल परिस्थिति निरपेक्ष नहीं हो सकता है, इसीलिए चाहे इतिहास व्यक्ति का हो अथवा समाज या देश का उस पर उस काल की परिस्थितियों का न केवल प्रभाव होता है, अपितु जो व्यक्ति अथवा समाज काल व परिस्थितियों की उपेक्षा करके चलता है, ऐसा नहीं है कि केवल सफलता ही प्राप्त नहीं कर सके,अपितु विनाश को भी प्राप्त होता है| आज के इतिहासकार उपर्युक्त तथ्यों पर प्रकाश डाले बिना ही इतिहास लेखन का कार्य कर रहे है, जिससे इतिहास के पात्रों के साथ न्याय नहीं हो पाता है|

सिकंदर ने देश पर ईशा पूर्व 326 में अर्थात 2329 वर्ष पूर्व आक्रमण किया था, उसके बाद सिंध पर लगातार आक्रमण होते रहे| महमूद गजनी ने ईस्वी 1001 व मुहम्मद गौरी ने ई.1175 में भारत पर पहला आक्रमण किया| उसके बाद लगातार पठानों व बाद में मुगलों ने इस देश पर आक्रमण किये| इन आक्रमणों का उद्देश्य न तो लूटपाट था और न ही केवल शासन स्थापित करना, अपितु इनका उद्देश्य था - सम्पूर्ण देश का इस्लामीकरण| पिछले कुछ सौ वर्षों में ही ईरान, ईराक व अफगानिस्तान के विशाल भूभाग की जनता का धर्म परिवर्तन कर उनको इस्लाम में दीक्षित करने के बाद उनका मुख्य उद्देश्य भारत का इस्लामीकरण था| लगातार 2000 से अधिक वर्षों तक विदेशियों के आक्रमण का सामना करने व उसके कारण भारी जन-धन की हानि उठाने के कारण राजपूत-शक्ति क्षीण व क्षत-विक्षत हो गई थी| मुसलमानों ने विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति कर आधुनिक हथियारों बंदूकों, तोपों आदि का निर्माण कर लिया था, जबकि हमारे देश के शिक्षा के ठेकेदार इस दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाये थे, परिणामस्वरूप मुसलमानों के विरुद्ध होने वाले युद्धों में राजपूतों को भारी हानि उठानी पड़ती थी| बाबर व शेरशाह सूर के काल तक परिस्थिति इतनी दयनीय हो गई थी कि लोग धन व राज्य के प्रलोभन में बड़ी संख्या में इस्लाम को अपनाने लगे थे, यहाँ तक की राज्य के लोभ में राजपूत भी इस्लाम को अपना रहे थे|

इक्के दुक्के आक्रमणों को छोड़कर 2000 वर्षों में भारत पर सैंकड़ों आक्रमण काबुल व कंधार के रास्ते से हुये, लेकिन इस देश के किसी शासक ने खैबर व बोलन के दर्रों को बंद करने की बुद्धिमत्ता प्रदर्शित नहीं की| काबुल क्षेत्र में पांच बड़े मुसलमान राज्य थे, जहाँ पर हथियार बनाने के कारखाने स्थापित थे| इन राज्यों के शासक भारत पर आक्रमण करने वालों को मुफ्त हथियार व गोलाबारूद देते थे, व वापस लौटने वालों से बदले में लुट का आधा माल लेते थे| इस प्रकार धन के लोभ में बड़ी संख्या में हजारों मुसलमान इस देश पर आक्रमण करते थे, जिनमें से कुछ लोग वापस लौटते समय धर्म परिवर्तन व राज्य के लोभ में यहीं रूककर पहले आये मुसलमानों के साथ मिल जाते, जिससे धर्म परिवर्तन का कार्य तेजी से बढ़ने लगा था व लाखों हिन्दुओं ने इस्लाम को स्वीकार कर लिया था|

