महाराज सुल्तान सिंह जी बीकानेर के महाराजा गजसिंह जी के पुत्र थे जो अप्रेल 1758 में महाराज गजसिंह जी की महारानी अखै कँवर देवड़ी जी के गर्भ से जन्में थे, महारानी अखै कँवर देवड़ी जी सिरोही के राव मानसिंह दुर्जनसिंघोत की पुत्री थी|
महाराज सुल्तान सिंह जी की शादी भादवा बदी 8 वि.स.1840 (अगस्त 1783) को देरावर के भाटी जैतसिंह जी की पुत्री राजकंवर देरावारी के साथ संपन्न हुई| व दूसरी शादी रानी फूल कँवर के साथ हुई, रानी फूलकंवर ठाकुर गुमान सिंह जी पुत्री व रेवासा के ठाकुर बैरिसाल सिंह जी या पृथ्वी सिंह जी शाहपुरा की पोत्री थी|
महाराज कुमार सुल्तान सिंह जी के दो पुत्र गुमान सिंह, अखैसिंह व तीन पुत्रियाँ पद्म कँवर, सरदार कँवर व फतेहकँवर हुई जिनमें पद्म कँवर का विवाह मेवाड़ के महाराणा भीम सिंह जी के साथ वि.स.1856 (1779ई.) में हुआ| सन 1827 ई. में रानी पद्म कँवर ने उदयपुर की प्रसिद्ध पिछोला झील पर पद्मेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया और अपने पति की मृत्यु के उपरांत चैत बदी 14 वि.स.1885 (30 मार्च 1828) को उनकी चिता पर सती हो गयी| राजकुमारी सरदार कँवर का विवाह राजा केसरी सिंह जी बनेड़ा के साथ हुआ|
एक बार अपने पिता महाराज गजसिंह जी के आदेश पर महाराज कुमार सुल्तान सिंह जी को अपने बड़े भाई राजकुमार राजसिंह जी को हिरासत में लेकर कैद करना पड़ा जिन्हें बाद में महाराज गजसिंह जी के आदेश पर कुछ समय बाद रिहा किया गया| महाराज गजसिंह जी की मृत्यु के बाद वि.स. 1843 सन 1787 ई. में राजकुमार राज सिंह जी का बीकानेर की राजगद्दी पर राज्याभिषेक हुआ| पिता महाराज गजसिंह जी के दाह संस्कार के बाद महाराज सुल्तान सिंह जी अपने भाईयों अजब सिंह व मोहकम सिंह के साथ बीकानेर छोड़ जैसलमेर, जोधपुर, जयपुर आदि जगह चले गए|
महाराज सुल्तान सिंह जी के जाने के बाद व राजसिंह जी के राज्याभिषेक के बाद बीकानेर राजघराने में राजगद्दी के लिये षड्यंत्र चलने लगे| महाराज गजसिंह की एक रानी के मन में कैकयी की तरह अपने पुत्र सूरत सिंह को बीकानेर की राजगद्दी पर बैठाने की हसरतों ने जन्म ले लिया और महाराज उसने राजसिंह जी से गद्दी छीन अपने पुत्र को राजगद्दी पर बैठाने हेतु षड्यंत्र रचने शुरू कर दिए और महाराज राजसिंह जी के राज्याभिषेक के एक वर्ष के भीतर ही उनको खाने में विष देकर उनकी हत्या कर दी गयी|
राज सिंह जी की हत्या के बाद उनके उनके नाबालिग पुत्र प्रतापसिंह का बीकानेर की राजगद्दी पर राज्याभिषेक किया गया| राजसिंह जी की षड्यंत्र पूर्वक हत्या के बाद महाराज सुल्तान सिंह जी बीकानेर आये| और उनके पुत्र के राज्याभिषेक होने व सूरत सिंह द्वारा उनका संरक्षक बनने के बाद महाराज सुल्तान सिंह जी वापस देशनोक करणी माता के दर्शन करने के बाद नागौर होते हुए उदयपुर चले गए| महाराज सुल्तान सिंह जी देवी करणी माता के अनन्य भक्त थे|
