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खेटां रौ खावंद-राव मालदेव

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मूर्धन्य साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्यसिंह शेखावत की कलम से..........

नौकूंटी मारवाड़ री गौरव पूजा में बढौतरी करबा वाळा सूर वीर नर नाहरां में मारवाड़ रा धणी राव मालदेव (Rao Maldeo Rathore Jodhpur) रौ नांव सिरै गिणीजै। जोधपुर रै माटै जितरा राजा बिराजिया, जितरा खळ खैटा हुवा उण में सगळां सूं टणका, ठाढ़ा, लूठा नै जबरा जुद्ध राव मालदेव रै जुग में हुवा।

राव मालदेव मारवाड़ रौ इज नीं महाराणा संग्रामसिंघ मेवाड़ रै पछै आखा राजस्थान रौ अेकलो अैड़ौ राजा हुवौ जिकौ दिल्ली रा बादसा सेरसाह सूं खंवांठौरी किवी। भटभेड़ी लिवी। राव मालदेव रौ संवत 1568 में जळम हुवौ नै 1588 में जोधपुर री गादी माथै बैठियौ। उण समै जोधपुर रै हेटै सोजत अर जोधपुर दो इज पड़गना हा। मारवाड़ रा पौकरण, फळोधी, बाड़मेर, कोटड़ा, खेड़, महेवा, सिवाणा, मेड़ता, नागौर आद आखा पड़गनां में आपरै आपेधापे रा राजा, राव, नबाब राजा हा। मालदेव रौ राज उण समै जाबक छोटौ-सौ हुंतौ। सगळा आपैथापै राजा बणिया राज करता। कोई किणी रौ ग्यान गिंनार नीं करतौ। केन्द्रबळ रै रूप में कठैई सकती रौ जोड़-तोड़ नीं हौ। राव मालदेव नै मारवाड़ रा बीजा भाई बंध सासकां रो मनमता पणौ अबखौ लखायौ। नै गादी पर बैठतां ई मालदेव सगळां सूं पैली आपरा गोतर भाई राठौड़ां में जिका री थोड़ीघणी लोळ उणा रै साथ लखाई सांकड़ा लिया। आप री सेना रौ संगठण कियौ। विरोध राखण वाळां माथै सनी दीठ पड़ी। सगळां सूं पैली भादराजूण पर धावौ मार उण नै जोधपुर नीचे घाली। पछै कांकड़ सींवाळी रा अड़सगारा मेड़ता रा दूदावतां रै लार हुवौ। मेड़ता रौ धणी राव वीरमदे भी आग रौ पूळौ, बूंदी रा झाड़ां रौ बाघ, इंदर रौ बजराक, संकर रौ तीजौ नेतर, दु्रवासा रौ कोप नै भीम रा आपांण रौ सांपरत मूरत हो। रहणी-कहणी रौ खरौ नै खारौ। पछै कांई ढील। पाथर सूं पाथर भिड़ै जद तौ आग इज निकलै। जोधपुर नै मेड़तौ बेहूं कैरव पखधारी करण नै पांडूपूत अरजण रै लगैढगै। जैड़ा राव वीरमदेव रा जोधा रायमल, रायसल, ईसरदास, जयमल्ल, वीठळदास, सांवळदास नै अरजण उणी भांत रा राव मालदेव रा पखधर राव जैतौ, कूंपौ, रतनसी, पंचायण, अखैराज, प्रथीराज, देईदास, मेघराज अेक सूं अेक आगळा। रण रा रसिया। काळी रा कळस। जमराज रा जेठी जिका औसर माथै नीं तांणै हेटी। जमदूत रै इज ठोकै भेटी। सांस रा सहायक। सैणां रा सैण। खळां रा खोगाळ। रण भारथ रा भोपाळ। सिंघ री झपट, बाराह री टूंड री टक्कर। संपा रा सळाव री भांत दुसमणां रै माथै बजराक गैरबा में सैंठा।

मेड़ता री रणभौम में हजारां जोधारां री मुंडकियां थळी रा मतीरां ज्यूं गुड़ी। हजारां घोड़ां हाथियां रौ कचरघांण हुवौ। राव मालदेव जीतिया। मेड़़तिया हारिया। पछै राव मालदेव री सेना मेड़ता सूं धकै बध नै अजमेर माथै भी आपरौ हांमपाव कियौ। मारवाड़ में नागौर पर जद खानजादां रो राज हुंतौ। राव मालदेव नागौर नै जीतण रा ताका मौका जोवै इज हौ। नागौर रौ खान राव मालदेव रा भावंडा रा थाणायत माथै धावौ मार नै उणनै मार लियौ। पछै कांई हौ। ऊंधे ही नै बिछायो लाधौ। आपरा सेनापति कूंपा नै मेल नै खान नै पछाड़ अर नागौर दाब लिधी। सीवाणा रा धणी डूंगरसी नै तौ आघौ ताड़ियौ नै सीवाणा रा किला नै पड़गना नै भी मारवाड़ रै दाखल कियौ। सीवाणा पछै जालौर री सायबी भी सिकन्दरखां नै खोड़ा में घाल खोस लिवी।

राव मालदेव इण भांत जोधपुर रा आड़ौस-पाड़ौस रा सासकां नै ठौड़ ठिकाणै लगा, उणा रौ राज खोस अर पछै बीकानेर माथै घोड़ा खड़िया। घणा जबरा राटाका रै पछै बीकानेर रा धणी जैतसी नै रण सैज पौढ़ाय बीकानेर माथै भी आपरौ कबजौ जमायौ।

अठी नै तो राव मालदेव मारवाड़ माथै एक छत्र राज जमा रियौ ही अर उठी नै दिल्ली में मुगल पातसाह हुमायूं नै रणखेत में पछाड़नै अफगान सेरसाह सूर दिल्ली में तप रियौ हौ। सेरसाह सूरवीरता में सम्रथ। न्याव में नौसेरवां रौ औतार। पाणी पैली पाळ बांधै जैड़ौ। मालदेव रै प्रताप री बातां सांभळ नै मालदेव रा दोखी राव वीरमदेव अर राव कल्याणमल बीकानेरिया नै छाती लगाया। पछै अस्सी हजार घोड़ां री, हाथियां री, तोपखानां री फौज सजा मारवाड़ पर धारोळियौ। राव मालदेव भी आपरी रण बंकी सेना रा साठ हजार घोड़ा लेय नै सांमै चढ़ियौ। अजमेर री पाखती गिरी समेल कनै दोना फौजां रा डेरा हुवा। म्हीनै खांड ती फौजां आमनै-सामनै डेरा रोपियां पड़ी रैयी। पछै अेक दिन आखतौ व्हैने वीरवर कूंपै राव मालदेव नै राड़ रा चौगान सूं काढ़ नै जोधपुर भिजवा दियौ। कैंणगत है- लाख मरौ पण लाख नै पोखाणियौ नीं मरौ। सो, जबरा-जबरी राव मालदेव नै कूंपै समेल सूं जोधपुर भेज दियौ। साख रौ दूहौ है-

कूंपौ कैवै-
तूं ठाकर दीवाण तूं, तो ऊभै सोह कज्ज।
राज सिधारौ मालवे, करण मरण बळ लज्ज।।


राजा जी थां जीवै सारा थोक है। थां राठौडां रा धणी हौ। इण वास्तै राड़ सूं निकळ परा जावौ नै जुद्ध री लाज नै भरभार कूंपा पर छोड़ो।
पछै राठौड़ जैतो, राठौड़ कूंपौ, राठौड़ ऊदौ जैतावत, खींवौ ऊदावत, पंचायण करमसोत, जैतसी ऊदावत, जोगौ अखैराजोत, वीदौ भारमलोत, भोजराज पंचायणोत, अखैराज सोनगिरौ, हरपाळ जोधावत आद राव मालदेव रा बतीस उमराव आपरी बीस हजार फौज साथ ले सेरसाह री अस्सी हजार सेना सूं जाय भेटी खायी। पातसाही फौज नै रोदळ नै कण-कण री बखेर दिवी। राव मालदेव रा घना जोधार काम आया। अेक बीजो सौ महाभारत हुवौ। मिनखां, घोड़ां नै हाथियां रा धड़ां, पिंडा, चुळियां, नळियां, मुंडा, कबंधा रा पंजोळ लाग गया। राठौड़ रण सागर नै मचोळ नै काम आया। दिल्ली मंडळ रौ धणी रण रौ चकाबौ देख नै कैयो- अेक मूठी बाजरी रै खातर दिल्ली री सायबी खोइज ही।

राव मालदेव रा जोधारां रै रण रा चित्राम कवीसरां घण कोरिया है। राव अखैराज सोनगरा रै जुद्ध नै धाकड़ कबड्ड़ी री संग्या देवतै थकै कैयौ है-
फुरळंतां फौजांह, ढालां गयंद ढढोळतां।
रमियौ सर रौदांह, धाकड़ कबड्डी धीरउत।।

राठौड़ नगौ भारमलोत तौ सांप्रत काळौ नाग इज हुंतौ। उण री तरवार रौ डंक लागै पछै जीवणौ दूभर, फेर भी वौ दुसमण रूपी गारुड़ी रै बंधाण में नी आयौ-
देव न दांणव दीठ, अरक कहै भड़ अेहवौ।
नगियौ काळौ नाग, गारूड़वां ग्रहिजै नहीं।।
धावां सूंछक नै नगौ रण पड़ियौ, पण जीवतौ बचियौ।


समेळ रौ झगड़ौ मारवाड़ में वड़ी लड़ाई रै नांव सुं ओळखीजै। इण राड़ में राव मालदेव रा घणा जोधार काम आया। पछै सेरसाह समेळ सूं कूचकर मेड़ता अर जोधपुर माथै आयौ। जोधपुर रा किला नै फतै कर पाछौ गयौ। पण मालदेव निचलौ बैठणियौ नीं हौ। सेरसाह रै फोत हुंवतांई पाछौ जोधपुर आय दाबियौ। आप री फौज पाछी बणाई। जुद्ध रा साज सामान, घोड़ा रजपूत सिलह बणाय नै अजमेर पर काटकियौ। अजमेर माथै हाजीखां पठाण राज करै। हाजीखां आपरै बळू मेड़ता रा धणियां अर मेवाड़ रा राणा उदैसिंघ नै बुलायौ। अठी नै प्रथीराज जैतावत नै सेनानायक बणाय राव मालदेव अजमेर माथै फौज मेली। अैड़ै समै में प्रथीराज नै अजमेर पर मोकळती वेळां कैयौ-

पीथा पांणेजेह, आळोजे कहियौ इसौ।
भुइ ताहरे भुजेह, जैत तणा जोधां तणी।।

राव मालदेव विचार करती थकौ कैयौ- हे प्रथीराज जैतावत ! जोधां री औलाद री आ मारवाड़ री भौम थांरै इज भुजपांण माथै है।
एक दळ आहाड़ांह, दळ एक दुरवेसां तणा।
मांही भेड़तियाह, कळि करतां त्रीजोइ कटक।।


अजमेर में प्रथीराज घणौ पराक्रम दिखायौ। राव मालदेव री बात राखी। पछै वि. सं. 1610 में मेड़ता में राव जयमल रै साथ रै जुद्ध में बाज मुवौ। प्रथीराज रै काम आयां पछै राव मालदेव आपरौ सेनापत पणौ प्रथीराज रा छोटा भाई देईदास जैतावत नै सौंपियौ। देईदास राव मालदेव रौ सेनापत बण घणां-घणां धौंकळ किया। सं. 1616 में जाळौर माथै फौजकसी करी। जालौर रा पठाण धणी मलिक बूढण ‘मलिकखां बिहारी नै हराय नै जाळौर नै जोधपुर नीचे घाली। पछै बादसाह अकबर आपरा सेनानायक सरफुदीन हुसैन मिर्जा नै राव जैमल री मदत मेड़ता माथै मेलियौ। देईदास, मेड़तिया जैमल अर उण री पक्ष री बादसाही सेना सूं भिड़ गयौ। महाभयांणक राड़ी हुवौ। घणा लड़ेता खेत रैया। कह्यौ है-

विगतौ करे व्रहास, ढालां मुडै ढोईयौ।
दुसासण दहु चहु दळे, दीठौ देवीदास।।
कळळियौ कविलास, समहर किरमाळां सरस।
जैत समोभ्रम जागियौ, दणियर देवीदारा।।
तूं तेजीयै सपताास, भीड़ै जुध करिबा भणी।
सातै हींसारव हुवै, दीपै देवीदास।।


दुसासण रै समान वीरता प्रगट करतौ देईदास वैरियां रा दळां में ओपियौ। राव जैता रौ कुळोधर देईदास सत्रु सेना रूपी अंधेरा नै नासतौ सूरज री भांत दीखियौ। देईदास रै घोड़ा रै हींसारव री हणहणाट सातौं दीपां में सुणीजी। अैड़ौ पराक्रम धणी देईदास जैतावत राव मालदेव निमत मेड़तै काम आयौ। राजस्थान में राव मालदेव एक अजोड़ राजा हुवौ। दिल्ली रा अफगान नै मुगल पातसाहां री सेना सूं लोह रटाका लिया। मरु देस री सीमावां रो घणौ विस्तार कियौ। रात दिन खेड़-खेटा करतौ थकौ भी कदै निरास नै उदास नीं हुवौ।

राव मालदेव जुद्ध इज नीं लड़िया मारवाड़ में ठौड़-ठौड़ गढ़-कोटां, जीवरखां रा भी घणा निर्माण किया। प्रजा रै खातर कूवा-बावड़ियां खिंणाई। उण री सखरी प्रत पाळणा किवी। जद ई तौ राजस्थान रा ख्यातकारां राव मालदेव नै मंडळीक राजा, हिन्दुवां रौ पातसाह कैय नै चितारियौ है। कवि आसौ बारहठ राव मालदेव रै पुरसारथ रौ वरणन करते थकै कैयौ है-

कवण क्रिसन पति सबळ, काळ पति कवण अंगजित।
प्रिथीपत कंुण बाणपत, सुरपत कवण सतेजति।।
कवण नाथपति जीत, कवण केसवपति दाता।
सीतापति कुण सीत, कवण लखमण पति भ्राता।।
सबळ को अवर सूझै नहीं, जाचिग जंपै सयल जण ।
हिन्दुवां मांहि ओ हिन्दुवौ, मालपति मोटौ कवण।।


इण संसार में अगन सूं बढ नै सबळ कुंण हुवौ है। जमराज रै बिना अगंजित कुंण है। धनखधर अरजण सूं पराक्रम बळी कुंण हुवौ है। देवपति इन्द्र सूं ज्यादा वडौ राजा कुंण है। गोरखनाथ रै सिवाय वडौ जति कुंण हुवौ, भगवान् केसोराय सूं इधकौ दातार कुंण नै सीतामाता जैड़ी सती नै लिछमण सरीखौ भाई बीजौ कुंण हुवौ। इणां रै जोड़ रौ राव मालदेव रै बिना दूजौ कोई हिन्दूपति नीं दीखै।

राव मालदेव गादी बैठा जद फगत दोय पड़गनां रौ धणी ही अर पछै तैतीस पड़गना जीत नै मारवाड़ रा राज रौ बिस्तार कियौ। राव मालदेव जिका-जिका तुंबां पड़गना खाटिया उणा रा ख्यातां बातों में नांववार बखाण मिळे है। सुणीजै-

महि सोजत ली माल, भाल लियौ मेड़तौ।
माल लियौ अजमेर, सीम सांभर सहेतौ।।
बांको गढ़ बदनौर, माल लीधौ दळ मेले।
राइमाल रायपुर लियौ, भाद्राजण भेळे।।
नागौर निहचि चढ़ि नळै, खाटू लीधी खड़ग पणि।
तप पांण हुवौ गांगा तणौ, धींग मालदे सैंधणी।।
लोड लियौ लाडणूं, दुरंग लीधौ डिडवाणौ।
नयर फतैपुर नाम, आप वसि कियौ आपांणौ।।
कमधज लई कासली, रूक बळ लियौ रेवासौ।
चांप लई चाटसू, मुक्यौ वीरभाण मेवासौ।।
जड़ळग पण जाजपुर लियौ, गह छांडे कुंभौ गयौ।
मालदे लियौ मंदारपुर, लियौ टांक टोडो लियौ।।


इता ही इज नीं राव मालदेव सिवाणौ, जाळौर, सांचौर, भीनमाळ, बीकानेर फलोधी, पोकरण, उमरकोट, कोटडा़ै, बाड़मेर, चौहटण आड़ घणा पड़गना जीत नै मारवाड़ रै सामिळ किया।

मेवाड़ रा पासवानिया बणवीर नै चित्तौड़ सूं बारै काढ़ नै राणा उदैसिंघ नै चीतौड़ रौ घणी थरपबा में मदद दी, अर पछै जद राणौ उदैसिंघ पाछी आंख काढबा लाग्यौ जद कुंमलमेर अर हरमाड़ा में उण सूं भी भिड़बा में पाछ नीं राखी।

इणु भांत राव मालदेव आपरी आखी उमर जुद्धां रा नगारा बजावौ, सिंधूड़ा दूहा दिरावतौ रैयौ नै संवत 1616 में इण संसार में आपरी कीरत पाछै छोड़ नै
अठै सूं विदा होय सुरलोक रौ राह लियौ।
मालदेव रै मरण पर कह्यौ है-
असी सहस अस’बार, सहस मैंगल मैमंतां।
हाजी अली मसंद, दैत राकस देखतां।।
भांगेसर वासरहिं, चडे रिण वदृहि जोड़ै।
फतैखान सारिखा मेछ, भूअ डंडि मरोडै़।।
टहियो पिराक्रम आप बळि, सत दुरिक्ख रक्खी सरणी।
माणी न मल्ल ऊभै मुणिस, सूर मुरद्धर वर तरुणि।।


राजस्थान री सीमा बधाबा वाळौ नै उण री रुखाळ करण वाळौ मारवाड़ री धरती माथै बीजौ अैड़ो प्रतापीक धणी नीं जलमियौ।


Rao Maldeo rathore jodhpur history in rajasthani bhasha, history of jodhpur

भाखर भोपाळ- भाद्राजूण

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राजस्थानी भाषा लेख श्रंखला में साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्य सिंह जी शेखावत का राजस्थान के भाद्रजुन कस्बे पर लेख.......

मारवाड़ मेदनी री मरदांनी महिमा रा मोकळा मांडणां राजस्थानी भासा रै आखरां में मंडिया मिलै। इण सूं मारवाड़ नरां समंद कहावै अर वीरता री नोखचौख में बधतौ लखावै। मारवाड़ रै जालौर खण्ड में भादराजण Bhadrajun अेक प्रचण्ड ठौड़ जिकी पुरातनकाळ सूं इज गिणत में मौड़। दांत कथा में कहिजै है- कै पाण्डव अरजण जादव किसनजी री भगनी सुभद्रा रौ हरण कर जालोर खंड रै घूंबडा भाखर री ओट आयो अर अठै सुहागरात रौ जलसौ मनायौ। पछै सुभद्रा अर अरजण री याद में धूंबड़ा रौ नांव सुभद्राजणौ संजोग सूं भाद्राजण हुवौ। सु रौ लोप हुवण सूं भद्राजण -भादराजूण नांव रहियौ। इण रीत सुभद्राजण रौ अपभ्रट रूप भाद्राजूण। भाद्राजूण जुगादू जूनी नगरी गिणीजै। अरजण री बसाई आ नगरी भाखर री गोद में बसी समोद लखावै नै आप री डीघालता नै लांबी आरबळ रा कितरा इज अखाण बखांण सुणावै। भाद्राजूण कुण जांणै कितरा असवाड़ा पसवाड़ा फेरिया। कितरी बार पिण्ड पलटाया। पांच हजार बरस तौ अरजण रा समै रौ गिणीजै। इण समै में धूबड़ौ कितरा इज धळ-धौंकळ दीठा होसी, पण धूंबड़ा री आप बीती कुण जांणै ? जद सूं ख्यातां बातां में बखांणी तद सूं इज भाद्राजूण रा प्रवाड़ा गिणत में आंणै।


पैलां भाद्राजूण रै माथै सिंघल राठौड़ा री सायबी हुंती। सिंघल भाद्राजूण रा भूप भणीजता अर चौरासी रा खाविन्द कहिजता। पछै संवत पंदरासै छीयासी में मारवाड़ में राव मालदेव मोटौ मांटी हुवौ। राव मालदेव जोधपुरा रै अगल-बगल रा मेड़तौ, नागौर, बीकानेर, अजमेर, जालौर आद रै साथ-साथ भाद्राजूण रा धणी सिंधलां पर भ्रकुट तांणी अर घोड़ां री बागां उठांणी। भाद्राजूण रौ भरतार सिंधल वीरौ वीरभद्र रौ अवतार। राव मालदेव री सेना माथै समसेरा संभायी। काळिका नै रंगतरसूं धपाई । सिव नै नव मुंडमाळ धारण कराई। जोगण्या नै रणभौम में नचाई अर फेर मौत पायां पछै मालदेव री जीत होबा दिराई। वीरां रौ वीसलदे भी खांडा खड़काया पछै वीसल रै वत्स तेजसी भाद्राजूण री आस छोडी अर राव मालदेव आपरा बेटा रतनसी नै भाद्राजूण सौंपी तद भाद्राजूण सिंधला री आण लोपी जिकी वात इण भांत जाणी-

माल ब्रपत मुरधरा, महाराजां मुकटां मिण।
सुत जिणरै रतनेस, जैण पाई भाद्राजण।।
रतन पाट सादूळ प्रतपियौ वंस प्रभाकर।
सादूळा सुपह रै, तवां मुकनेस कळपतर।।
मुकन रै हुवौ जोधो मुदी, उदियाभाण ऊबंवरौ।
भाण रै बिहारीदास भड़, धजबंध हाथां ऊधरौ।।
थ्बहारी रै सुत, बाघ रै ऊदळ वाचां।
ऊदळ तणै ऊमेद अघट खग त्याग सुआचां।।
तिण ऊभेद है तखत जलौ दाता जग जाहर।
धजबंधी धुवड़ै निडर तपियौ नर नाहर।।
बखतेस जला रौ दीरवर, वडिम खाटै चहुंदळां।
कर गयौ कंमध नव कोट में, अेतां परिया ऊ जळां।।