इस खतरे को राणा सांगा जैसे बुद्धिमान शासक ने समझा था व बाबर से संधि भी की थी लेकिन सांगा उस संधि को निभा नहीं पाये, परिणामस्वरूप अन्तोत्गोत्वा बाबर से उनका युद्ध हुआ जिसमें पराजित होकर वे मारे गये| किन्तु इसके बाद आमेर में लगातार तीन पीढ़ी तक नितिज्ञ, शूरवीर व बलवान शासक हुये, जिन्होंने मुगलों से संधि कर, न केवल बिखरी हुई, दुर्बल व नष्ट प्राय: राजपूत शक्ति को एकत्रित कर उनमें आत्मविश्वास जगाया अपितु बाहर से आने वाली मुस्लिम आक्रामक शक्ति का रास्ता हमेशा के लिए रोक दिया| अपने राज्यों में आधुनिक शस्त्रों के निर्माण की व्यवस्था की व कुछ ही समय में मुगलों के बराबर की शक्ति बन गये| इसके अलावा मुगलों को पठानों से लड़ाकर पठान शक्ति को तोड़ना व भारत के इस्लामीकरण की योजना को नेस्तनाबूद कर देना उनकी प्रमुख उपलब्धि थी|

आमेर के राजा भारमल ने अकबर से संधि की| उनके पुत्र भगवंतदास ने इस संधि को न केवल सुदृढ़ किया बल्कि उन्हीं के शासन काल में उन्होंने बादशाह अकबर को पठानों को मुगलों का एक नंबर का शत्रु बताते हुए काबुल पर विजय की योजना बनवाई जिससे न केवल पठान शक्ति दुर्बल हुई बल्कि मुसलमानों की भारत के इस्लामीकरण की योजना भी दफ़न हो गई| तब मुसलमान ही मुसलमान से अपने राज्य को सुस्थिर करने के लिए लड़ रहा था व इस लड़ाई का लाभ उठाकर राजपूत अपनी शक्ति को बढाते जा रहे थे| अकबर के शासनकाल में ही मानसिंह इतना शक्तिशाली हो गया था कि अकबर के मुसलमान सेनापति उसे अपने भविष्य के लिए खतरा समझने लगे थे|

भगवंतदास ने जिस बुद्धिमत्ता से अकबर को काबुल विजय के लिए सहमत किया था उसकी क्रियान्विति कुंवर मानसिंह के शौर्य, युद्धकौशल व नितिज्ञता से ही संभव हुई थी| मानसिंह ने ही काबुल विजय कर उन पांच राज्यों के शस्त्र निर्माण करने वाले कारखानों को नष्ट किया था व वहां के शस्त्र निर्माण करने वाले कारीगरों को बंदी बनाकर आमेर ले आया था| जहाँ पर आज जयगढ़ का किला स्थित है, वहां पर शस्त्र निर्माण के एक कारखाने की स्थापना कराई गई थी व दुसरे राजपूत राजाओं को भी शस्त्र निर्माण की तकनीक उपलब्ध कराई गई थी| उन्हीं कारीगरों के वंशजों द्वारा निर्मित पहियों पर रखी संसार की सबसे बड़ी तोप आज भी जयगढ़ के किले में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है| काबुल विजय के बाद कश्मीर से लेकर उड़ीसा व बंगाल तक पठानों का दमन, हिन्दू तीर्थों व मंदिरों का उद्धार व उपर्युक्त क्षेत्र में नये राजपूत राज्यों की स्थापना मानसिंह के ऐसे कार्य थे, जिसके कारण उसे अपने काल में धर्मरक्षक कहा गया|"

लेकिन अफ़सोस इतिहासकारों व कट्टर हिन्दुत्त्ववादी लोगों ने मानसिंह व आमेर के राजाओं के चरित्र का सही अध्ययन किये बिना उनका चरित्र हनन किया और अब भी कर रहे है|

आधुनिक इतिहासकारों व कथित बुद्धिजीवियों ने राणा प्रताप व राजा मानसिंह को कट्टर शत्रुओं के रूप में प्रदर्शित किया है| इस प्रकार के प्रदर्शन के पीछे या तो उनकी स्वयं की हठधर्मिता कारण कारण रही है या इतिहास के सम्यक ज्ञान का अभाव| राजा मानसिंह मुसलमानों के इस्लामीकरण की योजना को जहाँ विफल कर स्वधर्म रक्षा के प्रयत्न में लगा हुआ था, वहीँ राणा प्रताप स्वतंत्रता की रक्षा में संलग्न थे| ये दोनों ही कार्य उस वक्त की अनिवार्य आवश्यकताएँ थी| इसीलिए समस्त राजपूतों का ही नहीं, समस्त जनता का भी समर्थन इन दोनों महापुरुषों के साथ था|
इस तथ्य का सबसे प्रबल प्रणाम यह है कि राणा प्रताप व मानसिंह के समकालीन समस्त कवियों व इतिहासकारों ने इन दोनों की वीरता व महिमा का समान रूप से बखान किया है|

अछूत कैसे हो सकते है दलित ?