महाराज सुल्तान सिंह जी के वापस चले जाने के बाद सूरत सिंह बालक महाराज प्रताप सिंह के संरक्षक बन राजकार्य चलाने लगे, पूरी शासन व्यवस्था उनके हाथों में थी फिर भी माँ बेटा को संतुष्टि नहीं हुई, वे बालक महाराज को मारने के षड्यंत्र रचते रहे, उन्हें पता था कि बालक महाराज की हत्या के बाद बीकानेर के सामंतगण उन्हें राजा के तौर पर स्वीकार नहीं करेंगे, सो सूरत सिंह ने बीकानेर रियासत के कई सामंतों को धन, जमीन आदि देकर अपने पक्ष में कर लिया उसके बावजूद कोई सामंत बालक महाराज का वध करने के पक्ष में नहीं था| साथ ही बालक महाराज की एक भुआ बालक महाराज के खिलाफ किये जा सकने वाले षड्यंत्रों के प्रति पूरी सचेत थी और वह हर वक्त बालक महाराज की सुरक्षा के लिये छाया की तरह उनके साथ रहती थी|
सूरत सिंह जानते थे कि जब तक अपनी उस बहन को वे अलग नहीं कर देंगे तब तक बालक महाराज की हत्या नहीं की जा सकती| अत: सूरत सिंह ने अपनी उस बहन का विवाह कर उसे बालक महाराज से दूर करने का षड्यंत्र रचा, बालक महाराज की बुआ ने अपने विवाह का यह कह कर अपने भाई सूरत सिंह से विरोध किया कि उसके विवाह के बाद आप लोग बालक महाराज की हत्या कर देंगे अत: वे अपने भतीजे बालक महाराज प्रताप सिंह के जीवन रक्षा के लिये जिंदगीभर विवाह नहीं करेंगी| पर सूरत सिंह द्वारा ऐसा नहीं करने का वचन दे आश्वस्त करने पर उन्होंने अपना विवाह करना स्वीकार कर लिया, और उनके विवाह के बाद मौका पाकर क्रूर सूरत सिंह ने अपने बड़े भाई के पुत्र बालक महाराज प्रताप सिंह का गला रेत कर हत्या कर दी और राव बीका की पवित्र राजगद्दी पर खुद का राज्याभिषेक करा उसे अपवित्र कर दिया|
सूरत सिंह द्वारा इस तरह षड्यंत्र द्वारा राजगद्दी हथियाने व अपने भाई राजसिंह जी व उनके पुत्र प्रताप सिंह की हत्या का बदला लेने व सूरत सिंह को उसके किये का दंड देने महाराज सुल्तान सिंह जी अपने भाई महाराज अजब सिंह जी को साथ लेकर वापस आये और भाटी राजपूतों की सहायता लेकर सूरत सिंह पर आक्रमण किया| इस युद्ध में सुल्तान सिंह जी के काफी सैनिक हताहत हुए और सूरत सिंह के सैनिकों द्वारा घिर जाने पर महाराज सुल्तान सिंह जी को युद्ध के मैदान से वापस होना पड़ा और वे कोटा की ओर चले गए|
कुछ ही समय बाद महाराज सुल्तान सिंह जी को पता चला कि भाटियों ने हांसी के आईरिश राजा जार्ज थॉमस की सहायता से वापस भटनेर जीत लिया तब वे वापस बीकानेर आये और भाटी राजपूतों व जार्ज थॉमस से सैनिक सहायता लेकर बीकानेर किले को घेर युद्ध की घोषण कर दी| इस बार महाराज सुल्तान सिंह जी की सेना बीकानेर से बड़ी व ज्यादा ताकतवर थी| जिसे देख कुटिल सूरत सिंह ने फिर जार्ज थॉमस को अपनी और करने के लिए 2 लाख रूपये भेजे, पर जार्ज थॉमस ने रूपये लेने के बाद भी सूरत सिंह को कहला भेजा कि वह यहाँ से तभी जाएगा जब महाराज सुल्तान सिंह जी अपने भाई राजसिंह जी, उनके पुत्र महाराज प्रताप सिंह जी की हत्या व बीकानेर की राजगद्दी को अपवित्र करने वाले सूरत सिंह की हत्या कर बदला ले लेंगे|
आखिर महाराज सूरत सिंह ने अपने प्राण बचाने हेतु महाराज सुल्तान सिंह जी की माता राजमाता देवड़ी जी के आगे जाकर अपने प्राणों की याचना की कि वे सुल्तान सिंह जी से कहे कि वे युद्ध त्याग कर शांति स्थापना करे| पहली बार महाराज सूरत सिंह ने राजमाता से कहा कि- यदि परिवार में एक भाई दुसरे भाई को मारेगा, महाराजा गज सिंह जी का एक पुत्र दुसरे पुत्र की हत्या करेगा| क्या यह उचित है?
