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जौहर स्थल, चितौड़गढ़

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राजस्थान में राजपूत शासन काल में युद्ध के बाद अनिष्ट परिणाम और होने वाले अत्याचारों व व्यभिचारों से बचने और अपनी पवित्रता कायम रखने हेतु महिलाएं अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा कर,तुलसी के साथ गंगाजल का पानकर जलती चिताओं में प्रवेश कर अपने सूरमाओं को निर्भय करती थी कि नारी समाज की पवित्रता अब अग्नि के ताप से तपित होकर कुंदन बन गई है | पुरूष इससे चिंता मुक्त हो जाते थे कि युद्ध परिणाम का अनिष्ट अब उनके स्वजनों को ग्रसित नही कर सकेगा | महिलाओं का यह आत्मघाती कृत्य जौहर के नाम से विख्यात हुआ| सबसे ज्यादा जौहर और शाके चित्तोड़ के दुर्ग में हुए | चित्तोड़ के दुर्ग में सबसे पहला जौहर चित्तोड़ की महारानी पद्मिनी के नेतृत्व में 16000 हजार रमणियों ने अगस्त 1303 में किया था|



बाड़मेर के सांसद और क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक स्व. तनसिंह जी जब पहली बार चितौड़ दुर्ग में जौहर स्थल पर गये तो उनके मन में निम्न शब्द प्रस्फुटित हुए जिन्हें उन्होंने अपनी पुस्तक होनहार के खेल में "वैरागी चितौड़" शीर्षक नामक लेख में कुछ यूँ लिखा-

इज्जत बचाने के लिए प्रलय-दृश्य विकराल अग्नि में कूद पड़ने को यहाँ के लोग जौहर कहा करते थे | और यह जौहर स्थान है ,जहाँ सतियाँ....|

जमीन में अब भी जैसे ज्वालायें दहक रही है | लपटों में अग्नि स्नान हो रहा है | मिटटी से बने शरीर को मिटटी में मिला दिया | अग्नि की परिक्रमा देकर संसार के बंधन में बंधी और उसी में कूद कर बंधनों से मुक्त हो गई | व्योम की अज्ञात गहराईयों से आई और उसी की अनंत गहराईयों में समा गई |शत्रु आते थे,रूप और सोंदर्य के पिपासु बनकर परन्तु उन्हें मिलती थी-अनंत सोंदर्य से भरी हुयी ढेरियाँ | इस जीवटभरी कहानी पर सिर हिलाकर उसी राख को मस्तक से लगाकर वे भी दो आंसू बहा दिया करते थे | विजय-स्तम्भ ने यह सब द्रश्य देखे होंगे;चलो,उसी से पूछे,उन भूली हुयी दर्दनाक कहानियो का उलझा हुवा इतिहास | देखें उसे क्या कहना है ?

" मै ऊँचा हो-हो होकर दुनिया को देखने का प्रयास कर रहा हूँ,कि सारे संसार में ऐसे कर्तव्य और मौत के परवाने और भी कही है ? पर खेद ! मुझे तो कुछ भी दिखाई नही देता |"

वह पूछता है- " तुमतो दुनिया में बहुत घूम चुके हो,क्या ऐसे दीवाने और भी कही है ?"

"नही !"

तब गर्व से सीना फुलाकर और सिर ऊँचा उठा कर स्वर्ग कि और देखता है | वहां से भी प्रतिध्वनी आती है |

"नही!"

नीवें बोझ से दबी हुयी बताती है,"तेरे गर्भ में ?" तब पाताल लोक भी गूंजता है -
"नही!'

फ़िर भी उसे संतोष नही होता,इसलिए प्रत्येक आगन्तुक से पूछता है,पाषाण-हृदय जो ठहरा ! पर मनुष्य का कोमल हृदय रो देता है और वह हर एक को रुलाये बिना मानता ही नही |

नोट- विडियो में शब्द स्व. तनसिंह जी द्वारा लिखित है और आवाज सीजी रेडियोके सौजन्य से|


कुम्भा महल और विजय स्तंभ : चितौडगढ़

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कुम्भा के महलों के भग्नावशेष और यह पास में खड़ा हुवा विजय स्तम्भ ! एक ही चेहरे की दो आँखे है जिसमे एक में आंसू और दूसरी में मुस्कराहट सो रही है | एक ही भाग्य विधाता की दो कृतियाँ है-एक आकाश चूम रहा है और दूसरा प्रथ्वी पर छितरा गया है | एक ही कवि की दो पंक्तियाँ है,जिसमे एक जन-जन के होठों पर चढ़कर उसकी कीर्ति प्रशस्त कर रही है और दूसरी रसगुण से ओत-प्रोत होकर भी जंगल के फूल की तरह बिना किसी को आकृष्ट किए अपनी ही खुशबु में खोकर विस्मृत हो गई है | एक ही जीवन के दो पहलु-एक स्मृति की अट्टालिका और दूसरी विस्मृति की उपमा बनकर बीते हुए वैभव पर आंसू बहा रही है |

पास ही पन्ना दाई के महलों में ममता सिसकियाँ भर रही है,कर्तव्य हंस रहा है और जमाना ढांढस बंधा रहा है | निर्जनता शान्ति की खोज में भटकती हुयी यही आकर बस गई है | जीवन में भावों की उथल-पुथल चल रही है,यधपि जीवन समाप्त हो गया है | राख अभी तक गर्म है,यधपि आग बहुत पहले ही बुझ चुकी है |मौत का सिर यही कटा था,किंतु जिन्दगी का धड़ छटपटा रहा है |अपने लाडले की बलि चढाकर माताओं ने कर्तव्य पालन किया,मौत का जहर पीकर जिन्होंने जिन्दगी के लिए अमृत उपहार दिया | अपने ही शरीर की खल खिंचवा कर मालिक के लिए जिन्होंने आभूषण बनाये |

ओह ! कैसी परम्पराएँ थी !

यह परम्परा तो जन हथेली पर लेकर चलने की नही,उससे से भी बढ़कर थी | जान को कहती थी - "तुम चलो,हम आती है !"



लेखक : स्व. तनसिंह, बाड़मेर (पूर्व सांसद बाड़मेर, संस्थापक क्षत्रिय युवक संघ)
आवाज सीजी रेडियो के सौजन्य से

मेट्रो कैमरों के अश्लील एमएमएस पोर्न साइट्स पर : अपना किया भुगत रहे है !

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आज सुबह ही हिंदी अख़बार “हिदुस्तान” में दिल्ली की मेट्रो रेल के सीसीटीवी कैमरों से बने अश्लील फूटेज के एमएमएस बना उन्हें पोर्न साइट्स पर अपलोड करने की खबर की पढ़ते ही दिल्ली मेट्रो रेल में यात्रा के दौरान देखी बेशर्म कथित आधुनिकता का ढोंग रचने वाले युवाओं व युवतियों द्वारा अक्सर की जाने वाली अश्लील हरकतें मानस पटल पर चलचित्र की भांति चलने लगी और मेट्रो रेल में यात्रा के दौरान देखे ऐसे दृश्य एक के बाद एक मानसपटल पर उभरने| खैर...

खबर में मेट्रो के सीसीटीवी से बने फूटेज से अश्लील फूटेज ले उनके एमएमएस बना पोर्न साइट्स पर अपलोड करने के बारे में चिंता जाहिर करते हुए संभावना व्यक्त की गई कि ये फूटेज सीआईएसऍफ़ और मेट्रो के पास होते है अत: दोनों में से किसी प्रतिष्ठान के कर्मचारी की मिलीभगत से ही ऐसा हुआ होगा|

अब तक इस तरह के कृत्यों के बारे में अक्सर होटल्स व परिधान शोरुम के कर्मचारियों के बारे में ही ख़बरें पढने को मिलती थी कि कैसे वे ख़ुफ़िया कैमरे लगा होटल के कमरों में रुकने वाले जोड़ों का व परिधान शोरुम के ट्राइल रूम में परिधानों की ट्राइल करती युवतियों के एमएमएस बना उनका दुरूपयोग करते है पर मेट्रो रेल जैसे प्रतिष्ठान व उससे जुड़े सीआईएसऍफ़ जैसे सुरक्षा बल के कारिंदों द्वारा ऐसी हरकत पहली बार सामने आई है अत: देश के ऐसे प्रतिष्ठित व जिम्मेदार प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों की मिलीभगत से हुए इस तरह के कृत्य निंदनीय तो है ही, साथ कर्तव्यहीनता भी है| इसकी समग्र जाँच करवा दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए|

लेकिन इस मामले का एक दूसरा पक्ष भी है जैसा कि मैंने ऊपर कहा कि मेट्रो रेल यात्रा के दौरान बेशर्म कथित आधुनिकता का ढोंग रचने वाले युवाओं व युवतियों की ऐसी अश्लील हरकतें कई बार मैंने खुद देखी है, इतनी भीड़ में बेशर्म होकर ऐसी अश्लील हरकत करने वालों को पता भी होता है कि मेट्रो रेल में कैमरे लगे है, मेट्रो रेल खुद थोड़ी थोड़ी देर में सीसीटीवी कैमरों से हर हरकत रिकार्ड करने की उद्घोषणा भी अपने परिसर सहित रेल डिब्बों में करती रहती है, फिर भी ये कथित आधुनिक और बेशर्म युवा ऐसी हरकत करने से बाज नहीं आते, साथ यात्रा कर रहे लोग भी टोकने पर खुद पर छेड़छाड़ व घूरने के आरोप के डर के मारे इनकी बेशर्म अश्लील हरकतों को नजरअंदाज कर मुंह फेरना ही उचित समझते है|

जब सार्वजनिक स्थान पर इन पढ़े लिखे जोड़ों को पता है कि ऐसी अश्लील हरकतें कैमरों में रिकार्ड हो रही है, पास खड़ा कोई भी व्यक्ति अपने मोबाइल से उनका एमएमएस बना उसे पोर्न साइट्स पर अपलोड कर सकता है फिर भी वे बैखोफ होकर खुलेआम अश्लील हरकतें कर नंगई पर उतारू है, जो खुद बिना किसी को पोर्न साइट्स पर जाए खुलेआम पोर्न दिखाने पर उतारूँ हो तो ऐसे लोगों के अश्लील एमएमएस यदि पोर्न साइट्स पर कोई भी अपलोड करे और फैलाये तो कैसा अफ़सोस ? और जिनके एमएमएस पोर्न साइट्स पर फ़ैल चुके है उनके साथ कैसी हमदर्दी ?

मेरी नजर में जिन्होंने सार्वजनिक जगहों पर ऐसी हरकतें की है, उन्हें उनके किये का फल इस रूप में मिल गया| अत: मुझे इन एमएमएस पीड़ितों से कोई हमदर्दी नहीं|

मेट्रो रेल में अश्लील हरकतें करने वालों पर कार्यवाही की मांग क्यों नहीं ?

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मेट्रो रेल में यात्रा करने वाले स्वछंद जोड़ों द्वारा की जाने वाली अश्लील हरकतों के सीसीटीवी फूटेज पोर्न साइट्स पर अपलोड होने की खबर के बाद खड़े हुए बखेड़े में हर कोई कूद रहा है, मेट्रो रेल कोर्पोरेशन ने जहाँ इस मामले की विभागीय जाँच शुरू की है दिल्ली पुलिस भी इस मामले में दोषियों को पकड़ने में जुटी है वहीँ सभी अख़बार इस खबर पर प्रमुखता देते हुए लोगों की प्रतिक्रिया व अपने अपने संपादकीय में इस मामले में विचार छापने में लगे है तो महिला आयोग ने भी इस प्रकरण में संज्ञान लेते हुए इस कृत्य को महिलाओं की निजता पर प्रहार बताया है|

कुल मिलाकर हर कोई इस मामले में मेट्रो रेल, सीआईएसऍफ़ की आलोचना करने व दोषियों को सजा देने की मांग करते नजर आ रहे है| इस तरह के कृत्य करने वाले को कोई भी सभ्य समाज बर्दास्त नहीं कर सकता अत: दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की मांग उचित है|

पर इस मामले में अब तक जितनी प्रतिक्रियाएं पढने को मिल रही है सभी इस कृत्य को निजता पर प्रहार मान रहे है पर सार्वजनिक स्थल पर ऐसी अश्लील हरकत करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग कोई नहीं कर रहा|
तो क्या इसका मतलब यही है कि हमारे समाज ने सार्वजनिक स्थलों पर ऐसी अश्लील व घिनौनी हरकतें करना जायज समझ लिया है ?
और यदि इस तरह के कृत्य जायज है, सामाजिक तौर पर मान्य है तो फिर सार्वजानिक रूप से की जाने वाली हरकतों से किसी की निजता पर प्रहार कैसा ?

जो कार्य सार्वजनिक किया जा रहा है उसे कोई आँखों से देखे या उसके फूटेज किसी वेब साईट पर देखें क्या फर्क पड़ता है ?
जब इस तरह के कुकृत्य आधुनिकता के नाम पर जायज ठहराने की कोशिश की जा रही है तो फिर फूटेज इंटरनेट पर अपलोड करने की जाँच का ड्रामा करने व जाँच में समय व धन खर्च करने की क्या आवश्यकता ?

बहु प्रतिभा के धनी पीयूष गोयल की कृतियां

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नर न निराश करो मन को
नर न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रहकर कुछ नाम करो

इन लाइनों से प्रेरणा लेकर पले बढे है पीयूष गोयल १० फरवरी १९६७ को माता रविकांता व् डॉ दवेंद्र कुमार गोयल के घर जन्मे पीयूष गोयल बहु प्रतिभा के धनी है| पेशा से डिप्लोमा यांत्रिक इंजिनियर है व् एक बहु राष्ट्रीय कम्पनी मैं कार्यरत है|
इन सब के अलावा पीयूष गोयल ने दुनिया की पहली मिरर इमेज पुस्तक श्री मद भागवत गीता के रचयीता है| पीयूष गोयल ने सभी १८ अद्द्याय ७०० शलोक अनुवाद सहित हिंदी व् इंग्लिश दोनों भाषाओ मैं लिखा है| पीयूष गोयल नै इसके अलावा दुनिया की पहली सुई से मधुशाला भी लिख चुके है| अभी हाल ही मैं उन्होंने मेहंदी से लिखी पुस्तक गीतांजली लिखी है| पीयूष गोयल की 3 पुस्तके भी प्रकशित हो चुकी है। पीयूष गोयल संग्रह के भी शोकीन है| प्रथम दिवश आवरण, पेन संग्रह, विश्व प्रसिद्ध लोगो के औटोग्राफ संग्रह (अमिताभ, सचिन, कपिल देव, राजीव गाँधी आदि )भी है!

1.उल्‍टे अक्षरों से लिख दी भागवत गीता
आप इस भाषा को देखेंगे तो एकबारगी भौचक्‍क रह जायेंगे. आपको समझ में नहीं आयेगा कि यह किताब किस भाषा शैली में लिखी हुई है. पर आप ज्‍यों ही शीशे के सामने पहुंचेंगे तो यह किताब खुद-ब-खुद बोलने लगेगी. सारे अक्षर सीधे नजर आयेंगे. इस मिरर इमेज किताब को दादरी में रहने वाले पीयूष ने लिखा है| मिलनसार पीयूष मिरर इमेज की भाषा शैली में कई किताबें लिख चुके हैं।

2. सुईं से लिखी मधुशाला
दादरी के पीयूष ने "एक ऐसा कारनामा" कर दिखाया है कि देखने वालों कि ऑंखें खुली रह जाएगी और न देखने वालों के लिए एक स्पर्श मात्र ही बहुत है I पीयूष ने पूछने पर बतया कि आपने सुई से पुस्तक लिखने का विचार क्यों आया ? तो पीयूष ने बताया कि अक्सर मेरे से ये पूछा जाता था कि आपकी पुस्तको को पढने के लिए शीशे क़ी जरुरत पड़ती है, पदना उसके साथ शीशा, आखिर बहुत सोच समझने के बाद एक विचार दिमाग में आया क्यों न सूई से कुछ लिखा जाये सो मेने सूई से स्वर्गीय श्री हरबंस राय बच्चन जी की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक "मधुशाला" को करीब २ से २.५ महीने में पूरा किया यह पुस्तक भी मिरर इमेज में लिखी गयीं है और इसको पदने लिए शिसे की जरुरत नहीं पड़ेगी क्योंकि रिवर्स में पेज पर शब्दों इतने प्यारे जेसे मोतियों से पेजों को गुंथा गया हो I उभरे हुए हैं जिसको पदने में आसानी है और यह सूई से लिखी "मधुशाला" दुनिया की अब तक की पहली ऐसी पुस्तक है जो मिरर इमेज व् सूई से लिखी गई है और इसका श्रेय भारत के दादरी कसबे के निवासी 'पीयूष ' को जाता है I

3. कील से लिखी"पीयूष वाणी
अब पीयूष ने अपनी ही लिखी पुस्तक"पीयूष वाणी "को कील से अ-4 साईज की एलुमिनिउम सीत पर लिखा है.पीयूष ने पूछने पर बतया कि आपने कील से कयू लिखा है?पीयूष ने पूछने पर बतया कि मै इस से पहले दुनिया की पहली सुई से स्वर्गीय श्री हरबंस राय बच्चन जी की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक "मधुशाला" को लिख चुका हु.अब मन मै विचार आया कि कयू न कील से भी प्रयास किया जाये सो मैने अ-4साइज कि अलुमिनिउम सित पर लिख्नने मै सफल हुआ .अलुनिनिउम की सित पर लिख्नना अलग बात है,और कागज पर लिख्नना अलग बात है.और ये हमेशा जिन्दा रहेगी।

4. मेहँदी से लिखी गीतांजलि
पीयूष ने एक ऑर नया कारनामा कर दिखाया उन्होंने 1913 के साहित्य के नोबल पुरुस्कार विजेता "रविन्द्र नाथ टेगोर" की विश्व प्रसिद्ध कृति गीतांजलि को "मेहंदी कोन" से लिखा है i उन्होंने 8 जुलाई 2012 को मेहँदी से गीतांजलि लिखनी शुरु की ऑर सभी 103 अध्याय 5 अगस्त 2012 को पुरे कर दिए i इसको लिखने में 17 कोन व् दो नोट बुक प्रयोग में आयीं i पीयूष ने श्री दुर्गा सप्त शती, अवधि में सुन्दर कांड, आरती संग्रह , हिंदी व् अंग्रेजी दोनों भाषाओ में श्री साईं सत्चरित्र भी लिख चुके हैं I और "राम चरित मानस"((dohe, sorta and chopai) को भी लिख चुके है । .