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आज जिस तरह से कार्य के आधार पर लोकतंत्र के चार स्तम्भ है ठीक उसी तरह से वैदिक काल में भी कार्यनुसार चार वर्ण बनाये गये- जिसमें शासन और सुरक्षा व्यवस्था देखने वालों को क्षत्रिय नाम दिया गया, शिक्षा व कानून आदि बनाने वालों को ब्राह्मण, व्यापार करने वालों को वैश्य और आज की कार्यपालिका की तरह काम करने वालों को शुद्र| उस काल में अपनाई वर्ण व्यवस्था जन्मजात ना होकर कार्य के आधार पर थी पर धीरे धीरे समय बीतने के साथ साथ किसी भी वर्ण में जन्मा व्यक्ति अपने पुस्तैनी कार्य में सलंग्न रहा और आगे चलकर कालांतर में यही वर्ण जन्म आधारित जातियां बन गये|

चूँकि ब्राह्मणों के हाथ में शिक्षा, क्षत्रियों के हाथ में शासन और सुरक्षा, वैश्यों के हाथ में व्यापार के चलते अर्थ जैसे महत्त्वपूर्ण साधन हाथ में होने की वजह से इन तीनों वर्णों का कार्यपालिका रूपी शूद्रों पर वर्चस्व स्थापित हो गया| लेकिन जब तक क्षत्रिय आत्मनिर्भर रहते हुये अपने कार्य में लगे रहे तब समाज में किसी तरह का भेदभाव नहीं रहा, एक काबिल शुद्र भी ब्राह्मण या क्षत्रिय वर्ण में शामिल हो सकता था, पर धीरे धीरे क्षत्रिय शिक्षा व अर्थ के मामले में ब्राह्मण और वैश्यों पर निर्भर रहने लगे और इस पर निर्भरता ने उन्हें अपने कर्तव्य से पथ विचलित कर दिया और क्षत्रियों में आई इसी कमी की वजह समाज में ऊँचनीच की भावना प्रबल हुई, कार्यपालिका रूपी शूद्रों के साथ काम के आधार भेदभाव ही नहीं छुआछुत भी बढ़ गई|

आज वैदिक वर्ण व्यवस्था के शुद्र शब्द का स्थान दलित, हरिजन आदि शब्दों ने ले लिया और वैदिक काल के शुद्र कालांतर में दलितों के नाम से पहचाने जाने लगे| लेकिन इस नाम परिवर्तन के बाद भी उनके साथ छुआछूत कम नहीं हुई| आजादी के बाद लोकतांत्रिक नेताओं ने जातिवाद मिटाने व समानता का अधिकार देने के खूब भाषण झाड़े व वादे किये पर वोट बैंक के लालच में इन्हीं नेताओं ने जातीय भेदभाव कम करने के बजाय बढाया ही|

खैर...नेता जाने, उनका काम जाने | लेकिन मेरे यह समझ नहीं आता कि आज इतना समय परिवर्तित होने के बावजूद दलित अछूत कैसे है, क्यों है ?

कई बार मैं सोचता हूँ जब मेरे पूर्वजों ने, मैंने, मेरी संतान ने जब जन्म लिया तब दाई के रूप में जिस महिला ने हमें इस धरती पर सर्वप्रथम छुआ वह दलित महिला ही थी (ज्ञात हो गांवों में आजतक दाई का काम दलित महिलाएं ही करती आई है), उसी ने इस धरती पर अवतरित होते ही हमें अपने हाथों में संभाला, हमारे लिए वो सब काम किये जो हमारी माँ उस वक्त नहीं कर सकती थी| तो जिस दलित महिला ने हमें सबसे पहले छुआ वह बाद में हमारे लिये अछूत कैसे हो गई ?