तब राजमाता ने भावनात्मक रूप से द्रवित हो महाराज सुल्तान सिंह जी के नाम युद्ध ख़त्म कर बीकानेर लौट आने का अनुरोध करते हुए एक पत्र लिख महाराज सूरत सिंह को दिया|
जिसे महाराज सुल्तान सिंह जी के कैम्प के पास ऊँची आवाज में पढ़कर उन्हें सुनाया गया| अपनी माता का युद्ध बंद करने हेतु भावनात्मक संदेश पाकर अपने हाथ में आ रहे बीकानेर राज्य का मोह त्याग महाराज सुल्तान सिंह जी ने युद्ध बंद करने का निर्णय लिया और भाटी राजपूतों व जार्ज थॉमस को अपनी सहायता के लिए धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उन्हें अपने अपने ठिकानों हेतु लौटा दिया और खुद कोटा की और चल पड़े|
कोटा राज्य की और जाते समय उनके शिविर के पास एक दिन एक सिंह ने एक गाय पर हमला किया, उसे देखते ही महाराज सुल्तान सिंह जी बिना हथियार लिए गाय को बचाने हेतु सिंह से भीड़ गए और उन्होंने निहत्थे ही सिंह को मार गिराया पर सिंह के साथ लड़ाई में वे खुद इतने घायल हो गए थे कि अपने शिविर में आने के बाद उनकी मृत्यु हो गयी| इस तरह मातृभक्त महाराज सुल्तान सिंह जी एक गाय की रक्षा करते हुए 58 वर्ष की आयु में वि.स. 1815 में देवलोक सिधार गये|
बीकानेर के इतिहास में विभिन्न इतिहासकारों ने महाराज सुल्तान सिंह जी का कोटा की और प्रस्तान करना तो लिखा पर उसके बाद उनकी कोई जानकारी नहीं थी| पिछले दिनों महाराज सुल्तान सिंह जी एक वंशज राजकुमार अभिमन्यु सिंह राजवीबीकानेर राज्य के इतिहास का अध्ययन कर रहे थे, अपने पूर्वज सुल्तान सिंह जी के प्रकरण को पढ़ते हुए अभिमन्यु सिंह राजवी के मन जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि आखिर महाराज सुल्तान सिंह जी कोटा राज्य में कहाँ रहे ? उनकी मृत्यु कहाँ हुई ? उनका कोटा राज्य में कोई स्मारक है या नहीं ?