रतनसी रै डाकर डकरेळ बराह रा भ्रातसा कै उगता अरक रै प्रभात सा सात बेटा हुवा जिक में सादूळ रा सुता रै भाद्राजूण आयी। सादूळ सांप्रत सारदूळ री भांत इज गनीम रूप गजां रा गटका करनै गोलोक गयौ अर भाद्राजूण रै पाट मुकंददास आसीन व्हियै। मुकंददास जोधपुर रै धणी सूरसिंध रै समै घणा खळ-खेटां किया। परायां रा प्राण लिया। अपरां नै जीवन दान दिया। मोटै राजा रा बेटा भगवानदास रै वैर मुकंददास दळपत बुंदेला पर कटक कियौ अर गोयंददास भगवानदासोत रै साथै बुन्देलखंड में जायनै दळपत नै मार नै उधारौ आंटौ लियौ। जिका री दादां साहां पातसाहां दिवी। पछै साहजादा खुर्रम री बगावत नै बारोठिया पणै रै समै में राजा गजसिंघ रै साथ बुरहाणपुर में खड़गां खड़काई अर विजै री माळ गळे में घलाई। उण वेळ मुकंददास पवंगा पर धराया पिलांण। कमरां पर बंधाया दोय-दोय केवाण। लखाया जोध जाण जमराण। हथेळी पर धरिया प्राण। रजवट रा रुखाळा। कुलघ्रम र उजाळा। कळह कमण रा कंत-सा, आहव में अभीता-सा कै भीम रा भतीज-सा कै त्रिपुरार रै नैण तीजा-सा नजर आया। मुकंददास भाद्राजूण नै देसां चावी कीनी अर उण रै पछै महाराजा अजीतसिंघ रै विखै में बिहारीदास मुकंददास रै पौतै पौरस जतायौ अर 1762 रै बरस नागौर रै राव मोहकम सिंध कहै बादसाही फौजां जालौर रै दुर्ग लागी। जद भाद्राजूण री भौम रौ भूप बिहारीदास आपरा भाईपा अर भीला नै साथै लेय नै जालौर माथै चलायौ। भीला री भालोड़ा रा भैसूं मैंचक नै मोहकमसिंध जाळौर सूं न्हाठ नै सादड़ी कांनी सिधायौ अर बिहारीदास इण भांत भाल माथै जस रौ टीकौ कढ़ायौ। बिहारीदास री वीरता अेक जूना गीत में पढ़ण में आयी जिकी री ओळियां अठै पढायी-

गीत
भुजे लाज पितारी धरारी भळवण,
प्रभत चित बधारी वडां पातां।
अफारी फौज जीपण जुड़ण अफारी,
बिहारी तुहारी खतम बातां।
सुतन उदैभाण सुभियााण थाटां सिणां,
अदब राव राण सुभियांण आखै।
आंण रहमांण जिम भाण रा ऊगमण,
भलोजी भलो दुनियाण भाखै।
जैतहथ समथ जिम सुरथ भाद्राजणां,
अनड़ अभमान अम्बर अड़ाया।
पार तरवार अहंकार मांटी पणां,
पिता जिम प्रवाड़ा अदब पाया|
धोम धकरुळ गैतूळ खळ धड़चणा,
पछट हाथां करण खड़ग पूजा।
सूल अणमावतां रावतां सिरोमण,
दुरत कळमूळ सादूळ दूजा।।


इण भांत भाद्राजूण रौ नाह बिहारीदास नाह पणां री भुजै लाजधारी अर रिपुवां री रजपूती माथै रूकां रा रटाका देय कुंवारी घड़ानै परणणै री चित में विचारी। खागां रा खगाटां सूं कितरा इज सूरां रौ हूरां सूं ब्याह रचायौ और रणभौम में नारद नै हड़हड़ हंसाय सिवनै मुण्डमाळ पहिराय चण्डिका रौ खप्पर भराय घरानै आयौ नै विजै रौ दमामौ घुरायौ। अैड़ी खगझाट रौ अछूतौ जस खाट रण रचायौ जिक एक बीजा गीत में इण रीत ओळखबा में आयौ -

कहर ऊकटे काट बज साट खत्रवाट की,
उड गयणाट पर धर उथाळा।
मोहणे जोध अयिााट मांटी पणै,
बोटियो थाट खग झाट वाळा।৷
खार के खेध अंहकार के खड़गहथ,
धार के धोम धड़हड़ धिंगारूं।
पछट थाटां तुरंग वाारके पारके,
मारके सारके रीठ मारू।।
सुतन उदैभाण घमसांण सत्र साझिया,
जुड़ण भव मुड़ण नन जतन जीदा।
साफळे सार गज भार असगा सगा,
वजाया पजाया नगा बीदा।।
अभिनमे मुकंद जोधा तणै आभरण,
सम चडै़ लडै़ सामंत सिंघाळौ।
सूर साटै लिया सूरसिंघ सरीखां,
अळवळे धुमंडै गिरंद वाळी।।


बिहारीदास इण भांत रजपूतां अर भीलां रै भरोसै भुजावां में भाला तोलै नै भला-भला भणायौ अर कायरां रा काचा काळजां नै कंप-कंपाया। जोधपुर रा स्वामी महाराजा मानसिंघ रै बखत में भाद्राजूण में ठाकुर बख्तावरसिंघ ठणकैल हुवौ। मारवाड़ में मानसिंघ रै समै नाथ जोगियां रौ इकडंकियौ बागौ। जिण रै धकै किणी भी ठाकर चाकर रौ दांव न लागौ। भीमनाथ रै उत्पात संू आखी मारवाड़ में राजा पिरजा में तणाव पैदा हुयौ जद अंग्रेजां मानसिंघ रै वरखिलाफ सेना मेली। राज में घाटा रौ समै आयौ। अंग्रेजां री खिराज री किस्तां चढ गई जद संवत 1861 में ठाकुर बख्तावरसिंघ अर ठाकुर रणजीतसिंघ कुचामण अर सिंघवी फौजराज अजमेर गया अर बीच में पड़नै मारवाड़ में गोरां री चढाई नै मोकूफ किवी। लाट सदरलैण्ड नै राजी कियौ। इण रीत बख्तावरसिंघ डिगती मारवाड़ रै थंभौ दियौ। फेर संवत 1866 में लाट सदरलैंड जोधपुर माथै फौजकसी करी। मारवाड़ रूपी जहाज अंग्रेज रूपी भ्रमर में फंसी। महाराजा मानसिंघ जोधपुर किला री कूचियां लाट साब नै सूंपी पछै सदरलैंड जोधपुर रौ राजकाज चलावण नै अैक कौन्सल बणाई जिकी में पोकरण पति बभूतसिंघ, आऊवा रौ अधीस खुसहालसिंघ, निबांज रौ नाह सवाईसिंघ, रियां रौ राजवी सिवनाथसिंघ कुचामण रौ कंत रणजीतसिंघ अर भाद्राजूण रौ भूप बख्तावरसिंघ मेढ़ी हुवा अर अंग्रेज रूपी बकासुर री डाढां मांय सूं मारवाड़ नै काढ़ी अर महाराजा मानसिंघ री बंदगी किवी ठाढ़ी-

रचै दमंगळ जुथ कण हुवै रिमां रा, तिमंगळ धखै जिम नाव तखता।
मान नर नाह रै ढाल दूजा मुकंद, वाह रे वाह राठौड़ बखता।।
बूझगर गुणां वित नवां खाटण बिरद, जोधपुर नाथ रा छळां जागै।
ईढ़गर बंधै तो उर मंडी ओयणां, लाजरा लोयणां झोक लागै।।
रतनहर आभरण उपासिक राम रा, ऊधरै चाचरै धरम आंकूर।
सांमध्रम करण बड वडां राखण सरण, सुतन जालम धरण नेत धन सूर।।
निपट सुधचाल दुर बिसन हेको नहीं, आथ मांणण सदा करण उदमाद।
बखतसीं तणी रजवट सको बखांणौ, बखतसी हूंत मांडै नको, बाद।।


महाराजा मानसिंघ री देखती नजरां जोधपुर रा किला माथै मीरखां नै दिखाणियां री फौज फौजबगसी गुलराज नै चूक कर मारियौ अर फौज बगसी फतैराज सिंघवी माथै भी कोप धारियौ। महामच्छ सिंधु नै मचोळे ज्यूं जोधपुर नगर रौ मानखौ हचौळै आयौ। जद किंणी भांत फतैराज ऊबरण रौ उगरास नीं पायौ जद भाद्राजूण रा भट बख्तावरसिंघ रै सरण आयौ। ओ प्रसंग अेक गीतड़ा में कवि बांकीदास बखांण नै जतायौ-

हुवौ चूक गुलराज नूं खबर आयी हमै, लूंबिया कटक खग करण लाटौ।
राखजै सरण बखतेस दूजा रयण, फतौ सिंघवी कहै गयण फाटौ।।
दिखण पूरब तणा पलटिया दहूंदळ, निरंतर तजै उपगार नेड़ौ।
तूझ बिण बिया नह तरै जालम तण, बगसियां तणौ रणसमंद बेड़ौ।।
तेग जड़ कमर साबळ पकड़ त्रिभागौ, छत प्रगट वीररस वौम छायौ।
पुखत सरणाइयां दैण निरभीत पद, अभंग धजराज री पीठ आयौ।।
रुद्र तिरसींग नूं करै ताळी रहत, हठी नरसींग नूं कवण हाकै।
काळ दाढां मही पैस फिर कठै कुण, चढ़ै कुंण धूबड़ा नाथ घांकै।।
बचाया सरण आया जिक घड़ी बिच, अड़ीखंभ उपद्रव ठेल अवड़ौ।
कियौ तै भोग जिम देर मोटम कमंध, जग मही धूबड़ौ मेर जवड़ौ।।


बख्तावरसिंघ फौजराज री मदद कर नै फाटा गयण रै थांभौ लगायौ जिण सूं मीरखां सिंघवीजी रौ बाळ भी बांकौ नीं करण पायौ। भाद्राजूण रौ भूप यूं आंटीलौ सरणदाता रौ बिड़द कमायौ। इण मरदांनगी री महक महिमंडळ सगळै छायी जिकी री वारता मांड मेवाड़, ढंढाड़ मांय पगां चाल आयी-

जिण कियौ ऊजळौ गिरंद धूबड़ौ गिरंदां।
पुर उदिया जैपुरां नखत जांणियौ नरिंदा।।
अंगरेजां आगळी सला जिण कीधी साबत।
दिली मिलै लाट सूं तीख राखी मुरधरपत।।
बखतेस काम कीधा वडा धणियां तणा धरम्मे।
निभावै हुकम न्रप मान रौ, पूगौ जोत परम्मे।।


बखतसिंघ संवत 1866 में सुरधाम पूगौ अर भाद्राजूण रै भाल भळ भळातो भाण सौ इन्द्रभाण ऊगौ। इन्द्रभाण आप रा कैड़ायत सिंघलां सूं संग्राम कियौ जठै अेक बार फेर महाभारत रौ-सौ चकाबौह हुयौ। सिंधला रौ सांम पन्नेसिंघ आपरा पवंग नै चिराई गांव माथै झोंकिया जिण री धाक सूं भाद्राजूण रा प्रजाजण कूकिया। पन्नेसिंघ आपरी बपौती खातर बारै बरस विखौ कियौ अर पछै भाद्राजूण माथै धावो दियौ। पन्नेसिंघ री वीरता रौ बखाण इन्द्रभाण भी कियौ-

जोधां तखत न्रपत भाद्राजण, दाद घणां मुख दीधी।
पायक रंग पन्ना तौ पांणप, कहतौ जैड़ी कीधी।।
धरा पाधरी सिंधल बंका, सहिया लोह सरीरां।
औ धर कर सांचौ ओखाणौ, पूगा महल परी रां।।
वारह बरस विखौ कर बारै, रहिया आसल राणां।
गांमौ गांम जरक घड़ गाढी, करक गमो गमै थाणां।।
रजवट पांण हजारां रुपिया, केहर जजर कराई।


भाद्राजण रा भड़ चढ़नै सिंधलां पर दौड़िया पण सिंधल भी रणभौम सूं पग पाछा नीं मौडिया जिका रा बरणण गीतकार आखरां में जोड़िया-

खाथाही ब्रहासां थांणे जिले रा आविया खडै,
पाळा होय धकै हूं खडै़ विणा पार।
ऊससै भुजाट खेहवाट असमान पड़ै,
जैणवार चढ़ै भाद्राजणी रै लोधार।।
आदौ सूजौ अचल्ल रामसिंघ आद,
चढ़ै भींच अनाहे त्रभागौ ले सुरंग।
सारा जालाणियां माथै कठठ आवधां साहै,
तीखी अणी माहेसरै रुधै री तुरंग।।
दूहौ
गिर धक दूणियौ, मैचकियौ इंद्रभांण।
पाड़ घणां धर पौढ़ियौ, रंग पन्ना रढ़ रांण।।


इण भान्त भाद्राजण री भौम घणा देखिया जंग झौड़ अर इतिहासां में ख्यात पायी ठावी ठौड़।

जीभां री लपालोळ

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साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्यसिंह जी शेखावत की कलम से....

कांई भणियां गुणियां नै कांई अणभणियां सगळा मिनख अेक भरम पाळियां बैठा देस सूं है कै भारत सूं पातसाई अर राजासाई उठ गई। अंगरेज आपरा बोरिया बिछावणां करनै घरै गया। गुलामी सुं पिण्ड छूटौ। छै सौ रै अडै़ गड़ै देसी रजवाड़ां रा राजावां रौ खूटौ टूटौ। लोह लाट सरदार बल्लभभाई पटेल सांयत रै साथै राजावां नै पंपोळ, बुचकार, हेत, हिमळास दिराय, आंख काढ़, डराय, धमकाय अर मनाय नै रियासतां री न्यारी न्यारी सीवां नीवां नै दुड़ाय, काट-छांट कतर नै अेकमेक कर दीन्हीं। पछै ठिकाणां रूप खाड़ां-खोचरां, गबलारां बेझकां मांथै पाटौ फिराय नै रजवाड़ां रै समै बणियोड़ा दड़ां-रड़ां, टीबां, भरां नै भरनै, बूर नै सपाट मैदान सा नूंवां पड़गनां बणाय दिया । राजा लोग आपरी लांगां सांवळ टांक इज नीं पाया हा कै मोटा-मोटा खेती फार्मा माथै भी गैबरौ धमाकौ हुवण री बात चाली, पर राज नेतावां री मौळा ई सूं बात नीं बैठी। अबै देस में नीं राजा रह्या नीं रजवाड़ा, नीं लाग नीं बाग, नीं बैठ नीं बेगार, नीं रेख नीं चाकरी, ठाकरी रा सारा नाड़ा-जूंण टूट गया। लोकतन्त्र री थरपणां रै सागै आखा मुलक में बरौबरी रौ पांतियौ बिछ गयौ । वडा पणां रां बाजोट, दरीखानां री दरियां, छतर चंदर नै पत्तर प्याला अेकमेक बरौबर गिणीजण लागा। चौबदारां री चौबां, छड़ीदारां री छडिया रा सोनां रूपां रा पात सोनापीटां रै घरै गया। छत्रधारियां छत्राळां रा छत्र वैसांख जेठ रा भगूलियां री भांत नी जांणै कणां छांऊं म्यांऊ हुवा। खुर खोज इज नी लाधौ। वै उड़नै कटै गया ठां इज नीं पड़ियौ, जांणी भूत री ज्यूं विलाय गया कै अलोप है गया। अबै कोडीधज नै करोड़ीधज में किणी जात, भांत, रीत रौ अळगाव आंतरौ कोय रह्यौ नीं। करोड़पती अर गरीब गुरबा दोनां नै राज, समाज काज, पाज में समबड़ता री ठौड़ मिळ गई, सगळी भांत, पांत, दुभांत मिट गई। पण अजै तांई इण में धणखरौक भरम, नै भुलावौ लखावै है। जिका भोटा-मोटा गबला रा लोकतन्त्र में नरा घड़च्छा कर राखिया है उणा रै कारी कुटका दियां बिना बाजौ पार पड़तौ नीं लखावै। लोकतन्त्र री काया में उपड़ियोड़ा मोटा-मोटा गड़, गूंमड़ा, फोड़ा फुणसियां रै जद तांई चीरा नीं पाटा-पीड़ नीं हुवै तद ताई साज मांदगी मिटणी घणी दोरी लखावै, भरिया रीता व्हैबाला नासूर मिटियां बिना लोकतन्त्र रौ आजार दोरौ मिटतौ लागै।

राज रा कानून कायदा, नेम-नीत-रीत में सगळा मिनख बरौबर गिणीजै। इज दरुजै सगळा लोग(बड़ सकै द्य निकल सकै । अेक जाजम माथै सगळा जम सकै, रम सकै। थम सकै। मम सकै। किंणी तरै रौ भेदभाव, ऊंच-नीच नीं रह्यौ, न्याव-पत्याव, थ्याव सैंग, में अेक सारीखौ हक हासल मिळ गयौ। पण, हाथीरा दांत दिखावण में खावण में न्यारा-न्यारा हुवै। हाथ री पांच आगळ्यां इज अेक समान नीं हुवै, कोई नान्ही कोई मोटी-छोटी, पछै मिनख अेक सारखौ कठै हुयौ, कानून तौ रीत रौ रायतौ है। फेरा तौ फिरता फिरै भोगै सौ भरतार। सौ बापड़ौ कानून कांई करै। कानून कोई अदीठ चक्र तौ है कोनी जिकौ जुलमी नै देख सकै अर उठै इज काठ कोरड़ा देय गेलै घाल देवै। कानून तौ पांगळ हुवै। कानून नीं तौ आप मतै चालै नीं पगां सू हालै ठौड़ रौ ठांव है। कोई जूती नै रिकसावै उठी नै रिकस जावै। पांगळौ इज नीं अैड़ौ बोळौ हवै कै घणा लोग बौवाड़ौ मारै। चिरल्या मेलै। फूकरड़ा करै जद कठैई पसवाडौ फेरै। आंख ऊघाड़ै। नींद खुलै। न्याव दीठ रौ तौ निरंध इज हुवै। रात दिन रातींधौ हुयोड़ौ रेवै, बीजा कोई मिनख सायदी देवै नै आंख उघाड़ै। सरदियौ करै जणां कठैई दीखबा लागै। सरदियौ गवाई अर उकील दिखावै। सांची कही है कै चील रा बच्चिया री आंखियां सोना री कोई चीज दिखावै जद खुलै। उणां री आंख उघाड़ण तांई बापड़ी चील कठैई सूं सोना री बसत लेय नै आवै, सो कानून री आंख उघाड़ण तांई सायदीदार नै गेला खरच अर उकील नै मैनतानौ दियां इज धाकौ धकै। नीं तौ चील रा बच्चिया ज्यूं कानून री आंख मीचियोड़ी इज रैवै। जे उकील अर गवाई तांई सुबरण नीं हुवतौ आंधा, पांगळा, अर बोळा कानून रौ भौं इज बिगड़ जवतौ। कंुण लाठी रौ सारौ देय नै खोटौ पाटौ कढातौ। हाल्यौ डोल्यौ करतौ। बारै भींतर आवण जावण रौ इज फोड़ौ पड़तौ। भंूडौ हाल व्हैतौ। पण, कानून रै खातर उकील अर सायदीदार श्रवणकुमार इज जनमिया जिक पौथा रूपी कावड़ में कानून मां-बाप नै लियां बगै है। गाडौ गुड़क रहयौ है। नीं तौ बिना दीठ कांई देखतौ। बिना पगां कींकर चालतौ। जमारौ इज कानून रौ अहळौ जावतौ। इतरी बात हुंता थकां इज लोग कैवै कै न्याव रा कपाट सगळां ताई खुला है। पण, न्याव भी भाग में लिखियोड़ मिलै। दाख पाकै जद कागलां रै कंठा में गाँठ हुजावै। सारी थोक भोग-भाग प्रवांण मिळै। हजार मण रौ लाटीौ पड़ियौ रैवो पण बिना झोळी रौ फकीर कांई ले जावै। तिंवार व्रत री कांणिया में आवै है कै सिवजी नै पारबतीजी एक दिन म्रतलोक में आवण रौ मतौ कियौ। दोनंू आपरी मोय कैलास सूं चालिया। गेला में दोनां अेक डोकरा-डोकरी नै सांमौ आवता देखिया। डोकरा-डोकरी री गरीबी नै सरीर री माड़ी हालत देखनै पारबतीजी रौ मन पसीज गयो। दया आयगी। वै सिवजी नै कह्यौ-दीनदयाल ! आं गरीब माथै महर करौ अर कोई अैड़ी चीज देवौ जिण सूं आं रौ दाळद छूटै। अर सावळ गतगेला सूं आपरी उमर रा छैला दिन औछा कर सके। खाबा-पीबा, रहबा, औढ़बा, पैरबा रा फोड़ा मिट जावै। मिनखा जूंण पाय नै दुखरै सिवाय आं नै काई मिल्यौ। सिवजी उथलौ देवता थका कह्यौ-गोरज्या ! तूं भोळी है। वेहमाता इणां रा भाग में फोड़ा पड़णां इज लिखिया है। उण रा घालिया आखर कुंण मेट सकै है। पण, पारबतीजी तौ नारी जात, हठ मांड बैठा। उठै इज पग रोप दिया। अैड़ौ रढ़ झालियौ कै सिवजी नै उणां रै हठ आगै नमणौ इज पड़ियौ। तिरिया हठ रौ कांई कैवणौ! आखर सिवजी पारबतीजी रै हठ रै आगै डंड-कमंडळ नांख नै डोकरा-डोकरी री मदत नै त्यार हुवा -नमै तिलोकी नाथ राधा आगळ राजिया । सौ सिवजी आप रै कान रौ अेक सुबरण रौ बालौ गैला में नांख नै छेड़ै ऊभा रह्या। सौ मण री सिला नै मिनख आंतरै सरका सकै है पण करम आडा पानड़ा नै कुंण सरका सकै ? सौ जठै बाळी पड़ियौ हौं उठै कनै आवतां डोकरा रै मन में आई कै देखां आपां आंख मींच नै गेलै चाल सकां हा कै नीं। औ विचार कर डोकरी नै कहयो-डोकरी देखां आपां आंख मीच नै कितरीक भौं आगै चाल सका हां। पग गैली पिछांणै कै नीं। सौ जठै बाळौ पड़ियौ हौं उठै आंख मूंदनै उणरै ऊपर कर निकळ गया। जद सिवजी कइयौ-गोरां ! देख लियौ कै भाग रौ खेल, दाणां-दाणां माथै दई री मोहर लागियोड़ी है। कण लिखियोड़ा नै मण कियां मिळसी ? सौ भाग अपरबळी छै। करम हीण खेती करै कै ओळा पड़े कै डांगर मरै। सौ कितरा इज राज कानून बणावौ बेईमान लोग पार नीं पड़ण दै। राज जे बेईमानी चार सौ बीसी, धोखाधड़ी, जाळसाजी मेटण नै अेक कायदौ बणासी तौ बेईमान सौ गळियां नकी काढ़ लेसी। पण आसानी संू धोखा, फरेबबाज पकड़ में नीं आसी । अेक सासू आपरा बेटा री बैरवानी नै कह्यौ-बीनणी, सुसराजी नै नणद सूं कहवा दै कै घाबा फाट गया सौ नूवां मौलावै। बीनणी पडुत्तर देवती थकी कइयौ - घाबा लता लीरक लीर हुयोड़ा कांई सुसराजी नै कोनी दीखै, फूटियोड़ी थोड़ी इज छै। सौ राज कांई जाणै कोनी कै भ्रस्टाचार रा अखाड़ा देस में कठै-कठै है। कियां लोग आपरा अड्डा जमायां बैठा है। कियां धोळे दिन धन्ना भगत बजार में लूट मचा मेली है। जद पछै राज नै कांई अन्याय, ज्यासती, बेजां हांण लाभां रौ कांई पतौ कौनी। जूनी जागीरां री ठौड़ पाछला बरसां में देस में नूवीं कितरी जागीरा बणी है। कितरां नै नुवां पट्टा इनायत हुवा है। कितरा नुवां ठिकाणां बंधिया है। कितरा मनसबां में कद-कद ईजाफा हुया है। जद तांई राज नुवां ताजीमदारां नै नी छेड़सी तद तांई तंदूरा का तीन तार इयां इज खुड़कीजिता, बजता रहसी। सगळी बातां चौडै चौगान पड़ी है। पछै देखतां थकां जे कोई आंधौ बणै तौ उणरौ कांई उपाव। सोयोड़ा नै तौ जगावणौ सोरौ है पण जागतोड़ा नै उठावणौ दोरौ है। आज देस में तोड़-फोड़, धरणां, हटनाळां, घेराव जे बेजा सवाळां माथै हुवै है तौ राज सजा देवै अर सही बातां माथै हुवै है तौ पछै पाणी पैली पाळ बांधै। मूंड फुड़ाई क्यूं करावै। बुराई नै बेईमानी री हाटां नै अेक पांत लेय नै ढवाय देवै। ऊगै सूरज झोड़ झपाड़, भाट भड़, लाय अलीतां, टूट फूट कद तांई देस में चालती रहसी। कितरी इज उड़दा बैगणियां महलायतां में झरोखां झुकाया बैठी है। आया गया सूं मुजरा करै है। इण वासतै कानून नै तोळा ऊंट री तांई टचरकौ देवतौ, खुड़ावतौ, लंघावतौ चालबा दियौ जासी जद तांई देस में फोड़ा पड़सी। निबळां नै न्याव नीं मिळसी। कानून नै चढ़ी रा बैंत री गत खाथौ दौड़ाया पार पडै़ तौ पडै़। कदै सजाऊं ऊंट गैतरा रै अधबीच नीं झैक जावै ?

