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माण्डण का युद्ध : यूँ मिला प्रमाणिक इतिहास

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माण्डण का युद्ध (Mandan near Rewari and Narnol) सं. 1822 वि. (सन् 1775 ई.) में लड़ा गया था, जिसकी स्मृति प्रत्येक शेखावत घराने में आज भी ताजा बनी हुई है। विशेष रूप से झुंझुनू और उदयपुरवाटी परगनों का प्रत्येक Shekhawat परिवार इस बात का दावा करता है कि उसका कोई एक पुरुखा माण्डण के युद्ध Mandan-Yuddh में अवश्य लड़ा था। अधिकांश कुटुम्बों के योद्धाओं ने माण्डण के समरांगण में प्राणों की आहुतियाँ देकर अपने वंशजों को ऊँचा मस्तक रखने का गौरव प्रदान किया था। कहा जाता है- माण्डण के उस रक्तरंजित युद्ध में सैकड़ों ऐसे नवयुवा वीरों ने अपना रक्त बहाया था, जो उसी समय विवाह करके अपनी नव वधुओं के साथ घरों को लौटे थे और जिनके मंगल सूचक डोरड़े (विवाह के समय हाथ की कलाई पर बांधा जाने वाला रक्षा सूत्र) विधिवत खोले ही नहीं जा सके थे।

यह युद्ध उस वक्त लड़ा गया जिस युग के फूट से जर्जरित राजपूत समाज में जन्में और षड्यंत्रों से दूषित राजनीतिक वातावरण में पले उन शेखावत योद्धाओं ने किस प्रकार एक दिल दिमाग होकर अपनी मान मर्यादा और भूमि व स्वतंत्रता की रक्षार्थ दिल्ली के सम्राट की शक्तिशाली सेना से टक्कर ली और अपने प्राणों की बाजी लगाकर-माण्डण के रणक्षेत्र को रक्त से आप्लावित कर अनेक घटकों से बनी शाही सेना को हराने में वे समर्थ हुये। इस युद्ध में जयपुर की सेना के साथ ही भरतपुर की जाट सेना ने शेखावतों के सहयोगार्थ युद्ध लड़ा और वीरता प्रदर्शित की थी|


पर अफ़सोस इस युद्ध के बारे में इतिहास में कहीं ज्यादा जानकारी नहीं थी, एक तरह से शेखावतों के साथ शेखावाटी के सभी जातियों के वीरों द्वारा अपनी स्वतंत्रता के लिए दिए इस बलिदान की यह घटना इतिहास में दफ़न हो गई| जिस किसी इतिहास में इस महत्त्वपूर्ण युद्ध के बारे में जानकारी दी गई वो काफी कम या गलत थी| इस युद्ध का युद्ध का प्रामाणिक हाल न मिलना, इतिहासानुरागियों और शोधकों के लिये खटकने वाली वस्तु थी। इसी कमी को पूरा करने के लिए इतिहासकार देवीसिंह मंडावा, ठा. सुरजनसिंह शेखावत, झाझड़, ठा. सौभाग्यसिंह, भगतपुराआदि प्रयासरत थे| आखिर ठाकुर सुरजनसिंह जी शेखावत इस युद्ध का प्रमाणिक इतिहास खोजने में सफल रहे| ठा. सुरजनसिंह जी शेखावाटी की इस महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना पर अनायास ही प्रमाणिक शोध सामग्री मिलने पर अपनी पुस्तक "मांडण-युद्ध" में लिखते है-

"शेखावत इतिहास विषयक सामग्री संकलन करने हेतु सन् 1968 ई. के दिसम्बर मास में बिसाऊ Bissau जाना हुआ। वहाँ बिसाऊ के ठाकुर रघुवीर सिंह के, जिनका सन् 1971 में स्वर्गवास हो चुका है, सौजन्य से उनका पुराना रेकार्ड रूम और संग्रहालय देखने का सुअवसर मिला। वहां एक बस्ते में कुछ हस्तलिखित गुटके बंधे हुये थे। सभी गुटके सुन्दर व साफ अक्षरों में लिखे हुये पढ़ने में आने जैसे थे। उसी बस्ते में एक छोटा हस्तलिखित गुटका ऐसा भी था जो पढ़ने में बिल्कुल नहीं आ रहा था। महाजनी घसीट में लिखा, बिना मात्रा के अक्षरों से युक्त जगह-जगह कटाफटा वह गुटका बिल्कुल बेकार सा मालूम हो रहा था। उसको अनुपयोगी समझकर अलग छांट दिया गया। मैंने उस गुटके को पढ़ने का प्रयास किया। कई अक्षरों को जोड़कर अनुमान से मात्रायें लगाकर जब उसे पढ़ा गया तो उसमें ऐतिहासिक व्यक्तियों और प्रमुख स्थानों के अनेक नाम पढ़े जाने पर मेरी जिज्ञासा उसे पूरा पढ़ने की बढी और मैंने उसी समय उस गुटके को किसी भी प्रकार पूरा पढ़ने का निश्चय कर लिया। उक्त गुटका मैं अपने साथ झाझड़ लेता आया और उसे पढ़ने का प्रयत्न जारी रखा। बारबार प्रयत्न करने पर अक्षर चल निकले। अक्षरों की आकृति एवम् मोड़ समझ में आ जाने पर मैने उसे दुबारा पढ़ना आरम्भ किया। दो चार छन्द पढ़ जाने पर ही ऐसा प्रतीत होने लगा मानो यदुनाथ सरकार के ‘मुगल साम्राज्य का पतन’ नामक ग्रन्थ से ही कोई घटनाक्रम पढा जा रहा हो । सारा गुटका पढ़ जाने पर उसमें लिखित अमूल्य ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त करके मुझे अपार हर्ष हुआ। गुदड़ी में छिपी लाल मुझे मिल चुकी थी। माण्डण युद्ध के पूर्वाऽपर के जानने के लिये कुंवर देवीसिंह मंडावा और मैं वर्षों से प्रयत्नशील थे।

अनायास ही माण्डण युद्ध विषयक वे सारे तथ्य क्रमबद्ध रूप से इस गुटके से मिल गये। ‘ख्याल’ की तर्ज पर रचा गया यह माण्डण युद्ध का वर्णन था, जिसमें युद्ध की पृष्ठ भूमि पर प्रकाश डालते हुये-युद्ध का सांगोपांग वर्णन किया गया था। ‘ख्याल’ की तर्ज पर रची गई यह रचना यद्यपि साहित्यिक दृष्टि से उच्चस्तरीय नहीं है किन्तु उसमें अमूल्य और अप्राप्य ऐतिहासिक तथ्य भरे होने से वह बड़े महत्व की है। मात्रा रहित घसीट अक्षरों में लिखे गये एवम् अशुद्ध छन्दों में आबद्ध वे बहुमूल्य ऐतिहासिक तथ्य-जीर्णशीर्ण पुराने भद्दे पात्र में भरी स्वर्ण मुद्राओं की भांति दमक रहे हैं। उसका शीर्षक है:-‘‘अथ माण्डण का झगड़ा लिख्यते।’’

एक साधारण कम पढ़े लिखे व्यक्ति द्वारा जो साहित्यकार भी नहीं था, द्वारा रचित इस रचना द्वारा इतनी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी मिलने पर ठाकुर सुरजनसिंह जी लिखते है-'रचना के साहित्यिक स्तर को देखने से ऐसा विदित होता है कि रचनाकार साहित्य और छन्द शास्त्र का पूर्ण ज्ञाता नहीं था, इसकी रचना में काव्य दोष भरपूर हैं। छन्द रचना में छन्द शास्त्र के नियमों के पालन पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है। हस्व दीर्ध की अशुद्धियों के लिये तो लेखन दोष के कारण कुछ भी नहीं कहा जा सकता। कविता में दृश्य त्रुटियों के लिये, यह भी शंका व्यक्त की जा सकती है कि रचना के लेखक ने-जो साधारण पढ़ा लिखा और बिना मात्रा लगाये ही लिखने का आदि था- लिखने में गलतियां की हों और उसी के लेखन दोष से कविता का स्तर गिर गया हो उस समय में घटित ऐतिहासिक घटनाओं की पूर्ण जानकारी रखते हुये भी मीठुलाल अपनी रचना में स्पष्ट और सुन्दर ढंग से उनकी अभिव्यक्ति करने में असमर्थ रहा है।"


Mandan yuddh history in hindi

राष्ट्र व समाजद्रोह के नये पैमाने घड़ने में लगे ठेकेदार

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जब से मानव समाज के रूप में रहने लगा, मानव की रहन-सहन संस्कृति विकसित हुई| मानव द्वारा सामाजिक व राज व्यवस्था स्थापित करने के बाद समाज व राष्ट्र के विरोधी कार्य को समाज व राष्ट्रद्रोह के रूप में जाना जाने लगा और इस द्रोह की जघन्यता के आधार पर इसके लिए कई दंड लागू किये, जो आज भी विभिन्न देशों के संविधान व सामाजिक नियमों के रूप में विद्यमान है| प्राचीन काल से ही राष्ट्रद्रोह के लिए जहाँ मृत्युदण्ड सहित देश से निष्काषित करने की सजाएं प्रचलित रही, वहीं समाज विरोधी कार्य मसलन सामाजिक परम्पराएं तोड़ने आदि के लिए समाज से निष्काशन की सजाएं प्रचलित रही है| समाज द्वारा स्थापित परम्पराओं को तोड़ने के चलते कुछ वर्ष पूर्व खांप पंचायतों के फरमानों व उनके द्वारा समाजद्रोह के आरोपियों को सुनाई सजाएं चर्चा व बहस का विषय रही है|
किसी भी देश में राष्ट्रद्रोह की सजा उसके संविधान के अनुरूप में न्यायपालिका तय करती है, लेकिन आजकल देखा गया है कि लोग स्वयं को बड़ा राष्ट्रवादी और राजनैतिक विरोधी को राष्ट्रद्रोही घोषित करने में तुले रहते है, हालाँकि उनके इस तरह आरोप की कोई क़ानूनी मान्यता नहीं होती, लेकिन राजनैतिक तौर पर एक दुसरे को नीचा दिखाने के लिए राष्ट्रद्रोह जैसे जघन्य आरोप लगा दिए जाते है| इस तरह लोग अनजाने में ही राष्ट्रद्रोह जैसे जघन्य कृत्य को हल्का करने में लगे है|

ठीक ऐसे कुछ राजनैतिक दल जो खुद जातिवाद, सम्प्रदायवाद का घिनौना खेल खेलते रहते है, विरोधी दल पर जातिवाद, साम्प्रदायिकता का आरोप लगाकर चिल्लपों मचाये रहते है| इस देश में ऐसे जातिवादी व साम्प्रदायिक तत्वों की कमी नहीं है जो खुद हर वक्त अपनी जाति व सम्प्रदाय के हित की बात करते हुए दूसरी जातियों व सम्प्रदायों को कोसते रहते है, पर फिर भी उन्हें अपना किया नजर नहीं आता और जो काम खुद करने में मशगुल रहते है, उसका आरोप दूसरे पर ठोक देते है|

सामाजिक संगठनों के कार्यकर्त्ता भी दूसरे संगठन के लोगों को नीचा दिखाने की होड़ में उन्हें तुरंत समाज के गद्दार या समाजद्रोही घोषित कर देते है| हालाँकि इस तरह आरोप लगाने वाले स्वयंभू सामाजिक ठेकेदारों द्वारा लगाये जाने वाले आरोपों को समाज कोई भाव नहीं देता, लेकिन सामाजिक संगठन के लोग इस तरह के आरोपों के बहाने प्रतिद्वंदी संगठन के चरित्रहनन का कोई मौका नहीं चूकते|

जबसे सोशियल मीडिया का प्रचलन बढ़ा है और लोगों को अभिव्यक्ति के लिए सोशियल मीडिया रूपी एक आसान हथियार मिला है, इसका प्रयोग करते हुए सामाजिक संगठन के कार्यकर्ताओं द्वारा समाजद्रोही या समाज के गद्दार घोषित करने या किसी सामाजिक नेता पर इस तरह के आरोप लगाने के प्रकरण नित्य बढ़ रहे है| प्राय: प्रतिदिन सोशियल साइट्स पर सामाजिक कार्यकर्ता अपने आपको कौम का बहुत बड़ा तारणहार, सिपाही, शुभचिंतक प्रचारित करते हुए प्रतिद्वंदी संगठन, या वे असंतुष्ट होकर जिस संगठन को छोड़ चुके, उस पर इस तरह के घटिया आरोप-प्रत्यारोप लगाते नजर आ जायेंगे|

सोशियल साइट्स पर इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप देख-पढ़कर लगता है कि अपने आपको समाज का सबसे बड़ा हितचिन्तक समझने वाले, समाज के कथित स्वयंभू ठेकेदारों ने अपने-अपने विचारों के अनुरूप समाजद्रोह की परिभाषाएँ घड़ रखी है, और जो व्यक्ति उनके स्वार्थ में बाधक बनता है, उसे तुरंत समाज का गद्दार, समाज के नाम दूकान चलाने वाला, समाजद्रोही, आदि उपमाओं से विभूषित कर देते है| जबकि इस तरह के कार्यों में वे खुद संलग्न रहते है| सोशियल साइट्स पर अभिव्यक्त कथित राष्ट्रवादियों व कथित कौम के हितैषियों की इस तरह के घटिया आरोपों को देखते हुए लगता है, इन कथितों ने राष्ट्रद्रोह, समाजद्रोह घोषित करने के निज-स्वार्थ अनुरूप नये पैमाने घड़ लिए है|

ऐतिहासिक व्यक्तित्व: गोपालदास जी गौड़

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Gopaldas Gaur Story in Hindi, History of Gaur Rajput in Hindi
गौड़ बंगाल का राजा रणजीत गौड़ हिन्दाल से युद्ध करता हुआ मारा गया। उसके चंपावत नगर को एक रानी बाघेली थी। रानी बाघेली के हरचन्द नाम का पुत्र हुआ। हरचन्द के दो जुडवा पुत्र थे उनके नाम (1) वत्सराज एवं (2) वामन था। ये दोनों राजकुमार अपने काफिले के साथ 12 वीं शताब्दी में पुष्कर आये। वहां से वे अजमेर पहुंचे। उस समय अजमेर चौहानों की राजधानी थी। अजमेर के तत्कालीन शासक विग्रहराज चतुर्थ ने इन गौड़ राजकुमारों के व्यक्त्तिव एवं साथी सैनिकों को देखकर अपने पास रखने का विचार किया। विग्रहराज ने उन दोनों भाइयों को अपने पास रखकर अपने अधिनस्थ नागौर एवं परबतसर के विद्रोही दहिया राजपूतों को काबू में करने के लिये भेजा। वत्सराज एवं वामन ने अपने गौड़ सरदारों की सहायता से दहियों को दबा कर शान्ति स्थापित की। जिससे प्रसन्न होकर अजमेर नरेश ने वत्सराज को केकड़ी, जूनीया, सरवाड़ तथा देवलिया के परगने दिये तथा वामन को कुचामन एवं मारोठ का स्वामी बनाया। इस प्रकार गौड़ राजपूत अजमेर को अपने वतन की जागीर मानकर कालान्तर में अजमेर के स्वामी बन गये थे। इस कथा का नायक गोपालदास इन्हीें गौड़ों का वंशज था।

गोपालदास गौड़ ने अजमेर परगने को छोडकर जाने का निश्चय किया, प्रारम्भ में तो गौड़ अजमेर के स्वामी थे। बाद में अजमेर शहर बादशाह के सूबे में रहा, जिससे परेशानी रहती थी। चौथे पाँचवे वर्ष सुवायत बदल दी जाती थी जिससे कठिनाई बढती रहती थी।
गौड़ अपनी भूमि होने के कारण विपत्ति के दिन काट रहे थे। गौड़ों में गोपालदास जैसे योग्य पुरुष ने जन्म लिया। उन्होंने गौड़ों को इकटठा किया और कहा आप सब यहां दयनीय स्थिति में जी रहे है। राज्य तो गया केवल परगने के नाम पर रुके बैठे हो। परन्तु परगने का कर माँगते है, इस प्रकार हमारा शोषण हो रहा है। कोई पूछने वाला नहीं। जमींदारी (जागीर) टूटने पर कोई (कद्र) इज्जत नहीं करता। इस प्रकार आपका कृषि का धंधा भी बन्द हो जायेगा।अभी तक तो हम सब ताकतवर है, जब ताकत टूट जायेगी तब कोई नहीं पूछेगा। यदि आप सब मिलकर एक साथ चलोगे तो कहीं अच्छी जागीर मिलेगी। अन्यथा मैं तो यहां से जाऊंगा।
तब गौड़ों ने कहा-
जो फुरमावस्यो आप सो, करस्यां म्है सब लोग।
सुमति सु भगवान की, देसी आगे भोग।।


संपूर्ण गौड़ एकमत होकर चलने को तैयार हो गये, उनमें अग्रणी गोपालदास थे, शेष सभी भाइयों ने उनके आदेश का पालन किया। दौड़ों की पांच हजार बैल गाडियां जोती गयी। एक हजार घोड़ों पर जिन कसे गये। चार हजार पुरुष तलवार चलाने वाले साथ चलें। इस अजमेर परगने से गौड़ दक्षिण में बीजापुर के बादशाह की सेवा प्राप्त करने के लिये सपरिवार चल पड़े। मार्ग में चलते-चलते बूंदी पहुंच कर रात्रि विश्राम हेतु डेरा लगाया। उस समय बूंदी में हाडा राजपूतों का शासन था। बूंदी का शासक भोज हाडा राजपूत था। राजाभोज उस समय बादशाह जहांगीर के पास लाहौर तथा कश्मीर में नियुक्त था।

बूंदी में उसकी राणी शासन प्रबन्ध चलाती थी, जो काफी समझदार तथा बुद्धिमति थी। वह बिना पगड़ी की पुरुष ही थी। राज्य का सारा काम रानी के समाने बैठकर उसके दीवान करते थे। काम-काज के प्रश्न-उत्तर स्वयं रानी सुनती और आदेश भी रानी ही देती थी। गौड़ों के आकर रात्रि विश्राम करने की सूचना गुप्तचरों ने रानी को दी। रानी ने तत्काल दीवान को बुलाकर गौड़ों के प्रबन्ध के लिए पांच सौ रूपये रोकड़ी, बीस मन मिठाई, एक सौ जादी घास की उनके डेरे पर भेजी।

रानी ने गोड़ों को बूंदी में ही रुकने तथा बसने का आग्रह किया। प्रारम्भ में तो गोपालदास गौड़ ने वहां रुकने से मना कर दिया, पर रानी के निरंतर आग्रह तथा लखेरी और कई बड़े परगनों की जागीरदारी लेकर गोपालदास अपने दल बल के साथ वहां रुक गए। गोपालदास ने चारों तरफ के धुलकोट को मजबूत कराया तथा अच्छी तरह से रहने लगे। बस्ती की देखभाल सही ढंग से करने लगे। अपने परगने की सुरक्षा व्यवस्था बहुत अच्छी कर दी। चोर डकैतों का भय मिट गया। बस्ती में अच्छे-अच्छे व्यापारी आकर बस गये। लखपति व्यापारियों ने लाखेरी में आकर अपना धन्धा चालू किया, जिससे दो वर्षो में ही बहुत अच्छी आमदनी हुई। जब सबको सुरक्षा व्यवस्था का अच्छा अवसर मिलता है तो सभी प्रकार से विकास होता है, जिससे जन-मानस में प्रसन्नता व्याप्त होती है तथा सभी लोग एकमत होते है। गोपालदास को सब अपना सरदार (मुखिया) मानते थे। सब लोग उनके आदेश की पालना में तत्पर रहते थे। गोपालदास भी अपने सभी लोगों को अपने बराबर ही समझते थे, इसलिये वे सब उन्हें अपना सच्चा सरदार (मुखिया) मानते थे।

एक बार-दो नवाब इसाबेग मुगल तथा युरोखां पठान चोरों, डकैतों का एक गुण्डा गिरोह बनाकर लोगों को लुटने के लिये निकल पड़े। बादशाह जहांगीर के राज्य में इन डाकुओं ने बड़ा आतंक फैलाया। बादशाह कश्मीर में था और इन दोनों बागियों ने उसके राज्य की जनता से (टका) रुपया वसूल करने लगे। वे कहते या तो खर्चा दो या फिर मरने को तैयार हो जावो। दो-तीन जगह उन्होंने भारी मार काट व लूट-खसोट की, जिससे इनका लोगों में भयकर आतंक छा गया। राजा लोग उनकी माँग पूरी करने को मजबूर हो गए। इन दोनों ने मालवे में उज्जैन के सूबेदार से भी खर्चा लिया, राणाजी से भी धन वसूल किया। हाड़ौती में धन वसूल करते हुये बूंदी आ पहुंचे।

बूंदी शहर से एक कोस दूर एक पहाड़ी के उस तरफ उन लोगों ने अपना पड़ाव डाला। उनके पास बीस हजार आदमी तथा हाथी थे।
बूंदी पर दबाव डाला। बूंदी के प्रधान उनके पास गये। उन्होंने पच्चीस लाख रुपयों की माँग की। प्रधान ने आकर बूंदी के पांच हजार लोगों को बुलाकर उनकी राय पूछी। गोपालदास के पास लाखेरी आदमी भेजा कि इस प्रकार की विपत्ति आ गई है। आप शिघ्र पधारे। आप की सम्मति से ही काम होगा।
तब गोपालदास लाखेरी से तीन हजार सवार तथा दो हजार पैदल सैनिक साथ लेकर बूंदी पहुंचे। दरबार में आकर बैठे। रानी चिक (पर्दा) लगाकर झराखेे में बैठी, दीवान व सभी उमराव दरबार में उपस्थित हुए। विचार विमर्श शुरू हुआ।
गनीम आयो जोर कर, मांगे लाख पचीस।
करणों अब की चाहिजे, देउ सलाह अबनीस।।


उन्हें दबायेंगे तो बीस लाख रूपये लेकर राजी होगा। यदि लड़ेंगे तो उनका मुकाबला नहीं कर सकेंगे। उनके पास सेना बीस हजार है फिर (मुल्क) प्रदेश सम्भव नहीं है। इसलिए आप जैसी सलाह देंगे वैसा करेंगे।
अगले दिन प्रातः काल प्रधान को साथ लेकर दो सौ सवारों के साथ गोपालदास उन दोनों नबाबांे के पास पहुंचे। वहाँ जाकर दोनों से मिले, बातचीत की। आपस में विवाद हुआ। तब उन्होंने दबाव दिया।
गोपालदास ने कहा दस लाख नकद रूपये लेकर पन्द्रह दिन में यहां से प्रस्थान कराओ
यह सुनकर पठान क्रोधित होकर बोला-
फजर होते ही लेऊंगा रुपया लाख पच्चीस।
न देवो तो देखणा, काट गिराऊं शीश।।
सीधे पण सूं ना धरो, हो हिन्दू बद जात।
मार गिराऊं गरद में, लुटंूगा परभात।।


अन्त में बात साढ़े 12 लाख में ते हुयी

डेढ़ पहर दिन चढने पर वापिस बूंदी पहुंचे। दीवान ने सारी बातें रानी को सुनाई। राणी सारा वृतान्त जानकर बोली- “बहुत अच्छा किया पच्चीस लाख का बाहर लाख कराया तथा पन्द्रह दिन का समय निश्चित किया। सभी लोग गोपालदास की प्रशंसा करने लगे कि गोपालदास ने ही हमारी बात रखी है। दोपहर बाद गोपालदास अपने योद्धाओं को युद्ध की वेशभूषा में तैयार कर अपने साथ लेकर पूरी तैयारी के साथ बूंदी के दरबार में आये, सभी साथियों, सरदारों को एकत्रित किया। कुंवर साहब को बाहर बुला कर कमर बंधा कर तैयार किया।

उमराव तथा दीवान ने गोपालदास से पूछा यह तैयारी कैसी?
गोपालदास बोले (कजियो) युद्ध करेंगे।
तब सब बोले-
देण लेण सै तै हुवो, राणी कियो कबूल।
कासू बिगड़ी अब कहो, कजियो करो फिजूल।।

गोपालदास बोले-
जद आपां देवा टका, सूरज रथ खैंचे जणा।
रजपूती छे हाथ में, टका लेवण नूं घणा।।