अपने काम के प्रति लगन के मामले में पीयूष कहते है -"मधुमखियो को यह नहीं पता होता कि हम शहद बना रहे हैं वो तो सिर्फ अपना काम कर रहीं हैं" ।




लेखक : गोपाल गोयल iamcreative100@gmail.com>

क्या है और कैसे किया जाता है फेसबुक लाइक्स घोटाला ?

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पिछले दिनों अख़बारों व सोशियल साईट पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के फेसबुक पेज पर अचानक लाइक्स की संख्या बढ़ने की चर्चा ने जोर पकड़ते ही लोगों ने मुख्यमंत्री गहलोत पर फेसबुक लाइक घोटाले का आरोप ठोक दिया, लोगों का मानना था कि अशोक गहलोत ने किसी विदेशी फर्म से धन के बदले फेसबुक पर अपने विरोधियों के पेज पर लाइक्स की संख्या से ज्यादा संख्या दिखाने के लिए अपने पेज के लिये लाइक्स खरीदें है क्योंकि गहलोत के पेज पर लाइक्स की संख्या में एकदम से इजाफा हुआ साथ ही लाइक करने वाले लोग इंस्तांबुल के ज्यादा थे, फेसबुक पेज के हिसाब से गहलोत एक ऐसे देश में ज्यादा लोकप्रिय है जिन्हें वहां कोई जनता तक नहीं, ऐसे में इन कुछ कारणों के चलते सोशियल साइट्स पर सक्रीय लोगों के लिए इस पर आशंका करना पर्याप्त था|

अक्सर अभिनेता, राजनेता व व्यवसायिक प्रतिष्ठान अपने फेसबुक पेज लाइक्स, ट्विटर पर फोलोवर आदि की बढ़ी संख्या दिखाकर लोगों के सामने अपनी झूंठी लोकप्रियता पेश करते है क्योंकि आजकल सोशियल साइट्स फेसबुक ट्विटर आदि पर पेज लाइक्स व फोलोवर की संख्या के आधार पर उनकी लोकप्रियता आंकी जाती है| अत: हर नेता, अभिनेता सोशियल साइट्स पर अपनी लोकप्रियता साबित करने के लिए लाइक्स व फोलोवर बढाने की जुगत में रहते है| इसी मांग ने इंटरनेट पर इसकी आपूर्ति करने वालों की बाढ़ ला दी|

कैसे बढ़ते है ये फर्जी लाइक्स, फोलोवर आदि ?

बाजार में मांग के अनुसार उत्पाद हमेशा उपलब्ध रहते है, इंटरनेट पर भी वेब प्रमोशन के लिए कार्य करने वाली ढेरों कम्पनियों की वेब साइट्स व टूल मौजूद है, इसी श्रंखला में इस लाइक्स व फोलोवर की मांग की पूर्ति करने वाली ढेरों वेब साइट्स इंटरनेट पर उपलब्ध है जो धन के बदले सोशियल साइट्स पर जरूरतमंद को लाइक्स या फोलोवर की मांग की आपूर्ति कर देती है| यह वेब साइट्स अपने ग्राहकों को उनकी पसंद के देशों के प्रसंशक उपलब्ध कराती है| राजस्थान के मुख्यमंत्री के लिए फेसबुक लाइक्स का जुगाड़ (मैनेज) करने वालों ने शायद इस बात का ख्याल नहीं रखा और उन्होंने लाइक्स मैनेज करनी वाली वेब साईट एडमीफ़ास्ट.कॉम पर विश्वभर से लाइक्स करने वालों को छुट दे दी, नतीजा यह हुआ कि गहलोत के पेज पर लाइक्स करने वाले प्रसंशक इस्तांबुल देश से ज्यादा हो गये और यह बात पकड़ में आते ही लोगों ने उनकी खिल्ली उड़ाते हुए इसे फेसबुक घोटाला करार दे दिया|

कैसे जुगाड़ (मैनेज) करती है ये वेब साइट्स प्रसंशक ?

इन वेब साइट्स के माध्यम से लाइक्स व फोलोवर बढाने हेतु एक खाता बनाकर पॉइंट्स जमा करने होते है ये पॉइंट्स खरीदने के साथ मुफ्त भी उपलब्ध होते है अत: नेता व अभिनेता जिनके पास समय नहीं होता और जल्द से जल्द जो सोशियल साइट्स पर प्रसंशक बढ़ाना चाहते है वे वेब साइट्स से धन के बदले पॉइंट्स खरीद लेते है और मुफ्त पॉइंट जमा करने वालों के लिए अपने प्रसंशक बन लाइक्स करने के लिये पॉइंट निर्धारित कर देते है जैसे अशोक गहलोत के फेसबुक पेज को लाइक करने वाले को एडमीफ़ास्ट.कॉम वेब साईट पर 9 पॉइंट दिए जा रहे है, ये मुफ्त पॉइंट एकत्रित करने वाले या तो बदले में अपने लाइक्स बढ़वाते है या फिर किसी के लिए प्रमोशन का कार्य करने के लिए धन लेकर अपने जमा पॉइंट्स अपने ग्राहक के लिए खर्च कर देते है| कुल मिलाकर ये सिस्टम आपस में एक दूसरे को लाइक करने या फोलोवर बनकर चलता रहता है जो खुद किसी को लाइक नहीं कर सकता या फोलोवर नहीं बन सकता है वह धन खर्च कर पॉइंट जमा कर लाइक्स बढ़वाता है|

इस तरह के प्रमोशन के लिए कितना करना होता है खर्च ?

इस तरह की सेवा देने वाली अलग-अलग वेब साइट्स अलग-अलग खर्च वसूलती है, सबके अपने अलग अलग पैकेज है, यहाँ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए जिस वेब साइट्स से लाइक ख़रीदे गए उसकी मूल्य सूची का चित्र सलंग्न है| इस सूची पर नजर डाली जाय तो इसके अनुसार इस वेब साईट का सबसे बड़ा पैकेज एक बार ख़रीदा जाय तो यह 400 डालर यानी लगभग चौबीस हजार रूपये में एक लाख पैंसठ हजार पॉइंट मिलेंगे, अब अशोक गहलोत के मैनेज किये जा रहे एक लाइक के बदले 9 पॉइंट दिए जा रहे है इस हिसाब से चौबीस हजार में रूपये में 18333 लाइक्स मिलते है, यदि गहलोत के लिए ख़रीदे गए लाइक्स का मूल्य निकाला जाय तो प्रति लाइक लगभग 1.31 रूपये बैठता है|

विरोधी को बदनाम करने के लिए इसका सहारा लिया जा सकता है

जिस तरह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पेज पर बढे लाइक्स पर हंगामा हुआ और उन पर आरोप लगाये गये इसी तरह यदि कोई व्यक्ति या समूह अपने किसी विरोधी को इस मामले में बदनाम करना चाहे तो वो भी आसान है क्योंकि ये लाइक्स बढाने वाली वेब साइट्स जिस फेसबुक पेज के लाइक्स, ट्विटर फोलोवर आदि बढ़ाती है उसके स्वामित्व की जाँच नहीं करती अत: कोई भी व्यक्ति इन्हें धन चूका किसी के भी पेज के लाइक्स बढ़वाकर उस पर धन खर्च लाइक्स बढवाने का आरोप लगा बदनाम कर सकता है मुख्यमंत्री गहलोत के फेसबुक पेज पर भी हो सकता है किसी ने उन्हें बदनाम करने हेतु ऐसा खेल खेला हो|

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बारिश में आँखों का रखे विशेष ख्याल

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जब भी मानसून का मौसम आता है तो मन खुश हो जाता है, गर्मी से निजात, रिमझिम फुहारों से खुशगवार मौसम, बारिश की छटा ही निराली होती है। लेकिन मानसून के सीजन में आखों की विशेष देखभाल भी जरूरी होती है। तरह तरह के आँखों के संक्रमण इस ही मौसम में पनपते है। बच्चें एवं स्कूल कालेज जाने वाले छात्रों को विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि उनमें ही संक्रमण अधिक फैलता है।


कन्जकटीवाईटिस ( नेत्रशोथ)

आँखों का सफेदी वाला भाग एवं पलक का अन्दरूनी भाग कन्जकटीवा कहलाता है। आंख के इस भाग में जलन, लाली और सूजन होने को कन्जकटीवाईटिस या नेत्रशोथ कहते है । इसके मुख्य कारण है इन्फेक्शन और एलर्जी, इस मौसम में आने वाले वायरल बुखार जो शरीर की प्रतिरोघक क्षमता को कम कर देते है उसकी वजह से भी नेत्रशोथ हो जाता है। इस मौसम में सबसे ज्यादा फैलने वाली आम बीमारी यही है। कन्जकटीवाईटिस का संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है। आँखों को सबसे अधिक कन्जकटीवाईटिस से ही बचाने की जरूरत होती है।

स्टाई (अंजनयारी या गुहेरी)
स्टाई पलको के आसपास लाली लिए हुए आई सूजन को कहते है। इसमें पस (मवाद ) बन जाता है और पस के पूरी तरह साफ होने पर ही ठीक होती है। इसके होने का मुख्य कारण बिना धूले हाथों से आँखों को रगड़ना एंव बेक्टिरिया है। ये बिमारी भी इस मौसम में आम है।

ड्राईनेस ऑफ़ आई (शुष्क आखें)
आखों में ड्राइनेस आना इस मौसम में आम बात है आँखों में जलन चुभन और पानी आना इसके मुख्य लक्ष्ण है।

स्वीमिंग पूल इन्फेक्शन
इस मौसम में स्वीमिंग पूल में तैरने से भी बहुत इंफेक्शन फैलता है

इनमें से किसी भी तरह की समस्या होने पर तुरन्त नेत्र विशेषज्ञ से समर्पक करे। एवं इलाज शुरू करवाये। नेत्र विशेषज्ञ की सलाहों का अनुपालन करें। स्वयं डाक्टर बनने का प्रयास न करे एवं बिना डाक्टरी सलाह के कोई दवाई या ड्राप का प्रयोग कतई ना करे। ये आपकी आँखों के लिये घातक हो सकता है।

इस मौसम में आप कुछ बातों का ध्यान रख के नेत्र समस्याओं से बच सकते है।
- साफ सफाई का ध्यान रखे।
- बिना धुले हाथों से आखों को ना छूएं।
- अपना तौलिया रूमाल एवं साबुन आदि किसी के साथ शेयर न करें।
- धुआं धूल प्रदूषण तथा तेज घूप एवं रोशनी से आँखों को बचा कर रखें।
- घर से बाहर निकलने पर अच्छे सनग्लासेज का प्रयोग करे।
- कन्जकटीवाईटिस या नेत्रशोथ के संक्रमण के समय भीड़भाड़ वाली जगह पर ना जाए।

द्वारा - डाक्टर जगमोहन सरदाना, (सरदाना आई इंस्टीट्यूट)
For further information contact Sachin Gaur 09711904901 (Media Coordinator)

पैट डॉग का साथ दूर करे तनाव

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आज जमाना है एकल परिवारों का ऐसे में महिलाओं को भी दोहरी जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है। एक परिवार की दूसरा अपने कैरियर की। ऐसें में तनाव अवसाद चिड़चिहाट आम बात हो गई हो गयी है। अगर हाउसवाईफ है तो पति और बच्चों के अपने काम पर जाने के बाद अकेलेपन की समस्या से जुझना पडता है। ऐसे में अगर पेट डॉग हो तो आपके लिए बहुत अच्छा है। अभी हाल ही में यू. के. में हुई एक स्टडी के अनुसार पालतू कुत्ते आपके लिए बेहद उपयोगी है। केनाइन बिहेवियर सेन्टर ऑफ़ क्वीनस यूनिवसिर्टी, नार्दन आयरलैण्ड के प्रोफेसर डाक्टर डेबोरेह वेल्स के द्वारा की गई इस रिसर्च के अनुसार कुत्ता पालने वाले लोग ज्यादा चुस्त एवं स्वस्थ होते है। उनका ब्लड प्रेशर भी ठीक रहता है दिल के रोग भी नही सताते। साथ ही महिलाओं को अवसाद भी नहीं होता।

फिजिकल एक्टीविटी

वर्षो से सुनते आ रहे है कि कूत्ता सबसे वफादार दोस्त होता है वो ना केवल आपके घर को सुरक्षा प्रदान करता हैं बल्कि आपको कम्पनी भी देता है। सुबह शाम अपनें ‘पैट डॉग’ को घुमाने ले जाइये इससे आपकी भी वाक् हो जायेगी, जो शरीर के लिए बहुत अच्छी है साथ ही साथ चलना आपके दिल को भी मजबूत करता है। आप अपने पैट डॉग’ के साथ खेल भी सकती है उसके साथ दौड़ सकती है। साथ ही साथ यह आपको सोशल होने का भी मौका देता है। वाक पर जाते समय अक्सर आपको परिचित मिलते है इसके अलावा दूसरे लोग जो डाग के साथ घुमने आते है उनके साथ भी परिचय बढ़ता है।
‘‘हमारे पास बहुत से लोग आते है जिनमें बड़ी संख्या ऐसी महिलाओं की होती है जो सिर्फ इसलिए डॉग पालना चाहती है क्योंकि उसके साथ उनका घूमना फिरना हो सके और एक्सरसाईज का एक टाईम टेबल बन सके,’’ कहती है वेटरिनरी डाक्टर अराधना पाण्डेय जो रोहिणी में ‘डोगी वर्ल्ड' के नाम से ‘पैट डॉग’ के लिए हॉस्पिटल चलाती है। जहाँ डॉग्स के लिये सभी तरह की सुविधाएँ उपलब्घ है। ट्रीटमेन्ट से लेकर ग्रुमिगॅ तक ट्रेनिग से लेकर मेट्रीमोनी तक।

जिम्मेदारी का एहसास

‘पैट डॉग’ होने से एक दायित्व का बोघ होता है आपको अपने डॉग के खाने पीने से लेकर उसकी साफ सफाई, बीमारी घूमने फिरने सबका ध्यान रखना होता है इससे ना केवल आपका समय अच्छे ढंग से व्यतीत होगा बल्कि आपको दायित्व बोध से खुशी भी मिलेगी। ‘‘डॉग पालना तो आसान है लेकिन उसकी जिम्मेदारी निभाना कठिन अगर आप ऐसा करती है तो इससे आपको मानसिक सकून तो मिलेगा ही आपकी समय भी अच्छा कटेगा,’’ कहती है डाक्टर आराधना पाण्डेय।

‘पैट डॉग’ के साथ समय बिताये

डेली आपको कम से कम आघा घन्टा अपने डॉग के साथ बिताना चाहिए, उसको सहलाये उसके बालों में हाथ फिराये। इससे आपको बहुत अच्छा महसूस होगा। अगर आप कामकाजी महिला है तो आफिस से आने के बाद आप ऐसा कर सकती है इससे आपकी सारी थकान एवं तनाव दूर हो जायेगा।

हाउस वाईफ के लिए

पति के दफ्तर एवं बच्चों के स्कूल जाने के बाद अक्सर हाउस वाईफ घर पर बोर होती है। ऐसे में ‘पैटस’ पालना उनके लिये बहुत अच्छा है उनका सारा समय भी आसानी से कटता है एवं अकेलापन भी नही महसूस होता। डाक्टर आराधना पाण्डेय के अनुसार पैट डॉग होना एक बच्चा होने के समान है उसका ध्यान रखने मे केयर करने में समय कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता।
यूनिवसिटी ऑफ़ मिसोरी कोलमबिया यू.एस.ए के अनुसार ‘पैट डॉग’ को 15 मिनट तक सहलाने से ब्रेन में फील गुड हारमोन्स सेरोटोनिन प्रोलेेक्टिन एन्ड औक्सीटिन का रिसाव होता है। जिससे हम खुश महसूस करते है।