जदि राज कहणी अर करणी में सांच बरतणी चावै अर नेक नीत सूं अजोगती बातां मेटणी चावै तौ कई बातां तौ अैड़ी है जिकी साफ हुवती पळ घड़ी लागै। सूरज री भांत चमकती नै काच री रीत पळकतै खोट कपट नै मिटाणै में जेज लागै इज कांई ? जिका काम सरकार पांण चालै अर जिका भ्रस्टाचार रा घोड़ळा री रासां राज रै हाथां में है उणां बैछाडू-टारड़ा नै कानून री डोरी खीचणै री इज ढील है। वै आपै इज राह पकड़ लेसी। नीतर तौ सांपां रै सांप पाहुणा नै जीभां री लपालोळ । सौ कांई। सौ सरकार नै जनता रै खातर अैड़ा अड्डा, अखाड़ा, मठां, अस्तलां माथै छापा नांख नै आ मेवासा नै तोड़ नांखणा चाहिजै। सरकारी कोथळी रा टक्का माथै घणा लोग बिना हाथ पग मारिया इज मूंछ फरकाई रा हजारां माथै हाथ साफ करै अर ठरका रै साथ आप री- चौधर कर रह्या इज है। आ मुफतिया नै पसीनां री कमाई माथै जीवणौ सिखाणौ सरकार अर पिरजा दोनां री सावचेती पर निरभर करै। दोनां नै ई अैड़ा बिगडैल आंकस, मद आया मैंगळा रै लारै सबका गड़दार लगायां इज पार पड़सी। इंयां मीठा गटका खावता कहवण सुणण सूं कदेई गैलै थोड़ा इज आवै। राज आं गंठकटां नै देखा कियां काबू में लेवै । नीतर तौ-

ना क्यूं लेणा देवणा, ना क्यूं खांण न पान।
सांपां री मिजलस्स में, जाझौ खरच जबान।।

भांडा री भैंसिया सोटां रै सुभाव हुवै है।


कुजड़बो शौक

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दिन भर ढोवै सर पर काठड़ी,
मजदुर पिसा ल्यायो घाल आँटड़ी
घर आंवतो ही ठेके पर गियो
थांकेलो उतारण न छककर पियो
मजदूरी उठही पीण म सारी गवां दी
उधारी भी आती बेल्ल्यां लिखा दी
ढलती रात म आयो दारु की पीक में
नैना टाबर बैठ्या चुल्हौ तापै आटा री उडीक में
पेट कि भूख पर भारी पड़, कुजड़बो शौक
काल ओज्यूं ध्यानगी नै देगो दारु म झोंक

लेखक : गजेन्द्रसिंह शेखावत

बिना सिर लड़ण वाळा अद्भुत वीर तोगोजी राठौड़

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मारवाड़ का इतिहास वीरों की गाथाओं से भरा पड़ा है। वीरता किसी कि बपौती नहीं रही। इतिहास गवाह है कि आम राजपूत से लेकर खास तक ने अप सरजमीं के लिए सर कटा दिया। लेकिन इसे विडम्बना ही कहेंगे कि इतिहास में ज्यादातर उन्हीं वीरों की स्थान मिल पाया जो किसी न किसी रूप में खास थे | आम व्यक्ति की वीरता इतिहास के पन्नों पर बेहद कम आईं। आई भी तो कुछ शब्दों तक सीमित| कुछ भी कहा जाए, लेकिन इन वीरों ने नाम के लिए वीरता नहीं दिखाई। ऐसा ही एक बेहतरीन उदाहरण दिया है मारवाड़ के आम राजपूत तोगाजी राठौड़ Togaji Rathore ने, जिसने शाहजहां को महज यह यकीन दिलाने के लिए अपना सिर कटवा दिया कि राजपूत अप आन-बान के लिए बिना सिर भी वीरता पूर्वक युद्ध लड़ सकता है और उसकी पत्नी सती हो जाती है। आज का राजपूत या और कोई भले ही इसे महज कपोल-कल्पना समझे, लेकिन राजपूतों का यही इतिहास रहा है कि वे सच्चाई के लिए मृत्यु को वरण करना ही अपना धर्म समझते थे |

वर्ष 1656 के आसपास का समय था | दिल्ली पर बादशाह शाहजहां व जोधपुर Jodhpur पर राजा गजसिंह प्रथम Maharaja Gaj Singh 1st का शासन था। एक दिन शाहजहां Shajahan का दरबार लगा हुआ था। सभी अमीर उमराव और खान अपनी अपनी जगह पर विराजित थे| उसी समय शाहजहां जे कहा कि अपने दरबार में खान 60 व उमराव 62 क्यों है? उन्होंने दरबारियों से कहा कि इसका जवाब तत्काल चाहिए | सभा में सन्नाटा पसर गया | सभी एक दूसरे को ताकने लगे। सबने अपना जवाब दिया, लेकिन बादशाह संतुष्ट नहीं हुआ । आखिरकार दक्षिण का सुबेदार मीरखां खड़ा हुआ और उसने कहा कि खानों से दो बातों में उमराव आगे है इस कारण दरबार में उनकी संख्या अधिक है। पहला, सिर कटने के बावजूद युद्ध करना और दूसरा युद्धभूमि में पति के वीरगति को प्राप्त होने पर पत्नी का सति होना। शाहजहां यह जवाब सुनने के बाद कुछ समय के लिए मौन रहा | अगले ही पल उसने कहा कि ये दोनों नजारे वह अपनी आंखों से देखना चाहता है | इसके लिए उसने छह माह का समय निर्धारित किया । साथ ही उसने यह भी आदेश दिया कि दोनों बातें छह माह के भीतर साबित नहीं हुई तो मीरखां का कत्ल करवा दिया जाएगा और उमराव की संख्या कम कर दी जाएगी। इस समय दरबार में मौजूद जोधपुर के महाराजा गजसिंह जी को यह बात अखर गई| उन्होंने मीरखां से इस काम के लिए मदद करने का आश्वासन दिया |

मीरखां चार महीने तक ररजवाड़ों में घूमे, लेकिन ऐसा वीर सामने नहीं आया जो बिना किसी युद्ध महज शाहजहां के सामने सिर कटने के बाद भी लड़े और उसकी पत्नी सति हो। आखिरकार मीरखां जोधपुर महाराजा गजसिंह जी से आ कर मिले । महाराजा ने तत्काल उमरावों की सभा बुलाई| महाराजा ने जब शाहजहां की बात बताई तो सभा में सन्नाटा छा गया । महाराजा की इस बात पर कोई आगे नहीं आया । इस पर महाराजा गजसिंह जी की आंखें लाल हो गई और भुजाएं फड़कजे लगी। उन्होंने गरजना के साथ कहा कि आज मेरे वीरों में कायरता आ गई है। उन्होंने कहा कि आप में से कोई तैयार नहीं है तो यह काम में स्वयं करूँगा। महाराजा इससे आगे कुछ बोलते कि उससे पहले 18 साल का एक जवान उठकर खड़ा हुआ। उसने महाराजा को खम्माघणी करते हुए कहा कि हुकुम मेरे रहते आपकी बारी कैसे आएगी| बोलता-बोलता रुका तो महाराज ने इसका कारण पूछ लिया| उस जवान युवक ने कहा कि अन्नदाता हुकुम सिर कटने के बाद भी लड़ तो लूँगा, लेकिन पीछे सति होने वाली कोई नहीं है अर्थात उसकी शादी नहीं हो रखी है| यह वीरता दिखाने वाला था तोगा राठौड़| महाराजा इस विचार में डूब गए कि लड़ने वाला तो तैयार हो गया, लेकिन सति होने की परीक्षा कौन दे | महाराजा ने सभा में दूसरा बेड़ा घुमाया कि कोई राजपूत इस युवक से अप बेटी का विवाह सति होने के लिए करे| तभी एक भाटी सिरदार इसके लिए राजी हो गए।

भाटी कुल री रीत, आ आजाद सूं आवती ।
करण काज कुल कीत, भटियाणी होवे सती।


महाराजा जे अच्छा मुहूर्त दिखवा कर तोगा राठौड़ का विवाह करवाया । विवाह के बाद तोगाजी ने अपनी पत्नी के डेरे में जाने से इनकार कर दिया | वे बोले कि उनसे तो स्वर्ग में ही मिलाप करूँगा । उधर, मीरखां भी इस वीर जोड़े की वीरता के दिवाने हो गये | उन्होंने तोगा राठौड़ का वंश बढ़ाने की सोच कर शाहजहां से छह माह की मोहलत बढ़वाने का विचार किया। ज्योंहि यह बात नव दुल्हन को पता चली तो उसने अपने पति तोगोजी की सूचना भिजवाई कि जिस उद्देश्य को लेकर दोनों का विवाह हुआ है वह पूरा किये बिना वे ढंग से श्वास भी नहीं ले पाएंगे| इस कारण शीघ्र ही शाहजहाँ के सामने जाने की तैयारी की जाए| महाराजा गजसिंह व मीरखां ने शाहजहाँ को सूचना भिजवा दी|

समाचार मिलते ही शाहजहां जे अपने दो बहादूर जवाजों को तोणोजी से लड़ने के लिए तेयार किया । शाहजहां ने अपने दोनों जवानों को सिखाया कि तोगा व उसके साथियों की पहले दिन भोज दिया जायेगा | जब वे लोग भोजन करने बैठेंगे उस वक्त तोगे का सिर काट देना ताकि वह खड़ा ही नहीं हो सके। उधर, तोगाजी राठौड़ आगरा पहुंच गए। बादशाह ने उन्हें दावत का न्योता भिजवाया। तोगाजी अपने साथियों के साथ किले पहुँच गए। वहां उनका सम्मान किया गया। मान-मनुहारें हुई। बादशाह की रणनीति के तहत एक जवान तोगाजी राठौड़ के ईद-गीर्द चक्कर लगाने लगा । तोगोजी को धोखा होने का संदेह ही गया। उन्होंने अपने पास बैठे एक राजपूत सरदार से कहा कि उन्हें कुछ गड़बड़ लग रही है इस कारण उनके आसपास घूम रहे व्यक्ति को आप संभाल लेना ओर उनका भी सिर काट देना। उसके बाद वह अपना काम कर देगा । दूसरी तरफ, तोगोजी की पत्नी भी सती होने के लिए सजधज कर तैयार हो गई । इतने में दरीखाने से चीखने-चिल्लाने की आवाजें आने लगी कि तोगाजी ने एक व्यक्ति को मार दिया ओर पास में खड़े किसी व्यक्ति ने तोगाजी का सिर धड़ से अलग कर दिया। तोगाजी बिना सिर तलवार लेकर मुस्लिम सेना पर टूट पड़े। तोगाजी के इस करतब पर ढोल-नणाड़े बजने लगे। चारणों ने वीर रस के दूहे शुरू किए। ढोली व ढाढ़ी सोरठिया दूहा बोलने लगे। तोगोजी की तलवार रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। बादशाह के दरीखाने में हाहाकार मच गया। बादशाह दौड़ते हुए रणक्षेत्र में पहुंचे। दरबार में खड़े राजपूत सिरदारों ने तोगोजी ओर भटियाणी जी की जयकारों से आसमाज गूंजा दिया तोगोजी की वरीता देखकर बादशाह जे महाराजा गजसिंह जी के पास माफीनामा भिजवाया और इस वीर को रोकने की तरकीब पूछी। कहते हैं कि ब्राह्मण से तोगोजी के शरीर पर गुली का छिंटा फिंकवाया तब जाकर तोगोजी की तलवार शांत हुई और धड़ नीचे गिरा। उधर, भटियाणी सोलह श्रृंगार कर तैयार बैठी थी। जमना जदी के किनारे चंदन कि चिता चुनवाई गई। तोगाजी का धड़ व सिर गोदी में लेकर भटियाणीजी राम का नाम लेते हुए चिता मेंप्रवेश कर गई|

साभार : जाहरसिंह जसोल द्वारा रचित राजस्थान री बांता पुस्तक से लेकर घम्माघणी पत्रिका द्वारा हिंदी में अनुवादित


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जब राजपुतानियों के हाथों में तलवारें देख भागा था मेजर फोरेस्टर

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सन 1803 में राजस्थान में जयपुर रियासत की ईस्ट इंडिया कम्पनी से मैत्रिक संधि व कुछ अन्य रियासतों द्वारा भी मराठों और पिंडारियों की लूट खसोट से तंग राजस्थान की रियासतों ने सन 1818ई में शांति की चाहत में अंग्रेजों से संधियां की| शेखावाटी के अर्ध-स्वतंत्र शासकों से भी अंग्रेजों ने जयपुर के माध्यम से संधि की कोशिशें की| लेकिन स्वतंत्र जीवन जीने के आदि शेखावाटी के शासकों पर इन संधियों की आड़ में शेखावाटी में अंग्रेजों का प्रवेश और हस्तक्षेप करने के चलते इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा| अंग्रेजों के दखल की नीति के चलते शेखावाटी के छोटे-छोटे शासकों ने अपने सामर्थ्य अनुसार अंग्रेजों का विरोध किया और अग्रेजों के साथ खूनी लड़ाईयां भी लड़ी| बिसाऊ के ठाकुर श्यामसिंह व मंडावा के ठाकुर ज्ञान सिंह अंग्रेजों की खिलाफत करने वाले शेखावाटी के प्रथम व्यक्ति थे| इन दोनों ठाकुरों ने वि.सं.1868 में पंजाब के महाराजा रणजीतसिंह की सहातार्थ अंग्रेजों के खिलाफ अपनी सेनाएं भेजी थी|

अमर सिंह शेखावत (भोजराज जी का) ने बहल पर अधिकार कर लिया था, उसकी मृत्यु के बाद कानसिंह ने वहां की गद्दी संभाली और बहल पर अपना अधिकार जमाये रखने के लिए ददरेवा के सूरजमल राठौड़, श्यामसिंह बिसाऊ, संपत सिंह शेखावत, आदि के साथ अपनी स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के साथ संघर्ष जारी रखा, प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार इनके नेतृत्व में तीन हजार भोजराज जी का शाखा के शेखावत अंग्रेजों से लड़ने पहुँच गए थे| इनके साथ ही शेखावाटी के विभिन्न शासकों अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में उतर आये थे, जो अंग्रेज व अंग्रेजों से संधि किये शासकों द्वारा शासित प्रदेशों में अक्सर धावे डालकर लूटपाट करते| ये क्रांतिकारी अक्सर अंग्रेजों की सैनिक छावनियां लूटकर अंग्रेज सत्ता को चुनौती देते| अंग्रेजों ने इनकी गतिविधियों की अंकुश लगाने के लिए राजस्थान की देशी रियासतों के माध्यम से भसक कोशिश की पर ये क्रांतिकारी जयपुर, बीकानेर, जोधपुर किसी भी रियासत के वश में नहीं थे|

आखिर अंग्रेजों ने शेखावाटी के इन क्रांतिवीरों के दमन के लिए जिन्हें अंग्रेज लूटेरे व डाकू कहते थे, शेखावाटी ब्रिगेड की स्थापना की| जिसका मुख्यालय झुंझनु रखा गया और मेजर फोरेस्टर को इसका नेतृत्त्व सौंपा गया| मेजर फोरेस्टर ने शेखावाटी के सीमावर्ती उन किलों को तोड़ना शुरू किया, जिनमें ये क्रांतिकारी अक्सर छुपने के लिए इस्तेमाल करते थे| मेजर की इस कार्यवाही में अक्सर शेखावाटी के क्रांतिकारियों की शेखावाटी ब्रिगेड से झड़पें हो जाया करती थी| इस ब्रिगेड में भर्ती हुये शेखावाटी के ठाकुर डूंगरसिंह व जवाहर सिंह, पटोदा ने ब्रिगेड के ऊंट-घोड़े व हथियार लेकर विद्रोह कर दिया था| गुडा के क्रांतिकारी दुल्हेसिंह शेखावत शेखावाटी ब्रिगेड के साथ एक झड़प में शहीद हो गए| मेजर फोरेस्टर ने उनका सिर कटवाकर झुंझनु में लटका दिया, ताकि अन्य क्रान्ति की चाह रखने वाले भयभीत हो सकें| लेकिन एक साहसी क्रांतिकारी खांगा मीणा रात में उनका सिर उतार लाया और मेजर फोरेस्टर की सेना देखती रह गई|

मेजर फोरेस्टर ने गुमानसिंह, शेखावत, टाई जो वि.सं. 1890 में भोड़की चले गए थे, के प्रपोत्र रामसिंह को सजा देने के लिए भोड़की गढ़ को तोड़ने के लिए तोपखाने सहित आक्रमण किया| इससे पूर्व जी रामसिंह तथा उनके भाई बेटे पकड़े जा चुके थे| अत: मेजर फोरेस्टर का मुकाबला करने के लिए रामसिंह की ठकुरानी ने तैयारी की| ठकुरानी के आव्हान पर भोड़की की सभी राजपुतानियाँ मरने के लिए तैयारी हो गई और भोड़की गढ़ में तलवारें लेकर मुकाबले को आ डटी|

राजपुतानियों के हाथों में नंगी तलवारें और युद्ध कर वीरता दिखाने के उत्साह व अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान देने की ललक देख मेजर फोरेस्टर ने बिना गढ़ तोड़े ही अपनी सेना को वहां से हटा लिया| इस तरह राजपूत नारियों के साहस, दृढ़ता के आगे अपनी कठोरता के लिए इतिहास में प्रसिद्ध मेजर फोरेस्टर को भी युद्ध का मैदान छोड़ना पड़ा|