गांव में जिन दलितों को हम बचपन से उनकी उम्र के हिसाब से दादा, बाबा, काका, भैया कहते आये है वे ऐसे आदर सूचक संबोधनों के बाद भी अछूत क्यों हो जाते है ? किसी के साथ बैठकर एक थाली में खाना खाना या रिश्ते करना किसी का भी व्यक्तिगत मामला हो सकता है, पर किसी को अछूत समझना कतई न्याययुक्त नहीं कहा जा सकता| हालाँकि आज सफ़र में, होटलों में, कार्यालयों में कोई किसी की जाति नहीं पूछता और अनजाने में छुआछुत पर कोई ध्यान नहीं देता फिर भी जिनको लोग जानते है उन्हें आज भी अछूत समझते है| और आजादी के बाद भी भले लोकतंत्र में सबको सामान अधिकार हो छुआछुत नहीं मिट पाई |

हमारे नेताओं ने भले ही शुद्र शब्द की जगह दलित, हरिजन आदि शब्द दियें हो पर क्या इन शब्दों ने इन्हें फिर अलग थलग पहचान ही नहीं दी ? राजस्थान के महान क्षत्रिय चिंतक स्व. आयुवान सिंह शेखावत ने अपनी पुस्तक “राजपूत और भविष्य” में इन्हें पुरुषार्थी नाम दिया है, क्योंकि दलित या शुद्र जातियां भी हमारी तरह ही पुरुषार्थ करती है अत: इन्हें दलित, शुद्र आदि कहने के बजाय पुरुषार्थी मान क्यों ना ससम्मान अपने साथ रखा जाय ?

टीवी वालों का कुबेर यंत्र और ताऊ

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टीवी पर कुबेर यंत्र बेचने वाली एंकर बता रही थी कि यह कुबेर यंत्र पन्द्रह दिन में आपके घर धन की वर्षा करने लगता है और आप धन से मालामाल हो जाते है, टीवी वाली उस कन्या ने इस धन वर्षा करने वाले कुबेर यंत्र की कुछ हजार रूपये कीमत भी बताई|

ताऊ ने जब टीवी पर इसके बारे में सुना तो उसे यह बढ़िया धन्धा लगा कि बिना कुछ किये सिर्फ कुछ हजार में एक कुबेर यंत्र खरीदना है और मालामाल हो जाना है, ना कोई चोरी. डकैती, राजनीति, लूटमार व बेईमानी करनी जो अक्सर ताऊ को अब तक करनी पड़ती थी| सो ताऊ ने उस टीवी सुकन्या द्वारा बताये नंबर पर एस.एम.एस ठोक दिया| ताऊ का एस.एम्.एस मिलना ही था कि उधर से कुबेर यंत्र बेचने वाली कम्पनी से एक सुकन्या का बड़ी मधुर आवाज में ताऊ के सेल फोन पर फोन आ गया|

ताऊ ने शर्त रखी कि वह कुबेर यंत्र खरीदेगा पर पहले उसे उसके बारे में पूरी जानकारी चाहिये| यंत्र बेचने वाली कन्या ने ताऊ की शर्त मानते हुए जानकारी देना शुरू की कि – इस यंत्र को घर में हमारे द्वारा प्रदत दिशा निर्देशों के अनुसार स्थापित करने के पंद्रह दिन बाद आपके घर में धन वर्षा शुरू हो जायेगी आदि आदि कई जानकारियां उस सुकन्या ने ताऊ को बताई|

ताऊ – अब तक कितने लोगों के घर धन वर्षा हुई ?
कन्या – बहुत लोगों के घर, जिन्होंने यह यंत्र ख़रीदा !
पर ताऊ ठहरा एकदम पक्का ताऊ, पूछने लगा – आप इस टीवी पर सामान बेचने वाली दूकान में कितने वर्षों से नौकरी कर रही है|
कन्या – तीन वर्ष से !
ताऊ – आप पिछले तीन वर्षों से इस दूकान पर नौकरी कर रही है तो फिर आपने अब तक इस यंत्र से अपने घर धन वर्षा क्यों नहीं की ?
ताऊ की इस बात का उस कन्या के पास कोई जबाब नहीं था, फिर भी उसनें ताऊ को इधर उधर की बात कर टरका दिया, लेकिन ताऊ भी तो कम ना था|
बोला कितने यंत्र है आपकी दूकान में ?
यंत्र बेचने वाली कन्या ने बताया – १००० हजार !
ताऊ – ऐसा कीजिये इन सभी यंत्रों को गलाकर इनके दो यंत्र बनाईये और दोनों यंत्रों को भारत के किन्हीं दो सेटेलाइट्स पर स्थापित करवा दीजिये ताकि पुरे भारत पर धन वर्षा होती रहे ताकि देश की गरीबी मिटे और आप जैसी लड़कियों को भी नौकरी ना करने पड़े, और हाँ ये कर देंगी तो इन १००० यंत्रों की कीमत मैं देने को तैयार हूँ|