और अपनी इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए अभिमन्यु सिंह राजवीने बीकानेर के इतिहास की कई पुस्तकें छान मारी व बीकानेर रियासत की वंशावली आदि का रिकार्ड रखने वाले बही भाटों, बडवाओं आदि से मिलकर महाराज सुल्तान सिंह जी से संबंधित जानकारियां जमा की जिनमें यह तय हो गया कि उनकी मृत्यु कोटा के पास देवरी नामक स्थान पर हुई है, पता करने पर पूर्व कोटा राज्य में देवरी नाम के पांच गांव मिले, अभिमन्यु सिंह राजवीने इन पाँचों गांवों सहित कोटा के आस-पास अपने संपर्कों के जरिये कई स्मारकों व छतरियों की जानकारी इक्कठा की| आखिर बारां जिले में किशनगंज के पास एक गांव देवरी शाहबाद की एक पुरानी छतरी पर जय करणी माता अंकित लिखा पाया गया| चूँकि बीकानेर रियासत की करणी माता कुलदेवी है और महाराज सुल्तान सिंह जी करणी माता के अनन्य भक्त थे अत: उसी छतरी पर ध्यान केन्द्रित कर आगे की खोज की गयी| इस खोज में एक पत्थर पर उत्कीर्ण मूर्ति मिली जिसके पीछे महाराज सुल्तान सिंह जी के बारे में पूरी जानकारी लिखी मिली| इस तरह यह साफ़ हुआ कि उक्त छतरी महाराज सुल्तान सिंह जी की ही है, जो वहां दाहसंस्कार करने के बाद उनकी स्मृति में बनायीं गई है|
इस तरह एक इतिहास पुरुष के निर्वाण स्थल को उसके एक योग्य, जिज्ञासु व बुद्धिमान वंशज ने अपने शोध व लगन से ढूंढ निकला|
महाराज सुल्तान सिंह जी के वंशज -
महाराज सुल्तान सिंह जी – महाराज गुमान सिंह जी – महाराज पन्ने सिंह जी - महाराज जयसिंह जी – महाराज बहादुर सिंह जी – महाराज अमर सिंह जी (राजवी अमर सिंह जी – पूर्व जस्टिस) - महाराज नरपत सिंह जी (नरपत सिंह जी राजवी – पूर्व मंत्री राजस्थान) - राजकुमार अभिमन्यु सिंह राजवी (अभिमन्यु सिंह राजवी देश के पूर्व उपराष्ट्रपति स्व.भैरों सिंह जी के दोहिते है)|
महाराज सुल्तान सिंह जी के संबंध में ज्ञान दर्पण.कॉम को ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध कराने हेतु श्री अभिमन्यु सिंह राजवी का हार्दिक आभार
महाराज सुल्तान सिंह जी की शादी भादवा बदी 8 वि.स.1840 (अगस्त 1783) को देरावर के भाटी जैतसिंह जी की पुत्री राजकंवर देरावारी के साथ संपन्न हुई| व दूसरी शादी रानी फूल कँवर के साथ हुई, रानी फूलकंवर ठाकुर गुमान सिंह जी पुत्री व रेवासा के ठाकुर बैरिसाल सिंह जी या पृथ्वी सिंह जी शाहपुरा की पोत्री थी|
महाराज कुमार सुल्तान सिंह जी के दो पुत्र गुमान सिंह, अखैसिंह व तीन पुत्रियाँ पद्म कँवर, सरदार कँवर व फतेहकँवर हुई जिनमें पद्म कँवर का विवाह मेवाड़ के महाराणा भीम सिंह जी के साथ वि.स.1856 (1779ई.) में हुआ| सन 1827 ई. में रानी पद्म कँवर ने उदयपुर की प्रसिद्ध पिछोला झील पर पद्मेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया और अपने पति की मृत्यु के उपरांत चैत बदी 14 वि.स.1885 (30 मार्च 1828) को उनकी चिता पर सती हो गयी| राजकुमारी सरदार कँवर का विवाह राजा केसरी सिंह जी बनेड़ा के साथ हुआ|