ऐसी बात सुन कर सभी तरह-तरह की बातंे करने लग गए।
तब राणी ने कहा-
भावै सों ठाकुर करै, अड़ी करो मत कोय।
इनकी मैं मानु सदा, होणी हो सो होय।।

गोपालदास बोले कंुवर साहब तत्काल घोड़े पर सवार हो जावें। दीवान तथा उमरावों ने कहा कुंवर साहब बालक है। इन्हें यही रहने दो हम सब साथ है। गोपालदास बोले-
क्यों कर हाला कुंवर बिन, सब रहिस्या इण पास।
डर लागे किण सूं तुम्हंे, बार्ता करो उदास।।

राणी ने जवाब दिया-
सगली बार्ता दुरुस्त छे, कुंवर जायसी आज।
मो नूं डर कुछ भी नहीं, राखे गोविन्द लाज।।

सब तैयार होकर घोड़ो पर सवार हुए और नबाब के पडाव की तरफ चल दिये। सूर्यास्त से दो घड़ी पहले उन पहाड़ो के पास जाकर रुके। वहाँ गोपालदास बोले-

इस जगह कुंवर जी को खड़ा रखो और बूंदी के सभी लोग इनकी सुरक्षा के लिए इनके पास रहो।
तब साथ वाले बोले सब को यहां क्यों खड़ा रखते हो ? दस-पांच आदमी कुंवरजी के पास छोड़ दो (बाकी) शेष सभी काम के आदमी साथ चलो। गोपालदास बोले यह परेट बांध कर लड़ाई नहीं है (दोहा छछोहा) छापा मार आक्रमण है। ठाकुर जी हमारा साथ देंगे और सफलता मिलेगी तो करनाल बजावे उस समय तुरंत आ जाना। नहीं तो जैसा अवसर देखो वैसा करना।

ऐसा कहकर बूंदी की सारी सेना को वहीं खड़ाकर दिया। अपने सभी साथियों को साथ लेकर गोपालदास आगे बढ़े। पहाड़ी को पार करते समय सूर्य भगवान अस्त हो गये। गोधूली बेला का समय था। डेरे में सभी लोग खाना बनाने में व्यस्त थे। . चारों और धुआं फैला कर अपने कुंवर बलरामसिंह ने कहा-
आधो संग ले साथ तुम, करहु मुगल पर मार।
बाकी संग रे साथ हम, देहि पठाण नूं मार।।
अहडो तांतो भेल जे, पहुंचे ममरे द्दार।
फेर कचाई ना रहे, करजे गहरों वार।।
राजपूती रे नाम हित, है यह अवसर आज।
बेटा रण कर जीव सूं मत ना करजे लाज।।
जिण घर खायो अन्न हम, तिण घर संकट देख।
आज दिखादे चाकरी, ईश्वर रख से टेक।।

तब बलरामसिंह ने उत्तर दिया-
फिकर करा मत आप तो, आप रहो खुश हाल।
ठाकुरजी करसे भली, मुगल हनू तत्काल।।
रण जीतण ओसर करण, हरि भज खेती जोय।
मन वांछित से कामना, एक मनो सिध होय।।

अपने सभी सैनिक एव सरदार एक सूत्र में है। आप चिन्ता मत करो। पुत्र राजपूती पर आच न आने देगा।
इतना कर योजना अनुसार नवाब के शिविर में घुस गये। सैनिकों ने पूछा आप लोग किसके साथ है तो उत्तर दिया टका देने आये है। आगे बाजार में पहुंचे तो लोगों ने फिर पूछा तो उनकी भी यही उत्तर दिया। बाजार के मध्य में व्यापारियों, मोदियों तथा सर्राफों की दुकानों पर पूछा किसका साथ है ? तो उत्तर दिया नजराना (टका) देने आये है।

उन्होंने कहा इतना साथ क्यों है ? नजराना के तो ऊंट व गाढे होते है एक भी नजर नहीं आते। आप इतनी तैयारी के साथ आये हो, कौन हो ? इतना सुनते ही घोड़ों की बागें खिंची। घुड़सवार सैनिक डेरे में जा घुसे। पैदल सैनिक बायें तथा दायंे भाग में प्रवेश कर गये। वे लोग अपनी-अपनी जगह घर लिये गये। डेरे में पहुचे कर भयंकर मार काट मचा दी। दोनों नवाबों के पास दस-दस नौकर थे, वे तो भाग गये। दोनों नवाब नमाज पढने में लगे थे। दोनों को मार दिया गया। वीर बलरामसिंह ने मुगल ईसाबेग का सिर काट कर उसे हाथ में लेकर गोपालदास के पास आकर कहा-
लायो मस्तक काट कर, हराम खोर नूं मार।
आवै सारो लोग जे हमें करो करनार।।

जो लोग भाग गये है उनका पीछा करके उन्हें मार डाले।
तब गोपालदास ने कहा- भागे हुए लोगों से कोई लेना देना नहीं है। जिन पर आप चढाई करो। हम लोग किसी के नौकर नहीं है। हम तो (मुकातगीर) इजारेदार है जो घर जाकर खाना खायेंगे। यदि हमारी जागीर हो, हमारा प्रदेश हो और उसकी पैदावार हमंे मिलती हो तो पीछा भी करंे ऐसा तो कुछ नहीं आप तो नकदी माल संभालो।
दोनों बागी नवाबों के (कारखाने) मालखानांे को संभाला। रुपया, सोना, जवाहरात अच्छी-अच्छी सारी वस्तुएं ऊंटो तथा गाडों में भरकर सीधी लाखेरी भेज दी।
आधी रात तक लश्कर को अच्छी तरह लूट कर माल असबाव के छकड़े भरकर बाद में करनाल बजाई।
करनाल की आवाज सुन कर हाडा सरदार तुरन्त आ गये। हाथी, घोड़ा, तम्बू तथा सारा जखीरा युद्ध सामग्री कुंवर जी को नजर की तथा ईसाबेग मुगल तथा पठान सूसे खां दोनों के कटे हुए सिर कुंवरजी को नजर किये। सब लोगों ने (मुमारखी) दी। पूरे लश्कर को देखते संभालते प्रातः काल हो गया। शत्रु सेना के सात हजार आदमी मारे गए। शेष घायल होकर भाग गये, उनमंे से कुछ रास्ते में मर गये। कुछ लोग जीवित भाग गये।
सारा सामान, माल असबाब संभाल कर शहनाई तथा नौबते बजाते हुए बूंदी में प्रविष्ट हुए। लोग उनके स्वागत सत्कार में मंगल कलश सजा कर आये। राणी ने जब सारी बातें सुनी तो गोपालदास की अगवानी पर उनचास हाथी और पांच सौ घोड़ा गोपालदास को पुरस्कार स्वरूप प्रदान किये। गोपालदास ने कहा-
हम तो आपके सिपाही ही है। इसलिए इनको आप ही रखो। हम इनको क्या खिलायेंगे। रानी ने बहुत दबाव दिया तब गोपालदास ने एक हाथी स्वीकार किया।

बहुत खुशी मनाई गई। बधाई के गीत गाये गये। सारी वास्तविक घटना का वर्णन लिखकर तथा दोनों नबाबों के सिर कपड़े में सीं कर बूंदी के राजा भोज के पास दो संदेश वाहक भेजे गये। राजा भोज हाडा सारी घटना को जानकर बहुत खुश हुए। दोनों सन्देश वाहकांे को बधाई दी गई। राजा भोज तुरंत सवार होकर बादशाह जहांगीर की सेवा में अपस्थित हुए। घटना की पूरी जानकरी देकर दोनों नबाबों के सिर बादशाह को नजर किये। बाद में राजा भोज हाडा ने गोपालदास के विषय में अर्ज की। तब बादशाह ने फरमाया कि यदि वे वापिस अजमेर जाकर रहे तो टोडा, मालपुरा उन्हें दे दिया जावेगा कोई किसी बात की खिंचल सेवा चाकरी नहीं लेंगे। फिर यहां आने पर अन्य कोई स्थान दंेगे।
तब राजा भोज हाडा ने सारे समाचार अपनी रानी को लिख दिये और लिखा मऊ का परगना गोपालदास को दे देना। दूसरी जगह भी लेना चाहे वही दे देना।

लेखक : सचिन सिंह गौड़
संपादक : सिंह गर्जना (हिंदी पत्रिका)



जगदीश सिंह राणा : पूर्व सांसद व पूर्व मंत्री उत्तरप्रदेश

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भारतवर्ष की धरा पर क्षत्रिय माताओं ने ऐसे शूरमाओं को अपनी कोख से समय-समय जन्म दिया है जिनमें सिंह शावक के समान निडरता, हाथी जैसे विशालकाय पशु के मस्तक पर आरुढ़ होकर उसके कपोलों को घायल कर रुधिराप्लवित करने की अपार बहादुरी एवं अपने तेज, बल, साहस, शक्ति से दुश्मन भी कांप उठते है अथवा जिसकी दहाड़ से सारा वन कांप उठता है ऐसे वीरोचित्त सामर्थ्य यदि किसी में जन्मजात पाये जाते है तो उसको सिंह पुत्र (शेर) ही कहेंगे। क्षत्राणियां ऐसे वीर पुत्रों को जन्म देती रही है।
ऐसे ही एक सिंह शावक रूपी नरपुंगव ने दिनांक 28 अगस्त 1954 को ठा. हरकेश राणा की धर्मपत्नी श्रीमती कृष्णा राणा की कोख से पुण्डीर क्षत्रिय वंश में जन्म लिया। माता और पिता ही नहीं पूरा कुल व गांव जिनके जन्म से धन्य हो गया। दादा, दादी, कुल खानदान ने शुभ घड़ी एवं नक्षत्र में पूजा-अर्चना, दान-दक्षिणा और मंगलकारी वैदिक मंत्रोच्चार के उपरांत जिसका नामकरण संस्कार सम्पन्न किया एवं कुंवर जगदीश सिंह राणा नाम के शुभ वर्णों को अलंकृत किया।

जिनके जन्म से गंगा-जमुना के मध्य उत्तरप्रदेश के जिला सहारनपुर के पवित्र पावन ग्राम- जिवाला धन्य हो उठा, वन में मोरों ने पीहू-पीहू की आवाज, पेड़-पौधों पर चिड़ियों का चहचहाना, उद्यानों, बाग-बगीचों, तालाबों में नई लहरें, शस्य श्यामला पवित्र धरा के खेतों में सरसों का बसंती सब कुछ कुसुमय एवं सुगंधित हो उठा। पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह दिन दूनी रात चौगुनी बाल्यावस्था घर के आँगन में किलकारियों के रूप् में गूंज गुंजायमान होने लगी। बालक जगदीश सिंह के व्यक्तित्व में विलक्षण प्रतिभा एवं नेतृत्व क्षमता के अनेक गुण युवावस्था की दहलीज पर कदम रखते हुए नजर आने लगे। जिन्हें राजनीति में कदम रखने के बाद अपनी नेतृत्व क्षमता के बल पर उत्तरप्रदेश की विधानसभा में कबीनेट मंत्री व देश की सर्वोच्च संस्था लोकसभा में सांसद के रूप में लोगों ने प्रत्यक्ष देखा। राजनीति के साथ क्षात्रधर्म का अनुसरण करने, अपने सामाजिक सरोकार निभाने के प्रति दृढ संकल्पित कुंवर जगदीश सिंह राणा ने किसी संस्कृत के महान विद्वान के इस श्लोक को भी सार्थक कर दिखाया-

नाभिषेकः न संस्कारः सिंहस्य क्रियते मृगः।
विक्रमार्जित राजस्य स्वयमेव मृगे हता।।


वन में जंगल के जानवरों द्वारा शेर का राजतिलक संस्कार नहीं किया जाता है पर शेर अपने पराक्रम से ही राज अर्जित कर लेता है।
साहस, पौरुष द्वारा नेतृत्व करने की क्षमता के अद्भुत क्षत्रिय गुण जगदीश राणा में प्रमुख है। राष्ट्र प्रेम, सहबंधुत्व की भावना, शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति को आधार देना, किसान, जवान, युवा हृदय सम्राट, सामाजिक विषमता का उन्मूलन, सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाना एवं खेतीहर मजदूरों के हर हाथ को काम और हर पेट को रोटी उपलब्ध कराना आदि मुद्दों पर सक्रीय रहकर राजनीति करने वाले जगदीश सिंह समाज को क्षय से बचाने का उपाय करने का उपक्रम कर सही मायने में क्षात्रधर्म का पालन करने वाले विरले व्यक्तियों में से एक है।

राजनैतिक जीवन सफर
जे.वी. जैन डिग्री कॉलेज, सहारनपुर (उ०प्र०) से स्नातकोत्तर कर शिक्षा प्राप्त श्री राणा ने कॉलेज में पढ़ते हुए हिन्दी आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी के बाद जे.पी. आन्दोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हुए राजनैतिक पारी की शुरुआत की। आपातकाल के दौरान आपके कई साथी जेल में गये। उनके परिवारों की देख-भाल की। सन् 1980 के लोक सभा चुनाव में हरिद्वार लोक सभा क्षेत्र के प्रत्याशी जगपाल सिंह के मुख्य चुनाव प्रभारी बने और उन्हें भारी बहुमत से जीत दिलाने में सहयोग दिया। सन् 1981 में राष्ट्रीय युवा लोकदल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में व सन् 1984 में कॉग्रेस पार्टी में शामिल हुए। सन् 1985 में हरिद्वार विधान सभा क्षेत्र से काँग्रेस प्रत्याशी महावीर सिंह राणा के मुख्य चुनाव प्रभारी बने, श्री महावीर राणा चुनाव जीते । 25 सितम्बर, 1988 को आप मुजफ्फराबाद ब्लाक विकास समिति के सदस्य बने। 16 अक्टूबर, 1988 को ब्लाक प्रमुख मुजफ्फराबाद का चुनाव लडा व मई 1991 में मुजफ्फराबाद विधान सभा क्षेत्र से जनतादल प्रश्याशी के रूप में चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे। जनवरी 1992 में उत्तर प्रदेश जनतादल (अ) के महासचिव बने व पश्चिमी उ०प्र० के संगठन प्रभावरी बने। सन् 1993 का विधान सभा चुनाव पुनः जनतादल से लड़ा। फरवरी 1994 में समाजबादी पाटी में शामिल हुए। उ०प्र० सपा के महामंत्री बने, पश्चिमी उ.प्र. के संगठन प्रभारी बने तथा अक्टूबर 2003 तक इस पद पर बने रहे। अक्टूबर 1996 व फरवरी 2002 का विधान सभा चुनाव सपा से लड़ा तथा भारी बहुमत से चुनाव जीता। 3 अक्टूबर, 2003 को उत्तर प्रदेश के केबिनेट मंत्री बने। उद्योग, निर्यात प्रोत्साहन, कपड़ा, हथकरघा, रेशम, आदि कई प्रमुख विभागों का दायित्व संभाला। झांसी मंण्डल के प्रभारी मंत्री बने, 2004 के लोक सभा चुनाव में प्रथम बार वहां से सांसद बने। उत्तराखण्ड के संगठन प्रभारी हुए क्षेत्र में पार्टी की स्थिति मजबूत की व हरिद्वार लोक सभा सीट भी जीती। गाजियाबाद विधान सभा क्षेत्र के उप चुनाव में प्रभारी रहे तथा भारी बहुमत से सपा प्रत्याशी सुरेन्द्र मुन्नी को चुनाव जितवाया। सन् 2007 का विधान सभा चुनाव लड़ा। मई 2009 में सहारनपुर लोक सभा क्षेत्र से बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ा तथा भारी बहुमत से चुनाव जीता। फरवरी 2010 में बसपा ने क्षत्रिय भाईचारा कमेटी के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संयोजक बनाये गये। सन् 2011 में जनपद सहारनपुर में पहली बार सहकारी संस्थाओं के पदों पर बसपा के प्रत्याशीयों को चुनाव जितवाया। प्रथम बार जिले के सभी ब्लाक प्रमुख बसपा के बनवाये। बसपा का एम.एल.सी. व जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया।
मार्च, 2012 में मुजफ्फराबाद विधान सभा सीट जो अब बेहट के नाम से है वहां पर अपने छोटे भाई को चुनाव लड़वाया, जो वर्तमान में बेहट विधान सभा क्षेत्र से बसपा के विधायक हैं।

लेखक : प्रेम नारायण सिंह सोलंकी "शास्त्री", फोन-9899201027
लेखक फरीदाबाद के प्रख्यात समाजसेवी व शिक्षाविद है

गौरी का इतिहास और पृथ्वीराज की भूलें

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अपनी क्रूरता, बर्बरता और पाशविकता में मोहम्मद गौरी Mohmmad Ghori अपने से पूर्व आये मलेच्छ मुस्लिम आक्रमणकारियों मुहम्मद बिन कासिम और महमूद गजनवी से जरा भी भिन्न न था। लेकिन इतना अंतर था कि पूर्ववती मुस्लिम आक्रमणकारियों का उद्देश्य मात्र लूटपाट और इस्लाम का प्रचार था। जबकि उनसे भिन्न मोहम्मद गौरी भारत में मुस्लिम सत्ता भी स्थापित करना चाहता था। जिसमें वह सफल भी हुआ। सही अर्थों में मोहम्मद गौरी ने ही हिंदुस्तान में इस्लाम तथा इस्लामिक सत्ता की नींव रखी और उसकी सफलता ही बाबर के लिए प्रेरक बनी, जिसके कारण भारत में मुगल सल्तनत की स्थापना हुयी और इस्लामिक राज आया।
मोहम्मद गौरी का जन्म 1150 ईसवीं में गौर नामक एक छोटे से राज्य में हुआ था। इसका बचपन का नाम मुइज्जुद्दीन मुहम्मद बिन साम था। उसके पिता का नाम बहाउद्दीन साम बिन हुसैन था। दसवीं शताब्दी में महमूद गजनवी ने अनेकों बार भारत को लुटा जिससे उसने अपने गजनी साम्राज्य को अत्यंत साधन संपन तथा ऐश्वर्यपूर्ण बना दिया। उसने गौरों की सत्ता छीनकर उसे गजनी में मिला लिया था उसकी मृत्यु के बाद गजनी को उतना सशक्त शासक नहीं मिला और गजनी का पतन हो गया। उसकी मृत्यु के बाद स्वतंत्र हुये राज्यों में गौरों की सत्ता भी थी। उसके बाद लम्बे समय तक गौरों और गजनवियों में संघर्ष चलता रहा। 1173 में मोहम्मद गोरी के बड़े भाई ग्यासुद्दीन ने गजनी को पूरी तरह जीत लिया। इस विजय में मोहम्मद गौरी अपने बड़े भाई का सेनापति था।
गजनी जीतने के बाद ग्यासुद्दीन ने नाटकीय ढंग से गजनी की सत्ता मोहम्मद गौरी को सौंप दी जिसकी उसने कल्पना भी न की थी। ऐसा उसने एक फकीर के कहने पर किया था जिसने उसे बताया की उसका छोटा भाई एक आसमानी सितारा है और उसका जन्म एक बहुत बड़ी सल्तनत का बादशाह बनने के लिए हुआ है जो गौरों का साम्राज्य सुदूर सिंध तक कायम करेगा।

गौरी के समय का भारत
गजनी का सुलतान बनने के बाद से ही मोहम्मद गोरी ने भारतवर्ष को जीतने का दुस्साहसिक स्वप्न अपने मन में पाल लिया था। सन 1175 से ही उसने भारतवर्ष पर आक्रमण करने शुरू कर दिये थे। आइये उस समय के भारत पर एक नजर डाल लेते हैं उस समय उत्तर पश्चिम भारत में पंजाब, मुल्तान और सिंध तीन विदेशी राज्य थे।
इसके अलावा समस्त उत्तर भारत, पश्चिम तथा पूर्वोतर भारत पर राजपूत शासक राज कर रहे थे इनमे प्रमुख थे। पश्चिमी भारत में अन्हीलवाड के चालुक्य, अजमेर तथा दिल्ली में चौहान, कन्नौज के गहड़वाल, बुंदेलखंड के चंदेल, पूर्वी भारत में बंगाल के पाल (गौड़ राजपूत) जिनके शासन में झारखण्ड, अधिकांश बिहार तथा कामरूप (असम आदि) आता था। ये वंश उस समय अपने अन्तिम काल में था। बंगाल के सेन जो उस समय पालों की विलुप्त होती शक्ति के समय उभार पर था।

मोहम्मद गोरी के पूर्वज गौड़ राजपूत थे।
मोहम्मद गौरी गौर वंश का था। उसका राज्य वर्तमान अफगानिस्तान के पश्चिमी मध्य भाग गजनी और हेरात में स्थित है। इस राज्य के आसपास की पहाड़ियां गौर की पहाड़ी कहलाती है जिसके कारण इस राज्य तथा गौर वंश का नाम पड़ा। वर्तमान अफगानिस्तान कालांतर में गंधार के नाम से जाना जाता था जब श्रीराम अयोध्या के सम्राट बने तब उनके भ्राता महाराज भरत को यहाँ का शासन मिला आगे चलकर गंधार का अपभ्रंश गौर हो गया और महाराज भरत के वंशज गौर कहलाने लगे। गौर राजपूतों का गंधार में शासन सर्वविदित है तथा आने वाले समय में जब इस्लाम आया तब यहाँ के अधिकांश राजपूत मुस्लिम हो गए, लेकिन गौर राजपूतों के नाम पर अभी तक इन पहाड़ियों को गौर नाम से ही जाना जाता है। यह तथ्य विवादास्पद हो सकता है, शायद आज उतना प्रमाणिक भी न हो लेकिन हम इसे पूरी तरह नकार नहीं सकते कि मोहम्मद गौरी के पूर्वज क्षत्रिय थे। गौर के इन्हीं राजपूतों का वंशज था मोहम्मद गौरी।

पृथ्वीराज की भूलें
निसंदेह पृथ्वीराज एक महान एवं वीर सेनापति तथा एक उद्भट योद्धा था जिसने अनेकों युद्ध जीते उसके शौर्य के किस्से तत्कालीन भारतवर्ष में प्रसिद्ध थे। लेकिन ये एक अफसोस जनक बात है कि पृथ्वीराज जैसे महान सेनानायक का आज तक निरपेक्ष एवं तथ्यात्मक मूल्यांकन नहीं हुआ है। मुस्लिम एवं वामपंथी इतिहासकारों ने जहाँ उसे अदूरदर्शी, व्यसनी एवं व्याभिचारी सिद्ध करने का प्रयत्न किया है वहीं अधिकांश राजपूत इतिहासकार गलतियों पर पर्दा डालने का प्रयत्न करते हैं। पृथ्वीराज ने अपने जीवन में अनेक गलतियाँ तथा भूलें की जिनके कारण ही मोहम्मद गौरी अंततः भारत में विजयी हो सका। प्रो. गोविन्द प्रसाद उपाध्याय के अनुसार “पृथ्वीराज ने प्रथम तराईन युद्ध में मोहम्मद गौरी की भागती हुयी सेना का पीछा करके उसकी शक्ति क्षीण करने का प्रयास नहीं किया। दूसरे तराईन युद्ध के पहले गौरी से समझोता वार्ता के सम्पूर्ण काल में पृथ्वीराज में सैनिक दृष्टि से सतर्कता तथा जागरूकता का न होना उसकी दूरदर्शिता के अभाव का ही परिचायक है।
डॉक्टर सतीश चन्द मित्तल के अनुसार 1182 में पृथ्वीराज तथा मोहम्मद गौरी के बीच दूसरा युद्ध हुआ इसे भारतीय इतिहास की युग परिवर्तनकारी घटना कहा जा सकता है। मोहम्मद गौरी ने धोखे से युद्ध जीतने की योजना बनाई। प्रारंभ में गौरी ने एक दूत भेजकर अधीनता मानने का झुठा सन्देश भेजा तथा स्वयं तराईन तक बढ़ आया। जब पृथ्वीराज ने लौटने को कहा, तब गौरी ने कहला दिया कि वह अपने भाई का सेवक है इसलिए उसकी आज्ञा के बिना पीछे नहीं हट सकता और न वह युद्ध कर सकता है। पृथ्वीराज ने उसकी बातों को सही मान लिया और निश्चिंत हो गया। गौरी ने अचानक कुछ समय बाद आक्रमण कर दिया।