Interview of Dr Aradhna Pandey

प्रश्न - आपके पास आने वाले ज्यादातर क्लाईटस किस तरह के होते है ?
उत्तर - हमारे पास ज्यादातर महिलायें आती है अकसर महिलायें घर में कुतो की देखभाल आदि करती है।
प्रश्न - क्या वाक्ई में ‘पैट डाग्स तनाव एवं अवसाद दूर करने में सहायक है ?
उत्तर - बिलकुल ‘पेटस’ के साथ समय बीतने से उसके साथ खेलने से आपको खुशी मिलती है इसके वैज्ञानिक पहलू भी है। जब आपका डॉग पूंछ हिलाकर आपके पास आता है आपके हाथ पैर चाटता है या आप उसके बालों को सहलाती है तो जाहिर तौर पर आपको खुशी मिलती है।
प्रश्न - इसका कोई वैज्ञानिक आधार भी है ?
उत्तर - ‘पेटस’ के साथ खेलने से भागने दौड़ने से सहलाने से ब्रेन में सेरोटोनिन एवं डोपामाइन जैसे केमिकल बनते है जिनसे हमे खुशी मिलती है और हम रिलेक्स फील करते है।
प्रश्न - महिलाओं को डॉग्स पालने से क्या लाभ है ?
उत्तर - कामकाजी महिलाओं और हाउसवाइफ दोनों के लिए ही ‘पैट डाग’ रखना अच्छा है उनके साथ समय बीताना खेलकर तनावमूक्त हो सकती है और उसकी देखभाल कर एक मानसिक सकून तो मिलता ही है। लेकिन हाँ सिफॅ कुत्ता पालने के लिये कुत्ता ना पाले आपको सही में डॉग लवर होना चाहिये।

पैट डॉग सम्बंधित ज्यादा जानकारी के लिए डा. अनुराधा पांडे से फोन न. 09811299050 पर सम्पर्क किया जा सकता है|
Written by Sachin Singh Gaur

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सावण आयो री सखी,मन रौ नाचै मोर

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सावण आयो री सखी, मन रौ नाचै मोर ।
जल बरसाव बादळी, अगहन लगी चहूं और ।।

झड़ लागी सावण की ,टिप -टिप बरसै मेह।
यौवन पाणी भिजतां, तापे सगळी देह ।।


झिर -मिर मेवो बरसता, बिजली कड़का खाय ।
साजन का सन्देश बिना, छाती धड़का खाय ।।

काली -पीली बादळी, छाई घटा घनघोर ।
घर -जल्दी सूं चाल री, बरसगो बरजोर ।।


गगन मंडल सूं उतरी, तीजा चारुं मेर।
रेशम -रेशम हुयी धरा, खिलगा जांटी - केर ।।

सावन का झुला पड्या, गीतड़ला को शोर ।
नाडी-सरवर लौट रहया, टाबर ढांढ़ा - ढोर ।।


चित उचटावे बीजळी, पपिहो बैरी दिन -रैण।
"पिहू-पिहू" बोले मसखरो, मनड़ो करे बैचैण ।।

गुलगला को भोग ल्यो, गोगा करो मैहर।
पाछ सगळा जिमस्यां, थान्को धुप्यो खैर ।।

तीज - सिंझारा,रखपुन्यूं, घेवर रौ घण चाव ।
हिंडा - हिंडू बाग़ में, सजधज करूँ बणाव ।।

लेखक : गजेन्द्र सिंह शेखावत


शब्दार्थ -१.झड - बारिश का लगातार धीरे-धीरे बरसना, २.मेह - वर्षा, ३.बरजोर - बहुत जोर से, ४.खिलगा - खिल गए, ५.गीतड़ला - गीत, ६.टाबर - बच्चे, ७.ढाढ़ा- ढोर - मवेशी, ८.हिंडा - झुला, ९.सगळा - सभी, १०.पाछ - उसके बाद, ११.जिमस्यां - भोजन करना

राजस्थान में कैसे कैसे अनूठे मंदिर

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१. सोरसन (बारां) का ब्रह्माणी माता का मंदिर- यहाँ देवी की पीठ का श्रृंगार होता है. पीठ की ही पूजा होती है !
२. चाकसू(जयपुर) का शीतला माता का मंदिर- खंडित मूर्ती की पूजा समान्यतया नहीं होती है, पर शीतला माता(चेचक की देवी) की पूजा खंडित रूप में होती है !
३. बीकानेर का हेराम्ब का मंदिर- आपने गणेश जी को चूहों की सवारी करते देखा होगा पर यहाँ वे सिंह की सवारी करते हैं !
४. रणथम्भोर( सवाई माधोपुर) का गणेश मंदिर- शिवजी के तीसरे नेत्र से तो हम परिचित हैं लेकिन यहाँ गणेश जी त्रिनेत्र हैं ! उनकी भी तीसरी आँख है !
५. चांदखेडी (झालावाड) का जैन मंदिर- मंदिर भी कभी नकली होता है ? यहाँ प्रथम तल पर महावीर भगवान् का नकली मंदिर है, जिसमें दुश्मनों के डर से प्राण प्रतिष्ठा नहीं की गई. असली मंदिर जमीन के भीतर है !
६. रणकपुर का जैन मंदिर- इस मंदिर के 1444 खम्भों की कारीगरी शानदार है. कमाल यह है कि किसी भी खम्भे पर किया गया काम अन्य खम्भे के काम से नहीं मिलता ! और दूसरा कमाल यह कि इतने खम्भों के जंगल में भी आप कहीं से भी ऋषभ देव जी के दर्शन कर सकते हैं, कोई खम्भा बीच में नहीं आएगा !
७. गोगामेडी( हनुमानगढ़) का गोगाजी का मंदिर- यहाँ के पुजारी मुस्लिम हैं ! कमाल है कि उनको अभी तक काफिर नहीं कहा गया और न ही फतवा जारी हुआ है !
८. नाथद्वारा का श्रीनाथ जी का मंदिर - चौंक जायेंगे. श्रीनाथ जी का श्रृंगार जो विख्यात है, कौन करता है ? एक मुस्लिम परिवार करता है ! पीढ़ियों से. कहते हैं कि इनके पूर्वज श्रीनाथजी की मूर्ति के साथ ही आये थे !
९. मेड़ता का चारभुजा मंदिर - सदियों से सुबह का पहला भोग यहाँ के एक मोची परिवार का लगता है ! ऊंच नीच क्या होती है ?
१०. डूंगरपुर का देव सोमनाथ मंदिर- बाहरवीं शताब्दी के इस अद्भुत मंदिर में पत्थरों को जोड़ने के लिए सीमेंट या गारे का उपयोग नहीं किया गया है ! केवल पत्थर को पत्थर में फंसाया गया है !
११. बिलाडा(जोधपुर) की आईजी की दरगाह - नहीं जनाब, यह दरगाह नहीं है ! यह आईजी का मंदिर है, जो बाबा रामदेव की शिष्या थीं और सीरवियों की कुलदेवी हैं !

'अभिनव राजस्थान' की 'अभिनव् संस्कृति' में इस सबको सहेजना है. दुनिया को दिखाना है |

गौरव ओमप्रकाश जाजू की फेसबुक वाल से

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भारत माँ की आवाज़ : कमलेश चौहान (गौरी)

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चिता पर जब ऐ ! मेरे वीरो तुम्हारा ठंडा जिस्म भेंट किया होगा।
आग का हर शोला लेकर तुम्हारा नाम बन्दे मातरम कहता होगा।

भारत माँ भी तेरे कदमों में तड़प तड़प कर कैसे रो उठी होगी।
तेरी चिता की धूल लहरा, रोती हुई यूँ मस्तक झुका गयी होगी।

गंगा जमुना की लहरें भी उछल उछल कर तुझे प्रणाम करती है।
तेरी वीरता तेरी देश भक्ति देख कर दुश्मन को भी हैरान करती है।

जब जब गिरी होगी भारत की जिस सीमा पर गर्व से तेरे लहू के बुँदे।
उगा न होगा उस दिन भी सूरज,, सिसक कर रोई होंगी चाँद की किरणें।

फिर सुना है, सीमा से आ रही हवाओं से तेरी आवाज में बन्दे मातरम।
भेजा है तूने सन्देशा हमे स्वर्ग लोक से भारत माँ को आजाद रखेंगे हम।

कसम खा लो मेरे भारतवासियो आज मेरे देश की कमान को तुम संभालो।
बन कर देश के रक्षक बेच रहे है भारत को उन्ही को देश से बाहर निकालो ।

लेखिका - कमलेश चौहान (गौरी)
Copy Right @ Kamlesh Chauhan

राजपूत छात्रावास भवनों की जर्जर हालात चिंताजनक : अभिमन्यु राजवी

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राजस्थान के शहरों व जिला मुख्यालयों पर स्कूल कालेजों में शिक्षा के लिए गांवों से आने वाले छात्रों के लिए अलग अलग जातिय छात्रावास बनें है, जहाँ गांवों से आये छात्र अपने अपने जातिय समाज द्वारा संचालित सस्ते आवास शुल्क व सुरक्षित छात्रावासों में रहकर अपने स्वजातिय छात्रों के साथ शिक्षा ग्रहण करते है| किसान छात्रावासों, ब्राहमण छात्रावासों, जैन, अग्रवाल, माहेश्वरी, चारण आदि विभिन्न जातिय छात्रावासों की तरह ही प्रदेश के बड़े शहरों व जिला मुख्यालयों पर राजपूत छात्रावास भी बनें है, जहाँ सस्ते में या फिर नाम मात्र का आवासीय शुल्क चुकाकर राजपूत छात्र वहां रहते हुए विभिन्न शिक्षण संस्थानों में शिक्षा ग्रहण करते है|

लेकिन रखरखाव व व्यवस्था के नाम पर अन्य सामाजिक छात्रावासों की व्यवस्थाओं व सुविधाओं के मामले में राजपूत छात्रावास काफी पीछे है| प्रदेश में ऐसे बहुत से राजपूत छात्रावास है जिनकी बनाने के बाद शायद ही आज तक मरम्मत हुई हो| जिन छात्रावासों के भवनों की मरम्मत भी हुई है तब भी उनमें वहां रहने वाले छात्रों के लिए समुचित सुविधाएँ नहीं है, कई राजपूत छात्रावासों के भवन मरम्मत व रख रखाव के अभाव में जर्जर हालात में पहुँच चुके है जहाँ कभी भी कोई हादसा हो सकता है|

ऐसे ही कई राजपूत छात्रावास भवनों की जर्जर हालात और वहां राजपूत छात्रों के लिए सुविधाओं की कमी ने भाजपा युवा मोर्चा नेता व पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. भैरोंसिंह जी शेखावत के दोहिते अभिमन्यु सिंह राजवी को काफी चिंतित व उद्वेलित किया, पिछले दिनों राजवी ने इस सम्बन्ध में अपने फेसबुक पेजव अपने ब्लॉग पर भी उपरोक्त चिंता जाहिर करते हुए समाज के लोगों से इस संबंध में आगे कर कार्य करने का आव्हान किया तथा अपनी और से इस संबंध में रणनीति बनाकर शीघ्र ठोस कार्य करने की घोषणा भी की| छात्रावास भवनों की हालात पर चिंता करते हुए राजवी हर जिला मुख्यालय पर राजपूत समाज में बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु उनके आवास के लिए भी अलग छात्रावास की जरुरत महसूस करते हुए लिखते है कि जिस जिले का राजपूत समाज अपने शहर में राजपूत बालिका छात्रावास बनाना चाहते है वे उस शहर में बालिका छात्रावास हेतु सिर्फ जमीन उपलब्ध करवा दे तो भवन बनवाने की व्यवस्था के लिए धन की व्यवस्था वे उपलब्ध करवा देंगे|

यही नहीं छात्रावास भवनों की मरम्मत का कार्य आगे बढाने हेतु श्री राजवी ने राजपूत युवा परिषद् के प्रदेश अध्यक्ष उम्मेद सिंह करीरी, जय राजपुताना संघ के भंवर सिंह खंगारोत, राजस्थान कर्मचारी महासंघ के गजेन्द्र सिंह खोजास सहित विभिन्न सामाजिक संगठनों के लोगों के साथ एक बैठक कर विचार विमर्श किया| इस बैठक में समाज के प्रतिनिधियों को श्री राजवी ने बताया कि उन्होंने कई राजपूत छात्रावासों के भवनों यथा चुरू, बांसवाड़ा आदि की द्रवित कर देने वाली जर्जर हालात देखी है, साथ ही विभिन्न जातिय छात्रावासों का दौरा कर उनकी सुविधाओं का भी अवलोकन किया, जहाँ उन्हें राजपूत छात्रावासों के विपरीत अच्छी सुविधाएँ व व्यवस्थाएं देखने को मिली| तो क्यों नहीं हम भी अन्य जातिय छात्रावासों की तरह राजपूत छात्रावासों की सुविधाएँ व व्यवस्थाएं सुधारने में सहायता करें|

बैठक में उपस्थित सामाजिक प्रतिनिधियों से श्री राजवी ने इस पुनीत सामाजिक कार्य में उनका सहयोग करने का आव्हान किया|

जीत आखिर सच्चाई की ही होती है

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जी टीवी पर चल रहे धारावाहिक जोधा अकबर के प्रसारित होने के पहले इसके प्रोमो देखकर सीरियल में ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश करने के खिलाफ राजपूत समुदाय के युवाओं व राजस्थान के इतिहासकारों में रोष व्याप्त हो गया था, इसी रोष के चलते एक दिन जय राजपुताना संघ के भंवर सिंह का इस संबंध में जानकारी जुटाने हेतु फोन आया, भंवर सिंह ने उचित जानकारी प्राप्त कर इस सीरियल के खिलाफ IBF को शिकायत भेजी साथ ही मेल द्वारा ढेर सारी शिकायतें भेजने का सोशियल साइट्स पर अनुरोध किया फलस्वरूप हजारों की तादाद में IBF कार्यालय में शिकायती ई-मेल पहुंचे, इसके साथ भंवर सिंह समेत समाज के कुछ जागरूक युवाओं ने IBF के ऑफिस में जाकर सीरियल के खिलाफ ज्ञापन दिया|

दूसरी और राजस्थान में राजपूतों का अग्रणी सामाजिक संगठन श्री राजपूत करणी सेना इस सीरियल के खिलाफ मुखर विरोध जताते हुए सड़कों पर था| IBF के पास ढेरों शिकायतें पहुँचने के बाद IBF के अधिकारीयों ने 5 जून 2013 को जी टीवी टीम के साथ राजपूत समाज के विभिन्न संगठनों की एक बैठक कराई जिसमें करणी सेना के संस्थापक लोकेंद्र सिंह कालवी समेत विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने जी टीवी को अकबर जोधा विवाद पर ऐतिहासिक तथ्य देते हुए बताया कि जोधा नाम की अकबर की कोई बेगम ही नहीं थी तो इस नाम से सीरियल क्यों ? इसी दिन इस बैठक के बाद जी टीवी के नॉयडा कार्यालय पर देशभर से आये राजपूत युवाओं ने आक्रोश व्यक्त करते हुए प्रदर्शन भी किया|

इसके बाद देशभर में इस सीरियल के खिलाफ प्रदर्शनों का दौर जारी रहा, इन प्रदर्शनों व करणी सेना के उग्र विरोध को देखते हुए आखिर सीरियल शुरू होने के एक दिन पहले १७ जून २०१३ को फिर गुडगांव के होटल ऑबेराय में करणी सेना संस्थापक लोकेन्द्र सिंह कालवी के नेतृत्व में विभिन्न राजपूत संगठनों के प्रतिनिधियों की जी टीवी व बालाजी टेलीफिल्म्स की प्रबंधन टीम के साथ वार्ता हुई, जिसमें बालाजी टेलीफिल्म्स की और एकता कपूर के पिता अभिनेता जितेन्द्र खुद वार्ता करने आये, इस वार्ता में बालाजी व जी टीवी टीम राजपूत प्रतिनिधियों के साथ चिकनी चुपड़ी बातें कर व किसी तरह बहला-फुसलाकर मैनेज करना चाह रहे थे पर उन्होंने इतिहास पढने के बावजूद यह नहीं नहीं जाना कि राजपूत कभी अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करते| आखिर यहाँ भी ऐसा ही हुआ, वार्ता विफल रही|

इस वार्ता के बाद जहाँ देशभर के क्षत्रिय संगठनों ने विभिन्न जगहों उग्र प्रदर्शन करने शुरू किये वहीँ करणी सेना संस्थापक कालवी ने जयपुर उच्च न्यायालय में व जोधपुर विश्वविध्यालय के पूर्व उप-कुलपति डा.लक्ष्मण सिंह राठौड़ ने जो खुद इतिहासकार भी है जोधपुर उच्च न्यायालय में इस सीरियल में इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने के खिलाफ जन-हित याचिकाएं लगा कानून का सहारा लिया|

पर इसी बीच कुछ अशुभ घटनाएँ भी सामने आई, फेसबुक पर सक्रीय कुछ राजपूत युवा जो मानसिक तौर पर कुछ संगठनों व राजनैतिक पार्टियों के गुलाम बन चुकें है ने उपरोक्त विफल हुई वार्ता को लेकर मनघडंत घटिया आरोप लगाने शुरू कर दिए जैसे- वार्ताकार फाइव स्टार में चाय पीने गये थे, वार्ताकार फाइव स्टार का खाना खाने गये थे, वार्ताकार तो सिर्फ अभिनेता जीतेंद्र के साथ फोटो खिंचाने गये थे आदि आदि, इनके साथ ही कोई लिखता कि ये तो टीवी वालों से रूपये लेकर इस सीरियल की टीआरपी बढाने का कार्य कर रहे है तो कोई कथित राष्ट्रवादी लिख रहा था इनको तो टीवी न्यूज में अपना चेहरा दिखाना है, यही नहीं कथित राष्ट्रवादियों ने तो उस करणी सेना को कांग्रेसी एजेंट तक घोषित कर दिया जिस करणी सेना के संस्थापक की उनके एक पूर्व मंत्री ने कभी पगड़ी उछलवाई थी और जब उसी पूर्व मंत्री को जातिवादी तत्वों के साथ मिलकर षड्यंत्र पूर्वक राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने सीबीआई के मार्फ़त जेल में बंद कर दिया था तब उस मंत्री के समर्थन में संघर्ष के लिए करणी सेना ही सड़कों पर थी जबकि उस मंत्री का राष्ट्रवादी दल भाजपा पुलिस डंडों के डर से सड़कों से भाग हुआ था| खैर...