ताऊ की ये बात सुनते ही सेल्स गर्ल ने झुंझलाते हुए फोन पटक दिया|

सावधान : बाड़मेर में दोहराई जा रही है हल्दीघाटी

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महाराणा प्रताप को नतमस्तक करने के लिए जिस तरह दिल्ली के सम्राट अकबर ने राणा के स्वजातीय बंधुओं को राणा के खिलाफ हल्दीघाटी के समर में उतारा ठीक उसी तरह भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य और वरिष्ठ भाजपा नेता जसवंत सिंह को पार्टी पर काबिज हुआ नया गुट झुकाने को वैसे ही हथकंडे अपना रहा है|

प्रदेश भाजपा की मुखिया मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जिसनें कभी भैरों सिंह जी शेखावत व जसवंत सिंह जी जसोल के आशीर्वाद से राजस्थान भाजपा का ताज सिर पर रखा था, जो कभी खुद जसवंत सिंह जी के आगे झुकते हुए नतमस्तक रहती थी आज उस राजे ने जसवंत सिंह जी अपने आगे झुकाने हेतु समर २०१४ में चक्रव्यूह रच रखा है|

मैडम इस चक्रव्यूह के पहले चरण में जसवंत सिंह जी की टिकट कटवाकर कामयाब भी हो गई पर चक्रव्यूह के कई चक्र अभी बाकी है और इन चक्रों का फैसला बाड़मेर की जनता अपने वोट रूपी ब्रह्मास्त्र के माध्यम से करेगी| लेकिन जिस तरह महाराणा को झुकाने के लिए अकबर ने उनके स्वजातीय राजपूत बंधुओं को माध्यम बनाया ठीक उसी तरह वसुंधरा राजे भी प्रदेश भाजपा के राजपूत नेताओं का प्रयोग कर रही है| यही नहीं कल तक जिन राजपूत नेताओं को मैडम व मैडम के सिपहसालार पास तक नहीं पटकने देते थे उन्हीं राजपूत नेताओं को जसवंत सिंह जी बागी तेवर दिखाते ही लाल कालीन बिछाकर ससम्मान भाजपा में शामिल किया गया|

चर्चाओं के अनुसार विधानसभा चुनावों में लोकेन्द्र सिंह कालवी को भाजपा में शामिल करने के राजनाथ सिंह के फरमान के बावजूद वसुंधरा राजे गुट ने कालवी को भाजपा के पास तक नहीं पटकने दिया वहीं खीमसर से विधानसभा चुनावों में दुसरे स्थान पर रहे दुर्गसिंह चौहान के भी भाजपा में घुसने के लाख प्रयासों के बावजूद राजे मण्डली के लोगों ने उन्हें राजे तक से नहीं मिलने दिया, लेकिन जसवंत सिंह जी के आँख दिखाते ही बाड़मेर लोकसभा सीट की जीत को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना चुकी राजे ने इन नेताओं को बाड़मेर में जसवंत सिंह जी को घेरने के लिए तुरंत भाजपा में आने का न्योता दे शामिल कर लिया|

यही नहीं ख़बरों के अनुसार राजे ने अपने सभी राजपूत विधायकों को जसवंत सिंह जी के खिलाफ प्रचार कर भाजपा के पारम्परिक राजपूत मतों को भाजपा के पक्ष में बनाये रखने की जिम्मेदारी दी है|

देखते है कितने राजपूत राजे के दबाव व लालच में अपने स्वजातीय जसवंत सिंह जी को मटियामेट करने के काम में लगेंगे या फिर पीथल की तरह अकबर के दरबार में रहते हुए महाराणा के भक्त बने रहने का अनुसरण करते हुये भाजपा में रहते हुए जसवंत सिंह जी से सहानुभति रखेंगे और उनके खिलाफ प्रयुक्त नहीं होंगे|

खैर...नेता अपने फायदे के लिये भले जसवंत सिंह जी को झुकाने हेतु राजे का साथ दे लेकिन इतना तय है जिस तरह राजा मानसिंह को उनकी ही पीढियां आज तक माफ़ नहीं कर पाई ठीक उसी तरह इस वक्त भी जसवंत सिंह जी के खिलाफ काम करने वाले राजपूत नेताओं को भी राजपूत समाज की कई पीढियां माफ़ नहीं करेगी !
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