एक बार अपने पिता महाराज गजसिंह जी के आदेश पर महाराज कुमार सुल्तान सिंह जी को अपने बड़े भाई राजकुमार राजसिंह जी को हिरासत में लेकर कैद करना पड़ा जिन्हें बाद में महाराज गजसिंह जी के आदेश पर कुछ समय बाद रिहा किया गया| महाराज गजसिंह जी की मृत्यु के बाद वि.स. 1843 सन 1787 ई. में राजकुमार राज सिंह जी का बीकानेर की राजगद्दी पर राज्याभिषेक हुआ| पिता महाराज गजसिंह जी के दाह संस्कार के बाद महाराज सुल्तान सिंह जी अपने भाईयों अजब सिंह व मोहकम सिंह के साथ बीकानेर छोड़ जैसलमेर, जोधपुर, जयपुर आदि जगह चले गए|
महाराज सुल्तान सिंह जी के जाने के बाद व राजसिंह जी के राज्याभिषेक के बाद बीकानेर राजघराने में राजगद्दी के लिये षड्यंत्र चलने लगे| महाराज गजसिंह की एक रानी के मन में कैकयी की तरह अपने पुत्र सूरत सिंह को बीकानेर की राजगद्दी पर बैठाने की हसरतों ने जन्म ले लिया और महाराज उसने राजसिंह जी से गद्दी छीन अपने पुत्र को राजगद्दी पर बैठाने हेतु षड्यंत्र रचने शुरू कर दिए और महाराज राजसिंह जी के राज्याभिषेक के एक वर्ष के भीतर ही उनको खाने में विष देकर उनकी हत्या कर दी गयी|
राज सिंह जी की हत्या के बाद उनके उनके नाबालिग पुत्र प्रतापसिंह का बीकानेर की राजगद्दी पर राज्याभिषेक किया गया| राजसिंह जी की षड्यंत्र पूर्वक हत्या के बाद महाराज सुल्तान सिंह जी बीकानेर आये| और उनके पुत्र के राज्याभिषेक होने व सूरत सिंह द्वारा उनका संरक्षक बनने के बाद महाराज सुल्तान सिंह जी वापस देशनोक करणी माता के दर्शन करने के बाद नागौर होते हुए उदयपुर चले गए| महाराज सुल्तान सिंह जी देवी करणी माता के अनन्य भक्त थे|
महाराज सुल्तान सिंह जी के वापस चले जाने के बाद सूरत सिंह बालक महाराज प्रताप सिंह के संरक्षक बन राजकार्य चलाने लगे, पूरी शासन व्यवस्था उनके हाथों में थी फिर भी माँ बेटा को संतुष्टि नहीं हुई, वे बालक महाराज को मारने के षड्यंत्र रचते रहे, उन्हें पता था कि बालक महाराज की हत्या के बाद बीकानेर के सामंतगण उन्हें राजा के तौर पर स्वीकार नहीं करेंगे, सो सूरत सिंह ने बीकानेर रियासत के कई सामंतों को धन, जमीन आदि देकर अपने पक्ष में कर लिया उसके बावजूद कोई सामंत बालक महाराज का वध करने के पक्ष में नहीं था| साथ ही बालक महाराज की एक भुआ बालक महाराज के खिलाफ किये जा सकने वाले षड्यंत्रों के प्रति पूरी सचेत थी और वह हर वक्त बालक महाराज की सुरक्षा के लिये छाया की तरह उनके साथ रहती थी|