कर्नल टॉड के अनुसार ‘‘पृथ्वीराज अपने उद्दंड स्वाभाव, अपमानजनक कार्यों और सफल उच्चाभिलाषा के कारण बहुतों की ईर्ष्या एवं रोष का विषय बन गया था। हर संभव क्षेत्र से उस पर आक्रमण हो रहे थे। बदला लेने और ईर्ष्या की भावना के कारण पाटण, कन्नौज और अनेक छोटे राजाओं ने उस युद्ध में उसका साथ नहीं दिया जो बाद में उन सबके मिटने का कारण बना।’’

कुल मिलाकर पृथ्वीराज दूरदर्शी तो नहीं था। इसीलिए उसने गौरी को कभी गंभीरता से नहीं लिया। उसके छोटे मोटे हमले जो लगातार होते रहते थे पृथ्वीराज के लिए कभी चिंता का विषय न थे। गौरी को पृथ्वीराज के सेनापति ही कई बार कई मुटभेड़ो में परस्त कर चुके थे। लेकिन कभी उसका सम्पूर्ण नाश करने का प्रयास न किया। उसने कभी भारत से बाहर की गतिविधियों को जानने का प्रयास नहीं किया, वो राजपूत राजाओं से तो लड़ने में व्यस्त रहा लेकिन कभी पश्चिम की सीमाओं की सुरक्षाओं की चिंता नहीं की, जहाँ से सदैव इस्लामिक आक्रान्ताओं के आक्रमण होते रहते थे। गौरी पंजाब तक आ चूका था लेकिन चौहान किंचित मात्र भी चिंतित ना था। 1181 के प्रथम तराईन युद्ध में चौहान ने गौरी को बुरी तरह परास्त करने के बाद भी जीवित छोड़ दिया। इतना ही नहीं पृथ्वीराज ने अपनी अमूल्य उर्जा, विलक्षण योद्धा और वीर सैनिकों को राजपूतों के साथ युद्ध में व्यर्थ कर दिया। आल्हा-उदल तथा भीमदेव सोलंकी से किये गए उसके युद्ध भयंकर गलतियाँ थीं। इसमें उसने अपनी अपार शक्ति का भारी क्षय किया था।

लेखक सचिन सिंह गौड़
संपादक- सिंह गर्जना (हिंदी पत्रिका)


अगले अंक में भारत की तत्कालीन राजनैतिक परिस्थिति का विश्लेष्ण
Mohmmad Ghori and Prithviraj Chauhan History in Hindi, Mohmmad ghori story in hindi

रानी कर्मवती और हुमायूं, राखी प्रकरण का सच

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इतिहास में चितौड़ की रानी कर्मवती जिसे कर्णावती भी कहा जाता है द्वारा हुमायूं को राखी भेजने व उस राखी का मान रखने हेतु हुमायूं द्वारा रानी की सहायता की बड़ी बड़ी लिखी हुईं है. इस प्रकरण के बहाने हुमायूं को रिश्ते निभाने वाला इंसान साबित करने की झूंठी चेष्टा की गई. चितौड़ पर गुजरात के बादशाह बहादुरशाह द्वारा आक्रमण के वक्त चितौड़ का शासक महाराणा विक्रमादित्य अयोग्य शासक था. चितौड़ के ज्यादातर सामंत उससे नाराज थे और उनमें से ज्यादातर बहादुरशाह के पास भी चले गए थे. ऐसी स्थिति में चितौड़ पर आई मुसीबत से निपटने के लिए रानी कर्मवती ने सेठ पद्मशाह के हाथों हुमायूं को भाई मानते हुए राखी भेजकर सहायता का अनुरोध किया. हुमायूं ने हालाँकि रानी की राखी का मान रखा और बदले में उसे बहिन मानते हुए ढेरों उपहार भी भेजें. क्योंकि हुमायूं भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के रिश्ते का महत्त्व तब से जानता था, जब वह बुरे वक्त में अमरकोट के राजपूत शासक के यहाँ शरणागत था. अमरकोट पर उस समय राजपूत शासक राणा वीरशाल का शासन था| राणा वीरशाल की पटरानी हुमायूं के प्रति अपने सहोदर भाई का भाव रखती थी व भाई तुल्य ही आदर करती थी| हुमायूं के पुत्र अकबर का जन्म भी अमरकोट में शरणागत रहते हुए हुआ था.
भारतीय संस्कृति के इसी महत्त्व को समझते हुए हुमायूं रानी की सहायतार्थ सेना लेकर रवाना हुआ और ग्वालियर तक पहुंचा भी. लेकिन ग्वालियर में हुमायूँ को बहादुरशाह का पत्र मिला जिसमें उसने लिखा था कि वह तो काफिरों के खिलाफ जेहाद कर रहा है. यह पढ़ते ही हुमायूं भारतीय संस्कृति के उस महत्त्व को जिसकी वजह से उसे कभी शरण मिली, उसकी जान बची थी को भूल गया और ग्वालियर से आगे नहीं बढ़ा. काफिरों के खिलाफ जेहाद के सामने हुमायूं भाई-बहन का रिश्ता भूल गया, उसे इस्लाम के प्रसार के आगे ये पवित्र रिश्ता बौना लगने लगा और वह एक माह ग्वालियर में रुकने के बाद 4 मार्च 1533 को वापस आगरा लौट गया.

यही नहीं, जब हुमायूं का एक सरदार मुहम्मद जमा बागी होकर बयाना से भागकर बहादुरशाह की शरण में जा पहुंचा. हुमायूं के उस बागी को वापस मांगने पर बहादुरशाह ने मना कर दिया. तब हुमायूं ने गुजरात पर आक्रमण कर दिया और बहादुरशाह के सेनापति तातारखां को बुरी तरह हरा दिया. उस वक्त बहादुरशाह ने चितौड़ पर दूसरी बार घेरा डाला था. मुग़ल सेना से अपनी सेना के हार का समाचार मिलते ही, बहादुरशाह ने चितौड़ से घेरा उठाकर अपने राज्य रक्षार्थ प्रस्थान करने की योजना बनाई.
लेकिन उसके एक सरदार ने साफ़ किया कि जब वह चितौड़ पर घेरा डाले है, हुमायूं हमारे खिलाफ आगे नहीं बढेगा. क्योंकि चितौड़ पर बहादुरशाह का घेरा हुमायूं की नजर में काफिरों के खिलाफ जेहाद था. हुआ भी यही हुमायूं सारंगपुर में रुक कर चितौड़ युद्ध के परिणाम की प्रतीक्षा करने लगा. लेकिन कर्णावती की राखी की लाज बचाने जेहाद के बीच बहादुरशाह से दुश्मनी होने के बावजूद नहीं आया. आखिर चितौड़ विजय के बाद बहादुरशाह हुमायूं से युद्ध के लिए गया और मन्दसौर के पास मुग़ल सेना से हुए युद्ध में हार गया. उसकी हार की खबर सुनते ही चितौड़ के 7000 राजपूत सैनिकों ने चितौड़ पर हमला कर उसके सैनिकों को भगा दिया और विक्रमादित्य को बूंदी से लाकर पुन: गद्दी पर आरुढ़ कर दिया.

राजपूत वीरों द्वारा पुन: चितौड़ लेने का श्रेय भी कुछ दुष्प्रचारियों ने हुमायूं को दिया कि हुमायूं ने चितौड़ को वापस दिलवाया. जबकि हकीकत में हुमायूँ ने बहादुरशाह से चितौड़ के लिए कभी कोई युद्ध नहीं किया. बल्कि बहादुरशाह से बैर होने के बावजूद वह चितौड़ मामले में बहादुरशाह के खिलाफ नहीं उतरा.



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राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर साहित्यकार श्री सौभाग्य सिंह जी की चिंता

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श्री सौभाग्य सिंह शेखावत राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार है| राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं सूचि में शामिल नहीं करने व केंद्र सरकार द्वारा मान्यता नहीं देने के पर चिंता व्यक्त करते हुए शेखावत अपनी 1991 में छपी पुस्तक "राजस्थानी साहित्य संस्कृति और इतिहास" में राजस्थानी भाषा की महत्ता व भाषा को मान्यता नहीं मिलने के कुछ दुष्परिणामों पर प्रकाश डालते हुए लिखा-
राजस्थान प्राचीन समै सूं इज भारतीय संस्कृति, भारतीय इतिहास अर साहित रै रख-रखाव नै पोखण रै तांई आपरै लोही रौ पाणी अर हाड मांस रौ खात दियौ है। राजस्थान री धरती रा कण-कण में भारतीय संस्कृति री सौरम, इतिहास री गाथां-बातां भरी पड़ी है। राजस्थानी भासा रा साहित में कांई गद्य अर कांई पद्य दोनों में भारतीयता री मरोड़, भारतीय मिनख रौ मिजाज, जीवण रै ऊंचै मान-मोल रौ अखूट खजानौ भरियौ पड़ियौ है । इण प्रांत रौ जेहड़ौ ठसकौ रैयौ है उणी प्रकार अठा रा मिनखां रौ ठरकौ, जोमराड़ पणौ, मांठ-मरोड़ अर मान म्रजादा रैयी है|

राजस्थान री धरती पर, अठा रा भाखर अर रोही रूखां रै आसरै हजारां लाखां सैकड़ां तांई भारत री संस्कृति फळती पसरती रैयी। राजस्थान रौ इतिहास राजस्थान रै भाखरां री चोटियां अर टीबा टीळां माथै बणिया कोट किलां, खेड़ां खेतों में सुपी गडी अणगिणत देवळियां अर लाख-पसाव करोड़-पसाव री दान दुगाणी री लूठी परम्परावां में आज भी बोलै, साख भरै| कौल बोल, सरणागत पाळण, जूझार, भौमियां, मान-म्रजादा, कंवल-पूजा, पत-प्रतिस्ठा, अनड़पण आद री अलेखा गौरव गुमान री बातां राजस्थानी साहित री आपरी न्यारी निरवाळी गिणत राखै। भारत रै प्रांता री भासावां में राजस्थानी री आपणी ठावी ठौड़ रैयी है| राजस्थानी राजस्थान री राज-काज, कार-ब्यौहार अर जन री भासा रैयी है। इण री साख जूना सिलालेखां, तांबापत्रां अर रुक्का परवानां अर लोक-कण्ठा में गाजता-गूंजता सुरां में मिळे है।

राजस्थान रा सासको राजस्थानी संस्क्रति, साहित अर इतिहास री प्राण रै मोल रुखाळ करी। भारत में अंगरेजां रौ पगफेरौ हुवां पछै अठा री सासन प्रणाली अर पढ़ाई-लिखाई में तरतर पलटाव आतौ गयौ I उत्तर प्रदेस रा लोगां रै राजस्थान में पैसा रा,प्रवेस रै पछै राजस्थानी भासा री ठौड़ हिन्दी रौ राजकाज अर भणाई गुणाई में प्रभाव, फैलाव बधियौ अर राजस्थानी गांव-गुवाड़ां रा लोगां री भासा बण नै रैयगी । जे राजकाज में राजस्थानी रौ प्रयोग नीं रैयौ तौ आवण वाळा समै में राजस्थानी री आप री मोटी गिणत भी कम व्है जासी| राजस्थानी भासा री गिणत रै साथै इज राजस्थानी साहित, संस्क्रति अर इतिहास नै भी ठाढौ धक्कौ झेलणौ पड़सी अर राजस्थानी भासा रै सागै इज संस्क्रति भी पाताळां बैठ जासी।


बचन

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म्हांरी नांव बचन है अर कौल नै बोल भी म्हनै कैवै है। म्हांरा पिरवार में म्हांरी सगळां सूं इधकौ आघमांन है। जठै कठैई आपसरी में बैर विरोध, खटपट, झगड़ौ, झांटी नै बोलीचाली व्है जावै तौ मैं बीच में पड़, बीच बचाव कर राड़ नै बुझा नै पाछौ मेळजोळ नै बोलचाल कर देवूं। ई खातर सारौ भाईपौ म्हंनै सिरै गिणै अर म्हंनै सै’ज में इज नी लोपणौ चावै। म्हांरी दादी रौ नांव बरणमाळ है अर म्हांरै बाप हौर बावन भाई है। म्हां सगळां रौ घर बावनी बाजै। इणी कारण कवियां आपरी घणी रचनावां रा नांव बावनी राखिया है। जियां सुजस-बावनी, उपदेस-बावनी, सीख-बावनी, सिवा-बावनी, बिलाप बावनी, बिड़द-बावनी, नीति-बावनी अर वीर-बावनी आद नांव आप सगळा सुणिया इज हुवौला। पण म्हां बावन भायां में बब्बा, चच्चा अर नन्ना तीना भायां में बाळपणा सूं ई घणौ हेत इखळास नै मेळमिळाप हौ। म्हैं निज मैं कणैई लड़िया झगड़िया कोनी। घणखराक साथ-साथ ही रैया। टाबरपणां में बिना समझ म्हांरां दूजा भायां में घणी बार खड़बड़ाट नै छुटबड़ हुव जावती, पण म्हैं तौ सदा नीर खीर री भांत तीन देह एक प्राण इज रह्या। दूजा भायां में राड़ौ धाड़ी व्ही जावतौ तौ वै कैवता म्हांनै बचन दे देवौ तौ म्हैं थांकौ बिसवास करां, नींतर तौ थांकौ कांई बिसवास। सौ, म्हैं घणी घणी बार अमेळ, अप्रीतौ भांग नै विसवास नै पाछौ जमाय देवता अर बीखरता घर नै ठौड़ री ठौड़ जमायौ राखता। इण कारण म्हांरी ‘देवचौ’ सरीखी गिणती रहती। अर अबखी वेळां में म्हांरी बरौबर मांग बणी रैवती। राजां रजवाड़ां री सींव नींव रा झोड़ नै जियां बीच में भाटौ, मकरबौ, खंभौ रोपनै मिटावै बियां इज म्हांरै पूगियां आपस में तनाजौ मिट जावतौ। म्हांरौ भरोसौ होतौ तौ अेक देस दूजा देस सूं आपसरी में सींव पर कांटा रा तार लगाय नै वैर रा कांटा नीं बिखेरता अर भाईपौ बणियौ रैवतौ। रूस, अमेरिका म्हंनै मानता तौ ठौड़ठौड़ घातकारी विणासकारी मिजाइलां लगावण री कठै जरूरत पड़ैही ?

अर म्हांरै सागै छळ-छंद रचौ अर धोखाधड़ी करै जणांस तौ चावै तीन तिलोकी नाथ विसणौजी इज क्यूं न हौ बावनियौ वणै इज। अपकीरत हुवै इज। देवराज री बहकावणी में आय नै विसंभर राजा बळ करनै कपट रचियौ तौ कांई लाडू ले लियौ। पौछड़ी का आप रौ डोळ नै रुतबौ इज तौ भंडायौ। राजा बळि आप रा गरु सुकराचारजजी रै नटतां-नटतां गबळकौ काढ़नै म्हनैं विसणौजी नै दै दियौ सौ आप सुणी इज है। इन्दर पद तौ आगौ रहियौ ऊंडौ नीचौ पाताळ में जावता कठैई वळी रा पांव टिकिया। जिकौ म्हनैं देवणै सूं पैली, मिनखां नै सौ बार सोचणौ चायिजै अर जे गैलसफा बण नै नी सोचौ जणांस तौ राजा दसरथ वाळी गति बणै। दसरथ विजै मद में गैळीज नै कैगई नै म्हंनै सूंप दियौ, पछै कांई हौ ? काळजा री कौर राम नै वन में जावणौ पड़ियौ अर दसरथ नै प्राण गमावणौ पड़ियौ। बैठौ ठालौ घर नै घर कुंडियौ बणाय दियौ। द्वापर में जुधथिर सतवादी बाजतौ। आज भी बाजै है, पण सिरी किसन रै चाळै लाग नै महाभारत में ‘नरौ वा कुंजरौ’ बोल नै आपरी सांच री पोल काढ़ दी। अर महाभारत में कुंता अर सिरी किसन राजा करण नै घणौ इज पोमायौ, लालच लोभ देय नै दुरजोधन सूं फांटणौ चायौ, पण करण लोह री लाठ ज्यूं म्हंारै पर अडिग रह्यौ कह्यौ- दुरजोधन नै बचन दियोड़ौ है, बचन नै कियां लोपीजै। बचन नै बाप तौ अेक इज हुवै है। पुराणा समै में मां तौ कई व्ही जावती पण बाप अेक इज रैवतौ। आज तौ मां री भांत बाप भी कई हौ जावै है। आप सुणी हैला कै परखण नळी में मिनख-सांडिया रौ बीज असपताळां में भेळौ करियोड़ौ राखै है। कांई ठा किण किण रौ भेळौ करियौड़ौ हुवै है। उण री सुई लगाय नै ढांढां री भांत इज मिनख जळमा देवै है। अेड़ा टाबरां रौ कांई पतौ किण-किण रा मूंत रा हुवै। अेड़ा लोग म्हंनै लोप जावै तौ अणूती बात कांई है। पण राजा करण पर लाख लांछण हुवौ बौ एक बाप रौ हौ सौ म्हनैं नी हारियौ अर धोखाबाज इन्दर नै जांणतौ पिछांणतौ भी आपरा कुंडळ देय दिया, पण म्हनै राख लियौ। औ इज कारण है कै आज प्रभात रा पौर में करोड़ां मिनख उठतां ई सतवादी जुधथिर, गांडीवधारी अरजण, भीमनादी भींव रौ नांव कौ लेनै पण राजा करण नै चितारै अर कैवै-राजा करण रै बखत कठै खोटी वाण बोलै है ? म्हनैं दूजा नै देवणौ अर पछै म्हंारै पर अटळ रहणौ सौ’रौ काम नीं है। म्हंने देवणौ मरजाणी घरजाणी रौ खेल है। थे आंतरै क्यूं जावौ ? अठै ई इण कळजुग में ई देखल्यौ म्हनैं दियौ जिकां रौ कांई हाल हुयौ। पाबूजी राठौड़ देवळ बाई चारणी नै एक घोड़ी रै पूंछडै म्हनैं दे दियौ। पछै म्हंारै खातर सात फेरा अधूरा मेल आपरी परणैता रौ हाथ छोड़ नै भागियौ। ब्याव रा कांकण डोरड़ा अर सेवरौ बांधियौ थकौ इज आपरा बहनोई जिंदराव खींची सूं लोह रटाकौ लेय नै काम आयौ। पण भली गिणौ कै म्हांरी खातर मरियौ जद आज भी पाबूजी लोक में देव रूप मानीजै, पूजीजै है। बाकी म्हांरै बिना मरबा नै सगळी जियाजूंण मरै है। पण काळ रा परळा में उणां बापड़ा जीवां नै कुंण नारेळ चढावै है ? कुण उणां रा देवळ थरपै है ? कुंण धूप ध्यान करै है ? म्हनैं राखै उणा रौ म्हैं भी आघमान राखूं हूं।
म्हारै तांई रणतभंवर रौ धणी राव हम्मीर बिजाती महमासाह नै राख लियौ अर दिल्ली रा पातसाह अलावदीन री फौज सूं बाथेड़ौ करनै आपरौ राज, पिरवार परगह अर प्राण गमाय दिया। पण म्हांरौ इज कारण है कै राव हम्मीर रौ ख्यातां बातां में आज तांई नांव चालै है।

मिनख में मोटियार बाजवाळा तौ आज सिटळभिटळ गया पण लुगायां में अजै तांई पचाणवै सैकड़ा अेड़ी है जिकी म्हांरै पर अटळ है । फेरा में लोग लुगाई दोनों अगन री लौ धकै सारा पिरवार रै साम्है, म्हनैं (बचन) देवै कै आखी उमर साथ रहस्यां। पण मिनख म्हनैं छोड़ नै कई चूडैलणां, कुदाळ कुरांडां रै चाळे लाग नै आपरी वैरवानी छोड़ देवै, मार देवै, फोड़ा घाळे, पण लुगाया काणौ, खोड़ौ, नामरद, नाजोगो, भोळो-तोळी पांगौ, गोबर रौ गोबिंदौ कैड़ौ भी हुवौ आप रा खावंद नै मुर्गी इण्डा सेवै ज्यूं सेवै। कोई सी इज इयांल की निकळे जिकी रोहिणी री तरै भाग नै चितरथ गंधपः जैड़ा रा घर में जा बडै़। पण बां री कांई आछी गिणत थोड़ी इज हुवै है। सौ मरद री जबान (बचन) अर घोड़ा री लगाम तौ मजबूत इज आछी। गाडी रा पैड़ा री गळाई जिक रा मुंहडा में म्हैं फिरू उण री कदैई, कटैई राज तेज, सभा-समाज में कोई ग्यांन गिणत नीं करै। म्हनैं (बचन) हारणौ अर जमारौ हारणौ अेक गिणीजै। म्हैं मुख कोस सूं निकळियां पछै जदि हाथी रौ दांत पाछौ मुंहडा में बड़ै तो म्हैं बडूं़। जद इज कहियौ है-

हाथी हंदौ दंतड़ौ, मुंहडा हंदौ बोल।
काढ्îा पाछौ नीं बड़ै ओ इज आं रौ मोल।


बोल म्हांरौ इज लाड रौ नांव है। (बोल) म्हारै सूं इज आदमी रौ ठावा मिनख पिछाण करै है। इण वासतै म्हनैं मुखद्वार सूं काढ़ता समै घणी सावचेती बरतणी चायिजै। चालतै ई लबळकौ लेवै उवै इज तौ लबाळी बाजै। गोळी रौ घाव भरीज जावै पण बचन (म्हांरौ) घाव नीं भरीजै। म्हैं नाटसाल री भांत लाग नै सारी उमर मिनख रै दूखणा ज्यूं दूखतौ सालतौ रैवूं। इण वासतै म्हनैं तोल नै बोलणौ चायिजै। जिका बोलणौ नी जाणै उवां बापड़ा नै धेलै भाव भी कुंण बूझै है। जीभ रस (बोल रौ रस) सब रसां में सिरै मानियौ है-

बण रस कण रस तांत रस, सब रस दाठै तोल।
सब रस ऊपर जीभ रस, जो जाणीजै बोल।।


म्हनैं बोल नै, म्हनैं देय नै जिका पूरा नीं उतरै उणा रौ मोल कौड़ी रै भाव, धेला बरौबर। अैज छिदामिया मिनख न मिनख में गिणीजै अर न ढांढां में पुणीजै । अैड़ा कौडी मोला भणीजै

बोलै जितरा बोल, नर जे निरवाहै नहीं।
त्यां पुरसां रा तोल, कौडी मुंहगा करणिया।।


म्हनैं मिनख हुवै जिका तौ सोच समझ नै मुख सूं काढै अर दूजा नै सौपियां पछै पलटै नहीं। अैड़ा म्हारां धणी (बचनधणी) बाजै। उवै सभा सम्मेळण में किंणी ठौड़ नी लाजै। नीं रण में भाजै। उवै धीर वीर गंभीर कहीजै-

वडा न लोपै बचन कह, लोपै नीच अधीर।
उदध रहै मरजाद में, वहै उलट नद नीर।।


म्हनैं एक बात याद आयगी। एक बार एक ठाकर आपरी मोटी टणकाी हेली री चानणी पर गादी मोड़ा लगायां बैठौ हौ। इतरा में एक कागलौ कांव-कांव करतौ आय नै गोखड़ा पर बैठ नै ठाकरां रै माथै वींठ कर दी। ठाकर चाकर नै कह्यौ-ल्या रे रूपा क्रपाण इण कांडी रौ पाप काटां। कागलौ जाणियौ तरवार सूं तौ नीं मरू। ठाकर उठसी जितरै में उड़ नै परौ जास्यूं। पण ठाकर क्रपाण री ठौड़ कमाण उठाय नै तीर मार्यौ। घिरो खाय नै कागलौ बाण री चोट संू गिरह चक्री खावतौ नीचै आयौ नै बोल्यौ-

बचन पलट्टां सौ मुवा, कागा मुवा न जांण।
मारा नहीं क्रपाण सूं, मारा उठा कमांण।।


सौ म्हनैं (बचन) तौ पंखेरूं भी समझै है, नै भरोसौ राखै। म्हांरै (बचन) बळ सू इज मंत्र चालै। संसार रौ धाकौ धिकै। कारज सिध हुवै। वाच भी म्हांरौ ही जवानी रौ नांव है। म्हैं निकळंक गिणियौ गयौ।

सतपुरखां नै लोग म्हनै सिंमर नै इज जुहारड़ा करै। वारणा लेवै। म्हनै हारै चुकै जिका रा भी बिगड़ै। अर म्हनै पाले जिकां री संसार में वाहवाही हुवै। पण म्हनै देणौ आगी पाछी सारी बात सोच समझ नै। जुग जोधार जगदेव पंवार कंकाळी भाटणी नै म्हनैं दियौ तौ निभावण नै माथौ देवणौ पड़ियौ। इण वासतै म्हारी कीमत समझणी।

आज बिग्यान ग्यान बळ रा रातींधा में चूंधीजियोड़ा, राज नेता म्हांरौ मोल घणौ घटायौ। म्हैं सदा सूं इज न्याय रौ सीरी रैयौ। मिनख पणा रै खातर ढाल बणियौ। म्हारै कहै चालिया जिका सुख री नीद सोया। जस खाटियौ। जीवण रौ लाहौ लियौ। सौ लाख जावौ पण साख नीं जावौ। इण वासतै सबद सांचा पिण्ड काचा। चलौ मंत्रो ईसरौ वाचा। बचन लोपै तौ धोबी री कुण्ड में पडै़। सौ अै मिनखा ! बचन देय नै लोपियौ तौ थांनै लूणां चमारी री आंण है। अजमाल जोगी री दुहाई है।


लेखक : श्री सौभाग्य सिंह शेखावत
(राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार, इतिहासकार)


चिणौ

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राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री सौभाग्यसिंह शेखावत की कलम से....