इन सबके बावजूद इस सीरियल के विरोध में विभिन्न राजपूत संगठन व राजपूत युवा अपना अभियान चुपचाप चलाते रहे, एक तरफ क़ानूनी लड़ाई तो दूसरी तरफ संघर्ष| पर अफ़सोस हिन्दू हितों की बात करने वाले एक भी संगठन ने इस मामले में राजपूत समाज का साथ देना तो दूर किसी ने समर्थन में एक शब्द तक नहीं बोला बल्कि दूसरी जातियों के हिन्दू लोगों ने उल्टे टिप्पणियाँ की कि – राजपूत समाज इस मामले में अपने किये पर पर्दा डालना मात्र चाहता है, इन टिप्पणियों के साथ ऐसे लोग राजपूत समाज को लेकर चुटकियाँ तक लेने से नहीं चुके| लेकिन जब इन्हीं कायर लोगों पर कोई विपत्ति आती है तब इन्हें राजपूतों की बहादुरी और वीरता याद आती है और वे राजपूतों की जातिय भावनाओं का दोहन अपने फायदे में करने को दौड़े आते है और भाटों की तरह राजपूत जाति का गुणगान करते है ताकि दुश्मन से लड़ने को, मरने को वे आगे आयें और खुद बच जायें| पर अब परिस्थितियाँ बदल रही है, हिन्दुत्त्व के नाम पर दुकानदारी चलाने वाले पंडावादियों की चालें राजपूत युवा समझने लगे है|

हिंदूवादी संगठनों द्वारा राजपूतों के इस मामले में चुप्पी साधे रखने के मामले में मैं इन संगठनों से एक ही बात कहूँगा- राजपूतों ने पहले भी बहुत संघर्ष किये है और अब भी अपने किसी भी मामले में वे संघर्ष कर उसे सुलझाने व अपना स्वाभिमान बचाने में सक्षम है, राजपूत संगठनों की बात भी छोड़ दीजिये, एक एक अकेला राजपूत अपने दम पर बहुत कुछ करने में सक्षम है प्राचीन इतिहास को छोड़ भी दें तब भी कई उदाहरण आपके सामने है- अकेले शेरसिंह राणा ने बिना व्यक्तिगत दुश्मनी के समाज का स्वाभिमान बचाने को खूंखार डकैत और राजनैतिक सुरक्षा प्राप्त फूलन को कैसे निपटा दिया, अकेले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बहुमत के नशे में चूर राजीव गाँधी को चैलेंज कर कैसे सत्ता से बेदखल कर दिया था, अकेले पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी.के.सिंह ने कैसे पूरी सरकार को नाकों चने चबा दिए थे|

अत: हे हिंदूवादी संगठनों आप राजपूतों के मामले में बोलो या ना बोलो राजपूत समाज को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, उसका हर एक सदस्य अपने दम पर कुछ भी करने की हिम्मत रखता है पर आप अपना खुद का सोचो जिस दिन तुम्हारे पिछवाड़े पर पड़ेगी उस दिन तुम्हें बचाने कोई नहीं आयेगा, इसलिये समय की नजाकत समझो और पंडावादी मानसिकता से बाहर निकल कदम मिला राजपूत समाज का साथ दो इसमें आपका ही फायदा है|

इस मामले में सुदर्शन टीवी का रुख बहुत शानदार रहा, सुदर्शन टीवी ने राजपूत समाज की आवाज को देशभर में पहुँचाने हेतु ११ अगस्त को एक घंटे का एक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जिसके लिए हम सुदर्शन टीवी के हार्दिक आभारी है|

इतना सब कुछ होने के बावजूद जी टीवी व बालाजी टेलीफिल्म्स बेशर्मी से यह झूंठी कहानी पर आधारित धारावाहिक दिखाये जा रहा था उल्टा राजपूत समाज के विरोध को अपने सीरियल की टीआरपी बढाने में प्रयोग कर रहा था कि अचानक बालाजी टेलीफिल्म्स को अपनी एक फिल्म रिलीज करनी पड़ी, श्री राजपूत करणी सेना ने बालाजी टेलीफिल्म्स की इस कमजोरी पर आक्रमण किया और घोषणा कर दी कि- राजस्थान सहित देशभर के विभन्न सिनेमाघरों में बालाजी टेलीफिल्म्स की कोई फिल्म नहीं चलने दी जायेगी| पर सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बालाजी टेलीफिल्म्स को उसके मीडिया पार्टनर राजस्थान पत्रिका जैसे अख़बार ने आश्वस्त किया कि वे प्रशासन पर अपने दबदबे के चलते सब मैनेज कर फिल्म चलवा देंगे, एकता कपूर भी आश्वस्त थी, फिल्म रिलीज के होने के एक दिन पहले करणी सेना के सैनिकों ने अपनी ताकत दिखाई और उन्होंने एक सिनेमाघर के परदे फाड़ उसमें तोड़फोड़ की तो कहीं फिल्म दिखाने को प्रयासरत सिनेमाघर मालिक को जूतों का स्वाद चखाया| ये सारी ख़बरें जैसे ही एकता कपूर के पास पहुंची तो उसनें घबरा कर फिर करणी सेना से संपर्क कर मामले को निपटाने की कोशिश की|

करणी सेना की स्पष्ट मांग थी कि सीरियल बंद किया जाय या उसका नाम बदला जाय, पात्रों के नाम बदले जाय,राजपूत,क्षत्रिय, हिन्दू आदि शब्द निकाले जाये आदि आदि| तभी समझौता हो सकता है| इस तरह करणी सेना के कड़े रुख के बाद एकता कपूर अपने माँ बाप के साथ अपनी टीम सहित जयपुर आई, विश्वस्त सूत्रों के अनुसार जयपुर एयरपोर्ट पहुँचते ही उसनें जिस होटल में ठहरने हेतु बुकिंग करवा रखी थी ने फोन पर एकता कपूर को सूचित कर बुकिंग इस बात पर निरस्त कर दी कि - आप यहाँ करणी सेना से वार्ता करने आ रही है, आप उनकी बात मानेंगी नहीं और वार्ता विफल होगी तब करणी सैनिक न आपको जाने देंगे न मेरा होटल साबुत छोड़ेंगे, ऐसी हालात में हम अपने होटल में आपको नहीं ठहरा सकते| आखिर जैसे तैसे कर होटल की बुकिंग निरस्त होने से बचाई गई और पुलिस बल द्वारा छावनी में तब्दील होटल में डरी सहमी एकता कपूर ने मीडिया के कैमरों के सामने राजपूत समाज से माफ़ी मांगते हुए करणी सेना की सभी मांगे मंजूर करने की घोषणा की| एकता कपूर द्वारा मांगे मानने व माफ़ी मांगने पर करणी सेना ने उसकी फिल्म का विरोध त्याग दिया पर साथ ही चेतावनी भी दी कि यदि उसने किसी तरह की वादा खिलाफी की तो उसकी आगामी किसी भी फिल्म को राजस्थान में नहीं चलने दिया जायेगा|

आखिर सच्चाई की जीत हुई, जो लोग फेसबुक पर बयान वीर बने बकवास कर रहे थे वे बिलों में छुप बैठे, कुछ लोग अभी भी इस खुंदक में फेसबुक पर बकवास जारी रखें है क्योंकि वे एक आध जगह प्रदर्शन कर अंगुली कटा शहीद हो इसकी क्रेडिट लेना चाहते थे पर उनसे पहले करणी सेना ने एकता कपूर को झुका दिया, अब बेचारे वे अपने प्रदर्शन में क्या करे ? सो बकवास ही सही !! यह बकवास मुंबई के किसी स्वघोषित नेता द्वारा की जा रही है- मैं तो उसे यही कह सकता हूँ कि – हे मुंबई के नेता जी आपको बहादुरी दिखानी ही थी तो एकता कपूर मुंबई में ही रहती है वहीँ कुछ कर उससे सीरियल रुकवा लेते, और कुछ नहीं तो कम से कम उसका मुंह ही काला कर देते|

राजस्थान पत्रिका जैसे अख़बार की औकात भी पता चल गयी कि उसकी नजर में सामाजिक सरोकारों की कोई कीमत नहीं उसे सिर्फ अपने व्यवसायिक हित नजर आते है ऐसा अख़बार समाज का क्या आईना बनेगा अत: बंधुओं इस अख़बार का अपने घर में प्रवेश बंद कर इसका बहिष्कार करें ताकि ये अपने सामाजिक सरोकार के कर्तव्य से हटने की बात नहीं सोचे|

एक बार मैं हिन्दुत्त्व का नारा बुलंद करने वाले संगठनों से फिर कहना चाहूँगा कि – राजपूत तो इस मामले की तरह अपने मामले निपटाना जानतें है, हाँ आप नहीं सुधरे तो अभी तो सिर्फ एक दिग्विजय सिंह का विरोध आपको भारी पड़ रहा है यदि आपकी ऐसी ही मानसिकता व आचरण रहा तो राजपूत समाज में हिंदूवादी संगठनों का विरोध करने हेतु कई दिग्विजय सिंह पैदा हो जायेंगे !!

शेखावाटी का माउंट : हर्षनाथ पहाड़

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इस माह कोई एक दशक बाद 15 दिन गांव में गुजारने को मिली छुट्टी के दौरान 6 अगस्त को गांव के पास स्थित लोसल कस्बे में बैंकिंग कार्य निपटाने के बाद वहीँ से बस पकड़ राजपूत युवा परिषद् के नव-नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष उम्मेद सिंह करीरीसे मिलने सीकर आ गया, उम्मेद सिंह करीरी का कार्यालय सीकर से मेरे गांव की मुख्य सड़क पर ही है सो कार्यालय के आगे ही बस उतार देती है|

उस दिन उनके कार्यालय के कर्मचारी हड़ताल पर थे सो उम्मेद सिंह जी भी हमसे बतियाने को फ्री थे, दिन भर कई ज्वलंत सामाजिक व स्थानीय राजनैतिक मुद्दों पर चर्चा होती रही शाम को वापस गांव जाने का सोच ही रहा था कि उम्मेद जी के पास राजश्री साफा हाउसके राजेन्द्र सिंह खोरीका फोन आ गया, वे बोले मैं जल्द ही आपके पास आ रहा हूँ और कुछ देर में ही वे अपनी स्विफ्ट कार से दो और मित्रों के साथ आ धमके, मुझे देखते ही उन्होंने उम्मेद सिंह जी को कह दिया - “भाई साहब फेसबुक के बाहर फेस टू फेस कभी कभार मिलते है अत: आज रात्री का खाना व रहना मेरे घर मेरे गांव खोरी में ही होगा|” उन्होंने जिस अधिकार से आग्रह किया उसके बाद मेरे व उम्मेद सा दोनों के लिए ना कहना मुश्किल था| सो चुपचाप उनकी गाड़ी में बैठ उनके गांव की और चल पड़े|

राजेन्द्र सिंह जी का गांव खोरी अरावली पर्वत श्रंखला की एक ऊँची पहाड़ी हर्षनाथ की तलहटी में बसा हुआ है सो जैसे जैसे हम गांव के नजदीक पहुंचे हर्षनाथ पहाड़ बड़ा दिखाई देने लगा और उस पर लगे बिजली बनाने वाले बड़े बड़े पंखे हमें अपनी और आकर्षित कर पहाड़ पर आने का न्यौता देने लगे, साथ ही वर्षा के मौसम में हरे भरे पहाड़ की रौनक का गुरुत्वाकर्षण हमें इस कदर अपनी और खिंच रहा था कि हमारी गाड़ी खोरी गांव की और जाने वाले रास्ते की बजाय सीधे पहाड़ की राह हो ली और कुछ ही मिनटों में पहाड़ की चढ़ाई चढने लगी|

हर्षनाथ पहाड़ पर सबसे पहले कालेज के दिनों में जाना हुआ था उस वक्त भी बारिश का मौसम था,बादल पहाड़ पर उतरे हुए थे तब हम छात्रावास के सभी छात्र अपने रसोईये को साथ लेकर बादलों व पहाड़ी के साथ दाल-बाटी का लुफ्त उठाने गये हुए थे और सभी साथियों ने अपनी अपनी साइकिलें तलहटी में बसे गांव में रखकर लगभग चार किलोमीटर की ऊँची चढ़ाई पर रोमांच के साथ पैदल ही चढ़ गये थे| दूसरी बार कालेज के दिनों में ही एक मुंबई की फिल्म पार्टी वालों को लोकेशन दिखाने के बहाने जाना हुआ, यह इस पहाड़ पर मेरी पांचवी यात्रा थी, जिसमें हमने गाड़ी में बैठ सड़क मार्ग से चढ़ाई चढ़ी|

चढाई चढ़ रही गाड़ी के म्यूजिक सिस्टम में चल रहा “काको ल्यायो काकड़ी काकी मांग्या बीज, काको ठोकी लात की काकी गया गीत”पहाड़ की रौनक में चार चाँद लगा मन को प्रफुल्लित कर दे रहा था, गीत के बोल सुन एक बार तो लगा कि कहीं “काकी के लात” मारने वाला गीत किसी नारीवादी ने सुन लिया तो हमें नारी विरोधी घोषित करने में एक क्षण नहीं लगायेगा पर शुक्र है ऐसा कोई नारीवादी वहां था नहीं|

गीत के साथ ही पहाड़ी की सड़क पर आती जाती गाडियों का रैला देखकर भी अचम्भा हुए जा रहा था क्योंकि किशोरावस्था में जब भी वहां गये थे तब अपने समूह के अलावा दूसरा कोई समूह नजर नहीं आता था आदमी के नाम पर दिखते थे तो सिर्फ पुरातत्व, वन विभाग के कर्मचारी, गड़रिये या फिर मंदिर के पुजारी| इनके अलावा तो बकरियां व बंदर ही चारों और नजर आते थे पर इस बार इसके विपरीत सड़क पर गाड़ियों का रैला था, पहाड़ पर चढ़ने के बाद वहां पार्किंग भी गाड़ियों से पटी पड़ी थी, पार्किंग स्थल से मंदिर तक लोगों का हुजूम दिखाई दे रहा था, पूछने पर पहाड़ के पड़ौसी राजेन्द्र सिंह ने बताया कि आजकल यहाँ हर वक्त भीड़ रहती है, अब तो यह पहाड़ पिकनिक स्पॉट बन गया है, रास्ते में गाड़ियाँ रोक या पहाड़ पर इधर उधर बैठे युवकों को मदिरा की चुस्कियां लेते देख मुझे भी समझते देर ना लगी कि अब ये पहाड़ सुरापान के शौक़ीन के लिए एक शानदार जगह बन गया है न कोई रोकने वाला न कोई टोकने वाला|

खैर...पहाड़ पर भीड़ के बावजूद रौनक देखने वाली थी, बिजली बनाने वाले ऊँचे विंड पावर के पंखे अपनी मस्ती में बिना किसी की परवाह किये अपनी चाल में घूम बिजली बनाने में व्यस्त थे, चूँकि हमारे पहुँचते पहुँचते शाम हो चुकी थी, बादलों की ओट में छुपे सूर्य देवता अपनी ड्यूटी ख़त्म कर अपने घर जाने की तैयारी में थे, इस बार देखा पहाड़ पर सूर्य देव को घर प्रस्तान करते का दृश्य (सनसेट) देखने को वहां बैठने के लिए बैंचें व टिन के झोपड़े नुमा शेड बना सरकार ने विशेष व्यवस्था भी कर दी है|