सूरत सिंह जानते थे कि जब तक अपनी उस बहन को वे अलग नहीं कर देंगे तब तक बालक महाराज की हत्या नहीं की जा सकती| अत: सूरत सिंह ने अपनी उस बहन का विवाह कर उसे बालक महाराज से दूर करने का षड्यंत्र रचा, बालक महाराज की बुआ ने अपने विवाह का यह कह कर अपने भाई सूरत सिंह से विरोध किया कि उसके विवाह के बाद आप लोग बालक महाराज की हत्या कर देंगे अत: वे अपने भतीजे बालक महाराज प्रताप सिंह के जीवन रक्षा के लिये जिंदगीभर विवाह नहीं करेंगी| पर सूरत सिंह द्वारा ऐसा नहीं करने का वचन दे आश्वस्त करने पर उन्होंने अपना विवाह करना स्वीकार कर लिया, और उनके विवाह के बाद मौका पाकर क्रूर सूरत सिंह ने अपने बड़े भाई के पुत्र बालक महाराज प्रताप सिंह का गला रेत कर हत्या कर दी और राव बीका की पवित्र राजगद्दी पर खुद का राज्याभिषेक करा उसे अपवित्र कर दिया|
सूरत सिंह द्वारा इस तरह षड्यंत्र द्वारा राजगद्दी हथियाने व अपने भाई राजसिंह जी व उनके पुत्र प्रताप सिंह की हत्या का बदला लेने व सूरत सिंह को उसके किये का दंड देने महाराज सुल्तान सिंह जी अपने भाई महाराज अजब सिंह जी को साथ लेकर वापस आये और भाटी राजपूतों की सहायता लेकर सूरत सिंह पर आक्रमण किया| इस युद्ध में सुल्तान सिंह जी के काफी सैनिक हताहत हुए और सूरत सिंह के सैनिकों द्वारा घिर जाने पर महाराज सुल्तान सिंह जी को युद्ध के मैदान से वापस होना पड़ा और वे कोटा की ओर चले गए|
कुछ ही समय बाद महाराज सुल्तान सिंह जी को पता चला कि भाटियों ने हांसी के आईरिश राजा जार्ज थॉमस की सहायता से वापस भटनेर जीत लिया तब वे वापस बीकानेर आये और भाटी राजपूतों व जार्ज थॉमस से सैनिक सहायता लेकर बीकानेर किले को घेर युद्ध की घोषण कर दी| इस बार महाराज सुल्तान सिंह जी की सेना बीकानेर से बड़ी व ज्यादा ताकतवर थी| जिसे देख कुटिल सूरत सिंह ने फिर जार्ज थॉमस को अपनी और करने के लिए 2 लाख रूपये भेजे, पर जार्ज थॉमस ने रूपये लेने के बाद भी सूरत सिंह को कहला भेजा कि वह यहाँ से तभी जाएगा जब महाराज सुल्तान सिंह जी अपने भाई राजसिंह जी, उनके पुत्र महाराज प्रताप सिंह जी की हत्या व बीकानेर की राजगद्दी को अपवित्र करने वाले सूरत सिंह की हत्या कर बदला ले लेंगे|
आखिर महाराज सूरत सिंह ने अपने प्राण बचाने हेतु महाराज सुल्तान सिंह जी की माता राजमाता देवड़ी जी के आगे जाकर अपने प्राणों की याचना की कि वे सुल्तान सिंह जी से कहे कि वे युद्ध त्याग कर शांति स्थापना करे| पहली बार महाराज सूरत सिंह ने राजमाता से कहा कि- यदि परिवार में एक भाई दुसरे भाई को मारेगा, महाराजा गज सिंह जी का एक पुत्र दुसरे पुत्र की हत्या करेगा| क्या यह उचित है?