आजकाल लोगबाग म्हनै भूंगड़ौ कैवै है। पैली चिणौ कैवता। पण, इण सूं म्हनै किणी रीत-भांत री नाराजगी कोनी। औ प्रक्रति रौ धारौ इज है। समै रै सागै सागै जिण भांत उमर ढळे अर काया में पलटाव आवै उणी भांत नांव भी पलटीजता रैवै। गाय रौ जलमतो बाछियौ लवारयौ इज बाजै पछै अेक पारवौ चूंघै जितै बाछड़ौ कहीजै। फैर दूध काढ़ियां पछै थण लिवाड़या करै कैरड़ियौ पुकारीजै। दूध सूं टाळियां पछै टोगड़ौ भणीजै। हींसौड़ी हिलाइजै जणां खोधा रै नांव सूं ओळखीजै। भर जवानी में कांधा रै सळ पड़ै नै बूकिया मचकै जणां नारियौ गिणीजै। गाड़ी बेरै, बैवै, कांधै अंतोलौ बोझ भार खींचौ जद घोळौ कहीजै। जितै आपांण में, बळ में भरौ पूरौ रैवै बळद पुकारीजै। अर जद कांधौ मुचबा लागै। पग कांपण ढूकै। नाड़ डगमगावण लागै। दांत पड़बा लागै जद डांगरौ बाजै।
औइज क्यूं औस्था भेद सूं मिनख भी तौ गीगौ, बालौ, टाबर, डावड़ौ, मोटियार, मांटी नै बुढापा में बूढ़ळौ, डोकरौ बाजै इज है। पछै कर धूजै, गाबड़ कांपै, पग डोलण लागै उणनै डोकरौ कैवै तौ अणहूंतौ कांई ? पछै बूढ़ा चिणा नै, ताव में तपियोड़ा, भोभर में तड़फियोड़ा, भाड़ में भुळसियोड़ा नै भूगड़ौ नी कैवै तो कांई छोलौ कैवै। फूटियोड़ौ बासण तौ डबरौ इज बाजै। बोळाई रौ घड़ौ कळस थोड़ो इज बाजै। नीगळियोड़ौ पातौ नुंई बोगी सूं भलांई घणौ चौखौ हुवै फेर भी कळसौ को बाजै नी। जणां पछै चिणौ जिका बूढा चिणा नै भूंगड़ौ समझै तौ बेजां बात कोनी। इण माथै बुरौ मानै जिकौ अण-समझ। रीस करै जिकौ साव कूड़ौ। सिवजी गरळ अहारी बाजिया। भुजंग गळे घातियौ जणां भुयंगनाथ कहीजिया। विख कंठां में रोकियौ जद विखकंठ कैवीजिया। जै सिव आपरौ फूठरौ सिव नांव इज चावता हा तौ विख पीयौ इज क्यूं ? उणां नै कुंण पीळा आखा मेलिया हा कै विख पीयां इज सरै। सौ, भूंगड़ा नांव सूं चिड़णौ भोळप री बात इज है। चिणौ समै पाय भूगड़ौ बणै इज है। पण चिणौ भूंगड़ा नै दुहागण रौ दुहाग समझै आ चिणा री भी भूल इज है। समै पाय लाटा सूं निकळियोड़ा चिणा री परमगत भी भूगड़ौ इज है। चिणौ भी पैली पांच दिन री भोम समाघ ली। आपरी काया नै सीत-ठाढ़ में गाळी। पछै पौधौ बाजियौ। पछै पांन-पत्ता आया जणां बूंठौ कहीजियौ फेर फूल-फगर आवै नै लोवड़ फूटै जणां धैघरी आवै जद कटैई चिंयौ नांव पावै। पछै छोलौ कहीजै। कई चिंया तौ अधबीचौ इज तूइज जावै। सतमासिया रैय जावै। चिड़कलियां, काबरियां, सूंवटा डाकण सारियां री दीठ सूं अकाळ मौत पाय काचा कळवा बण जावै। कितरा ई तीवंण तरकारी रा तोलां में सीझता रंधता चाटू चमचां रा धमीड़ा झेलता मिनखां री भौभौ री भूखी जीभ रा सुवाद बश जावै। पछै रह्मा-सह्मा, कचर्या-अधकचर्या डेगची री दाळ में काळ पा जावै। पछै इण संग्राम सू जीवतौ बचै जिकौ चिणौ नांव पावै। इण जीवण जात्रा रै पछै जायर चिणौ जंूण मिळै। पण फेर भी केईक लोगबाग तौ आज भी गेलै वगताइज चिंन्ही-सी बात मालै इज कह देवै -चिणौ उछळ नै कांई भाड़ फोड़ नांखै ! जांणै चिणा री गिणत में गिणतइज कोनी ? बिना हाड री जीभ हालतां कांई जेज लागै। जांणै चिणौ नींजोरौ इज हुवै। चावळ रै आगै उण री क्यूं गिणत इज नी हुवै। गोवूं रौ गुलाम इज हुवै। जौ री जोरू इज हुवै। बाजरी रौ बाटियौ सेंकण रौ बळीतौ इज हुवै। जांणी चिणा री क्यूं ग्यान-गिणत ई नी हुवै। जांणी ग्वाड़ रौ जायाड़ी इज हवदै। उतरियोड़ा मटका रौ भांगीजियोड़ ठीकरौ इज हुवै। नीम सूं झड़ियोड़ौ पीळौ पांनड़ी इज हुवै। खेळी सूं तुळियोड़ौ धरमाणां रौ गूदळियौ नीर इज हुवै। रोही में पड़ियोड़ौ आरणौ छाणौ इज हुवै। पण लोग जांणै कोनी खेड़ा में पड़ी ठीकरी इज कदै रसोवडै़ तपी ही। पीळौ पात ही कदै जेठ री तावड़ी में बटावू नै दोय घड़ी आपरी सीळी छांवळी में थाकेलौ आंतरै करण नै विश्राम दियौ हौ। धरमाणां रौ नीर भी पंखेरुवां री तिस मेट जीवां रौ जीव जोखौ मेटियौ हौ। रोही रौ छाणौ भी जग्य रा बैसवानळ में होमीजियौ हौ।

आज चावळां, गैवां, बाजरी री जीभां आपरी बडाई में, टणकाई में ईयां चालै है जियां जेठ मास में हेमाचळ सू कराड़ा भांगती भगीरथ धीवड़ी गंगा चालै। कारतिक मास में आकास में किरत्यां चालै। माघ महीनै हिरणी रै लारै आहेड़ी माल्है। कपूत चेलासू गरू री अपकीरत चालै। उझळती बिगड़ेल रांड रा लोयण चालै। ग्रीखम में मारवाड़ रै धोरां रा भगूळिंया चालै। पण चिणौ आज री घड़ी भी निकळंक, सोळवां सोनां री भांत खरौ। रोही रा सेर री भांत अदाग। साव अकळंक। लूण सारखौ जग चावौ । चावळ, गैवूं, बाजरी भलां ही चिणा नै फेटैड़ा रौ उतारौ गिणौ। सिर री मथवाय समझौ। रात री रातींधौ गिणौ। राज रोग जैड़ी असमाध गिणौ। पण, चिणौ इण भेळप जुग में भी साव सुध, प्रवीतकाय, अकळंक आतम, खोटौ पण खरौ नाज है। गैवां, चावळां, बाजरा में भेळावण है। भेळण मिळियां इज तौ गोवूं किल्यांण सोनौ, मैसकिन नै लालबादर नांव पायौ। बाजरौ भी संकरियौ, साठियौ, अरड़ियौ, रूवां दांणियौ ईयां इज नी बाजियौ है। पण, चिणौ असलता पर हेमाळा ज्यूं अचळ, दुरवासा ज्यूं खरौ, गंगाजळ ज्यूं निरमळ नै गंवार रा दाणा ज्यूं अबीध है। जद ही चिणा नै वेदां’में चिणक गायौ। पुराणां चिणक कैय लड़ायै नै कळ कारखाना रा जुग में चिणौ सतजुग सूं घोर कळजुग तांई आपरा बाप दादा, मायतां रा नांव सूं ओळखीजतौ आयौ। कांई चिणौ लुळ जावतौ तौ लालबादर नी तौ पीळौ पीलू मोदी नी बण जावतौ। साठियौ नी तौ हाटियौ तौ बाज इज जावतौ। पण चिणा नै दळ-पलटू राजनेतावां री भांत जात पलटणौ, सुवाद पलटणौ नी भायौ। जिका दळ नी पलटै वै ठौड़ रा ठौड़ बूढा डांगरा ज्यूं आप रा खुरड़ा रगड़ता रैया इज करै है। पगां सूं जमीं रौदळता रैवै। पण, इण सूं कांई। लोग क्यूं इज कैवै। जीभ तौ जळवाळा ज्यूं लपकती रैवै। तोछा नीर में माछळी ज्यूं फदकती रैवै। समै रै सागै बदळै जणां हींचड़गावा नै खुड़खातिया में आंतरौ इज कांई ? सारौ इज धान सोळा पंसेरी नी तुलै। काग अर कोयल अेक रंग है इण सूं कांई! काग नै कोयल रौ भेद कदै मिटियौ है। सौ. चिणौ हिन्दू समाज रौ चौथौ वरण नी है। इण री इज पिछांण है। मांन है।

चावळ पाणी रौ पूत। गैवूं पळाव रौ पोतौ। जौ-जळ रौ जीव इज है। जळ बिना काया नी राख सकै। बाजरा री इज बिना मेह खेह उड़ती दीसै। पण चिणौ धरती रौ धींग है। थोड़ोसी पगटेक आल मिळ जावै तौ सैठौ। पछै न दाह सूं दाझै, न तिस आगै भाजै। असली अखाड़िया जेठी ज्यूं खंभ ठोक, पग रोप, झोला रोळी रूपी अरि आंधी रा अरड़ाटां सू भटभेड़ी लेवतौ रैवै। गैवां ज्यूं गुळांच खावणौ, चावळां ज्यूं पसीजणौ, नै बाजरा ज्यूं बायरा रै धकै लुळ जावणी कांई फूटरापा में गिणीजै ? गैवूं, चावळ, बाजरौ भलां ई धान रा सिरताज बाजै। पातसाही आमखास रा सत्तरखांन, बहतर उमराव गिणीजै। कदाच गैवां, चावळां री भांत चिणा री आरगैर, रखाव रुखाळी, भूख तिस में आड़-औछाड़ चिणा री मत करौ पण, गैंवूं, चावळ तौ थोड़ा-सा धाया-धींगा रौ खज है। धापतोड़ां रौ रातब है। बंगला- बगीचां रा छैलभंवरां रौ सोयतौ है। कुबेरजी रा डावड़ां री भुगत है। पण, चिणौ भूखा व्रंदावनरौ गोरधन, गरीब-गुरबां रौ गिरधारी, भूखां रौ भेळपौ, मजूरां रौ मोहीलौ नै धापतोड़ां रौ ओळगु तौ है इज।

चावळियौ पोतड़ां रौ अमीर, कै सौंधां भीनी समीर इज क्यूं नी हवै, पण जळ बिना पळ नी जीवै। गैवूं भी बिना वारि, मुख-बारि फाड़ दै। बाजरौ भी बिना खाद पाणी री सलाद रै फिसाद मांडतौ जेज नी लगावै। पण चिणौ बिना पांणी पिछतावै न खाद सूं उन्माद आवै। न झोलां सूं झुळसै, न रोळी घकै रोवै। न सेळी सूं सहमै। सागै पगां आप री खिमतां पांण छौंकलिया हिरण रै कांनड़ां री भांत आप रा पानड़ा टहटावतौ रैवै।

चिणौ, चिणौ झूपड़ां में झूमै। महलायतां में महकै। रसोवड़ां में रमै। हलवायां री हाटां पिंजरां रा कवच धारियां हरखै। ब्याव सगाई, गोठ घूघरी में जठै बाजरी बिलखतौ फिरै। चावळ मूंडौं उतारियां खुणै पड़यौ देखै। गैवूं गुळांचियां खावै उठै चिणौ चंचळ गजगामण ज्यूं मुळकतौ फिरै। आपरी नांव रासण चीणी रै संग गळबाथां घालियां, थाळां, रकेबियां रै हौदे बिराजियौ, बाजोट पागड़ां पर बैठियौ मिनखां री गलाफ में घुड़दौड़ां करै। दांत रूपी भालां सूं मींडा-भेटी खेलै। उठै गैवूं चूला रै ठीयै पड़ियौ आप रा पसवाड़ा सेकै। बाजरौ उम्मेदवार चरवादार ज्यूं कठैई ठांण रूपी कोठिलयां में पड़ियौ अमुझै। उठै लाडूवां रे रूप में चिणौ इज लडीजै। सेव, दाळ रे रूप में चिणा री बेटियां रा इज हालरिया गवीजै। उठै गैवां रा फांफरा फलका-सा मूंडा कियां फंफैड़ी खावता इज फिरै। चावला री चात्रकता इक टैम में इज चौड़ै आ जावै। पछै सारी बखतां चकरबंब खावतौ इज फिरै। कोई नी बूझै धौळिया रै मुंडै कितरा दांत। चिणा री बेटी बडभागण दाळ रौ लाडौ नै चिणा रौ दोहीतौ बेसण तौ गोठां में इण रीत घूमै जिण रीत द्वापर में सोळा सैंस गोपियां में मथुरा रौ कानूड़ौ रमै। मोतीचूर री मरोड़, रेसमी रौ रास, दिलकुसाल री कुस्ती, मोतीपाक री ममता किणनै नी मोवै। बूंदी बिना तौ सघळी मिठाई फूंदी ज्यूं उड़ती फिरै। नुकती री भुगती किणनै खारी लखावै। भोगळां री भट भेड़ी भूख रा भाखरां रा हाडकिया भांग नाखै। गैवां री बेटी मैदाबाई री आवभगत इज बेसण सूं हथळेवौ जोडै जद हुवै। जद इज पंचधारी चक्की जळमै। नींतर तौ मैदाबाई दुहागण बांझ री भांत बैठी ज्यूं डुसका इज भरै। चावळ तौ होळी-दीवाळी वारतींवार कदैक-सी रसोवड़ा में आय पडै है। पण चिणा रौ चंग तौ सदा गरीबां, चंगां, माड़ां सगळां रै घरां चार पौर चौसठ घड़ी बाजती इज रैवै।

कांई संसार त्यागी कांई संसार रागी सगळी ठौड़ चिणा रौ आव जाव रैवै। साध सरावै सौ सती। जिकौ चिणा नै साधां भी सरायौ है-
चिणौ चवेणी गंगजळ, जे पूरै करतार।
कासी कदै न छोड़जै, विस्वनाथ दरबार।।


पछै चिणा रै आगै चावळां री चापलूसी गैवां री गुमराई, बाजरा री बडाई तौ तलै पड़े इज टांग ऊंची है।
जणां चणक रै सांम्ही कणक रौ कांई गरब ? कठै चणक री गोळ-भटौळ चामीकर बरणी काया नै कतै सटकळ पेटिया कणक री तूळी-सी सीधी काया। सांच मानौ नै नीं मानौ पण नाज बे-अनाज चिणौ।

लेखक : श्री सौभाग्यसिंह शेखावत
पूर्व अध्यक्ष : राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति अकादमी, बीकानेर

शेखावाटी प्रदेश का प्राचीन इतिहास : पुस्तक

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राजस्थान के शेखावाटी के प्रदेश के प्राचीन इतिहास पर स्व.सुरजन सिंह शेखावत, झाझड़ द्वारा शोधपूर्वक लिखित पुस्तक "शेखावाटी प्रदेश का प्राचीन इतिहास" (Shekhawati prdesh ka prachin itihas book) का प्रथम संस्करण वर्ष 1989 में छपा था| इसके बाद पुस्तक के दुबारा ना छपने के कारण जिज्ञासु पाठकों और इतिहास शोधार्थियों के लिए महत्वपूर्ण यह पुस्तक बाजार में अप्राप्य थी| इसी कमी की पूर्ति के लिए सुरजन सिंह शेखावत स्मृति संस्थान ने इस पुस्तक का द्वितीय संस्करण प्रकाशित करवाया है जो ज्ञान दर्पण.कॉम पर सम्पर्क कर प्राप्त किया जा सकता है|

इस पुस्तक की विषय वस्तु व महत्त्व के बारे में पुस्तक की भूमिका में वरदा पत्रिका के विद्वान संपादक डा. उदयवीर शर्मा द्वारा लिखित निम्न शब्दों को पढ़कर जाना जा सकता है -

"शेखावतों का अधिकार स्थापित होने के अनन्तर ही वि. सं. 1800 तक के लगभग 250 वर्षो में भिन्न-भिन्न स्थानीय नामों से प्रसिद्ध और भिन्न-भिन्न शासक घरानों द्वारा शासित यह सारा प्रदेश शेखावतों के अधिकार में आया और उन्हीं के नाम पर शेखावाटी (शेखावतों का प्रदेश) कहलाया। शेखावाटी प्रदेश के प्राचीन इतिहास पर एक संक्षिप्त दृष्टि डालें तो प्रकट होता है कि रामायण काल में ‘मरु कान्तार’ महाभारत काल तक ‘मत्स्य’ नाम से प्रसिद्धि प्राप्त क्षेत्र शेखावाटी मत्स्यों, साल्वों और यौधेयों के अधिकार में गुप्तकाल तक था। मौर्यों के राज्य का जब विस्तार हुआ तब उन्होंने राजस्थान में सबसे पहले यहीं राज्य स्थापित किया था। चौहानों ने भी राजस्थान में प्रवेश इधर से ही किया था। चौहानों की जोड़, मोहिल और निरवाण आदि शाखाओं के यहां अनेक छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्य थे। कायमखानी नबाब भी चौहानों से ही मसलमान बने थे। चौहानों के समय यह क्षेत्र ‘बागड़ देश’ में गिना जाता था14। चौहानों के बाद शेखावतों ने इस प्रदेश पर अधिकार किया।

शेखावाटी प्रदेश के प्राचीन इतिहास को सत्य साक्ष्यो के आधार पर विस्तार से लिखना, उलझे हुए कच्चे धागों को सुलझाने के समान है। इस दुरुह श्रम साध्य और विश्रृंखलित कार्य को सफलता से कर पाने के लिए पैनी सूक्ष्म दृष्टि, विषयगत गहरी पैठ, लगन और निष्ठा की अत्यन्त आवश्यकता होती है। निरन्तर अथक कठोर परिश्रम के बिना प्राचीन ऐतिहासिक गुथियों को सुलझा पाना कठिन है। इतिहास के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान सतत साधना में लीन एकनिष्ठ कर्मयोगी ठा. सुरजनसिंह शेखावत ने इस विकट कार्य को करने में सफलता प्राप्त की है। शेखावाटी के प्राचीन इतिहास के तारतम्य को जोड़ते हुए लेखक ने अपना मार्ग स्वयं बनाया है। इनते विस्तार से तथा उपलब्ध प्रामाणिक आधारों पर इस कार्य को करने वाले आप प्रथम विद्वान है। आपने आगे आने वाले इतिहास लेखकों, प्रेमियों और इसमें शोध-खोज करने वालों का मार्ग प्रशस्त किया है, आप साधुवाद के पात्र हैं। आपकी जन्म, कर्म और तपोभूमि आप को सदैव स्मरण करती रहेगी।

लेखक ने प्रस्तुत ग्रंथ को अति प्राचीनकाल में भारतवर्ष में फैले अनेक ‘जनपदों’ के वर्णन से प्रारंभ किया है। वैदिककाल में ‘जनपद’ बौद्धकाल में ‘महाजनपद’ कहलाने लगे। उस समय उनकी संख्या लेखक ने सोलह बताई है। भारतीय इतिहास का 500 ईस्वी पूर्व तक का समय जनपद या महाजनपद युग कहलाता था। उस काल का उत्तरी भारत प्राच्य और उदीच्य नाम से दो भागों में विभाजित था।

लेखक ने स्वीकार किया है कि कौरव-पाण्डवों के समय यानी आज से लगभग पांच हजार वर्षों पूर्व एवं आचार्य पाणिनि के समय में भी शेखावाटी का पश्चिमोत्तरी भाग जांगल देश की परिधि में आता था। इसी प्रकार उसका पूर्वी एवं पूर्व-दक्षिणी भाग मत्स्य जनपद का एक भाग माना जाता था। खण्डेलावाटी का क्षेत्र (खेण्डला से रैवासा तक) भी जांगल देश का ही एक भाग था, जहां पर साल्व क्षत्रियों की साल्वेय शाखा का शासन था। इस प्रकार आज का शेखावाटी प्रदेश जनपदीय युग में मत्स्य और साल्व नाम के दो जनपदों में विभाजित था। साल्व जनपद विशाल जांगल प्रदेश का ही एक भाग था।

प्रारंभिक वैदिक युग में मत्स्य जनपद की सीमा निर्धारित करते हुए लेखक ने उसे ब्रह्मऋषि देश, ब्रह्मावर्त का ही एक भाग माना है। सही अर्थाे में वही आर्यावर्त था। महाभारत काल में मत्स्य जनपद की राजधानी वर्तमान बैराठ थी। मत्स्य जनपद को पारियात्र देश का ही एक भाग माना गया है। मत्स्य जनपद से आगे मौर्यकाल, गुप्तकाल, वर्धनकाल, बड़गुजर राज्य, प्रतिहारकाल, चौहानकाल, कछवाहों का आगमन, मुस्लिमकाल का गंभीरता से वर्णन करते हुए लेखक ने तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्थितियों का भी गहन एवं संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत किया है।

प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी बैराठ के निकट की भूमि पर प्रथम शेखावत राज्य की स्थापना विक्रम की सोलहवी शताब्दी के प्रथम चरण में शेखावतों के मूल पुरुखा राव शेखा (शासनकाल 1502 से 1545 तक) ने की और शेखावाटी के इस प्रथम परगने की राजधानी अमरसर-नाण अमरसर में स्थापित की। इस प्रकार 500 ई. पूर्व से 1500 ई. तक यहां पर शासन करने वाले विभिन्न कुलों का विवरण विहंगम दृष्टि से प्रस्तुत करने में लेखक ने पूर्ण सफलता प्राप्त की है। इस सुदीर्ध अवधि का ऐतिहासिक तारतम्य बनाए रखना लेखक की कुशलता को सिद्ध करता है।

प्रस्तुत ग्रंथ के प्रथम खंड के साथ चार परिशिष्ट क्रमशः पारियात्र देश, ढूंढाहड़, मीणों का वर्णन, क्षत्रियों के रीतिरिवाज और राजपूत और दिए हैं। इन सभी में इतिहास की उलझी हुई गुथियों को सुलझाते हुए विद्वान लेखक विषय की पूर्णता की ओर अग्रसर हुआ है। इनसे लेखक का परिश्रम परिलक्षित होता है।