विंड पावर पंखों, हरियाली, लोगों व गाड़ियों की भीड़, ऊँचा शिव मंदिर, वन विभाग के दफ्तर व उनका गेस्ट हाउस सबने मिलकर हर्षनाथ पर्वत को आबाद कर रमणीय बना दिया जो वहां गये हर पर्यटक को प्रभावित व रोमांचित करता है, मुझे भी इन सब ने रोमांचित किया पर चूँकि मेरी यह पांचवी यात्रा थी सो मुझे पता था कि मेरी ये ख़ुशी, रोमांच कुछ ही क्षण बाद ख़त्म हो अवसाद का रूप ले लेगा जब मैं सन 973 ई. में चाहमान शासक विग्रहराज प्रथम के शासन काल में एक शैव सन्त भावरक्त द्वारा बनवाये गये क्षत विक्षत खंडहर मंदिर के अवशेष देखूंगा|

उत्तर मध्यकाल में शिव को समर्पित यह मंदिर वर्तमान में नए बने मंदिर के पास ही ऊँचे अधिष्ठान पर निर्मित है जो आज खंडहर में तब्दील हो चूका है| इस खंडहर प्राचीन मंदिर में गर्भगृह, अंतराल, कक्षासन युक्त रंग्मंड़प एवं अर्धमंडप के साथ एक अलग नंदी मंडप बना है, अपने मौलिक अवस्था में यह मंदिर एक ऊँचे शिखर से परिपूर्ण था| यह मंदिर अपनी स्थापत्य विशिष्टताओं एवं ब्राहमण देवी-देवीताओं की प्रतिमाओं सहित नर्तकियों, नर्तकों, संगीतज्ञों, योद्धाओं व कीर्तिपुरुषों के प्रारूप वाली सजावटी दृश्यावलियों के उत्कृष्ट शिल्प कौशल हेतु उल्लेखनीय है| मंदिर के पास पड़ी विखंडित कलाकृतियों को देख मंदिर की कलात्मकता की उत्कृष्टता का अंदाजा सहज ही लग जाता है| खंडित प्राचीन पुरातत्व को देख अचानक ब्लॉगर ललित शर्मा जीकी याद गयी कि काश वे साथ होते तो कलाकृतियों के पुतात्त्व व उनकी शिल्पकला पर विस्तृत प्रकाश डाल हमारा ज्ञान वर्धन करते|

इतनी सुंदर कलाकृतियों को देख सहज अनुमान लगाया जा सकता कि कभी इस मंदिर के कैसे सुनहले दिन थे पर एक धर्मांध बादशाह औरंगजेब की धर्मान्धता ने इसकी वैभवता नष्ट कर इसे जमीन पर छितराने को विवश कर दिया, मंदिर के साथ ही एक भैरव मंदिर भी है वह भी उस धर्मांध बादशाह की कुदृष्टि का शिकार बना था, औरंगजेब के हमले के बाद इस मंदिर की मरम्मत जरुर हुई पर लम्बे समय तक इसके रख रखाव पर ध्यान न देने के चलते आज यह मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है, आधुनिक लोगों ने नाम कमाने के लिए उसके पास एक ऊँचे शिखर वाला नया मंदिर तो बना दिया पर इसकी मरम्मत की किसी ने जरुरत नहीं समझी, और अब पुरातत्व विभाग के अधीन होने के चलते कोई चाह कर भी इस मंदिर के लिए आंसू बहाने के सिवाय कुछ नहीं कर सकता|

उत्कृष्ट कलाकृतियों की दर्दनाक स्थित देख मन विचलित होने के बावजूद साथियों की ख़ुशी में खुश दीखते हुए पहाड़ के सौंदर्य व उसके साथ, साथ गये मित्रों को अलग अलग एंगल्स से कैमरे में कैद कर रात होने से पहले पहाड़ से उतरने को फिर गाड़ी में सवार में हुए, गाड़ी का म्यूजिक सिस्टम फिर “काको ल्यायो काकड़ी” राजस्थानी लोक गीत सुनाने में व्यस्त हो गया| फेसबुक मित्र राजेंद्र सिंह के खोरी गांव स्थित घर पहुँचते पहुँचते अँधेरे के साथ साथ वर्षा की फुहारों ने हमारा गांव में स्वागत किया, मित्र के घर हमारे रात्री भोजन हेतु बकरे के मीट की हंडिया पहले से चढ़ी हुई थी जिसमें वर्षा की वजह से खलल पड़ रहा था आखिर हंडिया पर छतरी तान बारिश से बचा भोजन सामग्री को पकाया गया जो इतनी बढ़िया पकी कि वैध जी द्वारा मांसाहार खाने पर लगायी रोक के बावजूद अपने आपको रोक नहीं सका|

फेसबुक व फेस टू फेस मित्रों का साथ, स्वादिष्ट भोजन, बारिश का मनभावन मौसम और हर्षनाथ की सुरम्य वादियों की यात्रा ऐसे कई सुनहले यादगार मौके दिल्ली की भाग दौड़ वाली आपाधापी जिन्दगी में कभी कभार ही मिलते है|

कहाँ गया आपातकाल में खोदा जयपुर के पूर्व राजघराने का खजाना ?

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अक्सर सुनने को मिलता है कि आपातकाल में भारत सरकार ने जयपुर के पूर्व राजघराने पर छापे मारकर उनका खजाना जब्त किया था, राजस्थान में यह खबर आम है कि - चूँकि जयपुर की महारानी गायत्री देवी कांग्रेस व इंदिरा गांधी की विरोधी थी अत: आपातकाल में देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जयपुर राजपरिवार के सभी परिसरों पर छापे की कार्यवाही करवाई, जिनमें जयगढ़ का किला प्रमुख था, कहते कि राजा मानसिंह की अकबर के साथ संधि थी कि राजा मानसिंह अकबर के सेनापति के रूप में जहाँ कहीं आक्रमण कर जीत हासिल करेंगे उस राज्य पर राज अकबर होगा और उस राज्य के खजाने में मिला धन राजा मानसिंह का होगा| इसी कहानी के अनुसार राजा मानसिंह ने अफगानिस्तान सहित कई राज्यों पर जीत हासिल कर वहां से ढेर सारा धन प्राप्त किया और उसे लाकर जयगढ़ के किले में रखा, कालांतर में इस अकूत खजाने को किले में गाड़ दिया गया जिसे इंदिरा गाँधी ने आपातकाल में सेना की मदद लेकर खुदाई कर गड़ा खजाना निकलवा लिया|

यही आज से कुछ वर्ष पहले डिस्कवरी चैनल पर जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी पर एक टेलीफिल्म देखी थी उसमें में गायत्री देवी द्वारा इस सरकारी छापेमारी का जिक्र था साथ ही फिल्म में तत्कालीन जयगढ़ किले के किलेदार को भी फिल्म में उस छापेमारी की चर्चा करते हुए दिखाया गया| जिससे यह तो साफ़ है कि जयगढ़ के किले के साथ राजपरिवार के आवासीय परिसरों पर छापेमारी की गयी थी|

जश्रुतियों के अनुसार उस वक्त जयपुर दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग सील कर सेना के ट्रकों में भरकर खजाने से निकाला धन दिल्ली ले जाया गया, लेकिन अधिकारिक तौर पर किसी को नहीं पता कि इस कार्यवाही में सरकार के कौन कौन से विभाग शामिल थे और किले से खुदाई कर जब्त किया गया धन कहाँ ले जाया गया|

चूँकि राजा मानसिंह के इन सैनिक अभियानों व इस धन को संग्रह करने में हमारे भी कई पूर्वजों का खून बहा था, साथ ही तत्कालीन राज्य की आम जनता का भी खून पसीना बहा था| इस धन को भारत सरकार ने जब्त कर राजपरिवार से छीन लिया इसका हमें कोई दुःख नहीं, कोई दर्द नहीं, बल्कि व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि यह जनता के खून पसीने का धन था जो सरकारी खजाने में चला गया और आगे देश की जनता के विकास में काम आयेगा| पर चूँकि अधिकारिक तौर पर यह किसी को पता नहीं कि यह धन कितना था और अब कहाँ है ?

इसी जिज्ञासा को दूर करने व जनहित में आम जनता को इस धन के बारे जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पिछले माह मैंने एक RTI के माध्यम से गृह मंत्रालय से उपरोक्त खजाने से संबंधित निम्न सवाल पूछ सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत जबाब मांगे -
1- क्या आपातकाल के दौरान केन्द्रीय सरकार द्वारा जयपुर रियासत के किलों, महलों पर छापामार कर सेना द्वारा खुदाई कर रियासत कालीन खजाना निकाला गया था ? यही हाँ तो यह खजाना इस समय कहाँ पर रखा गया है ?
2- क्या उपरोक्त जब्त किये गए खजाने का कोई हिसाब भी रखा गया है ? और क्या इसका मूल्यांकन किया गया था ? यदि मूल्यांकन किया गया था तो उपरोक्त खजाने में कितना क्या क्या था और है ?
3- उपरोक्त जब्त खजाने की जब्त सम्पत्ति की यह जानकारी सरकार के किस किस विभाग को है?
4- इस समय उस खजाने से जब्त की गयी सम्पत्ति पर किस संवैधानिक संस्था का या सरकारी विभाग का अधिकार है?
5- वर्तमान में जब्त की गयी उपरोक्त संपत्ति को संभालकर रखने की जिम्मेदारी किस संवैधानिक संस्था के पास है?
6- उस संवैधानिक संस्था या विभाग का का शीर्ष अधिकारी कौन है?
7- खजाने की खुदाई कर इसे इकठ्ठा करने के लिए किन किन संवैधानिक संस्थाओ को शामिल किया गया और ये सब कार्य किसके आदेश पर हुआ ?
8- इस संबंध में भारत सरकार के किन किन जिम्मेदार तत्कालीन जन सेवकों से राय ली गयी थी?

मेरे उपरोक्त प्रश्नों की RTI गृह मंत्रालय ने सूचना उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय अभिलेखागार, जन पथ, नई दिल्ली के निदेशक को भेजी, जहाँ से मुझे जबाब आया कि –आप द्वारा मांगी गयी सूचना राष्ट्रीय अभिलेखागार में उपलब्ध नहीं है| साथ इस विभाग ने कार्मिक प्रशिक्षण विभाग द्वारा दिए गये दिशा निर्देशों का हवाला देते हुए लिखा कि प्राधिकरण में उपलब्ध सामग्री ही उपलब्ध कराई जा सकती है किसी आवेदक को कोई सूचना देने के लिए अनुसंधान कार्य नहीं किया जा सकता|

जबकि मैंने अपने प्रश्नों में ऐसी कोई जानकारी नहीं मांगी जिसमें किसी अनुसंधान की जरुरत हो, लेकिन जिस तरह सरकार द्वारा सूचना मुहैया कराने के मामले में हाथ खड़े किये गये है उससे यह शक गहरा गया कि उस वक्त जयपुर राजघराने से जब्त खजाना देश के खजाने में जमा ही नहीं हुआ, यदि थोड़ा बहुत भी जमा होता तो कहीं तो कोई प्रविष्ठी मिलती या इस कार्यवाही का कोई रिकोर्ड होता| पर किसी तरह का कोई दस्तावेजी रिकॉर्ड नहीं होना दर्शाता है कि आपातकाल में उपरोक्त खजाना तत्कालीन शासकों के निजी खजानों में गया है| और सीधा शक जाहिर कर रहा कि उपरोक्त खोदा गया अकूत खजाना आपातकाल की आड़ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने खुर्द बुर्द कर स्विस बैंकों में भेज दिया जिसे सीधे सीधे जनता के धन पर डाका है|

साथ ही यह प्रश्न भी समझ से परे है कि इस संबंध में क्या जानकारी सिर्फ राष्ट्रीय अभिलेखागार में ही हो सकती है ? किसी अन्य विभागों यथा आयकर आदि के पास नहीं हो सकती ? जबकि गृह मंत्रालय ने मेरी RTI का जबाब देने को सिर्फ राष्ट्रीय अभिलेखागार को ही लिखा|

आप के पास इस संबंध में कोई जानकारी हो, किसी अख़बार की उस वक्त छपी न्यूज की प्रति हो कृपया मेरे साथ साँझा करें | साथ ही आरटीआई कार्यकर्त्ता इस संबंध में मार्गदर्शन करें कि यह जानकारी प्राप्त करने के लिए किन किन विभागों में आरटीआई लगायी जाय तथा पहले लगायी आरटीआई की अपील कैसे व कहाँ की जाय, आपकी सुविधा के लिए आरटीआई व उसके जबाब की प्रतियाँ निम्न लिंक पर उपलब्ध है|

RTI Copy
RTI Reply



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गौरक्षा कार्यक्रम और फेसबुक मित्रों से मुलाकात

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२२ जुलाई को जयपुर एक वैवाहिक कार्यक्रम में भाग लेने जाने से पहले ही जयपुर की होटल अशोका में क्राइम पेट्रोल ओआरजी की राष्ट्रीय अध्यक्षठाकुर शिखासिंहकी प्रेस कांफ्रेंस के बाद राजपूत युवा परिषद् के अध्यक्ष उम्मेदसिंह करीरीसहित कई मित्रों से मुलाकात हुई, उम्मेद सिंह करीरी व शिखासिंह के अलावा सभी मित्र इससे पहले मुझे फेसबुक व ज्ञान दर्पण के माध्यम से ही जानते थे उस दिन पहली बार कई फेसबुक मित्रों से फेस टू फेस मिलने का मौका मिला| इन्हीं में से एक मित्र गजेन्द्र सिंह जी ने उस दिन अपनी संस्था श्रीराम फाउंडेशन का परिचय व उनके द्वारा गौ-सेवा व गौ-सुरक्षा के लिए किये जाने वाले कार्यों की जानकारी देते हुए डीडवाना के पास ठाकरियावास गांव में ११ अगस्त को होने वाले कार्यक्रम में आने का न्योता दिया| हमनें भी उनका न्योता उसी वक्त सहर्ष स्वीकार कर लिया|

संयोग से अगस्त के शुरू में ही मुझे अपनी कम्पनी से कई वर्षों बाद वैश्विक मंदी के चलते १५ दिन का अवकाश मिल गया| अत: इस कार्यक्रम से ११ दिन पहले ही मैं अपने गांव पहुँच चूका था| ११ अगस्त को मैं नियत समय पर राजस्थान रोड़वेज की बस से डीडवाना पहुँच गया जहाँ मुझे अपनी बहन व भांजों से मिलना था व एक बहन व भांजी को उनके घर तक छोड़ना भी था| भांजों से मुलाकात के बाद कार्यक्रम में शामिल होने दिल्ली से चली शिखासिंहव सीकर से चले उम्मेद सिंह करीरीसे सम्पर्क किया तो वे डीडवाना से पीछे ही थे अत: समय निर्धारित कर हाईवे पर उनके साथ होने की एक जगह निश्चित कर हम वहां पहुँच इनका इंतजार करने लगे, थोड़ी देर बाद ही उम्मेद सा एडवोकेट हनुमानसिंह जी के साथ गाड़ी में पहुँच गए, हम आपस में मिल ही रहे थे कि उसी वक्त शेरे राजस्थान पूर्व राष्ट्रपति स्व.भैरोंसिंह जी के दोहिते व युवा भाजपा नेता अभिमन्यु सिंह राजवीभी उसी कार्यक्रम में जाते हुए मिल गए| मैं उम्मेद सा के साथ अभिमन्यु बना की गाड़ी में सवार हो गया|

गांव के बाहर खुले खेतों के बीच शामियाने लगे कार्यक्रम में पहुंचे तो कार्यक्रम चालू था| जिसका मंच संचालन रामगोपाल जी अग्रवाल बड़े शानदार व प्रभावी तरीके से कर रहे थे, मंच पर कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ साधू संत व डीडवाना के शहर काजी बिराजे थे| हमारे कार्यक्रम स्थल पर पहुँचते ही संस्था अध्यक्ष गजेन्द्र सिंह जी ने स्वागत करते हुए हमें मंच पर आमंत्रित किया, पर मेरा इरादा मंच पर बैठने की बजाय कार्यक्रम की फोटोग्राफी करने में ज्यादा था, मैंने अपनी रूचि से गजेन्द्र सा को अवगत करा दिया और अपने काम में जुट गया|

थोड़ी ही देर बाद फोन की घंटी बजी तो देखा फेसबुक मित्र व पत्रकार विनोद गौड़फोन कर रहे है, किसी कारण वश उनका फोन उस वक्त नहीं उठा पाया और थोड़ी ही देर बाद जैसे ही मैंने शामियाने के बाहर निकल वापस विनोद जी फोन लगाया तो वे फोन उठाने के बजाय सीधा मेरे पास आ धमके और अपना परिचय दिया| मैं उन्हें देख हतप्रद था क्योंकि मुझे उनके मिलने की कोई पूर्व संभावना ही नहीं थी| ऐसी अचानक मुलाकात बड़ी सुखद व रोचक लगती है, हम दोनों ने आपस में चर्चा शुरू की ही थी कि तभी मीडिया के कई साथी और आ गए जिनसे एक एक कर विनोद जी ने मेरा परिचय कराया| पत्रकार मित्रों से परिचय चर्चा चल ही रही थी तभी बेटी बचावो आंदोलन चलाने वाली शिखासिंह क्लीन इंडिया नामक संस्था की अध्यक्ष और पूर्व मिसेज इंडिया डा.उदिता त्यागीके साथ गाड़ी से उतरती दिखाई दी| इनके साथ जैसे ही वापस मंच की और आये तो एडवोकेट हनुमान सिंह जी का जोशीला भाषण चल रहा था उनके बाद कुछ और लोग भी बोले पर मुझे इंतजार था युवा नेता और बचपन से स्व.बाबोसा भैरोंसिंह के सानिध्य में रह राजनीति के गुर सीखे अभिमन्यु सिंह राजवी के भाषण का|

राजवी का भाषण सुनने का यह मौका मुझे पहली बार मिलने जा रहा था और मैं उनके भाषण को ध्यान से सुनने के साथ साथ अपने कैमरे में रिकोर्ड भी करना चाह रहा था पर अफ़सोस एक ही कैमरा साथ होने के चलते पहले उससे स्टील फोटोग्राफी करने के चक्कर में पूरा भाषण रिकोर्ड नहीं कर पाया, खैर.....