तब राजमाता ने भावनात्मक रूप से द्रवित हो महाराज सुल्तान सिंह जी के नाम युद्ध ख़त्म कर बीकानेर लौट आने का अनुरोध करते हुए एक पत्र लिख महाराज सूरत सिंह को दिया|
जिसे महाराज सुल्तान सिंह जी के कैम्प के पास ऊँची आवाज में पढ़कर उन्हें सुनाया गया| अपनी माता का युद्ध बंद करने हेतु भावनात्मक संदेश पाकर अपने हाथ में आ रहे बीकानेर राज्य का मोह त्याग महाराज सुल्तान सिंह जी ने युद्ध बंद करने का निर्णय लिया और भाटी राजपूतों व जार्ज थॉमस को अपनी सहायता के लिए धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उन्हें अपने अपने ठिकानों हेतु लौटा दिया और खुद कोटा की और चल पड़े|
कोटा राज्य की और जाते समय उनके शिविर के पास एक दिन एक सिंह ने एक गाय पर हमला किया, उसे देखते ही महाराज सुल्तान सिंह जी बिना हथियार लिए गाय को बचाने हेतु सिंह से भीड़ गए और उन्होंने निहत्थे ही सिंह को मार गिराया पर सिंह के साथ लड़ाई में वे खुद इतने घायल हो गए थे कि अपने शिविर में आने के बाद उनकी मृत्यु हो गयी| इस तरह मातृभक्त महाराज सुल्तान सिंह जी एक गाय की रक्षा करते हुए 58 वर्ष की आयु में वि.स. 1815 में देवलोक सिधार गये|
बीकानेर के इतिहास में विभिन्न इतिहासकारों ने महाराज सुल्तान सिंह जी का कोटा की और प्रस्तान करना तो लिखा पर उसके बाद उनकी कोई जानकारी नहीं थी| पिछले दिनों महाराज सुल्तान सिंह जी एक वंशज राजकुमार अभिमन्यु सिंह राजवीबीकानेर राज्य के इतिहास का अध्ययन कर रहे थे, अपने पूर्वज सुल्तान सिंह जी के प्रकरण को पढ़ते हुए अभिमन्यु सिंह राजवी के मन जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि आखिर महाराज सुल्तान सिंह जी कोटा राज्य में कहाँ रहे ? उनकी मृत्यु कहाँ हुई ? उनका कोटा राज्य में कोई स्मारक है या नहीं ?
और अपनी इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए अभिमन्यु सिंह राजवीने बीकानेर के इतिहास की कई पुस्तकें छान मारी व बीकानेर रियासत की वंशावली आदि का रिकार्ड रखने वाले बही भाटों, बडवाओं आदि से मिलकर महाराज सुल्तान सिंह जी से संबंधित जानकारियां जमा की जिनमें यह तय हो गया कि उनकी मृत्यु कोटा के पास देवरी नामक स्थान पर हुई है, पता करने पर पूर्व कोटा राज्य में देवरी नाम के पांच गांव मिले, अभिमन्यु सिंह राजवीने इन पाँचों गांवों सहित कोटा के आस-पास अपने संपर्कों के जरिये कई स्मारकों व छतरियों की जानकारी इक्कठा की| आखिर बारां जिले में किशनगंज के पास एक गांव देवरी शाहबाद की एक पुरानी छतरी पर जय करणी माता अंकित लिखा पाया गया| चूँकि बीकानेर रियासत की करणी माता कुलदेवी है और महाराज सुल्तान सिंह जी करणी माता के अनन्य भक्त थे अत: उसी छतरी पर ध्यान केन्द्रित कर आगे की खोज की गयी| इस खोज में एक पत्थर पर उत्कीर्ण मूर्ति मिली जिसके पीछे महाराज सुल्तान सिंह जी के बारे में पूरी जानकारी लिखी मिली| इस तरह यह साफ़ हुआ कि उक्त छतरी महाराज सुल्तान सिंह जी की ही है, जो वहां दाहसंस्कार करने के बाद उनकी स्मृति में बनायीं गई है|
इस तरह एक इतिहास पुरुष के निर्वाण स्थल को उसके एक योग्य, जिज्ञासु व बुद्धिमान वंशज ने अपने शोध व लगन से ढूंढ निकला|
महाराज सुल्तान सिंह जी के वंशज -
महाराज सुल्तान सिंह जी – महाराज गुमान सिंह जी – महाराज पन्ने सिंह जी - महाराज जयसिंह जी – महाराज बहादुर सिंह जी – महाराज अमर सिंह जी (राजवी अमर सिंह जी – पूर्व जस्टिस) - महाराज नरपत सिंह जी (नरपत सिंह जी राजवी – पूर्व मंत्री राजस्थान) - राजकुमार अभिमन्यु सिंह राजवी (अभिमन्यु सिंह राजवी देश के पूर्व उपराष्ट्रपति स्व.भैरों सिंह जी के दोहिते है)|
महाराज सुल्तान सिंह जी के संबंध में ज्ञान दर्पण.कॉम को ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध कराने हेतु श्री अभिमन्यु सिंह राजवी का हार्दिक आभार