इस ग्रंथ के द्वितीय खंड में जांगल देश में साल्व जनपद का विस्तृत खोजपूर्ण और विशद विवेचन हुआ है। इस जनपद में ही वर्तमान सीकर और झुंझुनूं जिलों का भू-भाग सम्मिलित था18। लेखक ने साल्व, मालव संघर्षकाल, साल्व और यौधेय, गुप्त सम्राटों के समय गणराज्य, नाग, तंवर, मौर्यो का प्रभाव, गुर्जरों का आगमन, डाहलिया, चौहान घांघू के चौहान, खण्डेला के निरवाण, कासली और रैवासा के चंदेल, झुंझुनूं के क्यामखानी, नूआं के क्यामखानी, फतेहपुर के क्यामखानी आदि शीर्षकों से साल्वों से लेकर क्यामखानियों तक के काल की ऐतिहासिक स्थितियों का विशद विवेचन प्रस्तुत किया है। यह लेखक की इतिहास-साधना का प्रतिफल है।

झुंझुनंू के अन्तिम नबाब मोहम्मद रुहेल्लाखां की मृत्यु से कुछ वर्ष पूर्व ही उसकी इच्छा और सहमति से झुंझुनंू परगने का राज्याधिकार शेखावत शार्दूलसिंह के हाथ में वि. सं. 1787 में आया तभी से मध्ययुगीन बागड़ देश का वह महत्वपूर्ण सामरिक क्षेत्र शेखावतों के अधिकार में आया और वि. सं. 1788 में सम्पूर्ण फतेहपुरवाटी पर भी शेखावतों का अधिकार हो गया।

वैदिककाल के जनपदों से लेकर वि. सं. 1788 में क्यामखनियों के पराभव तक के सुदीर्घ ऐतिहासिक काल के घटनाक्रम को सुलझाने संवारने और संजोने में प्रबुद्ध व सुप्रतिष्ठ इतिहासज्ञ श्री सुरजनसिंह शेखावत ने उपलब्ध प्रामाणिक ग्रंथेां, उन पर आधारित अनुमानों और जनश्रुतियों का सहारा लिया है। इनके अतिरिक्त शिलालेखों, बड़वों की बहीयो ,पटों ,परवानो ,रुकों,सिक्कों ,उत्खन्न से प्राप्त वस्तुओं आदि का भी पैनी दृष्टि से अवलोकन कर उपयोग किया गया है। ऐतिहासिक स्थितियों की क्रमबद्धता बनाए रखने में लेखक पूर्णतः सफल रहा है।"

इस शोधपरक इतिहास को मंगवाने हेतु shekhawatmsingh@yahoo.com व shekhawatrs@ymail.com पर सम्पर्क कर डाक द्वारा प्राप्त किया जा सकता है !
shekhawati ka itihas book in hindi

चाटू

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राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री सौभाग्यसिंह जी शेखावत की कलम से ......
घणा लोग चाटू (Chatu) नै कोरौ लाकड़ी रौ टुचकलौ, रूख रौ छांग्यौ-छोल्यौ, ठूंठियौ, खाती रा रंदा सूं रांद काटियोड़ौ रसोवड़ा रौ राछ, तरकारी तीवण रौ रमतियौ, हांडी रौ हम्मीर, चूला रौ चांद नै बांठ बोझा खेजड़ी कैर रौ जळमियौ-जायौ इज मानै। उणरा आपांण ऊरमां नै नी ओळखै, जद ही चाटू रा चमत्कारां सूं अणजांण घणां अकल रा उजीर, बुधरा वेदव्यास, ग्यान रा गुणेस, गोबर-गुणेस बणिया थका आपरी आवड़दा पूरी कर नांखै। रोही रा त्रिसा म्रिगला ज्यूं पद-पाणी रा खोज काढ़ता भंभाभोळी खावता फिरै। फेर भी उणां हक हिरणियां रौ हक त्रिखा नी बुझै। उणां रा हकां रा बादळा बणै नै थोथा ललूससा मिट जावै। सियाळा रा सीकोट री भांत प्रभात रा वणै नै दोपैर रा गळ जावै, काचा-कळवा ज्यूं छाऊं-म्याऊँ व्है जावै।

भोळा भिनख कांई जांणै चाटू कांई है। चाटू किण भांत संसार रा आखा सुख मांणै। बिना चून, लूण री रोटी पोवै नै सुख सूं खूटी तांण सोवै। चाटू रै धकै ठग री ठगाई, बाजीगर री हाथ सफाई, झगड़ायतां में संप करावणियां री रसाई री विद्या नै अड़कसी री आजार मिटाई, मेळ-मिळाई सगळी बातां पाणी भरै। चाटू जीम री लड़ाई री कमाई खावै। उण री जीभ री करामात आगै मोटा-मोटा माणसां री सकळाई री बाजती झालरां ठम जावै। किस्तूरी री सौरम नै हींग उडा नांखै। कपूर री सुबास लसण रै सांमै न्हास जावै, उणी रीत चाटू रै आगै सगळां री अकल रा पैड़ा जाम व्है जावै।

सीधा स्याणां मिनख आ जांणै कै चाटू खाली मांटी री हाडी रौ मांटी इज हुवै, रंधीण रौ राईवर इज हुवै, भाजी-भुगती रौ भरतार इज हुवै, खीचड़ी रौ खांवद इज हुवै, राबड़ी रौ रसियौ इज हुवै पण इती इज वात नी है। चाटू रसोवड़ा रौ मोटौ ताजदार ताजीमी उमराव हुवै। उण रै आगै देस-दिवांण ऊभा दांत तिड़कावै, तन दिवाण पंचहजारी पग पपोळै। आपरी कतरणी सी धाराळी जीभ सूं मिनखां रा हित सत कतर फेंकै। चाटू री ओळगगारी में, टैल बंदगी में ठाढा-ठाढा ठाकर ऊंभा थड़ी करै। चाटू री चाकरी में बिना धेले-टकै घणा सबळा-निबळा लखटकिया, मैफलिया, वातां रा बालम, खटपटिया खुमाण, फंफोड़ मूंडै रा मांटी, मटैड़ा रै चाक रै थापा रै अणगाररा आदमी अठपौर ऊभा रैवै, कदम सेवै । ऊभा चाटू री पगतळी चाटै।

चाटू नीं चाकी चलावै, नीं खेत कमावण जावै, नी मांटी भरी काठड़ी उठावै, नी पाळौ पग उठावै, नी लूखौ खावै। आखै दिन काम रै नांव सूं फळी इज नी फोडै़। बस बातां रा बिणंज बिणजै नै लाखां रा वारा न्यारा करै। मोटा मिनखां री थळी पर जा मुजरौ करै। सांच नै कूड़, कूड़ नै सांच कैय नै उणा रा मन भरमावै। बस, फेर छत्तीस बिंजनां रा भोग भोगै अर नचीत मल्हार गावै।

पण आ करामत कांई कम हुवै। इण रा बळ सूं तौ लुंठां-लुंठां रौ धंूवौ काढ नांखै। उणा नै चाटू नी घर रा छोड़ै, नी घाट रा नै बाट रा। जिण बखत चाटू चढनै चाकरी पर चालै, उण बखत धरा धूजै, मेघ धडूकै, देवराज रौ सिंघासण डोलै। कुंण जांणै चाटू किण समै कांई कुबध कर नांखै। कांई बात किण बखत पैरासूट कर दै। सांति रा सागर नै मचोळ नै गुधळा देवै। किण भोळा भूतनाथ रा चित नै चकरी चढाय देवै।

चाटू परवार रौ धणी हुवै। चाटू रौ जुवराज चमचौ, रायकुंवरी चमची, परधान पलटौ, कोटवाल कुड़छौ, फौजदार झरौ, प्रांतपाळ टीपरियौ, तन-दिवाण मिरियौ, पौसाकी पळौ, खवास खुरचनौ नै तोबची ताकळौ हुवै। चाटू चालै जद अै सारा रांण-खुमाण उणनै विदा करै। अै सारा अेक खांदा री माटी रा बासण हुवै अर समै पड़ै चाटू री बात नै हेटै नीं पड़बा देवै, ऊपर री ऊपर झेल लेवै। अै पाणी पैली पाळ बांधै, उळझी-सुळझी नै सांधै। चाटू जद आपरा लवाजमा रै साथ चाकरी माथै वहीर हुवै, जणां जांणै पांख आयोड़ी कीड़ी ज्यूं उड़तौ लखावै। गुरड़ री गति, भूत री माया, नै बादळ री छाया ज्यूं छिण-पलक में झबकौ नांखनै अलोप व्है जावै।

चमचौ तौ चाटू सूं भी दोय पग आधा काढै। टणका-टणका भारीखम बुध रा भाखर गिणीजणियां नै हांडी री खुरचण ज्यूं खुरच नै ठौड़-ठांणै लगा देवै। चमचौ राजपुरखां रै असवाडै-पसवाडै इयां बुवै, जियां दीवटियां रै साथै-साथै अंधेरौ चालै। चमथा रै मूंडै में जीभ इण रीत पळेटा मारै जांणै हळाबोळ रै कड़ाव में पलटी पळेटा खावै, हरी दूब कांनी हिरणी माल्है, भाखर री ढळांत कांनी बरसाळा रौ बाहळौ चालै, कराड़ां चढ़ी नदी रौ नीर चालै, डूंगरां रा खाळां धकै धूड़ चालै। इण भांत चाटू री असवारी चालै।

लोग कैवै चाटू रौ कोई मिनख जमारा में जमारौ है। चाटू री पूठ पाछै सगळा उण री चहचै-पहपै करै पण मूंडागै सैग उण सूं डरै। इण में डर-भय री कांई बात है ? ऊंदरा रौ जायौ तौ बिल इज खोदसी। पछै चाटू आपरी चाटूगीरी सूं टाबर-टीगरां नै ‘सैंटपाल’ में भणावै तौ किणी रौ हकनाक पेट क्यूं दूखै ? आप आप री करामत, नै आप आप रा कार है। चाटू रौ धन्धौ चाटूगीरी। चमचा रौ कार चमचागीरी। पण, चमचागीरी सूं इज चमचम मिळ जावै तौ सगळा ई चमचा नी बण जावै। चौंच तो कबूतर ही चलावै पण आव भगत कोयल री वाणी री इज हुवै। कोरी जीभां री लपालोळ सूं इज पार नी पडै़। चाटू री भणाई बी० एड०, एम० एड० नै आई० सी० एस० सूं भी मुंहगी पड़ै है। चमचां री पोसाळ न्यारी इज हुवै। चमचा री मुहारणी नै घोखियां इज काम नी सधै। खाली बारहखड़ी रा बारह कक्का, नै लुहुड़ौ कु, वडौ कू रटबा सूं इज कारज सिध नी हुवै। रटायोड़ौ सूवटौ गोविंद गोपाळ नारायण तौ बोल लै पण कांई वौ गोविंद, नारायण रा चरित्रां नै तोल लै। गीता रा रयान री घुळ गांठा खोल लै।

बोलबा में तौ पंखेरुवां में कागलौ इज कक्का बौलै, मोल्यौ इज किक्की कैवै, कूकड़ौ इज कूकड़कू चवै, कोयल इज कोक्क उ बोलै, तूती इज तूंई-तूंई भणै अनै घणा जानवर कुंई नै कुंई आखर धुन बोलै इज है पण इण सूं कांई ? उण नै कदे लाखपसाव मिळती दीठ है। चाटू री भणाई री पोसाळ बीजी इज हुदै। चाटू रौ ‘कोर्स’ न्यारौ इज हवै। चाटू री डिग्री चाटू इज नै सिलै। चाटू री पढ़ाई में विख री बीजगणित भणाईजै। संसार रै सनेह रौ खोगाळ नै बिणास रा बीज चाटू री वचन विधग्ता हुवै। बासगनाग रौ फैण, आग री झाळ इज चाटू रौ सुभाव हुवै। बोलण में गूंदगीरी रा सांटा जेड़ौ मिठौ हुवै पण करतूतां में पीळिया गोयरा नै परै बैठावै। अैड़ौ डंक मारै कै आगलौ पांणी इज नी मांगै। जमराज रा डंडिया सूं डंडिया गेहर रमणौ नै चाटू सूं अड़कसी करणौ बरौबर। चाटू सूं तौ डंडियौ मिळायौ राखै सौ इज भलौ। जिण री अकल उधारी लियोड़ी हुवै, वौ इज चाटू री वात नै उथेलै। नींतर तौ उण काळजीभा सूं होठांजोड़ी कुंण करै।

चाटू नै चाटू कैवणौ नै ऊजड़ बेवणौ बरौबर। अंवळी री संवळी नै संवळी री अंवळी करणौ चाटू रै डांवलै हाथ रौ खेल गिणीजै। कोई चाटू री करणी माथै रीसां बळै तौ लाख बळौ, औ तौ चाटू रौ सुभाव है कै इण तरफ रा भाखर उण तरफ, नै उण तरफ रा डूंगर इण तरफ धर देवणाँ।

चाटू री कोई बंधी-बंधाई पगार नी हुवै। उणरी पैदा ऊपरछाळा री हुवै। कणां महीनां रा दसहजार ही पटक लेवै नै कणाई सौ दोयसै मातै इज सरमोख लेवणी पडै़। चाटू री चाकरी नै घणां लोग हिकारत री आंख सूं जोवै। पण इण जुग री जीवा-जूंण में थणकढ़ दूध सारखौ साव निरमळ कुंण है ? चांद नै इम्रतबरसी कैवै है। इंदर नै धरापत कैवै है। संकर नै महादेव कैवै है पण उण नै कळंकी, रुळेट अर मसाणियौ भी तौ कैवै है। मूंडकी-मूंडकी री मत न्यारी हुदै। जितरा मूंडा, उतरी बात। लोग-बागां रा मुंहड़ारै छींकी थोड़ी ई जड़ीजै। पछै चाटू नै चमचौ चमचागीरी नीं करसी तो कांई खेत में हळ हांकसी, ऊंट लादसी, कमठां माथै काठड़ी नांखसी, रेवाड़ा री मीगणियां सोरसी, भाखरी रा भाटा भांगसी। अैड़ा काम धन्धा करसी जणां इती भण-गुण नै कांई कियौ ? कांई जुबान री जबा-जोड़ी, बात बणावणी काम गिणीजै। अबोलां री मोती दाणां-सी जंवार पड़ी रैवै अर समै माथै बोलै उणां रा बूंमळा सरै बाजार धोलै दिन छै पंसेरी री ठौड़ दो रिपियां कळी बिकै। पराया पेट में आपरै हित री वात उतार देवणौ, आंगळ्यां धरम करणौ कई ल्होड़ी कळा गिणीजै। ससि कळा सी सुपेत, संख सी धवळ, हिमसी अमळ, नै दूध-सी धोली हार रै मणकां री भांत पोयोड़ी साव सही, मेह रा जळ री भांत कूड़ धूड़ सूं, आंधी-अरड़ां री खेह सूं अछूती वात नै लुहार रै आरण रा लियाळा बणावण री करामात हुवै जणां चाटूगीरी करीजै है। सनीदेव री साढसाती सूं डरनै इज छायांदान करै। जे डर नीं लागै तौ रगत्या भैंरू तांई बकरां रा कान कुंण काटै। कोरी जीभां री लपालोळ सूं इज नाकौ नी झलै। जीभ री करामात रै साथै चौसठ घड़ी पगां पर थड़ी भी करणी पडै़। चाटू रै डर सूं लूंठा-लूंठा धींग धज धारी इण भांत धूजै, जिण भांत थोड़ी सीक पवन रै हिलोर सूं पीपळ रौ पत्तो कांपै। चाटू रै आगै मोटा-मोटा गजगात गजपतियां नै सीयौ चढ़ जावै। चाटू री बात रौ असर तीजारा रा डोडिया, धतूरा रा रस, कपिल रा कोप, नै रावण रा रढ़ सूं घणौ ज्यादा हुवै।

चाटू जिण रात जळमियौ, जिण पुळ घड़ीजियौ वा पुळ वाहुड़ नै पाछी नी आई। चाटूरै पांण राजनीत, समाजनीत, साहित्य-नीत सैंग नीतियां पुळै। जिकी जीभ गुलांचिया कबूतरां री भांत जठी-कठी नै लुळती रैवै, वौ इज खरौ चाटू कहीजै। लोटण कबूतरां री रीत आपरा डील नै नीं मौड़ सकै, वौ सांच रा लाख टका कोथळी में घालियां फिरौ, उण नै पूछणै-बतलावणै खातर बोळखौ बगत किंण कनैं पड़ियौ है अर कुण लोभ री लाय में बळता आज रा इण दौड़ता-भागता जुग में दुहागण रा गुणवान डावड़ा नै बुचकारण रौ, हिमळास सूं बतळावण रौ साहस कर आप रौ नांव ‘ब्लैक लिस्ट’ में मंडावै।

चाटू रै भस्मी कड़ा सूं संकर खुद इज डरतौ लुकतौ फिरयौ, सौ चाटू सूं डरणै में इज खेमकुसळ है। आंख ऊघाड़ नै चाटू री आरती उतारौ, इणी में है सगळां रौ निस्तारौ। इण वास्तै चाटू नै धोय-पूंछ भींत रै सारै मेल द्यौ। राज दुराजी मौकै बीजा लंगर में खीचड़़ौ रांधण में काम आवै। पण औ निचल्यौ कठै रैवै ? ऊभौ-ऊभौ इज आया गियां नै कैवतौ रैवै-मुंहंडा देख अर टीका काढूं ठोक लबालब थूली।

लेखक : श्री सौभाग्यसिंह शेखावत

गांवों में रिफाइंड के नाम पाम आयल बेचने का घिनौना खेल

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भारत में ज्यादातर व्यवसाय आपसी भरोसे से चलता है और खासकर गांवों में तो दुकानदार व ग्राहक के बीच यह भरोसा बहुत सुदृढ़ होता है| यही कारण है कि गांवों की दुकानों पर उधारी की सूची काफी लम्बी होती है, दुकानदार को यह उधारी फसल आदि निकलने के बाद ही मिलती है| दुकानदार ग्राहक पर भरोसा कर उधार देता है तो ग्राहक भी भरोसा कर दुकानदार के कहने पर या उसके यहाँ उपलब्ध सामान को ठीक समझकर बिना ज्यादा पड़ताल किये खरीद लेता है| इस तरह आपसी भरोसे के साथ गांवों में व्यवसाय होता है फिर ग्राहक व दुकानदार भी एक ही गांव के रहने वाले या पारिवारिक होते है अत: वहां उत्पाद की पड़ताल से ज्यादा आपसी भरोसा ज्यादा महत्त्व रखता है| गांव के दुकानदार भी वर्षों से इस भरोसे को निभाते आ रहे है, लेकिन वर्तमान आर्थिक युग में धन का महत्त्व आपसी भरोसे व सम्बन्धों से ज्यादा बढ़ा है यही कारण है कि एक ही गांव के रहने वाले, एक साथ पले-बढे, एक साथ शिक्षा पाए, एक साथ खेले-कूदे लोग आपस में ही ठगी कर चिरकाल से चले आ रहे इस भरोसे को धन कमाने के लालच में तोड़ने लगे है|

अभी हाल ही अपने गांव प्रवास के दौरान ऐसे ही मामले सामने आये| गांव की एक दूकान जिसका मालिक गांव में पला-बढ़ा, गांव वालों से ही कमाई कर बड़ा दूकानदार बना, गांव के ही लोगों को रिफाइंड के नाम पर रिफाइंड से आधे से कम दाम मूल्य का पाम ऑइल बेचता पकड़ा गया| इस दूकानदार ने हद तो तब कर दी जब गांव के पूर्व सरपंच को ही रिफाइंड के नाम पर पाम आयल पकड़ा दिया और शिकायत पर कुछ भी सुनने को राजी तक नहीं हुआ| हार कर पूर्व सरपंच को स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारीयों को शिकायत कर दूकानदार के खिलाफ कार्यवाही करवानी पड़ी| हालाँकि इस शिकायत के बाद भी जिले के मुख्य चिकित्सा व स्वास्थ्य अधिकारी का रवैया टालमटोल वाला रहा और उसे पूर्व सरपंच द्वारा मंत्री से सीधे बात करने की धमकी देने के बाद CMHO ने दूसरे दिन कार्यवाही हेतु खाद्य निरीक्षक को भेजा जब तक मिलावट व मुनाफाखोर सभी दूकानदार सचेत हो चुके थे और उन्होंने अपने अपने गोदामों से इस तरह का माल हटवा दिया था|
अक्सर गांवों में आपसी सौहार्द बनाये रखने के नाम पर लोग इस तरह की शिकायत नहीं करते और इसी के साथ आपसी भरोसे की आड़ में दूकानदार ज्यादा कमाई के नाम असुरक्षित खाद्य सामग्री बेच गांव के लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है|

रिफाइंड के नाम पर बेचा जाने वाला सस्ता पाम आयल अक्सर जम जाता है पर आपसी भरोसे के चलते व किसी की छोटी-मोटी शिकायत पर दूकानदार द्वारा तेल के बारे में झूंठ समझा बूझा देने के बाद लोग मान लेते है कि तेल सही है ज्यादा सर्दी की वजह से जम गया होगा या फिर समझने के बाद भी शिकायत नहीं करते, यदि कोई जागरूक ग्रामीण नागरिक फोन पर अधिकारीयों को शिकायत करता भी है तो अधिकारी उससे शहर आकर लिखित में देने को कहते है, क्योंकि वे जानते है सुदूर गांव में रहने वाला व्यक्ति अपना काम धंधा छोड़कर किराया खर्च शहर कतई नहीं आयेगा और उनकी बला टल जायेगी| इस तरह स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारीयों के गैर जिम्मेदारना रवैये के चलते हरामखोर दुकानदारों के खिलाफ कार्यवाही नहीं होती|
उपरोक्त मामले की जांच के बाद सामने आया कि सीकर जिले में स्वास्तिक व विमल के नाम पर जो रिफाइंड आयल बेचा जा रहा है वह रिफाइंड से आधे के कम मूल्य का पाम आयल है|जबकि पाम आयल के इन डिब्बों पर रिफाइंड लिखा होता है|


Invitation न्यूंतौ

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राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्यसिंह जी शेखावत की कलम से............
गोठ-धूघरी, ब्याव-सावां, सनेही, भाई-भायलां नै बुलावै उण नै न्यूंतौ (Invitation) कैवै। न्यूंतौ ऊधारी हांती गिणीजै। अदळा रा बदळा कहीजै। न्यूंतौ घर दीठ मिनख, थळी दीठ अेक मिनख रौ नै सीगरियौ भी हुवै। सीग्रै न्यूंतै में तागड़ी-पागड़ी जीमण नै आवै-मिनख अर लुगाई घर रा सगळा लोग। अै तौ जीमण-जूठण रा न्यूंता बाजै। लाड कोड, ब्यावसावा, छठी-दसोटण, आखै-टांणै, मरै-खिरै रा औसर-मौसर में लोग न्यूंतीजै। होळी, दीवाळी, तीज-गणगोर माथै भी भाई, बैवारी न्यूंतीजै। पण, राजस्थान में अहेताळुवांदुसमणां नै भी न्यूतणै रौ चाळौ रैयौ। जंतर-मंतर, कामण-टोटकों में भूत पलीतां नै सैं सूं भी पैली न्यूंतै। ब्याव-सगाई में विनायक नै न्यूंतणौ तौ जुगादी धारौ इज है। झगड़ाझांटां में वैरियां नै न्यूतणै री बात गळे ऊतरणी साव सोरी नी लखावै। पण आ बात सवा सोळा आना खरी नै साव सांची है कै अठै जुद्ध रौ न्यूतौ मोकळणै री घणी काण्यां मिलै। सेर नै सवा सेर अर कुचामणिया रिपियां री ठौड़ सिक्के चौरासाई घालै उण नै ही मरद बदै। न्यूतौ ले बैठै वौ तौ नाजोगौ इज गिणीजै। ऊभा घोड़ा इज दाळ पावै। कीं नी करणै-जोगां नै कुंण पूछै। बोलै उणा रा इज वूंमळा बिकै, नींतर अबोला री तौ जंवार टकै पंसेरी ही कोई नीं बूझै। ठाढां रौ डोकौ डांग नै फाडै़। पण, एक री ठौड़ सौ देवै उण सूं सगळा ही टाळौ खावै। सूता भूत नै कुंण जगावै ? कालिंदर री पूंछ कुण दाबै ? डाकणियां नै गोठ में कुंण तेड़ौ मेलै ? पण, अैड़ा मिनख भी हुवै जिका मौत सूं भटभेड़ी लेवण नै पायचा टांकिया त्यार रैवै। अैड़ा मांटी इज दुसमणां नै न्यूंता मोकळै।