राजवीने अपने पुरे भाषण में राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया, उनके भाषणके दौरान भीड़ की तरफ देखने पर ज्ञात हुआ कि महिलाओं सहित पूरी भीड़ राजवी के भाषण को बड़ी गंभीरता व ध्यान से सून रही थी| और सुनती भी क्यों नहीं, आखिर अपने आदर्श नेता बाबोसा के वारिश को सून रही थी जिनसे यहाँ उपस्थित हर श्रोता का गहरा भावनात्मक रिश्ता जुड़ा था| राजवी ने भी अपने भाषण से उपस्थित जनसमुदाय को निराश नहीं किया, उन्होंने विषयानुसार ही एक एक मुद्दे पर सारगर्भित बातें की, गौ हत्या रोकने के साथ ही उन्होंने प्रदेश में गौचर भूमि पर भूमाफिया द्वारा कब्ज़ा किये जाने को प्रमुखता से उठाते हुए अपने अपने गांव के पास स्थित गौचर भूमि पर अतिक्रमण हटाने व भविष्य में अतिक्रमण रोकने के लिए आगे आने हेतु लोगों को खासकर युवा शक्ति को प्रेरित किया| साथ श्री राजवी ने सरकार से पक्षी अभ्यारण्य, बाघ अभ्यारण्य आदि की तर्ज पर गौ-अभ्यारण्य भी बनाने की मांग करते हुए सरकार को यहाँ तक कह डाला कि यदि सरकार बीकानेर के पास गौ-अभ्यारण्य बनाती है तो वे पैतृक विरासत मिली अपनी सारी भूमि उस अभ्यारण्य के लिए दान कर देने को तैयार है|

अभिमन्यु सिंह राजवीने अपने भाषणमें जिस तरह मातृभाषा में बात करते हुए विषयानुकूल मुद्दे उठाये, उन्हें इस तरह श्रोताओं द्वारा सुनता देख मुझे लगा उपस्थित श्रोतागण उनमें अपने प्रिय नेता स्व.भैरोसिंह जी की छवि देख रहे है और यह कार्यक्रम के बाद लोगों की उनके भाषणको लेकर की गयी आपसी बातचीत में साफ़ भी हो गया, अपने प्रिय नेता के वारिश के भाषण में भाषा व लहजा सून व विषय पर उनकी संवेदनशीलता देख सभी लोग संतुष्ट लग रहे थे कि अभिमन्यु राजवी में वो गुण है जो स्व.भैरोंसिंह जी के अधूरे कार्य व सपनों को पूरा करने के लिए चाहिये|

कार्यक्रम के बाद वहां उपस्थिति बुजुर्ग, संत अभिमन्यु राजवी को आशीर्वाद देते दिखाई दिए, राजवी के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते बुजुर्गों का राजवी के प्रति उनके दिल में प्रेम उनके चेहरे पर साफ़ झलकती हुई ख़ुशी में नजर आ रही था, मैं उन बुजुर्गों की ख़ुशी में उनके दिल में स्व.भैरोंसिंह जी के प्रति जो प्यार था का थाह लेने में व्यस्त था| वहां बहुत से ऐसे लोग भी थे जिनका स्व.भैरोंसिंह जी से सीधा नाता रहा था, अभिमन्यु राजवी ने भी पुरे मनोयोग से उन बुजुर्गों के श्रीमुख से उनके स्व.भैरों सिंह जी के साथ बिताये पलों के कई संस्मरण सुने|

वृक्षारोपण के बाद सभी ने दाल बाटी चूरमा का स्वादिष्ट भोजन ग्रहण किया जो कार्यक्रम में उपस्थित हर एक लिए उपलब्ध था| दालबाटी चूरमा का स्वाद लेने के बाद हम अभिमन्यु बनाकी गाड़ी से राजस्थान की बहादुर बेटी एवरेस्ट विजेता कैप्टेन दीपिका राठौड़ के पिता गणपत सिंह जी के साथ पास ही स्थित गांव में उनके घर गये वहां से डीडवाना पहुंचे| जहाँ हाईवे पर राजस्थान कर्मचारी महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष गजेन्द्र सिंह खोजासव्यवसायी रमेश सिंह जीके साथ हमारा इंतजार कर रहे थे| डीडवाना से मैं व उम्मेद सिंह करीरी,महासंघ अध्यक्ष के साथ अन्य कार्यक्रम में शामिल होने के बाद जयपुर के लिए रवाना हो गये, चूँकि इस यात्रा में हम डीडवाना विधानसभा से गुजर रहे थे अत: डीडवाना विधानसभा की राजनीति पर चर्चा चलना भी वाजिब था फिर यहाँ से गाड़ी में सवार सभी के मित्र श्यामप्रताप रुवांचुनाव में उम्मीदवार है अत: पूरी यात्रा श्यामप्रताप रुवांको चुनाव जीतने में कैसे कैसे सहयोग किया जाय, क्या रणनीति बनाई जाये, कैसे विरोधियों को अपनी और किया जाय पर ही केन्द्रित रही चूँकि मुझे राजस्थान से बाहर रहने के चलते इस क्षेत्र की राजनीति का बिल्कुल ज्ञान नहीं है सो मैंने इस चर्चा में चुप रहते ध्यान से सुनते हुए ही भाग ले अपना ज्ञानवर्धन किया| इस तरह रात्री होते होते हम जयपुर स्थित रमेश सिंह जीके अतिथि गृह पहुंचे वहां कुछ और बंधू पहले से जमे थे जिनके साथ देर तक चर्चा होती रही|


गौ-सेवा पर बोलते हुए वक्तागण


उसी चर्चा के दौरान तमिलनाडु से सुदर्शन टीवी के हरिसिंह जी का फोन आ गया कि- सुदर्शन टीवी पर आपके द्वारा उपलब्ध करायी गयी जोधा अकबर पर ऐतिहासिक जानकारी के आधार पर सुदर्शन टीवी पर बिंदास बोल कार्यक्रम प्रसारित हो रहा है पर अफ़सोस हमारे पास वहां एयरटेल डिजिटल की सुविधा उपलब्ध थी जिसमें सुदर्शन टीवी देखने की सुविधा नहीं थी| हरिसिंह जी ने अपने मोबाइल को थोड़ी देर टीवी के आगे रख मुझे बिंदास बोल कार्यक्रमकी आवाज सुनाई|

कुल मिलाकर वर्षों बाद अपने क्षेत्र के कार्यक्रम में भाग लेने व कई फेसबुक व वर्चुअल दुनियां के मित्रों से फेस टू फेस मिलने के सुखद मौकों ने इस बार की छुट्टियों को यादगार बना दिया| साथ ही मित्रों के प्यार ने जयपुर में अपना एक स्थाई छोटे से आशियाने का जुगाड़ करने का दिल में बीज बो दिया, जो शायद जल्द ही अंकुरित हो जाये|

याद आते है वे गुरुजन

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आज शिक्षक दिवस है ज्यादातर लोगों का कहना है कि इस एक दिन हर कोई रस्म निभाने को अपने शिक्षकों को याद कर लेता है फिर भूल जाता है| पर मैं ऐसा नहीं मानता, शिक्षक दिवस हो या आम दिवस अपने उन शिक्षकों, गुरुजनों को कोई व्यक्ति भूल ही नहीं सकता जिन्होंने शिक्षक, गुरु होने का अपना स्वधर्म ईमानदारी से निभाया हो|

सामान्य जीवन दिनचर्या में अक्सर ऐसे बहुत से क्षण आते है जब गुरुजन अनायास ही याद आ जाते है फिर भले ही वे अपने स्वधर्म निभाने के चलते याद आयें हों या अपने कर्तव्यहीनता के चलते याद आते हों, पर इतना जरुर है बचपन से मानस पटल पर बैठे गुरुजनों को कतई नहीं भुलाया जा सकता है| अपने गुरुजनों की लम्बी श्रंखला में श्री इंद्रसिंह जी शेखावत, सोहन लाल जी काला(मेघवाल), अतरसिंह जी डागर, जीवणराम जी चौधरी, सज्जन कुमार जी, गोपालजी गोस्वामी, नन्दलाल जी माथुर ऐसे नाम है जो दैनिक दिनचर्या में कभी भी याद आ जाते है, कभी भी किसी उनका अक्स चेहरे के सामने आ ही जाता है आखिर आये भी क्यों नहीं, ये ही वे गुरुजन थे जिन्होंने सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं दिया बल्कि साथ ही जीवन में और भी बहुत कुछ सिखाया जो आज दैनिक दिनचर्या में काम आता है|

ऐसा नहीं कि सिर्फ अच्छा पढ़ाने वाले गुरुजन ही याद आते है बल्कि संस्कृत पढ़ाने वाले हंसमुख और चुलबुली मजाकिया हरकते करते रहने वाले रामकिशन जी को आज तक मैं ही क्यों, कोई भी छात्र कभी नहीं भूल पायेगा| तो प्राइमरी स्कूल में पढ़ते समय रात को खेतों में काम कर आने वाले गुरुदेव हनुमाना राम जी द्वारा कक्षा में पढ़ाते समय नींद ले लेने के दृश्य आज भी उतने ही तरोताजा है जितने बचपन में थे|

आज भी जब किसी स्कूल का खेल मैदान देखता हूँ तो विज्ञान पढ़ाने वाले गुरुदेव गोपाल जी गोस्वामी की अनायास ही याद आ जाती है कि उनकी ड्यूटी हमें विज्ञान पढ़ाने की ही थी पर उन्होंने छात्रों के स्वास्थ्य के लिए खेल की अनिवार्यता समझ स्कूल समय के बाद फूटबाल खेलना सिखाया और स्कूल की फूटबाल टीम को प्रतिस्पर्धाओं में जीतने लायक भी बना दिया|

प्राइमरी स्कूल में जब हम जानते भी नहीं थे कि संसदीय प्रणाली क्या होती है तब हमें समझाने के लिए सोहनलाल जी काला ने हमारी स्कूल में छात्र संघ चुनाव करा कर व छात्र संघ पर कई तरह की जिम्मेदारियां दे कार्य करवा हमें संसदीय प्रणाली को प्रत्यक्ष समझने का मौका दिया| उनके द्वारा गांव में की गयी सामाजिक गतिविधियों की यादें आज भी ताजा है, कई बार सोचता हूँ काश सोहनलाल जी जैसे अध्यापक गांवों में हो तो वे श्रमदान से ही गांवों में वो कार्य करवा सकते है जो सरकारें अच्छा भला बजट खर्च करने के बाद भी नहीं कर सकती| रात्री में लालटेन की रौशनी में गांवों वालों से श्रमदान कर रास्तों से घास कटवाना, रास्तों का लेवल बराबर कर उन्हें साफ़ सुथरा रखवाने के काम में तो कोई नगर पालिका भी उनका मुकाबला नहीं कर सकती, छात्रों के खेलने का सामान नहीं था तो सोहनलाल जी ने सरकारी बजट का इंतजार नहीं किया, हम छात्रों से एक नाटक का मंचन कराया, नाटक देखने के बाद नाटक मण्डली को जैसे गांव के लोग नोट देते है वैसे हमारी मण्डली को भी कुछ नोट मिले और उसी धन से सोहनलाल जी ने छात्रों के खेल सामान के साथ स्कूल की रंगाई पुताई का भी जुगाड़ कर स्कूल चमका दिया|

छटी कक्षा में पढने पास के ही कस्बे में बड़ी स्कूल में गए तो स्कूल की हालत देख हम सन्न रह गये, गांव की छोटी सी स्कूल में हमने गुरुजनों के सानिध्य में छोटा सा बगीचा लगा स्कूल को हराभरा बना रखा था, उसके उलट यहाँ बड़ी स्कूल में ईमारत टूटी फूटी पड़ी थी, रंग रोगन तो लग रहा था ईमारत बनने के बाद कभी हुआ ही ना था, स्कूल में रेत ही रेत उड़ रही थी, कुछ ही माह में नए प्रधानाध्यापक श्री नंदलाल जी माथुर आये और छात्रों के श्रमदान से उसी स्कूल को इतना बढ़िया हराभरा बना दिया कि रविवार को कस्बे के लोग उस हरियाली में फोटो खिंचवाने आने लगे| उस वक्त स्कूल में किया जाने वाला श्रमदान याद करता हूँ तो सहज ही नन्दलाल जी की हाफ-पेंट पहने हाथ में फावड़ा लिए छात्रों के साथ श्रमदान में मेहनत करते छवि आँखों में तैर जाती है| कोई चाहकर भी उन जैसे गुरु को कैसे भूला सकता है?

सज्जन कुमार जी हमारे वाणिज्य संकाय के अध्यापक थे उनकी बनाई वाणिज्य क्लब आज भी जेहन में वैसे ही याद है जैसे शनिवार को उस क्लब में हम कॉमर्स की तैयारी कर भाग लेने जाते थे, इस कॉमर्स क्लब में नवीं व दसवीं के कॉमर्स के छात्र भाग लेते, दो छात्र पढ़ाते बाकि उनसे प्रश्न पूछते, नवीं कक्षा में जब मैंने व मित्र श्रवण सिंह ने उस क्लब में दसवीं कक्षा वालों को पढाया और उनके प्रश्नों का सही सही जबाब दिया तो हमारा आत्म-विश्वास कितना बढ़ा वह हम ही महसूस कर सकते है | (उस वक्त 10+2 नहीं था, नवीं कक्षा में ही विषय चुनने पड़ते थे)

आज जब कभी बाबा रामदेव के योगासन टीवी पर देखता हूँ तो विज्ञान के अध्यापक जीवणराम चौधरी अनायास ही याद आ जाते है, उन्होंने उस वक्त कितने ही छात्रों को ठीक वैसे ही योगासन सीखा दिए थे जो आजकल बाबा रामदेव करते है| स्वतंत्रता व गणतंत्र दिवस पर योगासन करने वाले छात्रों का बाबा की तरह ही पेट को चिपकाते व आंते घुमाते दृश्य आज भी जीवंत हो उठते है|

संस्कृत शिक्षक रामकिशन की चुहलबाजियों को तो कोई भूल भी कैसे सकता है ? वे आज भी बुढापे में चौक पर बैठे चुहलबाजी करने से बाज नहीं आते, सातवीं कक्षा में रोशन अली को नई लागू की गयी प्रार्थना याद नहीं थी, वह उस दिन रामकिशन जी से वादा कर सजा से बच गया कि –“गुरूजी ! आज छोड़ दीजिये कल सुना दूंगा|” पर पट्ठे ने वह प्रार्थना आजतक याद नहीं की पर हमारे गुरूजी कौन से कम है आज भी रोशन अली मिलने पर प्रणाम करता है, तो गुरूजी चुहलबाजी करते हुए कहते है- “प्रणाम की ऐसी-तैसी पहले वह प्रार्थना सुना, नहीं तो मुर्गा बन जा” और रोशन हँसता हुआ हमेशा की तरह अगले दिन सुनाने का वादा कर खिसक लेता है|

काश ऐसे ही गुरुजन नई पीढ़ी को भी मिले इसी कामना के साथ गुरुजनों को शत शत प्रणाम

कहाँ है रानी पद्मिनी का जन्म स्थान ?