राणा प्रताप और मानसिंह के बीच भोजन विवाद का सच

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महाराणा प्रताप और कुंवर मानसिंह के मध्य राणा का मानसिंह के साथ भोजन ना करने के बारे में कई कहानियां इतिहास में प्रचलित है| इन कहानियों के अनुसार जब मानसिंह महाराणा के पास उदयपुर आया तब महाराणा प्रताप ने उनके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करते हुये आदर किया और मानसिंह के सम्मान हेतु भोज का आयोजन किया, पर महाराणा प्रताप मानसिंह के साथ स्वयं भोजन करने नहीं आये और कुंवर अमरसिंह को मानसिंह के साथ भोजन करने हेतु भेज दिया| कहानियों के अनुसार राणा का इस तरह साथ भोजन ना करना दोनों के बीच वैम्स्य का कारण बना और मानसिंह रुष्ट होकर चला गया| इसी तरह की कहानियों को कुछ ओर आगे बढाते हुये कई लेखकों ने यहाँ तक लिख दिया कि मानसिंह को जबाब मिला कि तुर्कों को बहन-बेटियां ब्याहने वालों के साथ राणाजी भोजन नहीं करते| कई लेखकों ने इस कहानी को ओर आगे बढाया और लिखा कि मानसिंह के चले जाने के बाद राणा ने वह भोजन कुत्तों को खिलाया और उस स्थल की जगह खुदवाकर वहां गंगाजल का छिड़काव कराया|

राजस्थान के पहले इतिहासकार मुंहता नैणसी ने अपनी ख्यात में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा-"लौटता हुआ मानसिंह डूंगरपुर आया तो वहां के रावल सहसमल ने उसका अथिति सत्कार किया| वहां से वह सलूम्बर पहुंचा जहाँ रावत रत्न सिंह के पुत्र रावत खंगार ने मेहमानदारी की| राणाजी उस वक्त गोगुन्दे में थे| रावत खंगार (चुण्डावत) ने कुंवर मानसिंह की सब रीती भांति और रहन-सहन का निरिक्षण कर जाना कि इसकी प्रकृति बंधन रहित व स्वार्थी है, तब रावत ने राणाजी को कहलवाया कि यह मनुष्य मिलने योग्य नहीं है, परन्तु राणा ने उसकी बात न मानी| गोगुन्दे आकर मानसिंह से मिले और भोजन दिया| जीमने के समय विरस हुआ|"

इस तरह राजस्थान के इस प्रसिद्ध और प्रथम इतिहासकार ने इस घटना पर सिर्फ इतना ही लिखा कि भोजन के समय कोई मतभेद हुये| नैणसी ने राणा व मानसिंह के बीच हुये किसी भी तरह के संवाद की चर्चा नहीं की| नैणसी के अनुसार यह घटना गोगुन्दे में घटी जबकि आधुनिक इतिहासकार यह घटना उदयपुर में होने का जिक्र करते है|

इस कहानी में आधुनिक लेखकों ने जब स्थान तक सही नहीं लिखा तो उनके द्वारा लिखी घटना में कितनी सच्चाई होगी समझा जा सकता है| हालाँकि मैं इस बात से इन्कार नहीं करता कि मानसिंह व राणा की इस मुलाकात में कोई विवाद नहीं हुआ हो| यदि विवाद ही नहीं होता तो हल्दीघाटी का युद्ध ही नहीं हुआ होता, मानसिंह के गोगुन्दा प्रवास के दौरान राणा से विवाद हुआ यह सत्य है, पर विवाद किस कारण हुआ वह शोध का विषय है, क्योंकि मानसिंह के साथ राणा द्वारा भोजन ना करने का जो कारण बताते हुए कहानियां घड़ी गई वे सब काल्पनिक है|
यदि प्रोटोकोल या राजपूत संस्कृति के अनुरूप विवाद के इस कारण पर नजर डाली जाय तो यह कारण बचकाना लगेगा और इस तरह की कहानियां अपने आप काल्पनिक साबित हो जायेगी| क्योंकि प्रोटोकोल के अनुसार राजा के साथ राजा, राजकुमार के साथ राजकुमार, प्रधानमंत्री के साथ प्रधानमंत्री, मंत्री के साथ मंत्री भोजन करते है| मानसिंह उस वक्त राजा नहीं, राजकुमार थे, अत: प्रोटोकोल के अनुरूप उसके साथ भोजन राणा प्रताप नहीं, उनके राजकुमार अमरसिंह ही करते| साथ ही हम राजपूत संस्कृति के अनुसार इस घटना पर विचार करें तब भी मानसिंह राणा प्रताप द्वारा उनके साथ भोजन करने की अपेक्षा नहीं कर सकते थे, क्योंकि राजपूत संस्कृति में वैदिक काल से ही बराबरी के आधार पर साथ बैठकर भोजन किये जाने की परम्परा रही है| मानसिंह कुंवर पद पर थे, उनके पिता भगवानदास जीवित थे, ऐसी दशा में उनके साथ राजपूत परम्परा अनुसार कुंवर अमरसिंह को ही भोजन करना था ना कि महाराणा को| हाँ यदि भगवनदास वहां होते तब उनके साथ राणा स्वयं भोजन करते| अत: राजपूत संस्कृति और परम्परा अनुसार मानसिंह राणा के साथ बैठकर भोजन करने की अपेक्षा कैसे कर सकते थे?

मुझे तो उन इतिहासकारों की बुद्धि पर तरस आता है जिन्होंने बिना राजपूत संस्कृति, परम्पराओं व प्रोटोकोल के नियम को जाने इस तरह की काल्पनिक कहानियों पर भरोसा कर अपनी कलम घिसते रहे| मुझे उन क्षत्रिय युवाओं की मानसिकता पर भी तरस आता है जिन्होंने ऐसे इतिहासकारों द्वारा लिखित, अनुमोदित कहानियों को पढ़कर उन पर विश्वास कर लिया, जबकि वे खुद आज भी उस राजपूत संस्कृति और परम्परा का स्वयं प्रत्यक्ष निर्वाह कर रहे है| राजपूत परिवारों में आज भी ठाकुर के साथ ठाकुर, कुंवर के साथ कुंवर साथ बैठकर भोजन करते है| पर जब वे मानसिंह व राणा के मध्य विवाद पर चर्चा करते है तो इन काल्पनिक कहानियों को मान लेते है|

इसी घटना के सम्बन्ध में प्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा अपनी पुस्तक "उदयपुर का इतिहास" में "इकबालनामा जहाँगीरी" जिसका कर्ता मौतामिदखां था द्वारा लिखा उदृत करते है-"कुंवर मानसिंह इसी दरबार का तैयार किया हुआ खास बहादुर आदमी है और जो फर्जन्द के ख़िताब से सम्मानित हो चुका है, अजमेर से कई मुसलमान और हिन्दू सरदारों के साथ राणा को पराजित करने के लिए भेजा गया| इसको भेजने में बादशाह का यही अभिप्राय था कि वह राणा की ही जाति का है और उसके बाप दादे हमारे अधीन होने से पहले राणा के अधीन और खिराजगुजर रहे है, इसको भेजने से संभव है कि राणा इसे अपने सामने तुच्छ और अपना अधीनस्थ समझकर लज्जा और अपनी प्रतिष्ठा के ख्याल से लड़ाई में सामने आ जाये और युद्ध में मारा जाय|"

ओझा इस कथन को ठीक मानते हुए लिखते है- क्योंकि आंबेर का राज्य महाराणा कुम्भा ने अपने अधीन किया था, पृथ्वीराज (आमेर का राजा) राणा सांगा के सैन्य में था और भारमल का पुत्र भगवानदास भी पहले महाराणा उदयसिंह की सेवा में रहा था| जब से राजा भारमल ने अकबर की सेवा स्वीकार की, तब से आंबेर वालों ने मेवाड़ की अधीनता छोड़ दी|

राजपूत संस्कृति, परम्परा, प्रोटोकोल आदि की बात के साथ मौतामिदखां और ओझा जी की बात पर भी विचार किया जाये तो यही समझ आयेगा कि मानसिंह के पिता तक जिस मेवाड़ की सेवा-चाकरी में थे, उस मेवाड़ के महाराणा का अपने साथ भोजन करने की अपेक्षा मानसिंह जैसा व्यक्ति कैसे कर सकता था, और महाराणा भी अपने अधीनस्थ कार्य कर चुके किसी व्यक्ति के पुत्र के साथ भोजन करने की कैसे सोच सकते थे| यदि महाराणा का मानसिंह के साथ भोजन नहीं करने के कारण पर भी विचार किया जाए तो सबसे बड़ा कारण यही होगा कि आमेर वाले कभी उनकी नौकरी करते थे अत: वे भले किसी मजबूत राज्य के साथ हों पर उनका कद इतना बड़ा कतई नहीं हो सकता था कि मेवाड़ के महाराणा उनके साथ भोजन करे| साथ ही क्षात्रधर्म का पालन करने वाले महाराणा प्रताप जैसे योद्धा से कोई भी इस तरह की अपेक्षा नहीं कर सकता कि पहले वे किसी के सम्मान में भोज का आयोजन करे और बाद में उस भोज्य सामग्री को कुत्तों को खाने को दे या तालाब में डलवाकर पानी दूषित करे व स्थल को खुदवाकर वहां गंगाजल का छिड़काव करे|

यदि महाराणा के मन में अकबर के साथ संधि करने वाले आमेर के शासकों व मानसिंह के प्रति मन में इतनी ही नफरत होती तो वे ना मानसिंह को आतिथ्य प्रदान करते और ना ही उनके सम्मान में किसी तरह का भोज आयोजित करते| बल्कि वे मानसिंह आदि को मेवाड़ के रास्ते अन्यत्र कहीं आने-जाने हेतु मेवाड़ भूमि के प्रयोग की इजाजत भी नहीं देते|

अत: यह साफ़ है कि महाराणा व मानसिंह के मध्य विवाद का कारण साथ भोजन नहीं करना नहीं है, विवाद का कारण कोई दूसरा ही है, जो शोध का विषय है या फिर मानसिंह द्वारा महाराणा को अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए राजी करते समय दी गई दलीलों पर विवाद या महाराणा द्वारा अधीनता की बात स्वीकार नहीं करने पर मानसिंह द्वारा दी गई किसी अप्रत्यक्ष चेतावनी या अधीनता की बात पर महाराणा जैसे स्वाभिमानी योद्धा का उत्तेजित हो जाना, विवाद का कारण हो सकता है|

पृथ्वीराज चौहान : महानतम राजपूत शासक

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लेखक : सचिन सिंह गौड़, संपादक- "सिंह गर्जना"

भारत वर्ष के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) को उनकी जयंती पर समर्पित खोज परक लेखों की एक विशेष श्रंखला जिसका उद्देश्य पृथ्वीराज चौहान के विराट और महान व्यक्तित्व को सही ढंग से प्रस्तुत करना है।


पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास का एक ऐसा चेहरा है जिसके साथ वामपंथी और धर्मनिरपेक्ष इतिहासकारों ने सबसे ज्यादा ज्यादती की है। पृथ्वीराज जैसे महान और निर्भीक योद्धा, स्वाभिमानी युगपुरुष, अंतिम हिन्दू सम्राट, तत्कालीन भारतवर्ष के सबसे शक्तिशाली एवं प्रतापी राजा को इतिहासकारों ने इतिहास में बमुश्किल आधा पन्ना दिया है और उसमे भी मोहम्मद गौरी के हाथों हुयी उसकी हार को ज्यादा प्रमुखता दी गयी है।

विसंगतियों से भरे पडे भारतीय इतिहास में विदेशी, विधर्मी, आततायी, मलेच्छ अकबर महान हो गया और पृथ्वीराज गौण हो गया। विडंबना देखिये आज पृथ्वीराज पर एक भी प्रामाणिक पुस्तक उपलब्ध नहीं है। महान पृथ्वीराज का इतिहास आज किंवदंतियों से भरा पड़ा है। जितने मुँह उतनी बात। जितने लेखक उतने प्रसंग। तमाम लेखकों ने सुनी सुनाई बातों या पुराने लेखकों को पढ़कर बिना किसी सटीक शोध के पृथ्वीराज चौहान पर पुस्तकें लिखी हैं। जन सामान्य में पृथ्वीराज चौहान के बारे में उपलब्ध अधिकांश जानकारी या तो भ्रामक है या गलत। आधी अधूरी जानकारी के साथ ही हम पृथ्वीराज चौहान जैसे विशाल व्यक्तित्व, अंतिम हिन्दू सम्राट, पिछले 1000 साल के सबसे प्रभावशाली, विस्तारवादी, महत्वकांक्षी, महान राजपूत योद्धा का आकलन करते हैं जो सर्वथा अनुचित है।

पृथ्वीराज चौहान के जन्म से लेकर मरण तक इतिहास में कुछ भी प्रमाणित नहीं मिलता। विराट भारत वर्ष के उससे भी विराट इतिहास का पृथ्वीराज एक अकेला ऐसा महा नायक जिसके जीवन की हर छोटी बड़ी गाथा के साथ तमाम सच्ची झूटी किद्वदन्तिया और कहानियां जुडी हुयी हैं। इस नायक की जन्म तिथि 1149 से लेकर 65, 66, 69 तक मिलती है। इसी तरह मरने को लेकर भी तमाम कपोल कल्पित कल्पनायें हैं। कोई कहता है कि अजमेर में मृत्यु हुयी तो कोई कहता है अफ़ग़ानिस्तान में, कोई कहता है मरने से पहले पृथ्वीराज ने मोहम्मद गोरी को मार दिया था तो कोई कहता है गोरी पृथ्वीराज के बाद भी लम्बे समय तक जीवित रहा। पृथ्वीराज और मोहम्मद गोरी के युद्धों की संख्या से लेकर उनके युद्धों के परिणामों तक, पृथ्वीराज को दिल्ली की गद्दी मिलने से लेकर अनंगपाल तोमर या तोमरों से उसके रिश्तों तक सब जगह भ्रान्ति है । यही नहीं पृथ्वीराज और जयचंद के संबंधों की बात करें या पृथ्वीराज-संयोगिता प्रकरण की कहीं भी कुछ भी प्रामाणिक नहीं। पृथ्वीराज के विवाह से लेकर उसकी पत्नियों तथा प्रेम प्रसंगों तक, हर विषय पर दुविधा और भ्रान्ति मिलती है। पृथ्वीराज से जुड़े तमाम किस्से कहानियां जो आज अत्यंत प्रासंगिक और सत्य लगते हैं इतिहास की कसौटी पर कसने और शोध करने पर उनकी प्रमाणिकता ही खतरे में पड़ जाती है। इनमे सबसे प्रमुख है पृथ्वीराज और जैचंद के सम्बन्ध। इतिहास में इस बात के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलते कि गौरी को जैचंद ने बुलाया था या उसने पृथ्वीराज के खिलाफ गौरी का साथ दिया था क्यूंकि किंवदंतियों तथा चारणों के इतिहास में इस बात की प्रमुख वजह पृथ्वीराज द्वारा संयोगिता का बलात हरण करना बताया गया है जबकि इतिहास में कहीं भी प्रामाणिक तौर पर संयोगिता का जिक्र ही नहीं मिलता। जब संयोगिता ही संदिग्ध है तो संयोगिता की वजह से दुश्मनी कैसे हो सकती है।

हाँ लेकिन इतना तय है कि पृथ्वीराज और जैचंद के सम्बन्ध मधुर नहीं थे और शायद अत्यंत कटु थे। लेकिन इसकी वजह उनकी आपसी प्रतिस्पृधा तथा महत्वकांक्षाओं का टकराव था। यह बात दीगर है कि पृथ्वीराज चौहान उस समय का सबसे शक्तिशाली एवं महत्वकांक्षी राजा था। जिस तेजी से वो सबका कुचलता हुआ हराता हुआ अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहा था वो तत्कालीन भारतवर्ष के प्रत्येक राजवंश के लिये खतरे की घंण्टी थी। पृथ्वीराज तत्कालीन उत्तर और पश्चिम भारत के सभी छोटे बड़े राजाओं को हरा चूका था इनमे सबसे प्रमुख गुजरात के भीमदेव सोलंकी तथा उत्त्तर प्रदेश के महोबा के चंदेल राजा परिमर्दिदेव को हरा चूका था जिसके पास बनाफर वंश के आल्हा उदल जैसे प्रख्यात सेनापति थे। मोहम्मद गोरी के कई आक्रमणों को उसके सामंत निष्फल कर चुके थे।

ये पृथ्वीराज चौहान ही था जिसके घोषित राज्य से बड़ा उसका अघोषित राज्य था। जिसका प्रभाव आधे से ज्यादा हिंदुस्तान में था और जिसकी धमक फारस की खाड़ी से लेकर ईरान तक थी। जो 12 शताब्दी के अंतिम पड़ाव के भारत वर्ष का सबसे शक्तिशाली सम्राट और प्रख्यात योद्धा था जो जम्मू और पंजाब को भी जीत चुका था। गुजरात के सोलंकियों, उज्जैन के परमारों तथा महोबा के चन्देलों को हराने के बाद बड़े राजाओं तथा राजवंशों में सिर्फ कन्नौज के गहड़वाल ही बचे थे जिन्हे चौहान को हराना था और उस समय की परिस्थितियों का अवलोकन करने तथा पृथ्वीराज के शौर्य का अवलोकन करने के बाद यह कहना कतई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पृथ्वीराज चौहान, जैचंद गहड़वाल को आसानी से हरा देता।

राजपूत काल के प्रारम्भ (7 वीं सदी ) से राजतन्त्र की समाप्ति तक (1947 ) पूरे राजपूत इतिहास में कोई भी राजपूत राजा पृथ्वीराज के समक्ष शक्तिशाली, महत्वकांक्षी नहीं दिखता है। अधिकांश राजा या तो अपने राज्य के लिये मुसलमानों से लड़ते रहे या उनके पिछलग्गू बने रहे। एक भी राजा ऐसा पैदा नहीं हुआ जिसने इतनी महत्वकांक्षा दिखायी हो इतना सामर्थ दिखाया हो जो आगे बढ़कर किसी इस्लामिक आक्रांता को ललकार सका हो, चुनौती दे सका हो, जिसने कभी दिल्ली के शासन पर बैठने की इच्छा रखी हो (अपवादस्वरूप राणा सांगा का नाम ले सकते हैं)।

यदि पृथ्वीराज चौहान को युगपुरुष कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। पृथ्वीराज दो युगों के बीच का अहम केंद्र बिंदु है। हम इतिहास को दो भागों में बाँट सकते हैं एक पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु से पहले का एक उसकी मृत्यु के बाद का। सन 712 (प्रथम मुस्लिम आक्रमण ) से लेकर 1192 (पृथ्वीराज की हार) तक का युग है राजपूतों के मुस्लिमों से संघर्ष का उन्हें हराने का उनसे जमकर मुक़ाबला करने का उनके प्रत्येक हमले को विफल बनाने का। जबकि 1192 में पृथ्वीराज की हार के बाद का युग है राजपूतों का मुसलमानों के मातहत उनका सामंत बनकर अपना राज्य बचाने तथा उनको देश की सत्ता सौंप उन्हें भारत का भाग्य विधाता बनाने का। पृथ्वीराज चौहान की हार सिर्फ पृथ्वीराज की हार नहीं थी बल्कि पूरे राजपूत समाज की, राजपूत स्वाभिमान की, सम्पूर्ण सनातन धर्म की, विश्व गुरु भारत वर्ष की तथा भारतीयता की हार थी। इस एक हार ने हमारा इतिहास सदा सदा के लिये बदल दिया। 800 साल में एक राजा पैदा ना हुआ जिसने विदेशी-विधर्मियों को देश से बाहर खदेड़ने का प्रयास किया हो। जिसने सम्पूर्ण भारत की सत्ता का केंद्र बनने तथा उसे अपने हाथ में लेने का प्रयास किया हो।

अत्यंत महत्वपूर्ण तथा विचारणीय प्रशन है क्या होता यदि उस युद्ध में पृथ्वीराज की हार नहीं होती बल्कि जीत होती और मोहम्मद गोरी को मार दिया जाता ? अगले अंक में इस प्रशन का उत्तर देने के साथ पृथ्वीराज चौहान के व्यक्तित्व तथा युद्धों की चर्चा ।


लोकदेवी-सूंक

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रिश्वत पर राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री सौभाग्यसिंह जी शेखावत का राजस्थानी भाषा में लेख---

‘पूजापौ’, ‘नजराणौ’ अर ‘सूंक’ (रिश्वत, bribe) सबद देखण में तौ न्यारा-निरवाळा है। पण ब्यौवार में अै तीनूं ही अेक सारखा है। ‘पूजापौ’, देई-देवतावां रै चढीजै। पूजापै नै इज सीरणी प्रसादी, बळ, भोग नै चढावौ कैवै। देई-देवतावां री महर खातर आस्तिक लोग उणां री बोलमां करै, मनवांछित फळ-लबधी रै पाछै उणा रै देवथांन तांई पाळा जावै, जात-जडूला चढावै, प्रसादी सवामणी करै, झारी में नकद रुपिया घालै अर मंगळ गीत गवाया जावै।

‘नजराणौ’ मोटा हाकम, दिवाांण, ओहदादारां रै जिकी चीजां समरपीजै उण नै कैवै। नजरांणै में रोकड़ी रुपिया, घाबा-लतां रा थान, घी, गुड़, गोवूं सूं लेय नै गाय, भैंस पसुवां तक री गिणती हुवै। अंगरेजां रै जमानै में बडा-बडा सेठ साहूकार, राजा जागीरदार उणांरी क्रपा वासतै फळ-फूलां री छाबां भेजिया करता। आज भी औ रिवाज चालू है। राज काज में जिक मिनखां रौ ‘हांम पाव’ हुवै, उणां रै नजराणौ पेस हुवै है।

‘सूंक’ तौ लोकतंतर री लाडली देवी है। छोटा नै लुंठा तूं लूंठा सूंक रौ चरणाम्रत लेय नै आप रौ जीवण-जळम सफळ करै है। राज-दरबार, कचेड़ी-कोटवाळी पंचपंचायत सगळी ठोडां सूंक री देवळियां थरपीजियोड़ी है। सूंकदेवी रा पुजारा-भोपा, सेवग नै कामेती अेक नै ढूंढतां पचास मिळे है। सूंक री ओट लिया संू मिनख रा सगळा काट झड़ जावै नै सारी पीड़ मिट जावै।

इण भांत पूजापौ, नजराणौ नै ‘सूंक’ तिरेपनवां भैंरू, दसवीं दुर्गा, पैंसठवीं जोगणी नै देवाधिपत देव रौ नूंवौ औतार गिणीजै है। इण जुगावतार री आराधणा सूं पांगळी लाल-किला में पूग जावै, बजर-मूढ़ रेडियै माथै बोल आवै नै डरपस्याळियौ वीर पद पा जावै। इण री महिमा रौ पार पावणौ मेह री छांटां री गिणती करणै सूं भी दोरौ है। गुणां री खांण इण महामाया रै चरित रौ बखाण नीं काळीदास रा ग्रन्थां में मिळै, न वेदव्यास रा महाभारथ में खळलै। बालमीक, तुळसी नै आंधळौ कोई भी सूंकदेवी रै प्रवाड़ां तांई नीं पूग पायौ।

देखण में ‘पूजापौ’ ‘नजराणौ’ नै सूंक तीनूं जोड़ला मां-जाया भाई बैंन है। अेक इज उदर सूं जलमियोड़ा एक इज पालणै झूलियोड़ा, एक ही आंगणै रमयोड़ा नै एक ही गरु-परम्परा नै पौसाळ रा चेला रहियोड़ा है। रूस नै चीण आपसरी में एक दूजा सूं रूसै पाकिस्तान नै बंगला देस वाळा एक दूजा नै देखियां बळनै आकतड़ी हुय जावै, पण पूजापैं, नजराणै अर सूंक रौ संप निराळौ है। लड़णौ-झगड़णौ तौ आंतरै रह्यौ, कदैई आपसरी में बोली-चाली, कही-सुणी भी हुयोड़ी कोनी सुणी। जैड़ी प्रीत न द्वापर में रैयी अर नै त्रेता जुग में।

जिण तरै मिनखां रौ एक सारखौ उणियारी नीं मिलै, उणी भांत सुभाव में भी आकास-पाताळ रौ आंतरौ मिलै। जद मिनखां री रुचि में मेळ नीं तौ फेर प्रकत देवां में मेळ किण भांत हुय सकै। न्यारा देव, न्यारा पूजापा, न्यारा पुजारी नै न्यारा-न्यारा पूजणिया।

आदपूज बिघनटाळ बिनायक मोदक-प्रेमी है। चौसठ जोगणियां री धिराणी चंडका मांस नै दारू सूं रीझै है। बावन बीरां रा आगीवांण काळी मैरू बाकळां सूं राजी हुवै। रामदूत अतुल बळधाम हड़मान रै सवा सेर रै बाटां रौ भोग चढायां कारज सिध हुवै सिवजी आक धतूरा सूं ही रीझै। गोरज्या रै ढोकळा रौ भोग लागै। जूझारां भौमियां रै नारेल चढीजै। जद देवता ई चढावा सूं राजी हवदै तौ मिनखां रै सूंक चढै, इण में अणहूंती कांई ? सूंक सूं कुंण राजी नीं हुवै ?