जोधपुर रा धणी अभैसिंघजी अैमदाबाद नै सर कर घणौ गरब कियौ। दुनियां में आपरै ओळे-ढोलै किंणी नै नी समझियौ। पांगळी डांकण गटकै घर रा इज डीकरा। रेबारण ही अर डाकण व्हैगी, ऊंटा चढ-चढ नै खावै, सौ अभैसिंघजी आपरा भायां (बीकानेरां माथै) डाढ लगाई। मारवाड़ री फौज बीकानेर माथै जाय घेरौ घाल्यौ। बीकानेर रा राजा जोरोवरसिंघजी अैड़ा घिरया जिकौ कठै इज पसवाड़ौ फेरण नै ठौड़ नी। अभैसिंघजी रौ सांमनौ। अभैसिंघजी जैपुर रा सवाई जैसिंधजी रा जंवाई। पण जंवाई भाई आंट चढै जद किणरी मानै ? आप मतै चालै। बीकानेर रौ धणी घेरा संू नक-सांसै आयोड़ौ। छेवट जोरावरसिंघजी जैपुर नरेस सवाई जैसिंघजी नै न्यूंतिया, कागद मेलियौ-
अभौ ग्राह वीकाण गज, मारु ज समंद अथाह।
गरुड़ छाड गोविंद ज्यूं, सहाय करौ जैसाह।।


सवाई जैसिंघजी अभैसिंघजी नै समझावण री कोसीस करी। पण, अभैसिंघजी राजमद में गहळीजियोड़ा। किंणरी गिणत गिन्यार करै। जद सवाई जैसिंघजी आपरौ अराबौ जोधपुर माथै वहीर कियौ। जैपुर री बाईसी रौ धक, जमराज धकौ। जलालिया री टक्कर। काळ रौ डाचौ। भाभड़ा भूत री भटभेड़ी। सौ जैसिंघजी रा धावा री सुण अभैसिंघजी रा तोराण फूलग्या। हाक बाक भूलग्या। रोजा री ठौड़ निवाज गलै घळगी। जद बीकानेर रौ धेरौ ऊभौ मेल रात दिन अेक कर जोधपुर नैड़ीली। ललौ-पतौ कर बाईस लाख रिपिया सवाईजैसिंघजी नै फौज खरच री भरोती रा देय लार छुडाई। नीठ जीव में जीव बापरियौ। पछै सवाई जैसिंघजी फौज खरच रौ भरणौ लेय कठठठ करती आपरी तोपां नैं पाछी मोड़ी। हाथियां रा टल्ला सूं ठीलीजती, बैलां सूं चलीजती तोपां मेड़तियां री चौरासी में पूगी। चौरासी में भखरी भेड़तियां रौ ठिकाणौ। तिल जिती सी भाखरी माथै भखरी रौ कोट। पण भाखरी रौ ठाकर केसरीसिंघ सांपरत नाहर, लाय बलाय। रात रा भखरी कनै फौजरौ पड़ाव। नींदड रौ राव जोरावरसिंघ झुंझळ खाय कहयो-आछौ राठौड़ रौ राम नीसरियै जिक कछवां री तोप इज खाली नी करा सकिया। मारवाड़ में रजपूती नीं रैयी। औ बोल सुण भखरी रौ कोई ठावौ माणस संझा रै बखत कोट में गयौ अर ठाकर केसरीसिंध नै जोरावरसिंघजी रा वचन सुणाया। गोत री गाळ कुटंब नैं लागै। तानौ सीर को हुवै। उंतावळां री तौ सदा सूं देवळिया हुवै नै धीरा-ठावां नै पट्टा मिळे।

सुंवार रा केसरीसंघ सवाईजैसिंघजी नै जुद्ध रौ न्यूंतो मेल दियौ। किला संूं तोपां रा बाण हुबा लाग्या। जैपुर रौ तोपखानौ पल भर में मुखरी रा कोट रा कांकरा बखेर दिया। पण बिना जिमाई जैपुर री फौज नै नी जावण दी। जोरावरसिंघजी रा बोल माथै भखरी ठाकर टकरी खेल ली।
जद इज कह्यौ है
जैपुर री न रही सेखी, भखरी पर भागीह।
करग्यौ टकरी केहरी, लंगर धर लागीह।।


जे ठाकर केसरीसिंघजी जैपुर री तोपां खाली नी करवाता तौ मारवाड़ रै सिर सदा-सदा तांई मोटी मैणी रैय जाती। जैपुरी सैना रौ गरब गाळ केसरीसिंघजी मारवाड़ री नाक राखली। इण भांत केसरीसिंघजी सवाई जैसिंघजी नैं न्यूंतिया अर जस कमायौ-
केहरिया करनाळ, जे नह जुड़तौ जयसाह सूं।
आ मोटी अवगाळ, रहती सिर मारू धरा।।


भरतपुर रौ जाट राजा जवाहरमल्लजी अैक समै अड़ोसी-पड़ोसी रजवाडां नै दिल्ली-आगराई मुगलाई में घणौ ताव दियौ। आगरा नै लूटियौ। दिल्ली में ठाढौ उदंगळ मचायौ। बादस्याह अकबर री कब्र मांय सूं उण रा हाड काढ भरतपुर ले गयौ। वीरता, साहस अर पराक्रम रा घणा खेल किया। कनै-नैड़ै रा राजा, रावां सूं छेड़छाड़ कर अर पछै बुंदेलखण्ड अर माळवा कांनी पगफेरौ मांडियौ। माळवा में ग्वालेर मांय नरवर कछावां री राजधानी। उठै रामसिंघ कछावौ राज करतौ। जवाहरमल्लजी, कछावा रा जैपुर राज नै तौ नीं हड़प सक्यौ अर नरवर माथै चढ़ाई करी। अठारासै चौइस रै सईका री बात। सौ आप रा जाट जोधारां री हाथी, घोड़ा, अराबौ, पैदल-कटक साथ लेयर चम्बल लांघी। काळपी, भदावर रजवाड़ां सूं पेसकस लेय वीरता री महानंदी रौ प्यालौ चढाय नरवर रै पाखती मगरौनी माथै जाय तम्बू तणाया। उठां रा भाई गोती आयलां-भायलां सूं भेंटियौ हूँ दिया। उठै रा जाट लोग जवाहरमल्लजी नखै जाय करहिया रा पंवारां री घणी खोटी-खरी सुणाई। अेक री ठौड़ पांच लगाई अर भरतपुर-धणी नै घणौ उकसायौ जवाहरमल्लजी आव देखियौ नीं ताव अर वेगा-सा करहिया रा धणी राव केसरीसिंघजी नै रुक्कौ मैळ कह्यौ- कागद मिळतां रै सागे मगरौनी कदमां आवौ, नींतर खैर नीं है। रंघड़ अर रजपूत नै रेकरै री गाळ। गाळ भी काढ़णौ आवणौ चाईजै। जियां रजपूत नै कैवै थांरौ बाप मुवौ तौ हाथी चाढै अर बीजां लोगां नै कैवै थांरी बाप मुवौ तौ पाछी गाळ काढै कै नाड़ बाढै। पण, मोटा लोगों में भी घणां ई भारीखम भी हुवै। आगै-पाछै री सुणै समझै। वेग-सा छेह नीं देवै। करहिया रै राव आपरै भाईपै रा राव दुरजणसाल, मुकंदसिंघ, सिरदारसिंघ, सांवतसिंघ, कैसौराम, पंचमसिंघ अर धरमांगद इत्याद ठावा सरदार, जोधार सुरमां नै तेड़िया। जवाहरमल्ल रौ मुठबोल रौ कागद पढायौ। कागद सुण पंवार सूरवीरां रै तन-मन में आग री झुळ-सी रोस ज्वाळा ऊपटी। पंवारां कह्यौ- काळ रा चरख्खा, औघड़ रा भख नै पाछौ लिखौ कै परमारा नरवर कींकर जावौ हौ, पैली करहिया में पघारौ। पंवारां रौ न्यूंत झेलौ। इयां लिख अर साथै पांच चोट बारूद री अर पांच सीसा री गोळियां रा पीळा चावळ मौकळिया।

करहिया रौ राज नरवर री उतराद री ढाळ। नरवर सूं पैली करहिया री मनवार। जवाहरमल्लजी तौ आप ही अहंकार री आधी। राजमद आयौ मैंगळ। फौज नै करहिया रा किला माथै वहीर कीनी। बेहू पखां में जोरदार राड़ौ हुवौ। अेक हजार जाट वीर खेत्रपाल री बळ चढिया। जाटां रौ फौ नीं लागौ। थळी रा तम्ूबा री भांत मुंडकियां गुड़ी करहिया रा पंवारां इण भांत अण न्यूंतियां न्यूंतियारां नै रण रूप मंडप में बधाया। काले पाणी रूप कुंकम रा तिलक कर भालांरी नोक री अणियां री चोट रा तिलक किया। मुंडकियां रूप ओसीस रै सहारै पौढाय नै रण सेज सजाई अर ग्रीझ, कावळां कागां नै मांस लोही रौ दान बंटाय आपरी उदारता जताई। पछै परोजै रूपी अपजस’रा डंका बजावता जवाहरमल्लली ब्रज वसुंधरा में आया अर पंवार आपरी विजय रा नगारा घुराया। इण भांत अण न्यूंतिया न्यूंतियारां रौ सुवागत पंवारां कियौ जिकौ अठै सार रूप में जता दियौ।

जीत लीवी धारा धणी, छूटौ प्रबल प्रहार।
की नै भट जटरान के, सिर बिन हेक हजार।।
मुरकी अनी हंरोल की, गयौ जाट तजि देस।
वाह वाह धारा रा धणी, मुख तै कहै नरेस।।

इण भांत रण रा न्यूंता अर उधारा आंटा मोल खरीदण री अठै घणी आछी रीत रैयी है।


लेखक श्री सौभाग्यसिंह शेखावत

लोकदेवता वीर तेजोजी

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Lok Devta Vir Tejaji पर राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्यसिंह जी शेखावत की कलम से .................
‘इण धरती रा ऊपज्या तीतर नह भाजन्तं’ रा बिड़दावरी मैंमा वाळी राजस्थान री भौम सदा सूं ई आगौलग सूरां पूरां जूझारां री जणैता कहिजै है। राजस्थान रा धोरां टीबां, खाळ-वाळ नै भाखर-डहरां में कुंण जाणै कितरा माई रा लाल, दुसमणां रा खैंगाळ, हेतुवां रा हिमायती, बचन रा पाळगर, आंटीला, अणखीला, हठीला पराई छठी रा जगावणहार हुया है, जिकां रौ लेखौ-जोखौ बेहमाता इज लगा सकै है। राजस्थान रा लाखीणां मिनखां सूं हेत-प्रीत राखै तो उणां रै तांई आप रा जीव नै कूकड़ी रा काचा तार री नांई तोड़बा नै त्यार रैवै अर आंट-अड़कसौ करै तो खुद मर जावै पण लुळै नीं। थोड़ा-सा उपगार रै बदळै घणौ सारौ उपगार करण रौ सुभाव अठां रा पाणी-पवन री तासीर है। राजस्थान रा इसड़ा बचन वीरां में सूरवीर तेजोजी गिणती जोग हुवा है।

तेजोजी रौ जळम नवकोटि मारवाड़ रै नागौर पड़गणां रै खड़नाळ नांव रा गांव में खींचियां रै हुयौ हौ। बै जाट जात रा धोळिया गोत रा घरां पळिया। मां-बाप रा लाडेसर, लाड रा पालणां में झूलियोड़ा, साथी साईनां रा हेताळु तेजोजी रौ ब्याव नान्हीं उमर में इज है गयौ हौ। पैली सूं ही चालता रवैज रै कारण तेजोजी रौ ब्याव पीळा पौतड़ा में इज किसनगढ़ रै पणेर गांव रा चौधरियां री सुंदर नांव री डीकरी रै साथै हुयै हो। पण, जद तेजोजी इतरा ल्होड़ा हा के ब्याव नै टाबरां रा म्हैंदी मांडिया म्हैं हीं भजाणियां खेल-ख्याळ्यां सूं घणो क्यूं इज नी समझता। समै पाय दिन बधता रात बघता दोलड़ा हाड पगां रां डावड़ा तेजोजी उमर री बीसी में सागैड़ा जोध जुवान व्है गिया। घोडै़ चढै अनै घोड़ा नै रहवाळ, सरपट, दुड़की चालां सिखावै। भालां रा निसाणां साधै। साथीड़ां सूं होड मांडै। घर में गायां भैसियां दूजै। धान-पात रा अखार-बखार भरिया। च्यारू मेर सूं रामजी राजी। पण, परमेसर री लीला न्यारी है। उण नै फूलणौ तो फूल रौ मी नीं भावै। तेजोजी आप रा साथीड़ा रै साथ रमता घोड़ी नै फलंगां कूदावता खड़नाळ रै पणघट माथै आय नैं घोड़ी नै हरिये रूंख री डाळ रै बांध नै संपाड़ी करण नै घाट माथै पग मेलियौ। जितै तौ मांनां गूजरी खाथी-सी घड़ा नै जळ में डूबावती बोली-

छोडो सरवर घाट पाणी भरबाद्यो म्हांने घड़लौ बैवड़ो।
परले घाटे पाणी भरले अे गूजर री जायी सेवा साधां साळगराम की।
दूजेड़ै घाटे लाळा जमगी पगल्या थिसळे फूटे सोवन बैवड़ो ।
पगल्यां ने गाढा रोपौ दोन्या हाथ में ढाबो घड़लो बैवड़ो।
धग धग धूजै म्हारां पांव हाथ में आवै म्हारै बांयटा।।
अंतपंत में माना घड़ौ भरनै तेजोजी ने ऊंचावण तांई कह्यौ-
भरिया मांठ ऊंचाद्यो तेजल हींटोड़ी कवांड़ी बालूझे रोवे पानणै।
रितोड़ा ऊंचाद्या दोय नै च्यार भरियां रौ लागे दोसड़ो।।
कद को झाल्यो तूं तेजल ओ व्रत कद की सारे सेवा साळगराम की।
थांरी सेवा में पड़िया कांकरा कोई थांरी जोड़ायात उडावै ऊभी कागला।।
कांकड़ में ऊभी बेल ज्यूं सुखै थांरोड़ी परण्यौड़ी सायधन बाप रै।
कूड़ वचन मत बोल अे मानां गूजरी अखनकंवारी म्हांरी ओसथा।।

मानां गूजरी सूं तेजोजी आप रै ब्याव री बात संभळ नै दड़ाछंट घोड़ी नै दड़बड़ाय नै घरां आया अर आपरी जामण नै मुलक नै पूछियौ-

हंस नै सीख देवौ मायड़ दिलड़ौ उड़ लागौ रंग भरिये सासरे।
कुण थन्नै सीख सिखाई बाला किण भरमायौ जावै सासरे।।
हिवड़ै सीख सिखाई म्हारी मायड़ साथाीड़ा रै साथै सुरंगे सासरे।
हिवडै़ हांस घड़ाद्यू बाला साथीड़ा चबाद्यंू दूध्या खोपरा।।

तेजोजी री मां तेजोजी ने अंवली-सुंई घणी बातां में बिलमाबा री घणी ही चत्राई करी पण सासरा रौ कौड मजीठ रौ रंग छूटै तो इज छूटै। छेवट तेजोजी सासरा रौ पतौ-ठिकाणौ बूझबानै भावज कन्नै टाबर मोकळियौ। पछै सासरा री सुरंगी बातां, साळियां रा मीठा मुळकता बोल, सासू रौ लाड, साळां री
मनवारां री बातां चितारतौ सूघौ भावज रै माळिये जाय नै बोलियौ-

कांई सूती कंई जागै भाव म्हांरी डाबरिया नैणां में घुळरेयी बैरण नीदड़ी।
कांई कामां आयो देवर लाल कंई भळावौ औळग चाकरी।।

पण दसां डावड़ौ कहीजै नै बीसां बावळौ बाजै। इसी उमर में मोट्यार धाड़-फाड़ व्है जावै। उणनै आसमान टीपरियौ सौ लखावै। जवानी रा जोस सूं बूकिया फाटै। सौ तेजोजी भी आपरी भावज रा नाट कटखारा नै लोप नै सासरा रा नसा में मस्तयोड़ौ मेड़ी सूं हेटै आयौ। आपरी घोड़ी नै पिलाणी। घोड़ी रै पछेवटी घाली। पगां में टणमण करती नेवरियाँ पैहराई। गळे में कांठलौ घालियौ। किलंगी माथै टांगी। रेसम री डोर रौ चौकड़ौ लगायौ। साथीड़ा नै साथै लिया नै सुरंगा सासरा रै गैले बहीर हुवौ। सैरा में दूवा प्हाळी आड़ता, हंसता-हरखता पनेर रै गैले जावै।

घोड़ी धीरी मधरी चाल अे घोल्यार री घोड़ी टल्लो मारैली सैरयां सांकड़ी।
दिलड़ा में धीज राखौ ओ धणी म्हारां अेके फटकारे निकळू सैरयां बारणे।।


सिंदूरिया रंग रौ बीजळसार रौ भालौ चमकातौ तेजल वीर बग्यौ जाय हौ। गळे में राज रौ दांणी चूंतरौ आयौ। तेजोजी घोड़ी रै अेड मारी नै घोड़ी झट सूं दांणी चौकी री हद सूं बाहर जाती ढ़मी। आगै जावतां ऊजाड़ रण रोही में बासतै रा धपळका उठै। पांखांळा पंखेरू तो पांखामबळ सूं उड़नै छेटी परा गया। पण, पेट पिलाण्या रिगसणा सांप कठै जावै ? कांनी-कांनी सूं लाय री झळौं टूट-टूट नै पडै़। सूरिया अर परवाई रा फटकारां सूं आखी बनसपती, रूख, झाड़, बांठ बळ नै राखरड़ौ बणग्या। आग री लपटां में आकळ-बाकळ मौत रौ पाँवणौ बासग नाग अेक बाळा में पलेटा मारै पण जाबा तांई कठी नै भी गैली नी मिळै। इतरा में दया रौ समंद तेजोजी झट घोड़ी नै थांम नै आपरी ढाल अर भाला रै सहारे बासग नै आग सूं काढ़ण नै लपकियौ-

एक नळौ बुझायौ दूजौ बुझायौ तीजा में बळग्यौ बासग देवता।
भालो उठायौ ढाल झैल्यौ बारै काढ्यो बळतौड़ी लाय सूं।।
दूधां रा डौनां भर लायौ बासग ने पायौ काचौ दूधड़ौ।
आधौ तो पायौ बासगदेव ने आधा सू संपड़ायौ बासगराज ने।।


बासगदेव रौ आकळ-बाकळ-जीव दूध सूं ठाणै आयौ। जद बासग आपरा प्राणां रौ बचावणहार, बळती आग सूं उबारणहार, परोपगार रा सप्राण हूतळ तेजोजी नै डसण रौ मतौ उपायौ। तीरथ न्हाता पाप आ लागै। होम करतां हाथ बळबा वाळी बात व्हैगी। बासग बौल्यौ-

थांने डसूंला ओ घोड़ीजीवाळा लायां बळतां क्यूं बारै काढ़ियौ।
गुण करतां ओगण क्यूं मानै रै बासगराजा बळतोड़ी लायाँ सुं तन्ने काढ़ियौ।।
गुण रौ ओगण मानै तो बासगराजा जळै तौ फेर जळाद्यू बळती लाय में।
अब जळायां कांई व्हैवे ओ घोड़ीवाळा म्हांरी जोड़ी री जळगी पदमां नागणी।
अब जळाद्यूं तनै दूध्या नारेळां ऊपर कूडाद्यंू धोळी गायां रौ धीरत मोकळौ।
अब जळायां काँई व्हैवै घोड़ीवाळा वैकूंटा जाता। थां पाछौ फैरियौ।
अबरके हैले म्हांने जाबाद्यौ ओ बासगराजा बारै बरसां में जाऊं सासरै।।
कुंण थांरी साख भरसी ओ तेजा कुंण चड़ेला बन में थांरी सार में।
चांद सूरज म्हांरै साखी ओ बासगराजा सांखां में पड़सी बांबी रा सूखा खेजड़ा।
ऊभा ढबगा चांद सूरज हरिया व्हैग्या बांबी का सूखा खेजड़ा।।
वाचा देरै सासरे जावौ तेजा बेगा आज्यौ बांबी पाछा आवतां।।
बचन देरै सासरे जावंू ओ वासगराज बचनां रौ बंधियौ बांबी आवस्यूं।।
बचन चूकै सौ ऊभो सूखै। औ ! बासगदेव बचनां पर बंधियौ बांबी आवस्यूं।।


सूरवीर तेजोजी बासगनाग ने वाचा देवतौ कह्यौ-जै पताळ रा राजा बाप नै बचन तौ अेक इज हुवै है। कूड़ भाखै नै बचन लोपै सौ दोगलौ गिणीजै। छल छंदगारौ फरैबी नरक कुण्ड में पडै़। बचना सूं बंधा चांद सूरज उगै। सांच पर लोक रौ कारबोवार चालै। इण भांत चांद सूरज री साख भराय नै वीर तेजोजी आगे बहीर हुयौ। घोड़ी नै ठसका सू हांकतौ थको आपरै सासरै रै गौखै राजाजी रा बाग पर फळसे जा पहुंचौ। बाग री मालण नै हैलो देवतौ बौल्यौ-

बागां री खिड़क्यां परी खोलौ ओ माळ्यां झूमा बागां रौ रसीलौ ऊभो वारणै
जड़िया बजर किंवाड़ ओ गैला का पछी ताळा ढंकिया बीजळसार रा।।
असी मारूं अहड़ी फटकारूं हाथां का चटकीला चाबक कौरड़ा री।
किण रै मारै किण रै सुरड़े चटकीला चपळा तळबळ कौरड़ा री-
थारै सरीखा बगता मारग आवै दिन में साढा तीन सै।
म्हांर सराखो म्है ही दीखूं अे माळ्यां री झूमां सांचकले-
उणियारै रूणीचौ रामां पीर सो।
कुण गढ़ां रा मानवी ओ थे किसै जावौ मोटा राजा री चाकरी।
खड़नाळ नगरी रहबौ म्हांरो अे झूमां थांरी नगरी में आयो प्यारो पाहूणौ।
थांरोड़ी नगरी में माळ्यां री झूंमा तेजल तोरण मारियौ।
सुंदर रा स्याम म्हंतो थांरी साळी ओ जीजा म्हांरा-
बारा बरसां में आया प्यारा पाहुणां।।

घणा दिनां सूं काग उड़ाती, सूण व्यौपाती सुंदर आपरी जोड़ी रा जलाल, सिर रा सैवरा, आख्यां रातारा, हिवड़ा रा हार, नै जीव री जड़ी मोट्यार नै आयौ जाण मोरड़ी री भांत नाचण लागी। गीतेरणियां नै बुलावौ मैलियौ। साथणियां सुंदर नै सिंणगारबा लागी-

गीतेरण्यां ने हैलौ पाड़ौ अे मात्यां री झूमां हरखाऊं बुलावौ माणक चौक में।
गळै पैरयौ गेंद गळा को तेजल री सुंदर भंवरला हाथों में बींटी मूंदड़ी।
कुं कूं कैरा पगल्या मोड्या तेजल री सुंदर भवरला हाथां में मेंदीराचणी।
सुंदर केसां में पौया मौती लाला काई डाबर नैणां में सुरमो सारियौ।।
हाथां में झाल्यौ गंगा जमनी बेवड़ौ माथा पर मेली रेसम चूंपली।

सुंदर गैणां में लूम-झूम हुई थकी साथणियां रै घूमरै बाग-बावड़ी कांनी चाली। साथणियां हंसती पहप बिखेरती पूछै है-

हमैं थांरा बालम ने पिछाणौ ओ बाई किसै उणियारै बाल्हौ पांहुणो।
अगलां-बगलां में बाकैं साथीड़ा बहवै अधबिच में दीपै परण्यौ स्याम।।
कंई सूरत रौ थांरौ परण्यौ औ बाई किसे उणियारै थांरौ स्याम।
साँवळी सूरत म्हांरो राईवर अे बैनां सूरज उणियारै स्याम।।
और रा पट्टां में अंतर बासै बालम रै बासै मूंघौ केवड़ो।।