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चितौड़ की रानी पद्मिनी अपनी बहादुरी, त्याग, बलिदान व अप्रितम सौन्दर्य के लिए इतिहास में विश्व विख्यात है, रानी पद्मिनी के जौहर की कहानी बिना राजस्थान का इतिहास भी अधुरा लगता है| राजस्थान सहित भारतवर्ष के इतिहासकारों, लेखकों, साहित्यकारों ने रानी पद्मिनी के जौहर पर बहुत कुछ लिखकर इतिहास व साहित्य की पुस्तकों के ढेरों पन्ने भरे है|

ज्यादातर लेखकों, इतिहासकारों, कवियों ने अपनी अपनी रचनाओं में रानी पद्मिनी द्वारा रावत रतन सिंह को अल्लाउदीन खिलजी की कैद से छुडाने के लिए किये गए कमांडो कार्यवाही व उसके बाद जौहर की चर्चाएँ तो खूब की पर रानी पद्मिनी का जन्म कहाँ हुआ, उसके पिता का नाम क्या था ? वह किस राज्य की राजकुमारी थी ? उसका जन्म से नाम पद्मिनी ही था या फिर उसके रूप सौन्दर्य, बुद्धिमता व वीरता के चलते उसे हमारे शास्त्रों में वर्णित महिलाओं की चार श्रेणियों में सबसे श्रेष्ठ श्रेणी पद्मिनी श्रेणी में शामिल कर पद्मिनी नाम दिया गया| इस पर किसी भी लेखक ने प्रकाश नहीं डाला|

गोरा बादल कवित्त, गोरा बादल चौपाई, गोरा बादल पद्मिनी चौपाई, पद्मिनी चरित्र चौपाई, खोमन या खुमान रासो आदि के लेखकों जायसी, हेमरतन, जटमल नाहर, दौलत विजय आदि लेखकों, साहित्यकारों ने हमारी राष्ट्रीय नायिका रानी पद्मिनी को सिंघलदीप या सिलोन की राजकुमारी माना है| जायसी के अनुसार रानी पद्मिनी सिलोन के राजा गंधर्वसेन की पुत्री थी जिसे पाने के लिए चित्तौड़ के रावत रतन सिंह को आठ वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा था उसके बाद वे रानी पद्मिनी को विवाह कर चितौड़ लाये| जबकि उस काल सिलोन का राजा पराक्रम बाहू चतुर्थ था, साथ ही उस काल की सामरिक परिस्थितियों में रावत रतन सिंह के पास इतना समय ही नहीं था कि वे एक शादी के लिए आठ वर्षों तक संघर्ष कर सके| अत: सिलोन में रानी पद्मिनी के जन्म की बात सिर्फ साहित्यिक उपज लगती है|

साहित्यकारों ने अपने साहित्य में रानी पद्मिनी का जन्म सिंघलदीप बताना भी साहित्यिक दिमाग की ही उपज लगता है हो सकता पद्मिनी चरित्र चौपाई में पद्मिनी श्रेणी की महिलाओं के मिलने का स्थान सिंघलदीप लिखा है अत: हो सकता है उसी को ध्यान में रख साहित्यकारों ने चित्तौड़ की रानी पद्मिनी को सिंघलदीप की राजकुमारी बताया हो|

मुस्लिम लेखकों अबुल फजल व हाजी उद दाविर आदि ने अपने लेखन में चित्तौड़ की रानी का नाम पद्मिनी उल्लेखित करने के बजाय सिर्फ एक अति सुन्दर रानी का ही उल्लेख किया है|

कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक एनल्स एंड एंटीक्यूटी ऑफ़ राजस्थान में हमारी राष्ट्रीय ऐतिहासिक नायिका रानी पद्मिनी को राजा हमीर संक (हमीर सिंह चौहान) की पुत्री माना है| कर्नल टॉड लिखता है- रानी का मूल नाम दूसरा हो सकता है और हो सकता है उसकी विशेष सुंदरता व गुणों के चलते उसे पद्मिनी नाम बाद में दिया गया हो|

यूँ तो राजस्थान में बीकानेर के पास एक पूंगल नामक स्थान है जो पद्मिनियों के लिए विख्यात है, राजस्थान की प्रसिद्ध प्रेम कहानी “ढोला मारू” की नायिका मारुवणी इसी पूंगल की राजकुमारी थी| आज भी राजस्थान के गांवों में किसी सुंदर महिला को पद्मिनी की उपमा देते हुए कह दिया जाता है- ये तो पूंगल की पद्मिनी है, या अति सुन्दर पत्नी की कामना रखने वाले किसी लड़के से मजाक में कह दिया जाता है –इसको तो पूंगल की पद्मिनी चाहिये|

राजस्थान के सुप्रसिद्ध इतिहासकार ओझा जी के अनुसार हमारी इस ऐतिहासिक राष्ट्र नायिका रानी पद्मिनी का जन्म स्थान चित्तौड़ से चालीस मील दूर सिंगोली नामक गांव है, अमर काव्य वंशावली में भी रानी पद्मिनी का जन्म स्थान सिंगोली गाँव ही उल्लेखित है|

मुझे ओझा जी का मत ज्यादा सटीक लगता है क्योंकि रानी पद्मिनी चित्तौड़ के ही आस पास की किसी छोटी रियासत की राजकुमारी रही होगी| गोरा बादल पर साहित्य व इतिहास में जो थोड़ी बहुत जानकारी मिलती है उसके अनुसार भी यही लगता है कि वे चित्तौड़ के पास सिंगोली की ही राजकुंवरी थी| गोरा बादल चौहान राजपूत थे, उनकी चित्तौड़ के किले में हवेली भी थी जो आज भी खंडित अवस्था में मौजूद है, गोरा रानी पद्मिनी के ककोसा (चाचा) थे तो बादल रानी का चचेरा (कजिन) भाई था जिसके पिता का नाम गजानन था| गोरा बादल की वीरता पर तो साहित्यकारों, इतिहासकारों, कवियों ने खूब लिखा पर उनके परिचय के बारे में इससे ज्यादा जानकारी नहीं मिलती|

“रानी पद्मिनी दी हिरोइन ऑफ़ चित्तौड़” नामक अंग्रेजी पुस्तक के लेखक बी.के. करकरा भी इसी तरह विश्लेषण करते हुए लिखते है यह सत्य है कि रानी पद्मिनी हमारी गौरवपूर्ण राष्ट्रीय नायिका है जो सिंघलदीप या सिलोन की नहीं चित्तौड़ के ही पास के किसी स्थान के शासक की राजकुमारी थी|

ओझा जी का मत सटीक लगने के बावजूद मैं मानता हूँ कि रानी के जन्म स्थान के बारे में और शोध की आवश्यकता है| आपके पास यदि इस संबंध में कोई जानकारी हो तो कृपया संझा करे|

हमारे शास्त्रों के अनुसार रूप सौन्दर्य,विचार, व्यवहार आदि गुणों के आधार पर स्त्रियों को चार श्रेणियों में बांटा गया है- पद्मिनी,चित्रणी,हस्तिनी व संखिणी, पद्मिनी चरित्र चौपाई नामक पुस्तक में लेखक ने इन चारों श्रेणियों की महिलाओं के अलग अलग गुणों आदि पर इस तरह प्रकाश डाला है-

पद्मिनी पद्म गन्धा च पुष्प गन्धा च चित्रणी|
हस्तिनी मच्छ गन्धा च दुर्गन्धा भावेत्संखणी||

पद्मिनी स्वामिभक्त च पुत्रभक्त च चित्रणी|
हस्तिनी मातृभक्त च आत्मभक्त च संखिणी ||


पद्मिनी करलकेशा च लम्बकेशा च चित्रणी |
हस्तिनी उर्द्धकेशा च लठरकेशा च संखिणी ||

पद्मिनी चन्द्रवदना च सूर्यवदना च चित्रणी |
हस्तिनी पद्मवदना च शुकरवदना च संखिणी ||


पद्मिनी हंसवाणी च कोकिलावाणी च चित्रणी |
हस्तिनी काकवाणी च गर्दभवाणी च संखिणी ||

पद्मिनी पावाहारा च द्विपावाहारा च चित्रणी |
त्रिपदा हारा हस्तिनी ज्ञेया परं हारा च संखिणी ||


चतु वर्षे प्रसूति पद्मन्या त्रय वर्षाश्च चित्रणी |
द्वि वर्षा हस्तिनी प्रसूतं प्रति वर्ष च संखिणी ||

पद्मिनी श्वेत श्रृंगारा, रक्त श्रृंगारा चित्रणी |
हस्तिनी नील श्रृंगारा, कृष्ण श्रृंगारा च संखिणी ||


पद्मिनी पान राचन्ति, वित्त राचन्ति चित्रणी |
हस्तिनी दान राचन्ति, कलह राचन्ति संखिणी ||

पद्मिनी प्रहन निंद्रा च, द्वि प्रहर निंद्रा च चित्रणी |
हस्तिनी प्रहर निंद्रा च, अघोर निंद्रा च संखिणी ||


चक्रस्थन्यो च पद्मिन्या, समस्थनी च चित्रणी |
उद्धस्थनी च हस्तिन्या दीघस्थानी संखिणी ||

पद्मिनी हारदंता च, समदंता च चित्रणी |
हस्तिनी दिर्घदंता च, वक्रदंता च संखिणी ||


पद्मिनी मुख सौरभ्यं, उर सौरभ्यं चित्रणी |
हस्तिनी कटि सौरभ्यं, नास्ति गंधा च संखिणी ||

पद्मिनी पान राचन्ति, फल राचन्ति चित्रणी |
हस्तिनी मिष्ट राचन्ति, अन्न राचन्ति संखिणी ||


पद्मिनी प्रेम वांछन्ति, मान वांछन्ति चित्रणी |
हस्तिनी दान वांछन्ति, कलह वांछन्ति संखिणी ||

महापुण्येन पद्मिन्या, मध्यम पुण्येन चित्रणी |
हस्तिनी च क्रियालोपे, अघोर पापेन संखिणी ||


पद्मिनी सिंघलद्वीपे च, दक्षिण देशे च चित्रणी |
हस्तिनी मध्यदेशे च, मरुधराया च संखिणी ||




Rani Padmin of chittor
Rani padmini's birth palce
birth place of rani padmini
rani padmini ka jnm sthan kahan hai
where born rani padmini

राजनीति में उभरते युवा नेता अभिमन्यु सिंह राजवी

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भारतीय जनता पार्टी के युवा नेता व शेरे राजस्थान पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. भैरों सिंह जी शेखावत के दोहिते अभिमन्यु सिंह राजवीका जन्म 24 फरवरी 1991 को जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में हुआ| आपकी माता का नाम रतन कँवर है जो पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. भैरोंसिंह जी की इकलौती पुत्री है| आपके पिता का नाम श्री नरपत सिंह जी राजवी है जो बीकानेर रियासत के बेणीसर ठिकाने के पूर्व ठिकानेदार व जस्टिस श्री अमर सिंह जी राजवी के पुत्र है,श्री अमर सिंह जी राजस्थान के जाने माने इतिहासकार भी रहे है आपने राजस्थान के सभी राजपूत वंशों का अंग्रेजी में बृहद इतिहास लिखा है, श्री नरपत सिंह जी राजवी राजनीति में आने से पहले राजस्थान की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत थे, राजनीति में आने के बाद वे राज्य की भाजपा सरकारों में विभिन्न मंत्रालयों के मंत्री रहे है व वर्तमान में विद्याधरनगर जयपुर से विधायक है|

अभिमन्यु सिंह राजवी का बचपन जहाँ मुख्यमंत्री आवास में बिता वहीँ तरुणावस्था दिल्ली स्थित उपराष्ट्रपति आवास भवन में, आपने दिल्ली की संस्कृति स्कूल से स्कूली शिक्षा व दिल्ली विश्वविद्यालय से कला स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की, वैसे तो आपका बचपन, तरुणावस्था अपने नानोसा राजनीति के धुरंधर स्व.भैरों सिंह जी के सानिध्य में राजनीति को नजदीक से देखते हुए ही बीता पर स्कूली शिक्षा के साथ ही अल्प आयु में ही आपको स्व. भैरोंसिंह जी ने राजनीति का पाठ पढ़ाते हुए राजनीति सिखानी शुरू कर दी थी, और बारहवीं कक्षा में पढ़ते हुए ही आपको अपने नानोसा उपराष्ट्रपति स्व.भैरों सिंह जी के सभी कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाने का दायित्व सौंप दिया गया, आप उनके सहायक के तौर पर कार्य देखने लगे|

राजनैतिक पृष्ठ भूमि होने व बचपन से ही राजनीति देखते रहने के चलते आप राजनीति से दूर व अछूते कैसे रह सकते थे ?, सो बचपन में ही अपनी राजनैतिक चेतना का प्रदर्शन करते हुए आपने महज दस वर्ष की अल्पायु में सन 2001 में महंगाई के खिलाफ जयपुर जिला कलेक्टर कार्यालय पर प्रदर्शन में भाग लिया और गिरफ्तारी देकर जेल गये| बचपन से आजतक आप 45 देशों की यात्रा कर चुके है| इन यात्राओं में आपको कई देशों के राष्ट्र प्रमुखों व राजनीतिज्ञों से मिलने, बातचीत कर उन्हें समझने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है|

स्व.भैरों सिंह जी के निधन के बाद राजस्थान की जनता जो अपने नेता को सम्मान से बाबोसा कहती है आपका अपने प्रिय नेता बाबोसा की राजनैतिक विरासत सँभालने व उनके अधूरे रहे कार्यों को पूरा कर उनके सपनों का राजस्थान बनाने हेतु राजनीति में उतरने का इन्तजार कर रही थी, और आपके भीतर अपने प्रिय नेता स्व.बाबोसा की छवि देखते हुए उम्मीद रखती है कि आप स्व.भैरों सिंह जी के बताये, सिखाये राजनैतिक मूल्यों को अपने व्यवहार में अपना व आत्मसात कर उनके पदचिन्हों व उनकी नीतियों का अनुसरण करेंगे|

आपसे मिलने व राजनैतिक व सामाजिक विषयों पर चर्चा करने पर आपका मिलनसार व सरल स्वभाव व्यक्तित्व, मिलने की आसान उपलब्धता व गहरी राजनैतिक समझ, सामाजिक समस्याओं को समझने की क्षमता व उनके प्रति संवेदनशीलता स्पष्ट प्रतिबिम्बित होती है, जो स्व.बाबोसा के किसी भी समर्थक को आश्वस्त करने में काफी है कि आपके रूप में उनके प्रिय नेता की विरासत सँभालने वाला सुपात्र उपलब्ध है| आपको सार्वजनिक सभा में भी भीड़ ध्यान पूर्वक गंभीरता से सुनती है और आपमें भी भीड़ को अपने भाषण में विषयानुकुल मुद्दों पर बात कर बांधे रखने की क्षमता व कला है, आप अपने विभिन्न कार्यक्रमों के दौरों में अपने नानोसा के पूर्व परिचितों से जिस तरह उनको नानोसा के समान समझ आदर देकर मिलते है तो वे आपके सरल स्वभाव में स्व.भैरों सिंह जी की ही छवि देखते है| आखिर उनके सरल स्वभाव के चलते ही लोग उनके मुरीद थे|

अपनी सभाओं में आप अपनी बात जिस तरह से मातृभाषा राजस्थानी में रखते है उससे आपका अपनी संस्कृति व मातृभाषा से जुड़ाव स्पष्ट झलकता है, आपको सुनने के बाद जहाँ बुजुर्गों को स्व.भैरोंसिंह जी की कमी नहीं खलती वहीँ युवा वर्ग आपमें एक उभरते युवा नेता की छवि देख रहा है| और आपके नेतृत्व को स्वीकारने हेतु तैयार है| राजस्थान के युवा वर्ग को आपसे बहुत उम्मीदें है और युवा वर्ग चाहता है कि प्रदेश स्तर पर कार्य करें व उन युवाओं का सहयोग करें जो राजनीति ने आगे बढ़ाना चाहता है और आप जिस तरह से प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के कार्यक्रमों में भाग लेने हेतु दौरे करते है उससे साफ है कि आने वाले समय में युवाओं को एक युवा प्रदेश नेता की कमी नहीं खलेगी|

प्रदेश के युवाओं का युवा नेता राजवी के प्रति प्रेम व भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व का आपके सिर पर आशीर्वाद कल जयपुर में मोदी जी की सभा के दौरान देखने को मिला, मोदी जी की हवाई अड्डे पर आगवानी करने वालों की अग्रिम पंक्ति में युवा नेता राजवी वसुंधरा राजे के साथ मौजूद थे, मोदी जी द्वारा दिए प्यार व आशीर्वाद से अभिभूत हो श्री राजवी फेसबुक पर लिखते है- “भावी प्रधानमंत्री मोदी जी ने मुझे वही प्यार व आशीर्वाद दिया जैसा वे स्व.नानोसा हुकुम के सामने दिया करते थे, ऐसे इंसान दुनियां में विरले ही होते है|”

मोदी जी सभा में राजस्थान के विभिन्न जिलों से आये कार्यकर्ताओं में से हजारों कार्यकर्ता कार्यक्रम के बाद अपनी अपनी बसे लेकर जिस तरह अपने युवा नेता राजवी से मिलने उनके घर गए और उनके प्रति समर्थन, प्यार व स्व.भैरोंसिंह जी के प्रति श्रद्धा दर्शायी उससे अभिभूत हो श्री राजवी फेसबुक पर लिखते है-
“आज भाजपा के छोटे से बड़े कार्यकर्ताओं से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह जी और भावी प्र.म. श्री नरेन्द्र जी मोदी का अपने प्रति प्यार देख मन और आँखें भर आई, ये है नानोसा हुकुम की कमाई इज्जत कि आज मुझ जैसे नाचीज से मिलने हजारों कार्यकर्त्ता बंधू बसे रोक रोक कर घर पधारे और राष्ट्रीय नेतृत्व ने भी सिर पर हाथ रखा, सही कहा गया है कि इज्जत और श्रद्धा की कमाई इंसान के चले जाने के बाद भी उसका साथ निभाती है, भाजपा को हर कार्यकर्त्ता को मेरा नमन और सम्मान|”