लोकतंतर में जनता राजा बाजै। पिरजा रा बणायोड़ा ठावा मिनखां रै पांण राजकाज चालै। राजतंतर री भांत कोई एक मिनख न राज रौ धणी हुवै, न अेक जात री राज करणै री बपौती हुवै। पण औ ओखाणौ घणौ पुराणौ है कै जिसा देव, उसा ही पुजारा। मंत्री नै मेम्बर लोग इज लोकतंतर रा देव है। ओहदादार, मुसायब, कामदार उणांरा पुजारा है। पुराणा देवता तौ बासना रा भूखा होता पण आज रा देवता तौ कोरी बासना सूं तिरपत नीं हुवै। उणां रै तौ सांचकलौ प्रसाद चढायां इज काम बणणै रौ गतगैलौ नीसरै। काम-काज नै ढंगसिर चलावण खातर नेम-कायदा हुवै तौ अठै भी अैहड़ा कायदा बणायोड़ा है। जिसा काम उणी तरै री सूंक बंधोड़ी है। किणी ने नौकरी चाहिजै तौ जिसी जगै, उणी रै माफक सूंक चढायां कारज सिध हुवै। ‘अेयर-फोरस’ में सिपाई बणणौ हुवै तौ पैली दो हजार चढता पण अब दस हजार रै चढावै सूं काम पार पड़ै। पुलिस री थाणैदारी रौ भाव तौ और भी घणौ ऊंचौ है। दस हजार संू तीस हजार पर जाता कठैई सोदौ झळै तौ झळै। फेर जे कोई गंगानगर नै रायसिंघनगर री पलटी चावै तौ पांच हजार री माहवारी ‘रेख’ भरणी पड़ै। गंगानगर री थाणैदारी आजकलै माळवै री मनसबदारी रै बरौबर मानी जावै है। जैपुर माणकचौक थाणौ नै जोधपुर रौ उदै मन्दिर थाणौ पैदास में लंगै-ढंगै गिणीजै है। जैपुर रौ माणक चौक थाणौ आगरा री कोटवाळी नै उदै मंदिर रौ थाणौ दिखण रा बुरहानपुर री होड़ करता कहीजै।

कचेड़ी में किणी मामला-मुकदमां री नकल लेवणी हुवै तौ पुराणा रेकार्ड रा बाबू रौ धूप-ध्यान करियां बिना पार पड़णौ दोरौ है। रामचंदरजी तीन तिलोकी रा नाथ हा पण लंका पर चढ़ाई करी, जद सागर री पूजा करी। जणां ही सागर आगै जावण रौ गैलौ दियौ हौ। कचेड़ी में भी चपड़ासी नै अेक रुपियौ झिलायां कुरसी रा देवता कनै पूगबा रौ गैलौ नीकलै। पछै रेकार्ड-बाबू नै रीझाणौ पडै़। चपड़ासी नै बाबू तौ कचेड़ी रा राहु-केतु गिणीजै। इणां रै सनमुख हुवां इज काम पार पडै़, नींतर तौ अटक्यौ कारज सरणौ दूभर है। औ रिवाज कचेड़ी में इज नीं है- बैंका, तैसीलां, अस्पताळां, पंचायतघरां नै पटवारियां रै हळकै तक चालू है।

दोय हजार रुपिया पगार कमावण वालै थांणैदार रै रामबाग जेड़ौ बंगलौ संूक रै परताप रौ फळ इज है। पटवारी री बोरगत रौ रहस संूक इज तौ है। कचेड़ी रै अैलकार रै पांच हजार रुपिया माहवारी रै खरचौ नै सूंक इज तौ पूरै है। संूक रै इज कारण रोजीना गोठ-घूघरियां हुवै है। नितनुंवा टैरीलीण रा घाबा नै स्कूटर कम-रोजी पावणियां रै कठै संू आवै है ? अै सारी बातां आंधौ इज जाण सकै है कै सूंक सायजादी रै तूठां इज काम पार पडै़ है। बंगलौ, स्कूटर, कार, टैरीलीण सारा थोक सूंक रै क्रपा-कटाछ सूं मिळे है। सूंक रा पीसां सूं नगरां में जमीनां खरीदीजै। प्लाटां रा धंधा करीजै। आभूसणां सूं तिजोरियां भरीजै। नौकरी तौ नांव की हुवै। सूंक री ऊपर छाळा री कमाई रै आगै नौकरी बापड़ी रा गिणत रा टक्कां री कांई गिणत ?

सूंक लोकतंतर री उर्वसी है। अंगरैजां रै जमानै में तपस्या-भंग हुवण सूं आ धरालोक में सराप-मोचण नै आई ही, पण अब तौ पाछी जावण रौ सूत ही नीं करै। अठै ही घरबासौ मांड लियौ। भलां, अब छोरा-छोरी बेटां-पौतरां नै छोड कींकर जावै ? पूरी ग्रहस्थी, भरौ-पूरौ कुळ-कडूंबौ, आखा प्रान्त पड़गनां में मांन-तांन आवभगत किंण भांत छोड़ीजै। लागै है देस में कदै सोटां रौ सूंटौ नै आकासी काळी पीळी आंधी रा ओळा नीं बरस पड़ै। ई पैली सूंक रौ सिंघासण अटळ अडिग इज लखावै है। इण वासतै लोकतंतर री नूवीं देवी ‘सूंक’ री आरती उतारौ। पगल्या खोळ नै चरणाम्रत लेवौ। इण री सोड़स पूजा करौ। कारज सिद्धि रै तांई इण सूं बधती नीं हड़मान री पूजा फळदायी है अर नीं काळा-गौरा चंडी-पूतां री बोलमां ही आडी आंणी है।

बोलौ जुगदेवी सूंक री जै। सिद्धि री राणी री जै।


हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप के पास नहीं थी धन की कमी : टॉड ने फैलाई भ्रान्ति

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हल्दीघाटी के युद्ध के बाद स्वंतन्त्रता के पुजारी, आन-बान के प्रतीक, दुश्मन के आगे सिर ना झुकाने वाले महाराणा प्रताप मेवाड़ राज्य को मुगलों से आजाद कराने के लिए पहाड़ों में चले गये और वहां से मुग़ल सेना पर छापामार आक्रमण जारी रखा| कर्नल टॉड जैसे कुछ इतिहासकारों ने इस एक युद्ध के बाद ही महाराणा की आर्थिक हालात कमजोर आंक ली और कई मनघडंत कहानियां लिख दी| कर्नल टॉड ने लिखा “शत्रु को रोकने में असमर्थ होने के कारण उस (प्रताप) ने अपने चरित्र के अनुकूल एक प्रस्ताव किया और तदनुसार मेवाड़ एवं रक्त से अपवित्र चितौड़ को छोड़कर सिसोदिया को सिन्धु के तट पर ले जाकर वहां की राजधानी सोगड़ी नगर में अपना लाल झंडा स्थापित करने एवं अपने तथा अपने निर्दय शत्रु (अकबर) के बीच रेगिस्तान छोड़ने का निश्चय किया| वह अपने कुटुम्बियों और मेवाड़ के दृढ और निर्भीक सरदारों आदि के साथ, जो अपमान की अपेक्षा स्वदेश निर्वासन को अधिक पसंद करते थे,अर्वली पर्वत से उतरकर रेगिस्तान की सीमा पर पहुंचा| इतने में एक ऐसी घटना हुई, जिससे उसको अपना विचार बदलकर अपने पूर्वजों की भूमि में रहना पड़ा| यद्यपि मेवाड़ की ख्यातों में असाधारण कठोरता के कामों का उल्लेख मिलता है तो भी वे अद्वितीय राजभक्ति के उदाहरणों से खाली नहीं है| प्रताप के मंत्री भामाशाह ने, जिसके पूर्वज बरसों तक इसी पद पर नियत रहे थे, इतनी सम्पत्ति राणा को भेंट कर दी कि जिससे पच्चीस हजार सेना का 12 वर्ष तक निर्वाह हो सकता था| भामाशाह मेवाड़ के उद्धारक के नाम से प्रसिद्ध है|” (टॉड; राजस्थान; जिल्द.1, पृष्ट.402-3) महाराणा के वित्तमंत्री भामाशाह द्वारा सम्पत्ति भेंट की बात लिखकर टॉड ने यह भ्रम फैला दिया कि हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा की आर्थिक दशा ख़राब हो गई और भामाशाह की भेंट या जैसा कि भामाशाह के दान के बारे में प्रचारित है से महाराणा ने अकबर के साथ युद्ध जारी रखा| कर्नल टॉड की इस कहानी को राजस्थान के सुप्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा आदि कई इतिहासकार मात्र कल्पित कथा समझते है| वैसे भी ध्यान रखने योग्य तथ्य है कि किसी भी राजा की मात्र एक युद्ध में कभी आर्थिक दशा नहीं बिगड़ती| महाराणा प्रताप के पूर्वजों यथा महाराणा कुंभा, महाराणा सांगा आदि ने मेवाड़ के खजाने में अथाह धन जमा किया था और वह धन महाराणा को यथावत मिला था| हाँ यह बात हम स्वीकार करते है कि महाराणा को स्वयं के शासन में धन संग्रह का मौका मिला नहीं मिला, लेकिन यह तथ्य कपोल कल्पित है और सवर्था झूंठ है क्योंकि नवीन ऐतिहासिक शोधों से यह बात प्रमाणित है कि महाराणा के पास अकूत धन था और धन की कमी के कारण उनके स्वदेश छोड़ने कर अन्यत्र बसने का विचार एकदम निर्मूल है| कर्नल टॉड जैसे इतिहासकारों द्वारा इस तरह की भ्रान्ति फैलाई गई है|

ओझा जी के अनुसार “प्रतापी महाराणा कुम्भकर्ण और संग्राम सिंह ने दूर-दूर तक विजय कर बड़ी समृद्धि संचित की थी| चितौड़ पर महाराणा विक्रमादित्य के समय गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह की दो चढ़ाइयाँ हुई और महाराणा उदयसिंह समय बादशाह अकबर ने आक्रमण किया| बहादुरशाह की पहली चढ़ाई के पूर्व ही राज्य की सारी सम्पत्ति चितौड़ से हटा ली गई थी, जिससे बहादुरशाह और अकबर में से एक को भी चितौड़ विजय करने पर कुछ भी द्रव्य न मिला| यदि कुछ भी हाथ लगता तो अबुल-फज़ल जैसा खुशामदी लेखक तो राई का पहाड़ बनाकर उसका बहुत कुछ वर्णन अवश्य करता, परन्तु फ़ारसी तवारीखों में कहीं भी उसका उल्लेख न होना इस बात का प्रमाण है कि मेवाड़ की संचित सम्पत्ति का कुछ भी अंश उनके हाथ न लगा और वह ज्यों का त्यों सुरक्षित रही|

चितौड़ छूटने के बाद महाराणा उदयसिंह को तो सम्पत्ति एकत्र करने का कभी अवसर नहीं मिला| उसके पीछे महाराणा प्रतापसिंह मेवाड़ के सिंहासन पर बैठा, जो बहुधा उम्रभर मेवाड़ के विस्तृत पहाड़ी प्रदेश में रहकर अकबर से लड़ता रहा| प्रतापसिंह के पीछे उसका ज्येष्ठ कुंवर अमरसिंह मेवाड़ का स्वामी हुआ| वह भी लगातार अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए अपने पिता प्रताप का अनुकरण कर अकबर और जहाँगीर का मुकाबला करता रहा|
महाराणा प्रतापसिंह और अमरसिंह के समय मुसलमानों से लगातार लड़ाइयाँ होने के कारण चतुर मंत्री भामाशाह राज्य का खजाना सुरक्षित स्थानों पर गुप्त रूप से रखवाया करता था, जिसका ब्यौरा वह अपनी एक बही में रखता था| उन्हीं स्थानों से आवश्यकतानुसार द्रव्य निकालकर वह लड़ाई का खर्च चलाता था| अपने देहांत से पूर्व उसने उपर्युक्त बही अपनी स्त्री को देकर कहा था कि इसमें राज्य के खजाने का ब्यौरेवार विवरण है, इसलिए इसको महाराणा के पास पहुंचा देना|

ऐसी दशा में यह कहना अनुचित न होगा कि चितौड़ का किला मुसलमानों के हस्तगत होने के पीछे तो मेवाड़ के राजाओं को सम्पत्ति एकत्र करने का अवसर ही नहीं मिला था| वि.स. 1671 में महाराणा अमरसिंह ने बादशाह जहाँगीर के साथ संधि की उस समय शहजादा खुर्रम से मुलाक़ात करने पर एक लाल उसको नजर किया, जिसके विषय में जहाँगीर अपनी दिनचर्या में लिखता है- “उसका मूल्य 60000 रूपये और तौल आठ टांक था| वह पहले राठौड़ों के राजा राव मालदेव के पास था| उसके पुत्र चंद्रसेन ने अपनी आपत्ति के समय उसे राणा उदयसिंह को बेच दिया था| वि.स. 1673 में शहजादा खुर्रम दक्षिण को जाता हुआ मार्ग में उदयपुर ठहरा| उस प्रसंग में बादशाह जहाँगीर अपनी दिनचर्या में लिखता है-“राणा ने शहजादे को 5 हाथी, 27 घोड़े और रत्नों तथा रत्नजड़ित जेवरों से भरा एक थाल नजर किया, परन्तु शहजादे ने केवल तीन घोड़े लेकर बाकी सब चीजें वापस कर दी| जहाँगीर के इन कथनों से महाराणा अमरसिंह के समय की मेवाड़ की सम्पत्ति का कुछ अनुमान पाठक कर सकेंगे| यदि महाराणा प्रताप के पास कुछ भी सम्पत्ति नहीं होती, तो उनका पुत्र महाराणा अमरसिंह संधि के समय इतने रत्नआदि कहाँ से प्राप्त कर सकता था|” (उदयपुर राज्य का इतिहास, भाग-1, पृष्ठ-400-1)

महाराणा प्रताप के बाद अमरसिंह द्वारा संधि के समय भेंट आदि में सम्पत्ति का प्रयोग और उसके बाद उनके पुत्र महाराणा कर्णसिंह के गद्दी के बैठने के बाद उसके द्वारा उजड़े मेवाड़ को वापस आबाद करने पर काफी धन खर्च किया गया| कर्णसिंह के बाद महाराणा जगतसिंह जो काफी उदार प्रवृति के माने जाते है ने उदयपुर ने लाखों रूपये खर्च कर जगन्नाथ मंदिर बनवाया, उसकी प्राण प्रतिष्ठा पर लाखों खर्च किये| एकलिंगनाथ मंदिर में रत्नों का तुलादान किया| एक करोड़ पचास लाख से ज्यादा रूपये खर्च कर राजसमुद्र तालाब बनवाया और कितने ही तुलादान किये| महाराणा जगतसिंह की दानशीलता इतिहास में प्रसिद्ध है|

ऊपर दिए खर्च के कुछ उदाहरणों से साफ़ जाहिर है कि बेशक महाराणा उदयसिंह, प्रताप और अमरसिंह को सम्पत्ति संचय का मौका ना ना मिला हो पर उनके पास सम्पत्ति की कभी कोई कमी नहीं रही| अतएव यह कहना अप्रसांगिक नहीं होगा कि यह सारी सम्पत्ति महाराणा कुंभा और सांगा की संग्रह की हुई थी जो महाराणा प्रताप के समय उनके मंत्री भामाशाह के उचित प्रबंधन में ज्यों कि त्यों विद्यमान थी| कर्नल टॉड ने सुनी सुनाई बातों के आधार जो कल्पित कहानियां लिख दी उन कहानियों ने महाराणा के पास के धन की कमी और भामाशाह द्वारा दान की भ्रान्ति फैला दी, जबकि हल्दीघाटी के युद्ध के बाद भी महाराणा के पास सिर्फ जरुरत की ही नहीं बल्कि अकूत सम्पत्ति का संग्रह विद्यमान था|

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कवियां रौ कलपतरू मानसिंघ

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राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री सौभाग्यसिंह जी शेखावत की कलम से...........