सांझ री गूधळक रै साथै तेजोजी आपरै सासरै री पोळ जाय नै ऊभो रहियौ। घोड़ी हिणहिणाई। तेजोजी री सासू दूध-दुवारी में लागी ही। घोड़ी रै हींसणां सूं टोगड़िया बिदक नै गायां ऊछळगी। दूध-दुवारी में भीजोग पड़ गियौ। तेजोजी री सासू आव देख्यौ न ताव बड़बड़ाटा करती तेजोजी नै राम मारियौ, ठालौ भूलौ इणवेळां कुणबळ्यौ है। गायां नै बिदका दी। सबद कै’र इकसांसी सौ गाळ कुबोल गाळ काढी। तेजोजी रै मन रौ उळ्ळास, हरख-कोड, हुंसैर खेजड़ां चढ़ग्यौ। पग बठै रा बठै ई जांणी चिपक गिया। झाळ में मुंहडौ रातौ चिरम व्हैग्यौ। घोड़ी रै पागड़े पग दियौ नै आयौ ही उण इज पगां पाछौ बाहुड़ चाल्यौ। तेजोजी री साळियाँ, साळाहेलियां लारै दौड़ी। पण तेजोजी तो रहणी-कहणी रौ धणी किण री सुणै। सांच कथी है- गोळी रौ घाव भर जाय पण बोली रौ कौनी भरीजै। अंतरै आखर घणी दौराई सूं सुंदर री साथण लाछां गूजरी तेजोजी नै आपरी गुवाड़ी में रोकियौ। मीठा बैणां सूं रोस री झाळ ठण्डी करी।

कोई हेलो तो मारके रै लाछां तेज ने थांमियौ
पकड़ीजी पकडी लिलड़ा री लगाम बेटी गूजर की रे
कौई बांवै तो पग रो रै पकड्यो है लाछां पागड़ौ
चाल्याजी चाल्या थे सुंई सांझ म्हारा जीजाजी ओ
कोई बोझां रा पंखेर भी चाुग चुग नै बासै बावड्या
सासूजी सासू बोल्या अबड़ा बोल बेटी गूजर की अै
कोई अैडी का लाग्यौड़ा अैबै चौटी लांगा नीसरिया

लाछां रै हेत मान रा बचन तेजोजी नै रातबासै उटै ठहरणै नै बांध लियौ। लाछां गोगली गायां नै कुंभी भैसियाँ रा दूध री खीर रांधी। हरीरौ बणायौ। काठा गेवां री भूंनवां लापसी रांधी। गळगच बट्टिया बणाया नै तेजोजी नै घणी मनवार सूं जिमायौ। ऊंची मेड़ी में हिंगळू रौ ढोळियौ ढाळियौ । पथरणा बिछाया नै सुंदर नें मोकळी।

समाजोग री बात कै मझांन आधी रात रा आडाबळा रा मीणा धाड़वी लाछां री गायां नै लेगिया। धाड़ा सूं गांव में कळबळाट मांच गियौ। तेजोजी बौल्याळो सांभळ नै मेड़़ी सूं हेटै आया। वाकौ सांभळतां तौ जेज लागी पण घोड़ी री पूठ पर आतां आंख रै झबकै जितरी वार नीं लागी। घणी उडीक सूं आया धणी नै गायां री बा’र पर चढ़ता तेजोजी नै उणारी जोड़ायत सुंदर पालिया-

‘थां मत जावौ ओ खावंद म्हारां गायां री बार, पाछौ कद मिळणो थांसूं होवसी।’
‘अब का बिछड्या ओ सुंदर फेर ना मिळां, जास्यां म्हैं बांडी बरड़या मांय जी।
गायां छुड़ास्यां ओ लाछा गूजरी री। आंण मिलालां थांसू बेगजी।’
तेजोजी घोड़ी नै दबड़काय नै धाड़वियां सूं जा भिड़ियौ। ललकार नै धाड़वियां नै कहयौ-
लागीजी लागी नहीं दमदेर लीलै तेजी ने रे
कोई कांकड़िये हूं ढळतां रै धाड़व्यां ने छिण में नावड़िया।
मांडोजी मांडो नेक धरण पर पांव कुबधी पापीड़ो रे
करियो थां गजब घणौ अन्याव दुसटी पापीड़ो रै
कोई भूखां तो मरता रै डीडावै भोळा बाछड़ा।

धाड़वियां तेजोजो नै पाछै मुड़ जावण तांई कहियौ। बै बोल्या क्यूं जूपती लाय रौ पूळौ बणै है। थारी सोवणी सूरत धाड़वियां सू झगड़ौ झेलण जोग नीं है। पाछौ मुड़ ज्या। पण तेजोजी बचन वीर हुंतो। मरै जिकौ तौ बोल माथै इज मरै नांतर तौ गोळी सूं भी नी मरै। दोन्यूं कांनी पाळा रुप गया। ससतरां री खणकार हुवण लागी।

मंडगाजी मंडगा पाळा बन में दोय रे
कोई चिमकणजी लागा छै रै वै खांडा बीजळसार का
लड़ लड़ ने तेजै मारिया छै कुबधी धाड़वी
म्होड़ी जी म्होड़ी पूठी सगळी गाय रै
कोई सहर तो पनेरां के मारग पूठी हांक दी।
कटगो जी बडगो तेजैजी रौ सगळी गात
कोई तिळड़ो तो धरबा ने अछूती देही न रेयी।
कटगोजी कटगो लिलड़ी रोजी गात
कोई रगतर रा परनाळा रे दोन्यां रा सागै बह्या।
पूगोजी पूगो जद कांकड़ रै मांय कोई खाय तिंबाळो घर पड़ियो।
बारै तौ आव आो बासग बारै तौ आव बचनां रौ बांध्यौ उभौ बारणै।


बासगराज बांबी सूं निकळ नै देख्यौ तौ तेजोजी रौ आखौ अंग घाव सूं चालणी बैझ हुयोड़ौ हो। खाली पगां री पगथळियां, हाथ री हथैळियां अर मुंहडा री जीभ बिना घाव अछूती ही। बासग तेजोजी री जीम रै डंक मारियो नै अपछरावां रा विमाण आकास में घूमर घालता, धिरोळा देवतां नीचौ आया नै धरमी तेजोजी नै देवलोक ले गया।

उतराधा भारत रा उण सूरा-पूरा रा नांव री तांती सूं आज भी काळीनाग, बाळारोग नै हिड़क्या रौ विख उतरै। खेतीखड़ लाखां लोग रौ पूजनीक रहणी-कहणी रौ ऊजलो, वचनां रौ जुधिस्टर तेजोजी परबतसर में पूजीजै है। उठै भादवा में मेळो भरीजै है। अहड़ौ ही तेजोजी सतधारी जुग पुरस जिकै तांई साध संगरामदास महात्मा नै भी कैवणौ पड़ियौ-

कहै दास संगराम, सांच सांई ने भावै।
देखो दिल नितराय, जाट तेजा ने गावै।।



जातां जुगां न जाय-मेड़तौ

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राजस्थानी भाषा साहित्य, संस्कृति अकादमी के पूर्व अध्यक्ष सौभाग्यसिंह जी शेखावत की कलम से ...........
सुतंतरता तांई बरोबर दो पीढ़ियां लड़ता-झगड़ता रहबाळा मेड़तिया साखा रा राठौड़ां रौ मूळ स्थान मेड़तौ (Merta City) राजस्थान रै बीचौ बीच मारवाड़ में पडै़ है। मेड़तौ राजस्थान रा घणां पुराणा नगरां में गिणीजै है। बूढ़ा वडेरा कैवै है कै मेड़ता री नींव परतापीक राजा मान्धाता आपरा हाथ सूं दिवी ही अर पुराणकाल में इण रौ नांव मान्धातापुरी हौ। संस्क्रति ग्रंथौं में मान्धातापुरी री जगै मेड़ता रौ ‘मेरुताल’ नांव भी मिळे है। पछै जोधपुर रै पास-पड़ौस राव जोधा रौ हांमपाव संवत् 1515 रै लगैढगै हुयौ। राव जोधै मंडोर कन्है चिड़िया टूंक भाखरी माथै गढ़ मांडि आप रा नांव पर जोधपुर नगर बसायी अर आप रा बेटां नै न्यारा निरवाळा पड़गना दिया। राव बीका, बीदा बेहूं भायां नै जांगळू द्रोणपर दियौ। राव बरसिंघ नै राव दूदा नै जिका मां जाया भाई हुंता मेड़तौ दियौ। जद संवत् 1515 विक्रम रै नैडै़ ढूकडै़ इज बरसिंघ अर दूदै मेड़ता माथै आप रौ हक हासल जमायौ चलायौ। इण भांत मेड़तौ घणी उथळ पुथळ, नै राजदुराजी देखी भोगी, सही। जाळोर रा सोनगिरा चुवाण, अजमेर रा सुबायत, नागौर रा खानजादां, जोधपुर रा धणी अर दिल्ली रा मुगल पातसाहां री घणी मारकाट मेड़तौ सही है। कई बार उजड़ियौ अर कई बार पाछौ बसियौ। अदीठ चक्र चालता राजा मान्धाता नै मेड़तौ देख्यौ तौ पणधर राव कान्हड़दै सोनगरा नै तपतां मेड़तौ देख्यौ। राव बरसिंघ जोधावत, राव दूदा नै राव वीरमदेव मेड़तिया नै खागां खड़कातां मेड़तौ देखिया। ‘म्हारे तो गिरधर गोपाल दूसरौ न कोई’ रौ सुर ऊगेरती लोकनिध राजराणी मीरांबाई नै मेड़तौ आप री गोद में पाळी, रमायी। खोळे बैसाण नै लडाई। नीतिकार व्रंद कवि नै मेड़तौ इज पाळपोस नै मोटी कियौ। भारत भौम री सुंततरता रै अमर जोधार नै चीतौड़ रै तीजे साके रा जूझार राव जैमल अर ईसरदास मेड़तिया री जलमभौम रौ गौरव मेड़ता नै इज है। इण भांत मेड़तौ सगती, भगती, रजपूती, सपूती, नीति अर सुरसत उपासकां री टणकी ठौड़ रैयौ है।

आज वरतमान में मेड़तौ जठै थिर है उणनै राव बरसिंघ नै राव दूदै जोधावत बसायौ है। राव बरसिंघ अर राव दूदै आपरा पिता राव जोधा रै पगां लाग अर जोधपुर सूं चालनै राजस्थान री ठावी ठौड़ जोवता भाळता मेड़ता रै कुंडळ बेझपा तळाब माथै आयनै घोडै़ रा पागड़ा छांटिया। आप री बसी रा गाडा ठहराया अर अंतेवर बीरबानियां, परगह, धानपात नीचौ उतारिया, गाडा ढाळिया। सखरी, रूपाळी नै सबळी मनभावती ठौड़ जांण नै संवत् 1518 चैत सुद 6 हसत नखतर रा सुभ मुहरत में मेड़ता रै कोट री रांग भराई। छत्तीस पूंण रा छांटवां मिनखां नै तेड़ तेड़नै आबादान किया। सवाळख दिस रा घणां मानखां नै मेड़ता में बुलाय-बुलाय नै बसाया अर मेड़तौ जिकौ फिरती-घिरती छांवळी री भांत ऊजड़ पड्यौ हौ फेर सरजीवण-सौ हू उठौ।

वरतमान मेड़तौ राठौड़ां री मेड़तिया खांपरा सूर वीरां री वीरता नै साहस भरिया बळिदानां री गरबीली गाथावां सूं अंजसै है। मेड़ता में निवास रै कारण इज दूदावत राठौड़ मेड़तिया बाजिया है। मेड़ता रै धणियां में राव दूदौ, राव बरसिंघ, राव बीरमदेव, राव जैमल, सुरताण, केसोदास, गिरधरदास, प्रिथीसिंघ आद घणा टणकेत, अड़ीला, अणखीला जोधार हुया। बादसाही फौजां सूं रढ़ रोप नै घणा लोह रटाका लिया। मेड़ता रा धणी मेड़तिया किणी रा तळेडू बण जीवणौ न चायौ। राव दूदै मांडू रा पातसाह रा सेनाधपत मल्लूखां नै लोह रा चिणा चबाय उणां रा तीखा दांत भांगिया जिकां रौ राजस्थानी साहित में ओपतौ बखाण बखाणीज्यौ। राव बीरमदेव हिन्दूपत राणा सांगा नै साथ देय अर अहमदनगर, बिसलनगर अर फतैपुर सीकरी में यवन दळां रौ विधूंस कियौ। बीरमदेव री वीरता पर घणा कवि रीझ नै उणरा गुण-गीत रचिया। रियां रा जुद्ध पर जग चावौ दूहौ है:

माई अेहा पूत जण, जेहा बीरमदेह ।।
रीयां थाणौ रहच्चियौ, समहर खाग सजेह ।।

दातार जूझार बीरमदेव खाग अर त्याग बेहूं भांत जबरौ हुवै। बो बीसलदेव चुवाण अजमेर री तरै धन माथै सरप री भांत पालथी मार नीं बैठौ। धन बांट नै जस खाटियौ:

बीसलदे अजमेर पत, की गौ हाथ करेह।
काचौ आंबे नांव फळ, माया बीरमदेह।।


राव बीरमदेव री बधती कीरत नै अनड़पणा सूं रूस नै जोधपुर रौ राव मालदे मेड़ता पर धारोळियौ। जोमरौ अधायौ सौ उण नै अैड़ौ जरकायौ कै नाठ नै जोधपुर जावतौ मुंहडौ ल्हुकायौ। मेड़तौ अर मेड़तिया जोधपुर री रण बांकी बाईसी में पैलां तो घणी खोटी करी। री सेना जीव लेनै नाठी । जोधपुर री सेना जीव लेनै नाठी। पण, जोधपुर अर मेड़ता री अदावट ठाढ़ी बंधगी। राव मालदे घणौ पाछौ कियौ। मारकणा मेड़तिया जबरा जूंझिया पर जोधपुर धकै लुळिया नीं। पछै। संवत् सौलै सौ तेरोतरै राव मालदेव मेड़ता नै दाब ही लियौ। मेड़ता रा कोट नै पाड़ कोकरियौ-कोकोरियौ खिंडाय नांखियौ अर कोट री पाखती आपरै नांव माथै कोट (मालगढ़) मंडायौ। आधौ राव मालदेव राखियौ आधौ मेड़तौ जगमाल बीरमदेवोत नै दियौ। घर रौ भेदी लंका ढावै। राव मालदेव कोट इज नी ढाइयौ मेड़ता री च्यारूंमेर री नहर (खाई) अर कुंडळ नै कूकसो दोन्यूं तळावा नै रेत सू भर नै मेड़ता री कीरत नै सांवळी करण रौ अजोग कारज कियौ। अर मेड़ता रौ नांव पलट नै नुंवौनगर दियौ। राव मालदेव, राव वीरमदेव रा दो बेटा चांदा अर जगमाल नै आप में मिलाय नै धोखा फरेबी सूं मेड़ता नै सर कियौ। पण मेड़तौ इण विजोग नै अंगीकार न कियौ। ढमढ़ेर ढूंढा, छांन छपरां अर कोट कोटड़ी र्री इंटा पाछी भेळी हुई अर बीरमदेव रै मोबी पूत सपूत जैमल राव मालदेव सूं खंवाठौर मांडी अर सरफुदीन नै साथ लै मालदेव नै संवत् 1618 में पछाड़ नै आप री करत रै कांगरा लगाया। कवीसरां भणियो है- जैमल जपै जपमाळा, भाग्या राव मैंडोवर वाळा ! पछै राव मालदेव काळ कियौ जद मेड़तौ सुख रा सांस लिया।

मेड़ता रै गोखडै सहनायां री मंगळ घुनां सुणीजण लागी। चारभुजा रै मिंदर पर बांनरवाळां लटकबा लागी। केसरिया धुज कोट माथै फहरायौ। सुख री सोरम महकबा लागी इज ही कै जितरा में बादसाह अकबर री फौज धरती ने घसकावती, रोही नै रंदौळती, रड़ियां रा जंगळां ने तोड़ती, गांवां ने उजाड़ती गह घूमती काळी कांठळरूप, दळ बादळ बण मेड़ता पर आयी। कारण मुगल बादसाह अकबर रौ दोखी नबाब सरफुदीन राव जैमल री ओट आप रा जीव री भीख सरणौ मांगबा आयौ हौ। प्राण जाय पण पण ना जाय बिड़द रा पाळक मेड़तिया सरफुदीन नै सरण दीन्ही। बादसाह सरफुदीन नै गरदन काट’र मारणौ चावतो हौ उणनै राव जैमल साथ मेल सिरोही तांई आगै पहुंचतौ कियौ। जैमल फेर मेड़ता नै ऊभौ मेल आडावळा रै पार बधनोर गयौ। मेड़तौ फेर मुगलाई रा दौरा दिन देखण लागौ। तठा पछै संवत् 1636 में बादसाह अकबर पुराणी अड़कसी बिसार अर सुरताण अर केसीदास जैमलौत नै आधौ-आधौ मेड़तौ दियौ। फेर बादसाह अकबर री मां गुजरात सुं आवती मेड़तै ठहरी। मेड़तिया उण री क्यूंही आवभगत, ग्यान गिणत नीं की। तद उण री सिकात पर फेर मेड़तौ रंडापौ भोगियौ। जिकौ संवत 1642 वि. में पाछौ केसीदास नै सुरताण रै रस आयौ। जिकां मेड़ता रा धणिया रा नांव सूं हिरण खोड़ा हुंता उण री आ हालगत हुई कै कदै मेड़तिया, कदै मुगल अर कदै जोधपुर रा कामेती मेड़ता रै गोखै बैस नै हुकम हासल चलायौ। काळगत कुण जाणी है ? राव सुरताण मेड़तिया रै पछै बलभदर मेड़तियै, गोपालदास सुरताणोत मेड़तियै रौ नै केसवदास जैमलोत रै पट्टै रहियौ। दिखण में बीड़ स्थान री राड़ में गोपालदास, केसोदास नै दुवारकादास तीनों काका भतीजा रण खेत रह्या। जद जगन्नाथ गोपालदासोत अर कान्हड़दास केसोदासोत मेड़ता रा धणी हुवा। जगन्नाथ दुबळौ सौ ठाकर हुंतौ। मेड़तौ ढाब न शकियौ। उण री माड़ाई पर कहणगत है:

ईंडूणी सी पागड़ी, तूळी सरखा हाथ।
भलो गमायौ मेड्तो, पातळिया जगनाथ।।


कान्हड़दास रै काळ किया पछै सं. 1676 में बादसाह मेड़तौ राजा सूरसिंघ नै जोधुपर नै दियौ। जद सूं ले’र आजादी ताई मेड़तौ जोधपुर रा धणी रै रैयौ। मुगल काल में मेड़ता रौ जिकौ राजनीत रै कारण गौरव हुंतौ बौ जोधपुर रै हेटै लागणै सूं मिट गयौ। जोधपुर रा अेक परगना सू बेसी घणी पछै मेड़ता री गिणत कौ रही नीं। आपणां इतिहास गौरव नै मेड़तौ फेर चितारियौ अर मरेठां काल में छाती रोप अर कांधा ठोक उठ खड़ी हुवौ। महाराजा रामसिंघ जोधपुर अर बखतसिंघ नागौर री आपसी गोधम-धाड़ में मेड़तौ अर मेड़ता परगने री भौम में घणा गोळा गरणाया। ठाकुर सेरसिंघ रियां ठाकुर जालमसिंघ कुचामण, सगतसिंघ मीठड़ी, देवीसिंघ पांचोता, आद मेड़ता रा ठिकाणादार लोह री लाट ज्यूं अडिग रह्या अर मेड़ता पर दुसमी रौ मरियां पछै हांमपाव होबा दियौ। मरैठां काल में तो जयअप्पा, जनकू, दत्ता अर महादा पटेल सू घणा खेटा किया। खगांटा बजाड़ी। जयअप्पा सिंध्या रौ मेड़ता पर धावौ तौ जोधपुर रा धणी बिजैसिंघ रा पग छुड़ाय दिया हा। जियां तियां करनै बिजैसिंघ नागौर नैड़ी पकड़ अर आबरू बचाई ही। मेड़ता रा उण जुद्ध पर महाकवि सूरजमल मीसण लिख्यौ है:

संध्या जया ओ बिजैसिंघ रट्टोर,
यों मेड़ता खेत जुट्टे बड़े़ जोर।।
भारी मच्यौ सेस के सीस पर भार,
यों कुंडळी सो फटा डारि फुंकार।।
बाराह की दढ्ठ में पीर व्है,
होने लग्यौ कामठी पिट्ठी को चूरि ৷
कंपै सबे दिल्ल री धिक्कारी पारि,
धुज्जी धरित्रीहु भैकप्ल को धारि।
आदित्य आभा गई धूळि से ढंकि,
लोकेस अटढ्ों परे सोक में संकि।
धांधा बढ्यौ धूमकी धार अंधार,
उलंधिबे सेतु लग्गे अकूपार।।
यों सस्त्र संवाहिनी बेग,
दोऊ भिली ओर ऊजळी चली तेग।।


मरेठां राजस्थान में घणी खाधळ कौनी ही। मारवाड़ नै जीतबा वाळां तांई मेड़तौ सदा वैरियां रै सांम्हे ढालबण मै आडौ आयौ। मेड़ता सूं मुजरो कियां बिना जोधपुर सांम्है पग बढ़ाता गनीमां रा काळजा कांपता हा। मारवाड़ रौ रुखाळौ मेड़तौ बजर कपाट साबित हुयौ। सं. 1847 में महादा पटेल रौ मेड़ता रौ जुद्ध तौ सैंसार भर घोड़ां रा हमला में अेकइइज गिणीजै है, जिणरी जोड़ रौ बीजौ उदारण लाख खोज्यां नीं मिलै। भेड़ता री रण भौम में आग बरसाती डिबोइन री तोपां रा मुंहडा घोडां री टापां री टक्करां सूं पाछा फेर दिया हा। महादाजी पटेल नै मेड़ता में छठी रौ दूध याद अणांय दियौ है। जोधपुर री रुखाळी जद मेड़तै ही करी। ठाकुर महेसदास कूपावत री वीरता पर किणी कवीसर कइयी है:

जुड़ दळ अरियां जुट्टीयौ, रिण खागां दे रेस ৷
मुरधर राखी भेड़तै, सांची साख भरेस।।


इण भांत मेड़तौ खळखेटा सहिया अर सदा बैरियां सूं लोह झटाका लिया।
जिण भांत जुद्ध लड़ नै बैरियां नै पछाड़िया उणी भांत मीरांबाई अर वृंद जेहड़ा भक्त अर नीतिकार देस नै सौंप नै ऊजळौ गरबीलौ जस पायौ। मेड़ता में जूंझारा री छत्रियां जिकी अणगित ऊभी है, महेस दरवाजौ, चारभुजा रौ मिंदर, दुदासागर, मालकोट, कुंडळसागर आद मेड़ता रै पुराणै वैभव री निसाणियां है। बीचळा बरसां में मेड़तौ राजनीत अर बिणज व्यौपार में पाछौ रह गियौ हौ पण भारत री सुतंतरता रै पछै अ बरसां में फेर आगै बध रह्यौ है। पोसाळां, दवाखानां, धानमंडी, सड़कां, रेलां संू जुड़ जांणै रै कारण राजस्थान में गिणत रौ कस्बो बण गयौ है। पण मेड़ता री महता ती मेड़तियां री वीरता पांण इज ओळखीजै है-

तणौ सुजस सुण राव राजा चवै,
आ सुण जैत रिड़माल ऊदा।
आड रा मुदायत हुवा सह ऊससौ,
देखज्यो राड़ रा मुदी दूदा।।



मयूरधुज गढ़ : मेहरानगढ़ जोधपुर

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मूर्धन्य साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्यसिंह शेखावत की कलम से..........
जोधपुर रौ किलौ मोरघुज (Mehrangarh) बाजै। मारवाड़ री ख्यातां में इण रौ जलम नांव गढ़ चिंतामणी मिलै। नगर, किला, कोट कमठाणां री नींव-सींव री थरपना चौखा समूरता सूं लागै। किलो, दुरंग नै जीवरखौ जंग-जुद्ध री बिखम बेळा में राजा-रेत रा जीव नै आसरौ देवै। जीव नै जोखा सूं ऊबारै। मोटी-पातळी किणी भांत री खैंखां नीं होण दै। इण वास्तै पैलड़ा जुगों में जीवरखां री घणी महता मानीजती। राजस्थान में आडावळां री छोटी-छोटी भाखर टूँका माथै, धरती माथै अणगत नान्हा-मोटा किलां री सांकळ-सी गूंथीजियोड़ी दीसीजै। जेक सूं दूजौ, दूजा सूं तीजो इण भांत लांबी कोसां तांई अणगिणत कतार-सी लखावै।