पिछले दिनों एक वेब साईट पर “उभरते नेता श्री अभिमन्यु सिंह राजवी” लेख पर कुछ लोगों ने टिप्पणियां की कि ये तो वंशवाद है, इस पर चर्चा करने पर श्री राजवी ने कहा-“मुझे स्व.भैरोंसिंह जी जैसे राष्ट्रीय व लोकप्रिय नेता का वंशज होने के नाते उनके नाम का फायदा मिलना तो स्वाभाविक है, साथ ही मेरा सौभाग्य है कि मैंने बचपन से तरुणावस्था तक एक महान नेता के सानिध्य में रहकर राजनीति सीखी जो हर किसी को नसीब होना दुर्लभ है, नानोसा हुकुम के संपर्कों का भी मुझे फायदा मिलेगा पर मेरे मामले में वंशवाद का आरोप लगाना निराधार है, हाँ यदि आज नानोसा हुकुम होते और मुझे कहीं से सीधा विधायक या सांसद बनवा मंत्री आदि बनवा देते तब वंशवाद का आरोप लगाया जा सकता था पर अब चूँकि नानोसा हुकुम है नहीं और मुझे उनकी अनुपस्थिति में उनके द्वारा दी गयी सीख और प्रेरणा के सहारे खुद ही अपनी राजनैतिक मंजिल तय करनी है, अब जनता नाम के साथ मेरा काम देखकर मुझे समर्थन देगी अत: मेरे मामले में वंशवाद का आरोप लगाया जाना उचित नहीं|

राजस्थान भाजपा के कार्यक्रमों में आपकी दमदार उपस्थिति के अलावा कल श्रीगंगानगर में होने वाले BD Agarwal Medical College के शिल्यानास समारोह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, स्वास्थ्य मंत्री नबाब अहमद खान (दुर्रु मियां), और जमीदारा पार्टी के अध्यक्ष बी.डी.अग्रवाल जैसे बड़े लोगों के साथ आपकी उपस्थिति को देखते हुए यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता कि राजस्थान की राजनीति में एक नए राजनैतिक सितारे का उदय हो चूका है|

अभिमन्यु सिंह राजवी का ब्लॉग लिंक

समय रहते क्षत्रपों पर लगाम लगायें मोदी

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हाल ही भाजपा द्वारा आगामी लोकसभा चुनाव के लिए देश के युवावर्ग व पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं का आदर करते हुए नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिया| नरेंद्र मोदी को भाजपा की और से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करते ही उनके समर्थक युवा वर्ग व भाजपा के नेता, कार्यकर्ताओं का जोश व उमंग सड़कों से लेकर आभासी दुनियां की सोशियल साइट्स पर हिलोरें मार रहा है| युवाओं का सोशियल साइट्स पर मोदी प्रेम और मोदी की सभाओं में उमड़ती भीड़ की संख्या देख उन्हें भाजपा का आगामी प्र.मंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित करने के निर्णय को किसी भी लिहाज से गलत नहीं कहा जा सकता|

कांग्रेसी व भाजपा विरोधी भले इस मामले में कितनी भी मजाक उड़ाए लेकिन लोकतंत्र में जनता को यह जानने का पूरा अधिकार है कि वे जिस दल को चुन रहे है उसका नेतृत्व किन हाथों में रहेगा| अत: भाजपा द्वारा अपना प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित करने को स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया मानते हुए हमें इसका स्वागत करते हुए भाजपा के इस निर्णय की प्रशंसा करनी चाहिये और दुसरे दलों से भी उम्मीद करनी चाहिये कि वे भाजपा के इस लोकतांत्रिक निर्णय का अनुसरण कर अपना अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करे ताकि जनता को अपनी पसंद का प्रधानमंत्री चुनने में आसानी हो|

मोदी के पीछे उमड़े युवा वर्ग की भीड़ और उनके दिलों में मोदी की लोकप्रियता व मोदी की विकासवादी, स्पष्ट वक्ता की छवि भाजपा को आगामी लोकसभा में सत्ता के शिखर तक पहुंचाने में काफी सहयोग करेगी पर इन सबके साथ ही यदि भाजपा ने विभिन्न राज्यों के अपने क्षेत्रीय क्षत्रपों पर काबू नहीं किया तो हो सकता है स्थानीय मुद्दों के चलते व स्थानीय क्षत्रपों के अड़ियल व्यवहार व व्यक्तिगत हित साधक कार्यों के चलते भाजपा का ही पारम्परिक वोट बैंक उदासीन हो भाजपा से छिटक ना जाये|

वर्तमान समय में भाजपा में भी अन्य दलों की भांति कई क्षेत्रीय नेता पार्टी पर अपना अपना व्यक्तिगत अधिपत्य जमाये रखने के लिए कार्यरत है, और वे अपने आपको पार्टी से भी बड़ा समझने लगे है| इस तरह के नेता अपना वर्चस्व बनाये रखने हेतु पार्टी के पुराने लोकप्रिय व वरिष्ठ नेताओं को राजनैतिक तौर पर हासिये पर धकेलने के प्रयास में लगे है| जिसका खामियाजा देर सवेर पार्टी को ही भुगतना पड़ेगा|

इस तरह की प्रवृति का खामियाजा भाजपा कर्णाटक में भुगत चुकी है| राजस्थान, मध्यप्रदेश में भी यही हाल है हर प्रदेश के क्षत्रप राष्ट्रीय नेतृत्व पर भारी पड़ रहे है और मौका आने पर आँखें दिखाने से भी नहीं चुकते|

राजस्थान इसका सबसे सटीक उदाहरण है- भाजपा के अग्रिम पंक्ति के नेताओं में से एक स्व.भैरों सिंह जी ने पार्टी की नीतियों का गरिमापूर्ण अनुसरण करते हुए प्रदेश की बागडोर वसुंधरा राजे सिंधिया को सौंप केंद्र की राजनीति में आये व बाद में देश के उपराष्ट्रपति बनें, श्री शेखावत चाहते और आजकल के भाजपा नेताओं की तरह व्यवहार करते तो वे भी अपने दामाद नरपत सिंह राजवी को अपनी विरासत सौंप कर दिल्ली आ सकते थे पर उन्होंने ने ऐसा नहीं किया| लेकिन वसुंधरा राजे के हाथ में प्रदेश की बागडोर आते ही उनका आचरण बदल गया और वे अपने वरिष्ठों को राजनैतिक रूप से हासिये पर कर खुडडे लाइन लगाने में जुट गयी और तो और जिस भाजपा रूपी पौधे को राजस्थान में अंकुरित कर जीवन भर सींचने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता व राजस्थान की जनता के सबसे ज्यादा प्रिय स्व.भैरों सिंह जी के साथ भी वसुंधरा ने वही हथकंडा अपना उनकी अवमानना करना शुरू कर दिया, जबकि राजस्थान में पार्टी की बागडोर उन्हीं के कारण वसुंधरा को मिली थी| उनके उस व्यवहार पर अजमेरनामा.कॉम के संपादक तेजवानी गिरधर जी लिखते है- वसुंधरा इतनी आक्रमक थी कि भाजपाई शेखावत की परछाई से ही परहेज करने लगे| कई दिनों तक वे सार्वजनिक जीवन में भी नहीं दिखाई दिए| जब वे दिल्ली से लौटकर अजमेर आये तो उनकी आगवानी करने को चंद दिलेर भाजपा नेता ही साहस जुटा पाये, शेखावत जी की भतीजी संतोष कंवर शेखावत, युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा और पूर्व मनोनीत पार्षद सत्यनारायण गर्ग सहित चंद नेता ही उनका स्वागत करने पहुंचे। अधिसंख्य भाजपा नेता और दोनों तत्कालीन विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल ने उनसे दूरी ही बनाए रखी। वजह थी मात्र ये कि अगर वे शेखावत से मिलने गए तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया नाराज हो जाएंगी। पूरे प्रदेश के भाजपाइयों में खौफ था कि वर्षों तक पार्टी की सेवा करने वाले वरिष्ठ नेताओं को खंडहर करार दे कर हाशिये पर धकेल देने वाली वसु मैडम अगर खफा हो गईं तो वे कहीं के नहीं रहेंगे।“ (तेजवानी गिरधर जी का लेख यहाँ क्लिककर पढ़ा जा सकता है)

वसुंधरा राजे के इस व्यवहार का शेखावत समर्थकों को पता चलने पर उन्हें बहुत मार्मिक पीड़ा हुई और स्व.भैरोंसिंह जी ने भी वसुंधरा के कई भ्रष्टाचार के मुद्दे सार्वजनिक किये, नतीजा सामने रहा, पिछले चुनाव में किसी को भान भी नहीं था कि राजे चुनाव हारेगी और अशोक गहलोत चुनाव जीतेंगे| पर वसुंधरा के कटु, अड़ियल व्यवहार व पार्टी पर एकाधिकार रखने के मनसूबे के चलते पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा और पुरे पांच वर्ष विपक्ष में बैठना पड़ा| इतना होने के बावजूद ऐसा समझा जा रहा था कि वसुंधरा राजे पिछले अनुभवों से सबक ले अपना व्यवहार सुधारेगी| और यह चुनाव अभियान के शुरुआती दौर में दिखा भी जब वसुंधरा स्व.भैरों सिंह जी की धर्मपत्नी व अन्य बुजुर्ग नेताओं से आशीर्वाद लेने उनके घर तक गयी जिन्हें पिछले चुनावों में राजे ने हासिये पर धकेला था|

यदि पिछले चुनाव में भी वसुंधरा राजे अपने अड़ियल रवैये से दुरी बनाकर रखती और स्व.भैरोंसिंह जी जैसे नेता को अपमानित नहीं करती तो किरोड़ीमल मीणा जैसे व्यापक जनाधार वाले नेता असंतुष्ट होकर बागी नहीं होते, उन्हें भैरोंसिंह जी जैसा कुशल राजनीतिज्ञ मना लेता| यही नहीं पिछले चुनावों में भैरोंसिंह जी के अनुभवों, संपर्कों का वसुंधरा राजे यदि फायदा उठाती तो कांग्रेस किसी भी हालत में हरा नहीं सकती थी| अकेले असंतुष्ट नेता किरोड़ीमल ने राज्य में १८ सीटों को प्रभावित कर भाजपा को सत्ता से दूर कर दिया था|

लेकिन लगता है जैसे जैसे चुनाव सभाओं में मैडम को समर्थन मिलता दिखा और उन्होंने अपने पुराने तेवर अपनाने शुरू कर दिये| कांग्रेसी मूल के कई ऐसे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट दे अपने पारम्परिक वोट बैंक के एक तबके को फिर नाराज करने में लगी| ज्ञात हो वसुंधरा द्वारा भाजपा से टिकट प्राप्त कर चुनाव लड़ने वाले कुछ आपराधिक प्रवृति के लोग पारम्परिक भाजपा वोट बैंक के एक खास समुदाय के विरोधी रहे है और इन तत्वों के चुनाव लड़ने पर यह समुदाय भाजपा से निश्चित रूप से दुरी बना लेगा और जिस समुदाय को राजे प्रभावित करने में लगी है वह कभी भी राजे का नहीं हो सकता, उस समाज के चंद स्वार्थी लोगों के अलावा|
साथ ही वसुंधरा राजे के एक खास सलाहकार जिन्हें जातिवादी तत्त्व कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, अपने जातिय सम्मेलनों में कह रहे है कि वे वसुंधरा राजे के ख़ास है और उन्हीं की चलेगी, वे अपनी जाति वालों को भाजपा से खूब टिकट दिलायेंगे और बनिए, ब्राह्मण,राजपूतों पर उनके ही वोटों से उन पर राज कर उनकी खटिया खड़ी करेंगे, इन तथाकथित नेता जी ने बनिया,ब्राह्मणों, राजपूतों को BBR नाम दे रखा है और कहते है कि ये BBR भाजपा के पालतू कुत्ते है कहीं नहीं जायेंगे, उनके पिछवाड़े लात मारेंगे तब भी भाजपा के नाम पर हमें वोट दे देंगे| उक्त जातिवादी तत्वरूपी कथित नेता के इस घटिया बयान की चर्चा सोशियल साइट्स पर पिछले दिनों काफी छाई रही है| और इस कथित नेता के बयान के बाद इन जातियों से जुड़े कई युवा भाजपा के विरोध में उठ खड़े हुए है|

स्व.भैरोंसिंह जी जब जीवित थे तब तो माना जा सकता था कि वे वसुंधरा के लिए किसी तरह की अड़चन बन सकते थे पर आज वे इस दुनियां में नहीं है फिर भी वसुंधरा के डर से भाजपाइयों ने स्व.भैरोंसिंह जी का नाम लेना व उन्हें याद करना भी छोड़ रखा है इसका उदाहरण अभी हाल जयपुर में हुई मोदी की रैली में में दिखाई दिया| रैली व सभास्थल पर राजस्थान के उस लोकप्रिय नेता का कहीं कोई चित्र तक नहीं लगाया गया जिन्होंने भाजपा को राजस्थान में खड़ा किया था| साथ ही वसुंधरा ने अपनी सुराज संकल्प यात्रा में भी स्व.भैरों सिंह जी को याद नहीं किया, इस बात पर स्व.भैरोंसिंह जी के दोहिते और युवा नेता अभिमन्यु सिंह राजवी ने समाचार प्लस चैनल व ज्ञान दर्पण.कॉम से इस मुद्दे पर बातचीत में बताया कि- “शेखावत साहब की पहचान और उनकी विरासत किसी द्वारा उनका नाम लिए जाने या ना लिए जाने की मोहताज नहीं है लेकिन जो हुआ है उससे कार्यकर्ताओं को बहुत पीड़ा हुई है, ऐसा नहीं होना चाहिये था|”

सोशियल साइट्स पर भी शेखावत जी के कई समर्थक वसुंधरा व भाजपा की इस हरकत से काफी नाराज,विचलित व उद्वेलित है, इस कृत्य से उनके मन को पहुंची भारी ठेस को वे बेबाक अभिव्यक्त भी कर रहे है| यदि राजस्थान भाजपा व वसुंधरा राजे का ऐसा ही व्यवहार रहा तो कोई अतिश्योक्ति नहीं कि आगामी चुनावों के बाद भाजपा को एक बार फिर विपक्ष में बैठना पड़े| क्योंकि स्व.भैरों सिंह जी व उनके परिवार को पार्टी में ज्यादा तवज्जो नहीं दिए जाने से एक तरफ उनके समर्थक व राजपूत समुदाय के मतदाता अपनी उपेक्षा समझ भाजपा से दुरी बना रहे है वहीँ भाजपा द्वारा कुछ आपराधिक प्रवृति के लोगों को टिकट देने पर उन्हें हारने को कई सामाजिक संगठनों द्वारा मोर्चा खोल लेने से उपरोक्त सीटों पर भाजपा की हार तय है जो उसे सत्ता से दूर रखने के लिए काफी है|

विश्लेषक कयास लगा रहें है कि – “कहीं पिछले दिनों जयपुर में नरेंद्र मोदी को सुनने उमड़ी भीड़ की संख्या देख मैडम का दिमाग फिर ख़राब ना हो जाये?” और वे अपनी चिर-परिचित शैली फिर ना अपना ले, यदि ऐसा हुआ तो वह खुद वसुंधरा व भाजपा के लिए हानिकारक होगा|” ऐसे ही एक फेसबुक स्टेटस पर टिप्पणी करते हुए राष्ट्रवादी लेखक संजय बैंगाणी लिखते है- “यदि ऐसा हुआ तो इनका तो कुछ ना बिगड़ेगा पर हाँ ! देश का बहुत कुछ बिगड़ जायेगा|”

संजय जी का ईशारा साफ़ था कि- मैडम का तो कुछ नहीं बिगड़ना पर उनके कारनामों से मतदाताओं ने भाजपा से दुरी बना ली तो लोकसभा चुनावों में भी भाजपा को नुकसान होगा और फिर केंद्र में देश को एक भ्रष्ट सरकार ढोनी पड़ेगी| अभी भी समय है, वसुंधरा जी को अपने पारम्परिक मतदाताओं, समर्थकों की शिकायतें सून उनका निवारण करना चाहिये, साथ ही कांग्रेसी मूल में उन आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को पार्टी से दूर रखना चाहिये जिनके कपड़ों पर पर भाजपा समर्थकों के खून के छींटे पड़े हों या खून से हाथ रंगे हो|

यदि समय रहते नरेंद्र मोदी ने वसुंधरा राजे व इनके जैसे क्षत्रपों पर नकेल नहीं कसी तो इनका कुछ बिगड़ेगा या नहीं बिगड़ेगा पर हाँ भाजपा को लोकसभा चुनावों में इनके कृत्यों की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी|

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