जोधांण जोध महाराजा मानसिंघ (Maharaja Man Singh, Jodhpur) आपरै समै में घणा ठणका जोमराड़ राजा बाजियां। मारवाड़ में घणौ धळ-धौकळ, गोधम-धाड़ मानसिंघ रै बखत हुयौ। मारवाड़ रा थाप उथाप सांवत सूरमावां, रावां उमरावां नै पड़ौसी जैपुर, सेखावाटी, बीकानेर रै राजावां रै साथ मानसिंघ रौ अमेळइज रैयौ। लड़ाई भिड़ाई में गळा तांई डूबियोड़ौ भी मानसिंघ मारवाड़ में विद्या, कळा, संगीत रौ सरितावां बहाई अर गुणीजणां, कवीसरां, संतां-महंतां नै लाखां री माल मता, धन द्राव लुटाय नै विद्यारूपी बळेड़ी-सी इज जांणी उगाई। चारण कविराजावां नै इकसठ गांव दान में दिया अर नाथां जोगियां रै खातर लाखां रा पट्टा ईनायत किया। पण सोना रा थाळ में तांबा री तूप नी फाबै ज्यूं मानसिंघ नामी गिरामी नरनाह होतां थकां भी सुभाव रा घणा करड़ा, खारा अर आकड़ा रा दूध कै सोमल रै जैर जैड़ा मिनख हा। जिण माथै रूसिया उणां नै तो विख रा प्याला पाय नै इज सांस लियौ। दया तो उणां रै सारै कर इज नीं नोकळी। पोहकरण पति सवाईसिंघ नै चूक सूं मरायौ। निबाज रा नाह सुलतानसिंघ ऊदावत पर कोपायौ अर तोपां रा गोळां सूं निबाज री हवेली नै दुड़ाय नै चैन पायौ। आप रा कितरा इज कामेतिया रा प्राण लिया। उणां रा घर लुटाय पड़ाय धूळ भेळा किया। इणी क्रोधीला सुभाव रै वस आपरै रसोवड़ा रा हाकम बिहारीदास खींची माथै किणी चूक रा चकर में रूसाण उण नै मराण नै तोपखानौ चलायौ। जोधपुर नगर में जमराज रौ पिरवार सौ पगां चाल जांणी आयौ। जद ठाकुर बिहारीदास खेजड़ला रा खावंद ठाकुर सादूळसिंघ रै डेरे भाग नै आया। ठाकुर सादूळसिंघ अर उणां रा अनुज ठाकुर सकतीदान साथीण रा सांम बिहारीदास नै सरण आयौ जांण सरणागत ध्रम रै लेखै गळै लगायौ। अै समाचार सुण महाराजा मानसिंघ रै मन में क्रोध रौ उदध सौ उभड़ायौ पण राजनीत विचार नै मन में इज काळा-पीळा होयनै सीळा पणा रौ भाव दरसायौ अर पछै ठाकुर सादूळसिंघ नै समझाय नै बिहारीदास नै राज रै सुपरद करण रौ हुकम खिंनायै। पण सरणागत-ध्रम रा रुखाळा, सरणागत प्रीत रा पाळा, बात राखण नै लोह चाखण नै उतावळा सादूळसिंघ सकतीदानसिंघ पाछौ करड़ौ सौ जवाब पठायौ अर बिहारीदास रै खातर जीव जोखम घालण रौ मतौ उपायौ। जद ठाकुर सादूळसिंघ ठाकुर सकतीदानसिंघ फतैसागर रा मेल्हाण सूं बिहारीदास नै लेय नै सहर में आपरी हवेली में आया। भाटियां आपरी हवेली नै सजाई, मरमार री मन में उपाई। रजपूती नै उजाळबा री धक धराई। रजपूती रै खातर जीव झोकियौ अर निजळां मिनखां रै माथै जांणी थूकियौ। बा रजपूती री आंण अर आज रा मिनखां री पूंछ हलाई। आपरै मतलब री मिंत्राई जतावण नै घर-घर फेरियां देवता फिरै अर अड़मीच में आयोड़ा कूकर री भांत दांत दिखाय नै उमर रा दिन ओछा करै। पण रजवट री म्रजादा री मरोड़ राखै जिका तो बखत आयां ताता लौह भी चाखै। कह्यौ है-

रजपूती चावल जिती, सदा दुहेली होय।
ज्यूं ज्यूं चाढ़ै सेलड़ां त्यूं त्यूं भारी होय।।


सूरवीर सुभाव रा सीधा हुवै उवै न्याय रै मग माथै असंक व्है नै बुवै अर कायर लोग चुगली-चाडी री चौपड़ रा चौखा खिलारा हुवै। जद इज कितरा इज मिनख प्यादा सूं सीधा वजीर हुवै तौ कितरा इज अढाई घरी चाल सूं सटके सी मात देय नै विजै रा मोहरा धरै।

महाराजा मानसिंघ कोप कराय नै ब्रिज नै तहस-नहस करण इन्दर छप्पन हजार मेघमाळा मेली ज्यूं खेजडळा री हेली माथै तोपखानै चढायौ। नौबत रा नाद घुराया जांणी सांवण भादवा री सांवळी घटा उमड़ाई कै गोळां री ठौड़ ओळां री झड़ लगाई। ठाकुर सादूळसिंघ बिहारीदास री पूरी पख खांची। जोधपुर रै धणी सादूळसिंघ नै समझाय नै रजवट वट त्यागण नै लाख लोभ दिया पण आ सारी कोसीस इयां अफळ गई जाणी भैंस मुंहडै भागोत वांची। पछै सादूळसिंह आगै बिहारीदास सारौ अहवाल सुणायौ जिकौ सुण नै सूरवीरां री आंखियां में रोस इण भांत छायौ जांणै बरसात रै आडंग में सूरज रौ आतप सौ नजर आयौ। उण समै सादूळसिंघ सकतीदानसिंघ रौ साथ कैड़ोक अभिमन कुमार री ओळ-भोळ जैड़ोक। नागां पर रूठियौ पंखी राव कै सांकळ हटा सादूळ रै सुभाव। महाराजा मानसिंघ री ख्यात में औ वाकौ इण भांत मंडियौ-

‘‘खींची बिहारीदास लोक रा दंगा मुदे फतैसागर ऊपर थौ सौ खेजड़ला रै डेरे जाय बैठौ। तरै बिहारीदास नै लेनै खेजड़ला रा ठाकुर सादूळसिंघजी नै साथीण रा ठाकुर सकतीदानजी खेजड़ला री हवेली उरा आया। हजूर में मालम हुई। तरै भाटियां नै समझास कराई पिण बिहारीदास नूं पकड़ायौ नीं। तरै भाटियां री हवेली ऊपर कलंदरखां नै विदा कियौ। झगड़ी हुवौ। भाटी सकतीदानजी रै तरवारां 16 लागी। दोनूं कांनी रा आदमी मरण गया नै घायल हुवा। खींची बिहारीदास झगड़ौ कर काम आयौ। आ हजूर में मालम हुई तरै राज रा लोकां तूं झगड़ौ मोकूफ करण रौ हुकम पोतौ। भाटी सकतीदानजी रै पाटा बंधावण सारू हजूर सूं नायता मेलिया।

खेजड़लै साथीण रौ पटौ खालसै हुवौ। जिलौ जबत हुवौ। ठाकर सादूळसिंघ री वीरता री सगळी ठौड़ां वाहवाही हुई। पछै। महाराजा मानसिंघ ठाकुर सादूळसिंघ री बहादरी, मरदमी और रजपूती पर राजी व्है अर एक डिंगल गीत बणायौ अर उण में रजपूती रा बखाण कर नै दाद दिवी, गीत रा बोल सुणीजै-

करी तात अखियात जिण हूंत बाधू करी,
नाहरां तेग री उरस नांधी।
छटा अणमाप री चढ़तै जोर चख,
बाप री भलां तरवार बांधी।।
चालवी पिता जेम भार पड़ता चमू,
भिड़ा खग नाळियां आद भळकी।।
दळां न्रप भींव रा खीची जका दांमण,
मान रा दळां असमेर मुळकी।।
काज सरणाइयां भूप सिर रा बळी,
दुझळ धन रावळी कठै दांथी।
बाप रिव ठांभियौ घड़ी दोय बाजतां,
ताहि सुत ठांभियौ पौहर तांथी।।
झडं़ती आग वरजाग तप झेलणां,
ढाल सुं प्रबळ गिरमेर ढकणां।
भाटियां जेम प्रथमाद रा भूपतां,
राव सरणावियां अेम रखणां।।


महाराजा भींवसिंघ रै समै में ठाकर सादूळसिंघ रा पिता ठाकर जसवंतसिंघ भी घणां अड़ीला सरदार हुवा। जसवंतसिंघ मारवाड़ रा बीजा सरदारां रै साथ भींवसिंघजी रौ पख झालियां रैया अर मानसिंघजी री ग्यान गिंणत नीें राखी। पछै मानसिंघ रै तांई साकदड़ा रा जुद्ध में जसवंतसिंघ रौ छोटौ भाई जोधसिंघ काम आयौ ही सौ उण अैसाण नै जोय सकतीदान सिंह नै साथीण रौ ठिकाणौ तुंवौ बांध बंधाय दियौ अर नगारौ नीसांण भी इनायत कियौ। औ पट्टौ संवत १८६० में मोळियौ।

गीत में ठाकुर सादूळसिंघ री बावत कवि कैयौ है -हे सादूळसिंघ, आपरा पिता जैड़ी वीरता री अखियात बातां करी तूं उणसूं इज सिवाय चढ़ती बढ़ती वीरता दिखाई। थां न्याय इज ठाकुर जसवंतसिंघ री तरवार बांधी नै खेजड़ला री गादी बैसियौ। थां महाराजा भींवसिंघ री सेना में जिकी तरवार चमकाय’र जस खाटियौ वैड़ी इज महाराजा मानसिंघ रै दळा में खड़ग चलाय कीरत रौ खळौ लाटियौ। जोधपुर जैड़ी बड़ी नै बळवान रियासत रा सबळा राजा री आग्या री बिना परवाह करि सरणागत री पालणां कर नै हठीला वीर राजा हम्मीर चौहाण रणभंवर री याद ताजा करी। हे उत्तरधरा रा भड़किंवाड़ तूं पूर्वधरा रा खींची नै सरण देय नै वडौ रजपूती रौ काम कियौ।

इण भांत ठाकुर सादूळसिंघ बिहारीदास खींची नै सरण देय नै संकट मोल लियौ अर रजपूती री तीखचौख में सिरै आपरौ नांव लिखाय लियौ।
सरणागत आवणिया नै आसरौ देय हे वीर सादूळसिंघ ! तूं राजावां सूं भी वधतौ साहस रौ, ताकत रौ धणी है। भलां, थांरी असि रा आपाँण री ओपमा नै बखांण कठां तोई करां। थारै पिता तो आपरै जुध चमत्कारां सूं सूरज नै आकास में दोय घड़ी रोकियौ पण तूं तो दोय घड़ी री ठौड़ आपरी क्रपाण री करामात रा चकाबौह सूं एक पौहर तांई सूरज रा रथ नै आकास में थांभ नै अजोड़ वीरता रौ काम कियौ। ठाकुर सादूळसिंघ रै धकै बिहारीदास भी आगै बढ़नै खागां खड़काई अर आपरै बडेरा मेळग, अचलदास, जिन्दराव री रीत भांत वीरता प्रगटाई। कवि बिहारीदास जैड़ा वीर नै बखाणता कह्यौ-

तन तोड़ै त्रण जेम, नीर कुल चाडणां।
मांडै अलोखा लेख वीरत रा मांडणां।।
ज्यां आगै बळवान न ऊबरै पण लियां।
आगै चलिया ऊबरै कै मुख त्रण लियां।।
खागां वाळै खेल सलोभां लागणा।
भिड़ जाणै भाराथ न जांणै भागणा।।
सिर साटै लड़ जाय वींटिया लाज में।
आंणै आळा नांहि खत्रवट पाज में।।
खावै सनमुख घाव पहर तन सेलड़ा।
पीठ न खावै घाव खगां कर खेलड़ा।।


अैड़ा वीर आठ पौर चौसठ घड़ी मरणै-मारणै तांई कमर बांधिया, सजिया धजिया, केसरिया बागा किया अपसरावां रा आसिक बण्यिा रैवै-
कैसर चोळ दकूल सज्या तन नेहरा।
राखै तैं दिन रात बंध्या सिर सेहरा।।
वनां अपछरां काज बण्या है वींद की।
ज्यां परण्या बिन आस न पूरै नींद की।।


अैड़ा इज सूरमां गनीमां री घड़ां रा घट भांज नै रणभौम में गुड़ावै अर वैरियां रा प्राणां नै जमराज री कचहड़ी में पठावै।
ठाकुर सादूलसिंघ अैड़ौ जंग जुड़ियौ जिका रै खातर भाटियां तांई अैड़ी बिड़द चाल पड़ियौ-
विरधै नहीं बखत पड़िया रा, भाटी अणियां रा भंमर।।




Maharaja Mansingh jodhpur story in rajasthani bhasha, history of jodhpur in rajasthani bhasha

अब ऑनलाइन भेजें बधाई सन्देश व गिफ्ट

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अमेरिका और यूरोप के बाद आजकल भारत में भी ऑनलाइन व्यापार तेजी से बढ़ रहा है| शुरू में ऑनलाइन ठगी के डर से भारत में ऑनलाइन खरीददारी से लोग बचते थे, लेकिन ऑनलाइन व्यापार करने वाली कई नामी कम्पनियों ने ग्राहक सेवा का शानदार उदाहरण पेश कर लोगों के मन में ऑनलाइन खरीद के प्रति अच्छा विश्वास पैदा किया, इसी का नतीजा है कि कुछ माह पर अमाजोन, फिल्पकार्ट जैसी ऑनलाइन व्यापार करने वाली कई वेबसाइट ने एक ही दिन में इतना कारोबार किया जितना किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी की सालाना टर्नओवर होती है| आज भारत की कई वेबसाइट इंटरनेट की दुनियां में ऑनलाइन व्यापार करने को उतर चुकी है, इनमें तगड़ी प्रतिस्पर्धा भी है, जिस कारण ग्राहकों को तगड़ा फायदा मिलता है|


इन्टरनेट की दुनियां में भारतीय वेबसाइट्स की उपस्थिति पर नजर डाली जाये तो आज लगभग हर तरह का ऑनलाइन व्यवसाय करने वाली वेब साइट्स मौजूद है| चाहे किसी को कार खरीदनी हो चाहे किसी को बधाई या शुभकामनाएं देने के लिए गिफ्ट भेजने हो| गिफ्ट भेजने के नाम पर याद आया, अभी दो दिन पहले ही ऑनलाइन व्यापार करने वाली वेब साइट्स की पड़ताल करते हुए एक गिफ्ट भेजने का व्यवसाय करने वाली एक वेबसाइट मिली| वर्त्तमान आर्थिक युग में आज चाहते हुए भी लोगों के पास अपने किसी खास के जन्मदिन, ख़ुशी के मौके आदि पर जाने के लिए व्यावसायिक व्यस्तता के चलते समय का अभाव है| ऐसे ही व्यस्त लोगों की इसी समस्या का समाधान करती है यह वेबसाइट http://www.fnp.com.


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भामाशाह के दान का सच

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मेवाड़, महाराणा प्रताप, हल्दीघाटी आदि की बात चलती है तो इस संघर्ष में महाराणा के लिए आर्थिक व्यवस्था करने वाले उनके मंत्री भामाशाह Bhamashah की चर्चा अवश्य चलती है| हर कोई मानता है और लिख देता है कि भामाशाह ने अपनी कमाई सारी पूंजी महाराणा को अकबर के साथ संघर्ष करने हेतु राष्ट्र्हीत में दान कर दी थी| इस तरह भामाशाह को महान दानवीर साबित कर दिया जाता है. ऐसा करने वाले समझते ही नहीं कि वे भामाशाह के बारे में ऐसा लिखकर उसके व्यक्तित्त्व, स्वामिभक्ति, कर्तव्य व राष्ट्रहित में दिए असली योगदान को किनारे कर उसके साथ अन्याय कर रहे होते है| आज भामाशाह की जो छवि बना दी गई है उसके अनुरूप भामाशाह का नाम आते ही आमजन में मन-मस्तिष्क में छवि उभर जाती है- एक मोटे पेट वाला बड़ा व्यापार करने वाला सेठ, जिसने जो व्यापार में कमाया था वो महाराणा को दान दे दिया|

जबकि इतिहासकारों की नजर में भामाशाह द्वारा महाराणा को दिया अर्थ कतई दान नहीं था, वह महाराणा का ही राजकीय कोष था जिसे सँभालने की जिम्मेदारी भामाशाह की थी| और भामाशाह ने उस जिम्मेदारी को कर्तव्यपूर्वक निभाया| यही नहीं कई इतिहासकारों के अनुसार भामाशाह ने मालवा अभियान में प्राप्त धन महाराणा को दिया था| यदि इतिहासकारों की बात माने तो भामाशाह व्यापारी नहीं, महाराणा के राज्य की वित्त व्यवस्था व राजकीय खजाने की व्यवस्था देखते थे| साथ ही वे एक योद्धा भी थे, जिन्होंने मालवा अभियान का सैन्य नेतृत्व कर वहां से धन लुटा और महाराणा को दिया| इस तरह भामाशाह एक योद्धा थे, जिनकी छवि एक व्यापारी की बना दी गई|

भामाशाह द्वारा महाराणा को दान देने की कहानी को राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार ओझा जी कल्पित मानते है| ओझा जी के मतानुसार- यह धनराशि मेवाड़ राजघराने की ही थी जो महाराणा कुंभा और सांगा द्वारा संचित की हुई थी और मुसलमानों के हाथ ना लगे, इस विचार से चितौड़ से हटाकर पहाड़ी क्षेत्र में सुरक्षित की गई थी और प्रधान होने के कारण केवल भामाशाह की जानकारी में थी और वह इसका ब्यौरा अपनी बही में रखता था|"

इतिहासकार डा.गोपीनाथ शर्मा अपनी पुस्तक "राजस्थान का इतिहास" के पृष्ठ 233-34 पर लिखते है कि- "विपत्ति काल के संबंध में एक जनश्रुति और प्रसिद्ध है| बताया जाता है कि जब महाराणा के पास सम्पत्ति का अभाव हो गया तो उसने देश छोड़कर रेगिस्तानी भाग में जाकर रहने का निर्णय किया, परन्तु उसी समय उसके मंत्री भामाशाह ने अपनी निजी सम्पत्ति लाकर समर्पित कर दी जिससे 25 हजार सेना का 12 वर्ष तक निर्वाह हो सके| इस घटना को लेकर भामाशाह को मेवाड़ का उद्धारक तथा दानवीर कहकर पुकारा जाता है| यह तो सही है कि भामाशाह के पूर्वज तथा स्वयं वे भी मेवाड़ की व्यवस्था का काम करते आये थे, परन्तु यह मानना कि भामाशाह ने निजी सम्पत्ति देकर राणा को सहायता दी थी, ठीक नहीं| भामाशाह राजकीय खजाने को रखता था और युद्ध के दिनों में उसे छिपाकर रखने का रिवाज था| जहाँ द्रव्य रखा जाता था, उसका संकेत मंत्री स्वयं अपनी बही में रखता था| संभव है कि राजकीय द्रव्य भी जो छिपाकर रखा हुआ था, लाकर समय पर भामाशाह ने दिया हो या चूलिया गांव में मालवा से लूटा हुआ धन भामाशाह ने समर्पित किया हो|"

तेजसिंह तरुण अपनी पुस्तक "राजस्थान के सूरमा" के पृष्ठ 99 पर हल्दीघाटी की विफलता के बाद की परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए लिखते है-"भामाशाह मालवे की सीमा पर स्थित रामपुरा चले गए| अब तक ताराचंद भी यहाँ पहुँच गया था| 1578 ई. में दोनों भाइयों ने मेवाड़ की बिखरी सैनिक शक्ति को एकत्रित कर अकबर के सूबे मालवे पर ऐसा धावा बोला कि पूरे सूबे में खलबली मच गई| मुग़ल सत्ता को भनक भी नहीं लगी और वहां से 25 लाख रूपये अधिक राशी वसूलकर पुन: मेवाड़ आये| इस धन राशी से प्रताप को बहुत बड़ा सहारा मिला और वे पुन: मुगलों से संघर्ष को तैयार हो गए| यही वह धन राशी थी जिससे भामाशा, भामाशाह बने और हिंदी शब्दकोष को एक नया शब्द "भामाशाह" (अर्थात संकट में जो काम आये) दे गये| कई किंवदंतियों को जन्म मिला| कुछेक कलमधर्मियों व इतिहासकारों ने उक्त राशी को भामाशाह की निजी धनराशि मानकर भामाशाह को एक उदारचेता व दानवीर शब्दों से सम्मान दर्शाया, लेकिन वास्तविकता में यह धनराशि मालवा से लूटी हुई धनराशि थी|"

इस तरह इतिहास पर नजर डालें तो भामाशाह ने जो धन दिया वह राणा का राजकीय धन था, ना कि दान| लेकिन भारत के इतिहास को तोड़ मरोड़कर उसे विकृत करने की मानसिकता रखने वाली गैंग ने यह झूंठ प्रचारित कर दिया कि राणा महज हल्दीघाटी के युद्ध में धनविहीन हो गए थे और भामाशाह ने उन्हें दान दिया| यह बात भी समझने योग्य है कि क्या ये संभव है मेवाड़ जैसी रियासत का खजाना महज एक युद्ध में खाली हो सकता है और उसके एक मंत्री के पास इतना धन हो सकता है कि उस धन से 25 हजार संख्या वाली सेना 12 वर्ष तक अपना निर्वाह कर सके| यह बातें साफ़ जाहिर करती है कि भामाशाह द्वारा राणा को निजी सम्पत्ति दान में देना निहायत झूंठ है, दुष्प्रचार है|

हाँ ! भामाशाह युद्धकाल में खजाने को बचाने में सफल रहे और राष्ट्र्हीत में अपने कर्तव्य का भली प्रकार निर्वाह किया या मालवा सैनिक अभियान के द्वारा धन संग्रह कर राष्ट्र की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे महाराणा के सहायक बने, इसके लिए भामाशाह निसंदेह सम्मान व प्रसंशा के पात्र है| लेकिन अफ़सोस जो भामाशाह वीर, साहसी, नितिज्ञ, कुशल प्रबंधक, स्वामिभक्त, उदारमना, योग्य प्रशासक, देशभक्त था उसे महज एक नाम दानवीर दे दिया गया जो उसके व्यक्तित्व के साथ अन्याय है|


अगले किसी लेख में भामाशाह के जीवन परिचय पर विस्तार से लिखा जायेगा|

Hindi story of Maharana Pratap and Bhamashah, was money donated by Bamashah to Rana Pratap, Bhamashah ke doneshan ka sach

अब मोबाइल एप का होगा जमाना

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मोबाइल के बढ़ते प्रयोग और मोबाइल सेवा प्रदाताओं द्वारा मोबाइल पर तेज गति इन्टरनेट उपलब्ध कराने के बाद देश के लगभग व्यक्तियों के हाथों में इन्टरनेट से लेश मोबाइल हैण्डसेट आ चुके है| मोबाइल पर बढ़ते इन्टरनेट प्रयोग के चलते ऑनलाइन व्यापार करने वाली सभी वेबसाइट्स ने अपनी वेबसाइट्स को मोबाइल फ्रेंडली बनाते हुए Mobile Apps भी लाँच कर दिए ताकि मोबाइल प्रयोगकर्ता उन वेबसाइट्स को अपने मोबाइल पर आसानी से खोल सके| ऑनलाइन व्यापार करने वाली कम्पनियों के साथ आज बैंकों, रेल्वे, सरकारी दफ्तरों ने भी बढती तकनीक के साथ कदम मिलाते हुए अपनी अपने एप्स जारी कर दिए ताकि उनकी ऑनलाइन सुविधाओं का देश का नागरिक आसानी से फायदा उठा सके|

यही नहीं विद्यार्थियों के लिए भी आज गूगल प्ले पर ऐसे ढेरों एप्स उपलब्ध है जिन्हें छात्र अपने मोबाइल फोन में इनस्टॉल कर पढाई के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सकते है| अपनी वेब साइट्स व ब्लॉगस पर आने वाले ट्रेफिक पर नजर डाली जाये तो आज 60% ट्रैफिक मोबाइल से आ रहा है, मतलब ब्लॉग पढने, वेब साइट्स का इस्तेमाल करने वाले कंप्यूटर से ज्यादा मोबाइल प्रयोग करने वाले है| ऐसे में यदि आपका ब्लॉग या वेब साईट मोबाइल फ्रेंडली नहीं है तो जाहिर है आपके ब्लॉग या वेबसाइट्स पर पाठक कम ही आयेंगे|

अत: देश में बढ़ते मोबाइल उपयोगकर्ताओं की संख्या तक पहुँच बनाने के लिए आपकी वेबसाइट व ब्लॉग मोबाइल फ्रेंडली होने के साथ एप्स से भी लेश होनी चाहिए| अक्सर देखा जाता है कि मोबाइल उपयोगकर्ता ब्राउजर खोलकर उसमें किसी ब्लॉग या वेबसाइट का यूआरएल लिखकर उसे खोलने की जहमत कम ही उठाते है| ऐसे में यदि आपके ब्लॉग या वेबसाइट का मोबाइल एप उपलब्ध हो तो आपके पाठक या आपकी वेबसाइट के उपयोगकर्ता एप का फायदा अवश्य उठायेंगे.

अपनी वेबसाइट या ब्लॉग का एप बनाना आसान भी है| इन्टरनेट पर कई साइट्स है जिनकी मदद से आप आसानी से एप बना सकते है पर इन साइट्स से बने एप में उनके विज्ञापन होते है| जबकि आप खुद अपना एप बनाते है या किसी डेवलपर से बनवाते है तो उसमें अपने विज्ञापन लगाकर कमाई भी कर सकते है| जिस तरह से गूगल एडसेंस की सुविधा देता है ठीक उसी तरह से एप्स पर विज्ञापन लगाने के लिए गूगल Admobके नाम से विज्ञापन देने की सुविधा देता है| इस तरह एप्स के इस्तेमाल से एक और आपको अपनी साईट या ब्लॉग पर ट्रैफिक बढाने में मदद मिलेगी वहीं Admob के विज्ञापनों के जरिये आपकी कमाई में भी बढ़ोतरी होगी|


अगले लेख में अपने ब्लॉग का आसानी से मोबाइल एप बनाने का तरीका How to make Android Mobile Apps

जूनौ खेड़ौ-खेड़

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राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्य सिंह की कलम से मारवाड़ के पुराने नगर खेड़ पर आलेख

राजस्थान रा जूनां नगरां में बैराठ, सांभर, मंडौर, खंडेलौ, मेड़तौ, अजमेर, नागौर, पाली, किराडू नै खेड़ (Khed) आदि गिणीजै है। अै नगरियां न जाणै कितरी वेळा बसी नै कितरी बार उजड़ी। पण इणां पुराणां नगरां में जठै आपरा जमानां में कोड़ीधज ब्यौपारी बसता, झूमता गजराज ठांणा माथै डग बेड़ियां खुड़कावता, दुबागां में घोड़ला हिणहिणावता, हजारां मिनखां रै आंण-जांण नै लाख लोगों रै बोल्याळा सूं भरौपूरौ जमघट मंडियौ रैवतौ उठै कई ठौड़ां आज उड़नै काग इज नीं बैसै। सूनी-सून्याड़ बसती, उजड़-उजाड़ रोह में ढमढ़ेर-ढुंढा, मिंदर-मठां रा गोखड़ा, हेल्यां रा ताज, गढ़ां री बुरजां नै धनपत्यां रै रहवासां रा खंडर जूना जूगां री कांणियां बतावै। वै खिंड-भिंड गोखड़ा, टूट-फूटा खुर्रा, ढहनै ढमढ़ेर बणी थकी बुरजां अतीत रै वैभव मून गीत गावती सी लखावै। जद इज तौ बखांणीजियौ है-
मतवाळा गज झूमता, मंडता फाग’र राग।
वै मिंदर सूना पड्îा, बैठण लागा काग।।



कई नगर कई बार सूना हुवा नै केई बार फेर बस्या। पण केई नगर आज भी साव उजड़ खेड़ा इज बण रैया है। मारवाड़ रै मांय लूणी नदी रै पसवाडै खेड़नगर आज बीता जुगां री जीवती बातां बोलै है। आया-गया मिनखां नै, गैलैबगता माणसां नै आपरी बधती री, सम्पति री, राज-दुराजी री अणगिणत कथावां सुणावै है। खेड़ मारवाड़ रै मालाणी परदेस में बालोतरा ऊं अढाई कोस आंथूण में है। बीकानेर, जोधपुर, किसनगढ़ रा राठौड़ राजावां रा वडा-वडेरा पैलीपोत राजस्थान में खेड़ में इज आया हा। राव सिया नै राव आसथान रौ खेड़ पर हांमपाव हुवां पछै ई रणबंका राठौड़, खांगीबंध राठौड़ नै नौकूटी नाथ रौ बिड़दाव पायौ।

मालाणी माथै राठौड़ां संू पैली गोहिला नै पंवारा रौ राज रैयौ। पैली मालाणी री ठौड़ बाड़मेर, खेड़ नै जसोल आद नांवां सू औ धरती खंड ओळखीजतौ। रावळ माला (मलीनाथ) रा बेटा-पौतां रै पछै मालाणी कहीजियौ। रावळ मालौ कौरौ राजा इज नों हौ पण ठाढा़ै समाज सुधारक नै ठणकौ जोगीराज भी हुयौ। खेड़ रै कन्है तळवाड़ा में रावळ मलीनाथ रौ देवरौ उणारी भगती, नीति नै रजपूती रा गुणां रौ सांप्रत सबूत है। खेड़ माथै बसणै अर राज करणै रै कारण इज राठौड़ खेड़ेचा बाजिया -राजस्थानी काव्य में खेड़ धणी, खेड़पति, खेड़ेचा इत्याद नांव सू राठौड़ जोधारां, नै राठौड़ राजावां रा घणा बरणाव मिळै है।

आगरा रा लालकिला में धोळै दिन बादस्याह साहजहां री भरी कचेड़ी में नबाब सलाबतखां नै मार नै नागौर रौ राव अमरसिंघ काम आयौ। राव अमरसिंघ रा बैर में चांपावत वीर बल्लू, ठाकर भावसिंघ कूपावत नै गोकळदास मानावत बादसाही घणा उमरावां नै खड़ग धारावां में संपाड़ो कराय नै सांमघ्रम री परम्परा नै उजाळकर रण सैज सूता हा। गोकळदास रा अेक वीरगीत में ‘खेड़ेचै’ रौ बखाण सुणीजै -

खेचौ दम बाही खेड़ेचै, मै पण दम खेचियी मंहै।
सुधि नह रही आपौ सांभळतां, बिढ़ि पण पखै चालियौ बहै।।
खेड़पति रा जम री जीभ सी तरवार रौ बरणन है -
खड़हड़इ डोल धूजइ धरति। पड़ियाळग बरसइ खेड़पति।।
कुंवर जैतसिंघ महेचौ द्रोयण दळां में दरोळ पटक नै तरवार सूं जूझ नै आपरी काया रौ उद्धार कर गयो। कविराजा रौ कथन सांभळीजै-
मंहे कंवर चैत महेश्वचौ, खग धरै रे खेड़ेचौ।।

राठौड़ां सूं पैली गोहिल छत्रियां रौ खेड़ पर राज हौ। गोहिलां में राजा मोखरौ बडौ नांवाजादीक हुवौ। नैणसी मंूतै आपरी ख्यात में लिख्यौ है-

‘‘खेड़ गोहिलां री वड़ी ठकुराई थी। राजा मोखरौ धणी छै। तिण रै बेटी बूंट पदमणी थी। तिण री बात खुरासांण रै पातसाह सांभळी। तरै तिण ऊपर घोड़ा लाख तीन विदा किया। तिकै चढ़ खेड़ आया। तुरके खेड़ सहर घेरियो। गोहिल पिण जद जोर था। दिन च्यार सारीखी वेढ़ हुई। पछै गोहिलै जमहर कर मैदान में काम आया। घणा तुरक काम आया। घणा गोहिल काम आया। घोड़ा पाछा गया। राजा मोखरौ काम आयौ। मोखरा री बेटी बूंट ऊबरी। बेटौ बहवन उबरियौ। साथ घणौ काम आयौ। ठकुराई निबळ पड़ी।’’ जिण नगरी नै जीतबा नै तीन लाख घोड़ां री फौज आई अर जोरका राठा-रीठौ मांचियौ। चार दिन घोड़ां री घमरोळ, भालां री भचाक-भच्च, खड़गां री खचाक-खच्च, गोफियां रा तरणाटा, बाणां रौ सरणाटौ उडियौ। सत्रवां रौ घाण मचाय। घोड़ा मिनखां रौ गायटौ सौ घाल राजा मोखरौ मोख पाई। खुला किंवाडां़ वैकुंठ गयौ।

खेड़ में थित दसवां सईका रौ रणछोड़राय भगवान रौ मिंदर जिकौ किताई थंमां सूं बणियौ हौ नै मिंदर में गरुड़ री देवळी, दिसवां रा आठौ देवां री पुतळियां अर सेससायी नाग री मूरत है। वेहमाता नै भैंरू मतवाळा रौ मिंदर भी खेड़ रा जूना इतिहास, नै कळा कारीगरी री याद दिरावै। मिंदरां रा बिखरियोड़ा भाटा खांडा बारणां, अडौदड़ी पड़िया थंभा खेड़ री कळा, भगती भावां रा प्रेमियां री बढ़ती, उनंती, गौरव री गाथा मुंहडै भाखै। जसोल में भानदेवारच गच्छ रा महावीरस्वामी रा मिंदर रौ लेख नै नगर गांव रै संवत सोळा सौ छींयासी रौ लेख खेड़ रा राठौड़, धणियां, नै जैनां रा ध्रम री बात-विगत बतावै है। जालौर रा सूंधामाता रा मिंदर रौ लेख चुवाण राजा उदैसिंघ रै नाडोल, जाळौर, सूराचंद रामसेण, सांचोर अर खेड़ पर चढ़ाई करणै नै जीतणै रौ बखाण करै। खेड़ रै बारे में नैणसी फेर लिखियौ है कै- नाकोड़ा रौ धणी पंवार राजा खेड़ नै लेवण री चितारी जद बहवन पदमण बूंट नै मंडोर रै खावंद हंसपाळ पड़ियार नै नारेळ मोकळ नै मदत री अरदास करी। जद हंसपाळ बहवन रै ऊपर कर खेड़ आयौ अर पंवारां संू झगड़ौ रोपियौ। नांकोड़ा गढ़ री पोळ रा कपाट भांग नै पंवारां सूं जूझियौ। माथौ पड़ियां पछै तरवारां चलाय चार सौ दुसमणां नै साथरै सुवाणिया। तीन सौ गोहिल पड़ियार रण में काम आया। पणियारयां कह्यौ- ‘‘देखौ माथा विण घड़ आवै छै।’’ इण कथण रै साथै इज हंसपाळ रौ धड़ पड़ियौ नै हंस उडियौ। पछै बूंट सराप दियौ- ‘‘गोहिला सूं खेड़ जाज्यौ। पड़ियारा सूं मंडौर जाज्यौ।’’ पछै बूंट अकास मारग में उड गई।

समैजोग सूं बूंट रौ सराप सही हुवौ। राठौड़ खेड़ अर मंडौर बेहू ठौड़ां गोहिला नै पड़ियारा सूं खोस लिवी। कैवै है गोहिला रौ प्रधानौ डाभियां रै हुंतौ। डाभी छळकर नै राठौड़ आसथान नै बुलायौ अर गोहिलां नै कूड़ नै फरेब सूं मार खेड़ रौ धणी माडाई सूं बण बैठौ। राठौड़ां गोहिलां री खेड़ री कूट लड़ाई री साख अेक पुराणी कहणगत में है-
डाभी डाबां नै गोहिल जीवणां।
पछै खेड़ रा गोहिल कोटड़ा रै देस बरियाहेड़े, सीतड़हाइ नै पछै जैसलमेर रा धणिया भाटिया कन्है रैया। जैसलमेर रा कोट रौ दिखाणादौ भाग अजेस गोहिला री उण याद में गोहिल टोळौ कहावै है। जैसलमेर सूं गोहिल सोरठदेस में सेत्रंूजा, सीहोर, पालीतांणौ, लाठी, लौलियांणौ, अरजियांणौ जाय रैया। सोरठ में गोहिला नै चारण कविराज अजै भी खेड़ेच कहै है।

गोहिला पछै राठौड़ मलीनाथ सलखावत खेड़ आपरा अनुज वीरभदेव नै दीन्ही। कविराजा सूरजमल आपरा अमर काव्य वंसभास्कर में लिख्यौ है-
‘‘बाहरू बणिया जगमाल नूं पीठि लागो जाणि जोइये दलै वीरमदेव कनै खेड़ जाय तिकण रौ सहाय पायौ। अर पीठि लागै जगमाल खेड़ रै घेरो लगाइ आप रा काका हूं दला नूं पकड़ाइ देण रौ हुकम लगायौ। साहस रै साथ जगमाल रौ जोर जाणि घोड़ी समाधि वीरमदेव नै देर तिकण रै सहाय छानै कढ़ि लूट री सामग्री समेत दलो भाडंगनैर पूगौ। इण अपराध रै ऊपर काका तूं काढ़ि खेड़ में आप रौ अमल करि दिसादिसा रा दोयणां री मही दाबि लीधी तिकण समय कुमार रो प्रताप अर्क रै आभा ऊगो।’’ कवि बादर ढाढी लिखी वीरमायण भी इण वाका री साख भरे है-

मालो राजस नगर में, सोभत जैत सिवाण।
थान खेड़ वीरम थयै, जग जाहर घण जाण।।


वीरमदेव सूं खेड़ खोसणै रौ कारण समाध नांव री घोड़ी प्रगटी। कह्यौ है-घोड़ी आण समाध, घर असमाध उपाई। पछै राठौड़ वीरमदेव खेड़पति नै जोइया मारियौ। विरमदेव पछै खेड़ वीरमदेवौतां सूं छूट नै मलिनाथां रै कब्जे रैयी। अर वीरमदेवौत मोटा-मोटा गढ़ रा धणी बणिया-

माला रा मंडां वीरम रा गढ़ां बिड़द पायौ।

बाड़मेर, खेड़, थोब, सिणधरी, पोकरण माथै रावळ मलिनाथ प्रतापिक, आगली- पाछली रौ जाणैतौ हुवौ। जोगी रतननाथ रावळ पदवी दिवी। रावळ मलीनाथ जोगपंथ री साधना रै लारै जात-पात, छुवाछूत आद रौ घणौ मेट कियौ। हिंदुवां मुसळमानां में जोग रौ प्रचार कियौ। रावळ मलीनाथ रै समै रौ पीर कुतबदीन रावळ मलीनाथ बाबत कह्यौ है। खेड़, महेवा, बाडमेर कांनी जम्मा, रातीजगां में ओ पद गायीजै है -

पाट मंडा अेन चौक पूरावौ, मांडह मंगळाचार।
तेड़ावौ च्यारे महासतियां, वधाय ल्यो काय रावौ।।
मंहारै आज मिंदर रळियावनों लागे, घणी मंहारौ आय जुमे बैठौ।।
बाबौ आय बैठौ हसि बोलै मीठी, जबलग दास तुम्हारी हूं।
बाबा दीहड़ा डोहेला दूर दळिसै, सेव करां पाय लागौ।।
बाबा रैणायर में रतन नीपजै, वैरागर में हीरा।
खार समंद में मीठी बेरी, इहड़ी साहिब घर लीला।।
कोप मछर मनड़ा रा मेलौ, काम करौ घर रुड़ा।
देख अभ्यागत घर आवै तो, तेनैं सीसनांमो कर जोड़ा।।
अेक विरख नव टालड़ियां, बाबौ परगटियौ पंड मांहे।
कहै कुतबदीन सुण रावळ माला, अलख निरंजण थाहे।।
रावळ मलीनाथजी भगति में सिरमौड़ तौ रजपूती में भी राखै ठावी ठौड़। कवीसरां मलीनाथजी री वीरता बाराह रूप में आखी है। इण रौ अेक गीत में साखी है-
बाढ नयर बाराह विध्ंाूसै, पोकारै नित पंडरवेस।
सूअर माल चरै सलखाउत, दाढां मांह किया दस देस।।
जद ई तौ मलीनाथ नरलोक, सुरलोक अर नागलोक में पूजीजै-
प्रथी देसांतरां मुरधरा अनैरां वडेरां पीरां,
सूरवरां मुरां च्यारां पैकंबरां साथ।
श्रग रा अमरांपुरां करां जोड़ मानै सेव,
नरां अहिपुरां सुरां दीपै मलीनाथ।।


खेड़ रौ जूनौ नांव खेट हो। संस्कृत रा सिलोक में खेट नांव सूं बरणन पायौ जावै है। खेड़ रै पाखती इज किराडू (किरातकूप) नांव रा अेक बीजा सैहर रा ढमढेर भी मिलै है। खेड़ नै किराडू दोनूं ही घणा जूना सैहर हा। धरती माथै बिखरियोड़ा भाटा, दड़ा, ठीकरा अर कोरियौड़ा भाटा खेड़ री आबादी, फैलाव, बिंणज-ब्यौपार री बढ़ती, ख्याति नै नांव री मून साख भरै है। उठा री खुदाई सूं न जाणै किण जुग री संस्कृति मुंहडै बोल उठै।


history of khed near balotra rajasthan in rajasthani bhasha, story of khed by saubhagy singh shekhawat

चाइना की नामी कंपनी कूलपैड ने पेश किया है एक सस्ता किफाईती मोबाइल

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Coolpad Note 3 Lite review in Hindi - India

कूलपैड नोट 3 लाइट  मोबाइल एक ड्यूल सिम वाला मोबाइल है  जिसमे 64 बीट का कुआड कोर प्रोसेसर लगा हुआ है | साथ ही ये आप को देता है 3 GB की रेम और साथ ही फिंगरप्रिंट सुरक्षा | कंपनी ने इसकी कीमत रखी है मात्र Rs 6999/-  अमेज़न.इन वेबसाइट से आप इसे ले सकते है |
चलिए अब इसके बारे में जानते है |

Coolpad Note 3 Lite Unboxing


बॉक्स को खोलने पर आप को मोबाइल फ़ोन, स्क्रीन गार्ड, यूजर गाइड, वार्रेंटी कार्ड, डाटा केबल, चार्जर, और Earphone मिलेंगे||

Note 3 lite  मोबाइल  की बॉडी प्लास्टिक की बनी हुई है जिसके किनारे गोल्डन कलर के है |
मोबाइल का वजन :- बैटरी के साथ 148 ग्राम
लम्बाई चोड़ाई :- 70.52X141.18X8.93 mm
पॉवर बटन को राईट साइड में लाया गया है , आवाज के बटन को लेफ्ट साइड में लगाया गया है तथा ऑडियो जैक को उपर की तरफ लगाया गया है |
कूलपैड नोट lite मोबाइल में २ सिम कार्ड लगाये जा सकते है 2x micro SIM and 1x micro SD slot. इस मोबाइल में दोनों ही सिम कार्ड 4G नेटवर्क को सपोर्ट करते है |
मोबाइल में LED लाइट भी दी गई है और साथ में  accelerometer, light and proximity भी दिए हुए है |

Coolpad Note 3 Lite Display review :-

5 इंच की स्क्रीन के साथ 1280X720 पिक्साल का HD विडियो का मजा लिया जा सकता है, इस मोबाइल में स्क्रीन viewing angles भी सम्मानजनक है |
 Coolpad Note 3 Lite Memory, Storage and OS :- 
कंपनी ने मोबाइल में 16GB का स्टोरेज दिया है लेकिन आप के लिए 11 GB का फ्री स्टोरेज ही बचता है बाकि का सिस्टम फाइलों के द्वारा काम में ले लिया जाता है 
RAM :- 3 GB RAM दे गई है जिसमे से करीब 1GB सिस्टम के द्वारा काम में ले ली जाती है तथा 2GB फ्री बचती है | आप इस फोन में OTG भी काम में ले सकते है |
Software :-  Android CoolUI 6.0 with Android Lolipop 5.1
Quadrant – 12488
Antutu (64 bit) – 1st time 32072, 2nd time 33012
Nenamark 2 – 59.7fps
Internal storage Speed – Read (160MB/s), Write (43 MB/s)
Multi Touch – 5 Point.

Game :- गेम खेलने के हिसाब से ये बजट फ़ोन है, सभी गेम मेमोरी कार्ड में इनस्टॉल किये जा सकते है |

Coolpad Note 3 Lite Camera quality :-

13 मेगा पिक्साल का पिछला कैमरा LED लाइट के साथ दिया गया है तथा 5 मेगा पिक्साल का सेल्फी कैमरा सामने की तरफ है | सामान्य फोटो के साथ आप इसमें FHD विडियो भी बना सकतें है | कैमरे के सॉफ्टवेर को थोडा और अच्छा बनाया जाने की जरुरत महसूस है |

Coolpad Note 3 Fingerprint scanner :-

इस मोबाइल में पीछे की तरफ फिंगरप्रिंट स्कैनर लगाया गया है जी की काफी सटीक अक्क्म करता है आप इस सेंसर में अधिकतम 5 अँगुलियों को रजिस्टर कर सकते है | इसका लॉक खोलने के लिए 1-2 सेकंड तक ऊँगली को रख कर उपर की तरफ उठाना होगा |
Battery Life :-  coolpad Note 3 lite में कंपनी ने 2500 mAH की बैटरी लगे गई है जो की बहुत ज्यदा तो नहीं पर आप का फ़ोन एक दिन तक काम चला सकते है | एक बार चार्ज करने पर आप 3-4 घंटे तक गेम खेल सकते है |

निष्कर्ष :- इस कीमत में ये काफी अच्छा फ़ोन है इस से बेहतर फीचर आप को किसी मोबाइल में नहीं मिलेंगे | 

LeTv Le 1S mobile complete review in Hindi

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LeTv Le 1S mobile complete review in Hindi
आजकल LeTV मोबाइल के अख़बारों, टीवी व ऑनलाइन काफी विज्ञापन देखने को मिल रहे है. LeTV चूँकि भारतीय बाजार में नया नाम है तो आइये जानते है चाइना की मशहूर कम्पनी व उसके एक फ़ोन के बारे में ..
 LeTV मोबाइल कंपनी भारत में एक नया नाम है | चाइना की मशहुर कंपनी ने भारत में अपनी किस्मत आजमाने के लिए अपना स्मार्ट फोन भारतीय बाजार में फिलिप कार्ट के साथ उतारा  है. पहले ही दिन में  70000 मोबाइल बेच कर एक रिकॉर्ड कायम क्र दिया |
आज हम इस मोबाइल के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे |
कीमत :- 10,999/- मात्र 
Display :-
400 पिक्सल प्रति इंच के साथ इस मोबाइल का व्यू एंगल सकारात्मक है. 5.5 FHD स्क्रीन के साथ मूवी देखने का मजा ही अलग देता है | इस कीमत वाले सभी मोबइलों में से इसकी स्क्रीन सकारात्मक पाई गई है 
DESIGN :-
iPhone के समान देखने वाले इस फ़ोन को अलुमिनियम बॉडी के साथ बनाया गया है जो की इसको बहुत ही खुबसूरत बनता है साथ ही हाथ में पकड़ने में आसानी होती है | 7.5mm मोटाई वाले इस फ़ोन में स्क्रीन कोने से कोने तक लगाई  गई है | इसका डिजाईन इस कीमत वाले सभी मोबिलों में से सबसे खूबसूरत है | कुल मिला कर यह मोबिली देखने में काफी कीमती लगता है |
Performance :-
 यह मोबाइल 3GB of RAM, a 2.2GHz  octa-core MediaTek Helio X10 processor and 32GB स्टोरेज के साथ उपलब्ध है हमने इस फ़ोन में किसी प्रकार की हंग होने की शिकायत नहीं देखि खासकर हैवी गेम खेलते वक्त | लेकिन हैवी गेम के साथ और अधिक प्रोग्राम को खोलने पर ये फ़ोन थोडा  धीमा महसूस दिख पड़ता है | इस मोबाइल में आप हैवी गेम जैसे Asphalt 8 जैसे खेलों को आसानी से खेल सकते है |
हालाँकि देर तक काम में लेने पर यह मोबाइल थोडा गरम महसूस होता है, जैसा की आप जानते है इसकी बॉडी धातु की बनी हुई है तो गरम होना लाजमी होगा |
Camera Quality :- 
13 मेगापिक्सल ऑटो फोकस के साथ LED Light के साथ डिजिटल ज़ूम, फेस डिटेक्शन, HD video recording 1920X1080 pixal
साथ ही 5 मेगापिक्सल सामने का सेल्फी कैमरा |
Battery :- 3000 mAh के बैटरी लगी हुई है जो आप को एक दिन से ज्यादा समय तक चार्ज नहीं करनी पड़ेगी | किन्तु आप इस की बैटरी मोबाइल से नहीं निकाल सकते है |
Connectivity :- यह फ़ोन 3G, 4G, wifi gps, microusb को सपोर्ट करता है |
Security :-इस फ़ोन में फिंगर प्रिंट टच की सुविधा दे गई है |
Sensor :- Accelerator, Compass, Gyroscope, Hall Sensor, Light sensor
 निष्कर्ष :-डिजाईन, बैटरी, विडियो, आदि के हिसाब से ये अपनी कीमत के सभी मोबाइल्स को कड़ी चुनोती दे रहा है खासकर इस मोबाइल की स्क्रीन |
कमियां :-सामने का कैमरा कुछ खास नहीं है, फ़ोन में गरम होने की शिकायत है, फिंगरप्रिंट स्कैनर थोडा सा धीमा काम करता पाया गया है 
हालाँकि थोड़ी बहुत कमियां हर किसी मोबाइल में पी जाती है फिर भी कुल मिला कर यह फ़ोन काफी बेहतर फ़ोन है |

अब मोबाइल एप के माध्यम से इतिहास पढ़े

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मोबाइल पर इन्टरनेट के बढ़ते प्रयोग ने जहाँ सूचना और तकनीकी क्षेत्र में क्रांति की है वहीं मोबाइल में एंट्रोयिड नामक ऑप्रेटिंग सिस्टम आया है तब से मोबाइल ने कंप्यूटर, लेपटॉप और टैब को पीछे छोड़ दिया| इसका सबसे बड़ा कारण एंट्रोयिड ऑप्रेटिंग सिस्टम का ऑपन सोर्स होना है| यह एंट्रोयिड ऑप्रेटिंग सिस्टम के ऑपन सोर्स का ही कमाल है कि आज थोड़ा सा तकनीकी ज्ञान रखने वाला व्यक्ति मोबाइल पर प्रयुक्त होने वाली एप्लीकेशन स्वयं बनाकर इस्तेमाल कर सकता है और वही एप्लीकेशन गूगल प्ले के माध्यम से औरों को भी इस्तेमाल हेतु उपलब्ध करवा सकता है|
यही नहीं इसके ऑपन सोर्स होने से कई एप्लीकेशन डेवलपर्स ने आम जीवन में काम आने वाली ढेरों एप्लीकेशन बनाकर मुफ्त या थोड़े शुल्क में आम प्रयोगकर्ताओं को उपलब्ध करवा दी| आज मोबाइल में त्वरित सन्देश भेजने के लिए लोग एसएमएस भेजना भूलकर वाट्सएप पर निर्भर है| सोचिये यही एंट्रोयिड ऑप्रेटिंग सिस्टम ऑपन सोर्स नहीं होता तो क्या वाट्सएप संभव होता|

वाट्सएप ही क्यों गूगल प्ले पर आज हर आयु वर्ग के लिए उनकी जरुरत की ढेरों एप्लीकेशन उपलब्ध है, छात्रों के लिए पढ़ाई हेतु विषय से सम्बन्धित जानकारी से लैस एप मौजूद है तो प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए मोबाइल एप मौजूद है| बैंकिंग, चिकित्सा, रेल आरक्षण से लेकर दिल्ली में पानी के बिल भरने तक के लिए एप उपलब्ध है|

हर तरह के एप की उपलब्धता देखते हुए ज्ञान दर्पण.कॉम ने भी अपना मोबाइल एप उपलब्ध कराने के साथ साथ इतिहास पढने के शौक़ीन लोगों के लिए Indian History नाम से गूगल प्ले पर एक एप उपलब्ध कराया है, जिसमें इतिहास प्रेमी पाठक अपने मोबाइल में इतिहास पढ़ सकते है| यह एप में नियमित रूप से नई नई ऐतिहासिक जानकारियां जोड़ी जाती है ताकि इतिहास प्रेमियों को पुस्तकें खरीदनी व रखनी नही पड़े, सीधे अपने मोबाइल में जब भी उन्हें फुर्सत हो अपना प्रिय विषय इतिहास पढ़ सकते है|

इतिहास प्रेमी यह निम्न बटन पर चटका लगाकर गूगल प्ले से अपने एंट्रोयिड मोबाइल फोन में इनस्टॉल कर सकते है|



Hindi History Mobile App, Indian History Mobile App. Read Glorious History in Hindi through "Indian History" Mobile App

धाड़ौ (डाका)

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राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री सौभाग्यसिंह जी की कलम से.........

चौकड़ी (सेखावाटी) रा ठाकुर गोपालसिंघ आपरा जमाना रा अखडै़त सिरदार हूंता। अंग्रेजां रौ राज हौ पण बै कदेई किंणी रौ डर भी नीं मानियौ। साचा, खरा, टणका अर अडर सिरदार। घोड़ां रजपूतां रौ घणौ चाव। चौकड़ी रजवाड़ां मानीजतौ ठिकाणौ। चौकड़ी रा तबेला में लाछी ओध रा सौ सवा सौ घोड़ा सासता ऊभा खूद चरता अर ठरड़का करता। ठाकुर गोपालसिंघ ठाकुर मंगलसिंघ रा पाटवी बेटा हा। ठाकुर गोपालसिंघ रै दुमात रा भाई ठाकुर भूसिंघ हा। ठाकुर गोपालसिंघ अर भूरसिंघ रै ठिकाणा रा बंट बारा नै लेय नै अणबण चालती। आपस में आण जाण, बोलीचाली अर उठ बैठ भी कमती इज ही। ठाकर गोपालसिंघ चौकड़ी रा गढ़ में रैवता अर भूरसिंघ भड़ेही चौकड़ी सूं छेटी आपरै बंट रा गढ़ में रैवता।

राजस्थान में संवत उगणीस सै छप्पन में महादुरभक पड़ियौ। अन्न दांतां आंतरौ पड़गयौ हौ। लाखा मिनख डुलग्या। धणी लुगाई नै, मां बेटा नै गांवों में सूना छोड माळवौ जाय लियौ। न धान, न चारौ, न घास, न पाणी। प्राणी काया राखै तौ कींकर राखै। लोग खेजड़ाँ रा छोडा पीस-पीस नै पेट नै भाडौ दियौ। पळियौ भाटौ खाय-खाय नै आंतड़ा दाब्या। गांव-गांव में गायां, भैसियां, ऊटां नै रेवड़ खाजरुवां रा हाड़का रा झूळा चींणजग्या। धान, घास, चारौ सोना-रूपा रै भाव बिकग्यौ। फेर रोकड़ पीसा भी कठै। अैडै़ अबखै बखत मांय ठाकर गोपालसिंघ कनै सौ सवा सौ बछेरा बछेरियां ठाणां में बंधिया। पीसा टक्कां रौ भी तोड़ौ। घोड़ा नै पोखबां री ऊधेड़ बुण में ठाकुर गोपालसिंघ चार पांच आदमी साथै ले अर ठाकर भूरसिंघजी रै कोट में गया। ठाकुर भूरसिंघ उठै नीं हा, किणी काम सूं जैपुर कांनी गयोड़ा हा। ठाकर गोपालसिंघ दडै-दडै गढ़ में गया। घोड़ा सूं उतरिया अर रावळा में ठाकरां भूरसिंघ री ठकुराणी नै कैवायौ- बीनणी नै कहज्यौ- गौपालौ आयौ है। मरदाना महल नै खुलवा दिरावौ। डावड़ी रै सागै फरास चाबियां ले आयौ। महल रा किंवाड़ खोलतां ही गोपालसिंघ भीतर गया अर तिजोरी रौ ताळौ तुड़वा अर बीस हजार रिपिया काढ़ अर बां ही पगां पाछा चौकड़ी बावड़ आया।

ठाकुर भूरसिंघ रा कामेती, जनाना सिरदार डाक चौकी बैठाय जैपुर सूं भूरसिंघ नै बुलवाया। भूरसिंघ गढ़ में आया तौ सगळी हकीगत सांभळ अर चौकड़ पर धावौ बोलबा री त्यारी करी। आपरा आदमी, बीजा हेतु हेताळु ठिकाणा रा मिनख घोड़ा मंगवाया। सिलैखानां सूं ढ़ालां तरवारां, भाला, सांग, धनस-बाण, गोपणां, बंदूकां, रेखला, जुजरबा, रामचंग्यां, नाळां लेय अर मरबा मारबानै सजधज चौकड़ी कानी बहीर हुवा। दिनूगै ही चौकड़ी गढ़ रा फाटक माथै हजार आठ सौ मिनख आय लागा।

गोपालसिंघ नै ठा पड़तां ही ऊभाणां पगां, निसस्तरां भूरसिंघ रै सांमै हाथ जोड़िया आंतरां सूं ही पधारौ, पधारौ ठाकुरां पधारौ कैवता आगै आया। दरीखानां में ले गया। गोठ री त्यारी री अरज करी। पछै पूछियौ-आज आ क्रिपा कींकर व्ही। धन घड़ी धन भाग सौ रावळौ पधारणौ हुवौ। भूरसिंघ रौ आधौ जोस अर रोस भी गोपालसिंघ रा मीठा सबदां अर नरमाई सूं मिट ग्यौ। भूरसिंघ केयौ-राज म्हांरौ खजानूं लूट ल्याया। इण भांत तौ किंणी री टपरी भी नीं लूटीजै।

ठाकुर गोपालसिंघ कैयौ-गोपालौ किंण नै लूटै अर धन रौ कांई करै। अै ठाणां में बंधिया टौरड़ा भूखा मरै हा। अै आप रा ही टौरड़ा है। इणां रै घास दाणां खातर गोपालौ तौ ल्यायौ है। आप आं घोड़ा नै ले पथारौ। आप रा इज है।

ठाकुर गोपालसिंघ रै इण बरताव सूं भूरसिंघ रौ क्रोध ठण्डौ हुवौ। दोनूं भाई अेक ही पांतिये थाल जीमियौ अर भूरसिंघ पाछा आपरै गढ़ में पधारिया। जद ही कैयौ है- जबान में इम्रत बसै। बोली सूं वैर बधै अर बोली सूं विरोध मिटै। मेळ हुवै है।


वडौ कुण ?

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राजस्थानी भाषा के साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्यसिंह जी शेखावत की कलम से....

सलूम्बर (Salumber) मेवाड़ (Mewar) रौ सैंठौ ठिकाणौ गिणीजै नै मेवाड़ री थाप उथाप में आगीवांण भणीजै। सलूम्बर रा सांम चूंडावत (Chundawat) बाजै। चूंडौ राणा लाखा रौ टीकायत बेटौ। वीरता में वांकौ सूरता में सैंठौ। रावत चूंडा री जवाय रौ सलूम्बर पाट थांन। रजवाड़ां रा ठिकाणां में इण रीत जिण रीत गोपिकावां में कांन। रावत चूंडौ पाट रौ धणी होतां थकां भी आपरै पिता राणा लाखा रै अजाण में काढियोड़ा वचनां खातर आपरै टीकाई पद रौ त्याग कियौ अर पिता भगति रै जस रौ लाह लियौ। ख्यातां बातां में कीरत खाटी अर इण भांत भीसम पिता री पाळी परिपाटी।

राज रै खातर संसार में न जांणै कितरा धळ-धौंकल हुवा। बेटौ बाप नै मारियौ। बाप बेटा नै तरवार रै घाट उतारियौ। सहोदर सहोदरां रा सिर बाढिया अर भतीजां काकां रा कंठ काटिया। राज-रजवाड़ां रा जूनां इतिहास अैड़ा इज रगत सूं रळथळ मिळै। पण रावत चूंडै मेदपाट रा राज रौ, हिंदुवां भाण रा पद रौ, दस सहस गांवां रा धणी पणा रौ हक छौड़तां नाक में सळ इज नीं घालियौ। ऊकरड़ी रा ठीकरा ज्यूं राज रै ठोकर मारी। बौळाई रा बासण ज्यूं राजगादी ने जणाई। अर आपरा दुमात रा छोटा भाई मोकळ नै मेवाड़ रौ खावंद बणाय सांमध्रमता रै साथ मोकळ री चाकरी बजाई। रजवट री म्रजाद खराखरी निभाई अर रुघवंस रै आदर्स माथै भळभळाती किलंगी इज जांणी चढ़ाई। इण सूं सलूम्बर नै सलूम्बर रा धणी चूंडावत आखा राजथानां में आदरजोग, सरधाजोग गिणीजिया नै चौखतीख में सिरै भणीजिया। कवीसरां री वाणी में कथीजिया “उदियापुर चूंडा सिरै, सेखाघर आमेर।’’


मेवाड़ रा महीप महाराणा अड़सी रै समै मेवाड़ में दिखणियाँ रौ ठाढौ झोड़ पड़ियौ। दिखणियां री राफट रौळ में मेवाड़ री म्रजाद मौळी पड़ी। ग्वालियर रौ राजा महादाजी पटेल मेवाड़, ढूंढाड़ अर मारवाड़ में घणी अबखी बिताई। ठौड़-ठौड़ खागां चमकाई। चंडिकावां नै रुधिरपान सूं त्रिपताई। सिव नै फूलां री ठौड़ मुण्डा री मांळावां पहराई पण मरेठा रजवाड़ां नै फोड़ा पाड़ण में कसर नीं रखाई। महादाजी रूपी मदंध मैंगळ सूं मुहरौ करण खातर राणै अड़सी चित में उपाई अर मेवाड़ री म्रजाद रा रुखाळा, जमराज रा साळा, कळह रा कराळा चूंडावत, सकतावत, राणावत, झाला, चहुंवाण, तंवर अर पिता, पूत नै भंवर सकला नै अड़सी तेड़ाया। आंटीला अखडै़त, पवंगा पखरैत, चढ़िया पाळा उदयपुर आया अर महादाजी संू रटाकौ लेण नै उजीण (मालवा) नै चलाया। उण समै अैड़ासा लखाया कै उरबसी रा आसक कै सांमध्रम रा उपासक। वीरभद्र रा भाई कै जमराज रा जंवाई। भाभाड़ा भूत सा भयंकर, खळदळां रा खंयकर जिका चाल नै उजीण आया अर महाकाल रै थांन मंदार रा फूल चढ़ाया। सिप्रां में तन झकोळिया अर दिखणियां माथै खांडा तोलिया। मेवाड़ री सेना में साहपुरा रौ अधीस ऊमेदसिंघ राणावत, सलूम्बर रौ साहिब पहाड़सिंघ चूंडावत, झालावाड़ रौ जालिमसिंघ झालौ आद कितरा ईज जंग जोधार महादाजी रूपी सागर में जहाज रूपी मेवाड़ री थांमियां पतवार। राजा ऊमेदसिंघ साहपुरा साठ साल रा नै रावत पहारड़सिंघ सलूम्बर मगर पच्चीसी में। अेक तो संसार री ताती सीळी पवन रा लहरका लियोड़ौ नै बीजौ वय-बसंत रै बारणै पग दियोड़ौ। राजा ऊमेदसिंघ छोटी वडी चौरासी लड़ायां लड़ियोड़ा। महाराजा सवाई जैसिंघ ढूंढाड़, महाराजा अभैसिंघ मारवाड़, महाराजा ईसरीसिंघ कछावा, राजाधिराज बखतसिंघ नागौर, महाराव राजा ऊमेदसिंघ हाडा, राव मल्हार इंदौर इत्याद रै साथ घणा-घणा रटाका खायोड़ा, अपछरावां सू आरतियां उतरायोड़ा अर जीवतसंभ कहवायोड़ौ। सरब भांत खायी पीयी रा धणी। पूत पोता सगळी तरै राम राजी। राड़ रा रसिया ऊमेदसिंघ सांथरा री मौत री मानता सदा करता सौ मनचायौ प्रब आयौ जोय उछब-सौ रचायौ अर मेवाड़ रा सूरमां सांवतां नै कसूम्बौ दिरायौ। उण समै विकसतै वदन रै, उभरतै अंगोटै रै, झूमतै जोबन रावत पहाड़सिंघ नै देख नै फुरमायौ रावतजी ! थारी उमर अजै खावण पीवण री है। संसार रौ सीळौ तातौ, खाटौ मीठौ थां घणौ चाखियौ नीं है। आज रौ रटाकौ बीजी भांत रौ लखावै है नैं जै-पराजै तो वेह रै लेखै इज लखावै है। राज, आज रै झगड़े में पग नीं मेलै अर ऊमेदसिंघ तौ खायी रौ धणी है सौ अखेला खेल भले ई खेलै तौ कांई अड़ांस है ?

पण वडौ छोटौ आवड़दा सूं नीं गिणीजै। पहाड़सिंघ कैयौ, पहाड़सिंघ तौ राज संू छोटौ है, पण सलूम्बर तौ मोटौ है। मेवाड़ रा धणी सूं सलूम्बर री वय वडी है। पहाड़सिंघ लड़ाई सूं टाळौ खावै तो सलूम्बर री लाज म्रजाद बिल्लै लाग जावै अर रजवाड़ों में म्रजादा री कळलोपना-सी गिणत में आवै। आरबल रा तौ गिणत रा दिन हुवै पण बात जुगां चालै अर काची खाया आखी जिनगानी सालै सौ राणेराव अैड़ौ नीं फरमाइजै अर उजीण रौ धाम, सिप्रारौ तीरथ, सांध्रम रौ तकाजौ दई जोग सूं नीठ सौ लाधौ है सौ घोड़ा री बागां उठाइजै। मां मेवाड़ रै गौरव खातर जीव झोकाइजै अर रामायण महाभारत रौ सौ चकाबोह दिखाइजै। इण भांत रौ रावत पहाड़सिंघ जाब दियौ जद राजा ऊमेदसिंघ अर बीजा सांवतां वाह वाह कैयौ। ऊमेदसिंघ फरमायौ-राज री सल्हा वडी है। सलूम्बर री सपूती री आ लारली सूं आगली कड़ी है। फेर कांई ढील देखौ। ढोली सिंघव राग में दोहा देवण लागा अर रीझ मोजां पांवण लागा। सूरवीरां रा मन मरण नै उमावण लागा नै कायर कमजोरां रा काळजा धड़क-धड़क कंपावण लागा। दोनां फौजां री बागां ऊपड़ी अर नगारां पर चौबां पड़ी। सूर धीरां आम्हा साम्हा चलाया जिकां नै देख सिवासिव मुळकाया। महादाजी पटेल रा कमनेतारा तीरां सूं कितरा इज कळह कामणां रा खांविंद तडच्छा खाय रणभौम में लोटण लागा अर कितरा इज मूर्छा भंग उठ-उठ नै मरहठां रा झूलरां नै बोटण लागा। मेवाड़ रा पांच हजार जोधार मरेठां री पैंतीस हजार प्रतना रा पग उठाय दिया अर जीत रा नगारा घुराय दिया। पण, इतरां में दादू चेलां री जमात रा पट्टबाजां री कंवारी घड़ा आयी अर मेवाड़ री फतै पराजै में पलटी खायी। सात हजार मरैठा नै सांथरै सुवाया अर पछै ऊमेदसिंघ, पहाड़सिंघ सुरगापुर सिधाया। इण रीत ल्हौड़ वडाई रौ फैसलौ हुवौ जिकौ राजस्थान में छोटौ महाभारत इज कहीजियौ। म्रजादा रै आगै उमर न्हाटी। इण रीत पहाड़सिंघ कीरत खाटी। वडौ उमर सूं नीं, किरतब सूं गिणीजै। मोटा तौ भाखर हुवै जिकां में भाटा नीसरै। मिनख रौ छोटी-मोटौ उणरौ किरतब गिणीजै। गुण गेल पूजा। औ इज मोटा पणा रौ परवांण जाणीजै।


History of Salumber and Chundawat Rajputs in Rajasthani Bhasha
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