जोधपुर रौ किलौ मारवाड़ रै धणी प्रतापीक राव जोधै संवत् १५१५ रा जेठ सुद ११ सनीस्चरवार ९ दिन चित्रा नखतर में रांग भरा नै मंडायौ। अर मंडौर री अेवज में गढ़ रै हैटै अगूणी कांनी आप रै नांव सूं जोधपुर नगर बसायौ। जोधपुर मंडौर सूं तीन कोस दिखणाद में पडै़ है। मंडौर रौ भाखर भौगाीसैल नै नाग पा’ड़ कहीजै। कोई जमाना में अठै नाग खत्रिय राजावां रौ राज रेयौ तिण सूं नागां रा नांव सूं नागसैल नांव हुवौ। नागों में ताखौजी, बिंदौजी, पदमनाग आद घणा टाढ़ा राजा हुवा। नाग नै मोर रै आदकाळ सूं वैर गिणीजै। इण धर्म नै लोक भावना तूं पसीज नै राव जोधै जोधपुर गढ़ रौ नांव मोरधुज दिरायौ। मोर रै धकै नाग फीटौ पडै़। मारियौ जावै। कहणगत है कै मोरधुज की रांग रौ समूरतौ पांच पीर में ऊघड़ता हड़भूजी सांखला काढ़ मेलियौ हौ। आ बात भी चालै कै देसणोक रा देवी करणीजी उण मौके पधार नै जोधाजी नै आसीरवाद दियौ हौ। राव जोधाजी रा बखत में चौबुरज्यौ जीवरखौ नै जोधैजी रौ फळसौ इज वणियौ। बाकी री मैलायत, कमठांणां, पोळां दरवाजा नै नगर कोट पछै लारला राजावां बणाया।

जोधपुर धणी अभैसिंघजी रो राजकवि कवियौ करणीदानजी सूरजप्रकास ग्रन्थ में राव जोधाजी नै जोधपुर गढ़ री थरपना रौ बखाण करता थकां लिखियौ है-
सूत दियण नग सिरै, मिळै जोधौ भड़ मळां।
सुभ मुहरत सुभ सगुन, वणै चित्र सूं सुभवेळां।।
सास्त्र सिलप संजोय, सिलावट्टां स सधीरां।
सीस सीस असम संमेळ, नीम परठी मझि नीरां।।
पनरैसै संमत पनरोतड़ै, सुदि जेठ ग्यारस सनढ़।
आदगाट जोध रचियौ इसौ, गाढ़पूर जोधाणगढ़ ।।


मयूरधुजगढ़ नांव रौ कारण किला नै मोर री आक्रत रौ भी बतादै है पण औ किलौ नाग रै आकार रौ है। नाग-मोर सत्रुपणा रै कारण मोरधुजगढ़ नांव री सारथकता है।

‘सूरजप्रकास’ में इण री द्रढ़ता, बुरजां री मजबूती, नींव रो ऊंडापणौ, विखमता, सौवणापणौ नै बसीवानां री बैबूदगी बाबत फेर बरणियौ है-
नग सीसा गळ नीम, गरक असमां घूनागळ।
बींझाझळ सिर बणै, बिखम भुरजां बीझाझळ।।
कोट सेस आकार, वणै कांगुरा चहंुवळ।
वडी अंवारति वणै, जौख घण नौखछिलै जळ।।
स्त्रबलोक बसै धनवंत सुपह, सोहै रूप सुधार रौ।
गहतन्त विकट जोधांणगढ़, वणै मुकट वैराट रौ।।


इण भांत विंधाचळगिर रै बरौबर कवि इण नै द्रढ, अटल, अर ठाढ़ौ गिणायौ है। राव जोधाजी सूं लगाय महाराजा तखतसिंघजी तांई मोरघुजगढ़ जोधपुर राजवंश रा राजावां रा रैवास रो कोट रैयौ। पाछला राजा राईकाबाग नै उम्मेदभवन में रैवण लागा।

मयूरधुजगढ़ जिण भाखरी माथै है उण नै बोलीचाली में चिड़ियां टूंक भी कैवै है। राव जोधैजी जद इण कोट री रांग भराई तद अठै नाथपंथ रा सिद्ध चिड़ियानाथजी तापता हा। अबार तांई उणां रौ धुणौ झरणा नखै पूजीजै है।

मोरधुजगढ़ रै चारूंमेर चूनागळ पुखता भींत है जिकी बीस फुट संू लैय नै अेक सौ बीस फुट तांई डीधी है नै बारै सूं सित्तर फुट तांई चौड़ी है जिण पर मोटी-मोटी तोपां, बांणां नै जुजरबा धरियोड़ा है। औ किलौ चावड़-धावड़ पांच सौ गज लाम्बौ नै दोय सौ पच्चास गज चौड़ौ है। इण रै दोय खास मुंहारणा है। पैलौ लोहापोळ नै दूजौ जैपोळ। लोहापोळ आंथूण कांनी अर जैपोळ धुराऊ अगूण दिस में है। इणां रै अलावा धूपोळ, सूरजपोळ, भैरूपोळ आद बीजा दरवाजा भी है।

इण कोट में मारवाड़ रा राजावां रौ रैवास नै राजधानी रै कारण मारवाड़ रा घणखरा राजा कमठाणां, मैल, झरणा आद बणावता खिंणावत रैया। महाराजा सूरसिंघ रौ चुणायोड़ौ मोतीमहल, महाराजा अजीतसिंघ रौ बणायोड़ौ फतैमहल, महाराजा अभैसिंघ रौ फूलमहल अर महाराजा बखतसिंह रौ त्यार करायोड़ौ सिंणगारमहल घणौ सौवणौ, मोवणौ, सांतरौ, छिबतौ, फबतौ, ऊघड़तौ, औपतौ सरूप महल है। इणां री भीतां, आंगणां अर भीतरी छतां में सोने री बैल बूंठां फूल-पांखड़ियां नै बीजां रंग बिरंगा चित्राम सिलप नै चितराम कळावां रा नमूना कहीजै।

राव जोधैजी रै पछै राव सातळजी पच्चास हजार री लागत सूं कंवरपदा रौ महल अर कपड़ां रा कोठार कराया। राव सूजैजी हवामैल रै हेटै अैक मैल करायै नै लोहापोळ ढिग साळां चुंणवाई। राजलोकां तांई रावळा में जनानामहल बणवाया। कंवर बाधौजी अबार जठै नगारखानौ बाजै है उठै महल करवाया। राव गांगौजी वडौ उदार हुवौ। उणां गीतड़ां नै भींतड़ां में गीतड़ां ने घणा पसंद किया। कैवै है-

भींतड़ां ढह जाय धरती भिलै, गीतड़ा नह जाय कहै राव गांगौ।

इण भांत कोरती रा आधार भींतड़ां नै गीतड़ा गिणीजै है। राव गांगौ भींतड़ां में इण कोट माथै जठै दौलतखानौ है उण रै हेटै महल करवाया नै जिण ठौड़ भैरवजी रौ थान है बौ तळखानौ चुंणवायौ।

मोरधुजगढ़ रै भाटै राव मालदेजी ठाढ़ौ प्रतापीक तपियौ। घणा खळखेटा नै धमजग्गर मांडिया। घणी नुंवी धरती खाटी। मोरधुजगढ़ हेटै सिवाणौ, जाळौर, नागौर मेड़तौ, अजमेर आद टणका गढ़ लगाया। घणा बीजा कोट, परकोट जीतिया, ढहाया नै चुणाया। मोरघुजगढ़ नै घणौ संवरायौ, सजायौ, नावांजादीक बणायौ। गढ़ में झरणा दोळी तुंवौ कोट चुणायौ। चौकेळाव तळाव दोळौ कोट करवायौ। राणीसर दोळै कोट बणवायौ। राणीसर नै लोहापोळ बीचळौ कोट करवायौ। लिखमणपोळ अर इम्रतपोळ करवायी।

राव मालदेजी रै उमराव ऊहड़ राठौड़ गोपाल गोपाळपोळ करवाई। राव मालदेजी रै समै में इज औ कोट तुरकाणी भी भोगी। दिल्ली रा पातसाह सेरसाह धकै मालदेजी पग नीं मांड सकिया। कोट नै ऊभौ मेल नाठा। सेरसाह रौ अेक बरस कोट माथै हांमपाव रैयौ। उण बखत तुरका कोट में मैजीत चुणाई। पछै पाछौ मालदेजी रौ कब्जौ हुवौ। हिंदुवाणी हुई। पछै राव मालदेजी रौ पौतौ राजा सूरसिंघजी गढ़ माथै सूरजपोळ, जटै हमैं चित्र सेवा है उटै जनानी ड्यौढी, आटै री सिंणगार चौकी. अबै दफ्तर कहीजै उठै सभा मण्डप रौ महल, बाड़ी रा महल, मोतीमहल, कपड़ा रौ तोसाखानौ, बागां रौ कोठार, ढोलियां रौ कोठार, घोड़ा री जूंनी पायगां में जरजरखांनी बणायौ नै थिर कियौ।

महाराजा गजसिंघ कंवरपदा रै महल ऊपर आणंदघणजी रौ मिंदर करायौ, तोरणपोळ, दीवानखानौ नै तळेटी रौ महल बणवायौ। ठौड़-ठौड़ पातसाही में विजै पाय नै जोधांणकोट नै कीरतमान कियौ।

महाराजा जसवंतसिंघजी बादसाह साहजहां रा घणा मानैता हुवा। सिरी हींगळाज माता नै महादेव पारबतीजी रा देवालय करवाया अर आगरणी रौ महल बणवायौ। घणा कवियां माथै रीझ नै धवळ मंगळ गवाया। लाख पसाव नै करोड़ पसाव जैड़ा दान इण किला माथै दिया।

महाराजा जसवंतसिंघजी पुछै तीजी बार मारवाड़ में राजदुराजी व्ही। पातसाह औरंगजेब किला पर आप रौ कब्जौ मेलियौ। घणा धळ धौंकळ हुवा। संवत् १७३५ सूं संवत् १७७३ में औरंगजेब रै भिस्त पूगां पछै चमोतरै पाछै किला माथै घ्रत रा दीप जूपा। नौपतां री गड़गड़ी हुई। महाराजा अजीतसिंघ रौ दखल हुवौ। अजीतसिंघजी गोपाळपोळ सूं फतैपोळ सूधौ काम करायौ। अजीतविलास महल करवायौ। दौलतखाना ऊपर बीचलौ महल, आगरणी रा महल रै पिछोकडै भोजनसाळ अर रावळा में रंगसाळ कराई।

महाराजा अभैसिंघजी कोट री बुरज्या नै आखा गढ़ री निपाई कराई। टूट-फूट सुधराई। भाखर में सुरंगां सूं खोद नै चोकैळाव बैरौ खिंणायौ। फतैमहल ऊपर फूलमहल, सभामंडप ऊपर कछवाहीजी सा रौ महल, लोहापोळ हेटै गोळ री घाटी नखै तीन बुरजां बणवाई। अैमदाबाद नै जीत अठां रा किंवाड़ लाय लोहापोळ रै वढ़ाया। आणंदघणजी रा मिंदर में स्फटिक री पांच प्रतिमावां थरपी।

महाराजा बखतसिंघजी मरदानी ड्योढ़ी सांमी जनानी ड्योढ़ी नै सिंणगार महल चुणायौ। महाराजा बिजैसिंघजी मुरळीमनोरजी बिराजै जिकौ महल, पांणी रौ टांकौ नै आपरा गरू आतमारामजी री समाधी चुणवाई।

महाराजा मानसिंघजी आपरा गुरु आयस देवनाथजी माथै समाध नै उण कनै टांकौ सुधरायौ। लोहापोळ आगै भरत कराय पाकौ पट्टी करायौ। जैपोळ नुंवी कराय लिखमणपोळ तांई कोट करायौ। भैंरूपोळ कराई। सेवा रै महल चित्र सेवा ऊपर सिरीनाथजी रौ मिंदर बणवायौ।

महाराजा तखतेस खाबगारा महल, ऊपड़वाय उठै नुंवा मैल कराया। फूलमहल रौ लदाव नुंवौ करवायौ। मोतीमहल रै जूनां पाट कढ़ाय नुंवा घलाया। उण में सोने री कारीगरी रौ काम करायौ। तखतविलास महल चुणवायौ। माता चावंडाजी, काळकाजी रा मिंदर, फतैपोळ आगली साळ, फतैपोळ ऊपरली छतरियां रा कांगरा तुंवा कराया। चोकैळाव में महलकराया। जनाना में राणावतजी सा रा महल कराया। राणीसर माथै अरट मंडायौ।

गढ़मोरधुज माथै घणा सूरमा-सपूतां रा जस गीत गरणायाइजिया। आगरा रा दरबार में सलाबतखान नै पूगणिया राव अमरसिंघजी अठै रमिया। मुगलाई रा थांभा सूरसिंघजी, गजसिंघजी, अभैसिंघजी इण कोट में जळमिया। मुगलाई रा खौगाळराव मालदे, राव चन्द्रसैण, महाराजा जसवंतसिंघ मोरधुजगढ़ रा रायांगण में रमिया। अंगरेजां री आंख में खैर रौ कांटौ जैड़ा सालणा महाराजा मानसिंघ री थाहर औ इज कोट रैयौ।

घणा प्रवाड़ां रौ लोभी औ कोट धन्न है। इण रौ जस अमर है। औ चीतौड़गढ़ नै आबूगढ़ रै जोड़ गिणीजै।
गढ़ ऊंचौ चित्तौड़, आबू सुं बातां करै।
मोरधज्ज री मौड़, किण सूं कमती किसनिया।।


मोरधुज किला नै ‘महरानगढ़’ कैवणौ सही नीं है। ‘गढ बणियौ महरांण’ रौ अरथ गढ री विसालता इज दरसावै। महरांण रौ अरथ दरियाव हुवै है। दरियाव जैड़ौ फैलियोड़ौ गढ़।


सिरैगढ़ जैसलमेर

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मूर्धन्य साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्यसिंह शेखावत की कलम से........
इतिहास में साढी तीन साकां री ख्यात वाळी, भड़ किंवाड़ उतराध रा बिड़दाव वाळी, राग रागण्या री महाराणी मांड राग री जळम भौम माडदेश आजकलै जैसाण जैसलमेर Jaisalmer रै नांव सूं ओळखीजै। जैसलमेर रा खांतीला माणस जठै जुगजुगां तांई प्रकृति रा रूठपणां सूं जूंझता रैया उठै भारत देस नै पैमाळ करण री नीतवाळां परदेसी, देसी दुसमणा सूं भी बरौबर मींढा भेटी लेवता रैया। काळी कोसां तांई उजाड़, सूयाड़, बालू री भरां, रड़ां, निरजळां रोही रा भड़ां री भाटभड़ां री घणी ओपती करणी राजस्थान री ख्यातां में रमै। निरजळां भूमिभाग रा सजळा सपूत पूतां री मरदांनगी री मोवणी कांणियां राजस्थान री सोवणी भासा में मिळै। धरती में पांणी पताळां तांई नीं, पण मिनखां में अप्रमाण आब रैयी।

जैसाण रा अडै़ता, लडै़ता भड़ भाटी सदा भारत री उतराधी कांकड़ सीव रा रुखाळा निरवाळा जोधार गिणीजिया। भाटीपा रा सूरा पूरा कई राजथान थरपता, छोड़ता, बैरीड़ा नै मसळता मरोड़ता कोई नौवां सईका में अठै आया । उण समै माड रौ पुराणौ राजथान ‘प्रथीतणा पंवार’ बिड़द रा उजाळबाळा पंवारां रै कब्जै हुंतौ। भाटी भड़ देवराज पंवारां नै तलवार री धारां सूं धपाय आप रौ हांमपाव कियौ। कैयौ है-

कर लसकर कीधा कतल, पळ पखै परमार।
दूठी रूठे देवरज, धारा काळीधार ।।


रतननाथ नांव रा सिद्धराज जोगेसुर रौ वरदान पाय भाटी देवराज माड धरा जीती अर उठै आप रा नांव पर देरावर ठौड़ री थरपना करी। रतननाथ रा वरदान सुं जैसलमेर रा धणी रावळ कहिजिया। जोगेसरां देवराज नै मंदरा, चोळौ, आसौ अर खड़ाऊ दी जिकी धारण कर देवराज दान पुन्न कर आयसजी रै मठ भेंट कीनी। आ, परम्परा सुतंतरता पैली तांई जैसलमेर घराणा में चालती रैयी। भाटियां पंवारां रा नवकोट जीतिया तिण सूं नवगढ़ धणी कहाया। देरावर रै पछै लुद्रवौ बसाय देवराज घणौ दान, पुन्न पोखण रौ काम कियौ। देवराज री उदारता माथै कैयौ है-

क्रोड़ इग्यारै अरब हिक, पैंसठ लाख पसाव।
दीधा सिध देवराज धन, रीझे भाटीराव।।


रावळ देवराज प्रतापीक हुवौ। तीनूं सिंध, जाळौर, मंडौर, पूंगळ आद री धरती में घणा रगड़ा-झगड़ा किया।
देवराज रै पछै जैसाणधरा में रावळ भोजराज आखाड़सिध मांटी पणां रौ आंक हुवौ। गैलै जावता काळ सूं बाथैड़ा करण में तीखौ, रजवटपणां में नीकौ भोजराज आपरी प्रजा नै पोखण में दीखौ पुरस हुवौ। वैरियां नै घाव नै हेताळवां नै धन द्राव देय जस पायौ। जवनां सूं घणां रटाका लिया। पातसाह साहाबुदीन सूं लोह झड़ खेलियौ। ख्यातां बोलै है-

गौरी साहबदीन, भिड़ियौ रावळ भोजदे।
नांब अमर जसलीन, बारैसै नव लुद्रपुर।।


भोजदेव अजै भी जूंझार रूप में पूजीजै है। सरधाळवां री पीड़ मेटै।
लुद्रवा रै पछै भाटीपा री नवमी राजधानी जैसलमेर कहिजै। पुराणी कहणगत है कै जदुनाथ सिरीक्रिसण माड धरा सूं मथरा, द्वारका आवता-जावता जैसलमेर री ठौड़ देख नै कैयौ हौ-

जैसल नावां भूपती, जदुवंसी हिक थाय।
कोयक काळ रै आंतरै, अेथ रहेसी आय।।


पुछै रावळ दुसाझ रौ बेटौ रावळ जैसल बारैसी बारै रै सईका में लुद्रवा रै पाखती अगूंण दिस गवरहर भाखर माथै गढ़ मांडियौ। गवरहर तीन खूंणौ भाखर तिण सूं जैसलमेर रौ दुरंग तिखूणकोट त्रिकुटाचलकोट नै त्रिकुटगढ़ कहिजै। जैसलमेर रौ ठणकीलौ गढ़ चौफेर एक कम एक सौ बुरजां सूं बीटिजियौड़ौ दुरंग है। पातसाही काळ में जैसलमेर रै कंवर मनोरदास घणा तीख चौख रा काम कर जैसलमेर नै उजाळियौ। कवियां मनोरदास सारखौ कंवर अर जैसाण तोल दुरंग जुग जुगां में अजोड़ कथियौ है। गढ़ अर कुंवर री रजवट री टणकाई बखाणतां कैयौ है-

संसार कहै पतसाह सांभळो, समर पाकडै़ नकौ समसेर।
अजब बणै दु नियाण ऊपरै, मानकं, वर नै जैसलमे र।।१।।
कंदरागुर बडगात कलावत, जगपुड़ नयण पतीजण जोय।
गौरहरा सारीख नकौ गढ़, न्रप मनहर सारीख न कोय ।।२।।
बांह प्रळंब जोध अतुळीबळ, मोज समंद जादम मनमोट।
मान मछर सिरहर मं डळीकां, कोटां सिरै तिकूणौ कोट।।३।।
खाग त्यााग मीेंढता नवखंड, जादम सारीखौ जैसाण।
मृनहर तणा भ ुजाडं ड मोटा, मोटा बु रजां तणा मंडाण।।४।।


नीन्याणवै बुरजां रा मंडाण रौ, फूटरा पीला पाखांण रौ, जोधारां जूझारां री रैठांण रौ, जौहर साकां री अगवांण रौ, च्यारकूटां रौ चावौ, भाटीपा रौ मन भावौ जैसाण रौ दुरग संसार में साढी तीन साका रौ कोट भणीजै। जैसलमेर रौ धणी रावळ मूळराज अर रतनसी तेरहसै इकावने रै साल फीरोजसाह सूं भिड़ साकौ कियौ। केसर रा रंग में गरकाब, रजपूती री आब, पातसाही फतै रा सुपना नै धूळ में मेळ अखेलौ खेल खेलियौ-

साह पीरोज जलाल, मूळ रतन जैसाणगढ़।
साकी कीध कराळ, तेरहसै ईकावनै।।


तेरहसै रा सईका में इज फेर बादसाह अलाऊदीन रौ सेनादळ जैसलमेर ढूकियौ। गांवां नै उजाड़तौ रहवासा मिंदरां नै पाड़तौ, जैसलमेर आयौ। रावळ दुरजणसाल, तिलोकसी पातसाही दळ सूं विढ़ पड़िया। धरती धूजी। गोम गाजियौ। नारियां सत आंगमियौ। जौहर ज्वाळा में जळी। रजवट फळी। धड़ पड़िया धाराळी चली। भूतावळ जागी। सूरज थंभियौ। अचंभ कर भ्रमियौ। दूदौ तिलोकसी काम आया। अमर लोक पाया-

खिलजी अलावदीन, दुरजणसाल तिलोकसी।
साकौ भारी कीन, तेरहसै अड़सट्ट में।।


अेक साकौ अजै बाकी नै आधौ साकौ रावळ मालदेव रा जुद्ध रौ गिणीजै। पण, जौहर नै साकां में आगीवाण जैसलमेर रा लोग कळा, कारीगरी, मोज रीझ अर सुन्दरता रा पारखी भी कम नीं। जठै प्रक्रति उणां नै कितरा इज अभाव में राळिया उठै कितरा इज गुण नै सुख भी दिया। जैसलमेर री सूखी भौम रंग रूप में किंणी सूं भी कम नीं। उठां री नारियां समझ-स्याणप, चात्रगता अर घर ग्रहस्थी री संभाळ में टणकी बाजै। पाव नै सावा सेर कर बरताणै में घणी चात्रग बाजै। जैसाण री नारी रौ अेक काव्य चित्राम है-

जिकी परी इंदरी, जिकी चंदरी कळासी।
जिकी आभ बीजळी, जिकी होळका झळासी।।
जिकी रूप री बेल, जिकी पीवह वस करणी।
जिकी गुण रीझणी जिकी ओगुण परहरणी।।
जाणणी जिकी राजस कळा, थिर वयणां जस खट्टणी।
भळहळत कंवळ गुण गागरी, भळी सुरंगी भट्टणी।।


भाटीपा री नारियां जठै जौहर साकों में पुरसां रै आगै आप री कंचन-सी निरमळ, गंगी-सी प्रवीत, पहपसी महकती काया नै जौहर कुंडां में होमवी। उणा रै धकै इं दर री अपसरा, चंदर री कळा, आभा री बीज, होली री झळ भी समता में नीं चढ़ै। रूप री बेल, गुण री गागर, समझ री सागर, राजरीत प्रवीण, जस खाटणी नै गुणां पर रीझणी गिणीजै।

प्रेमिकावां री सिरमौड़ मूमळ जैसलमेर देस री इज रूप बाड़ी रौ फूल हौ। विदवांन पिंडतां री अकल चरणी काव्य-बरसाबा वाळी सोढी नाथी जैसाणा री इज भगति गंगा ही। महाकवि महाराज प्रथीराज री परणेता चंपादेवी जैसाण री इज ऊपनी नारी रतन ही। ढोला मारू री चौपाई प्रेम कथा रौ रचना रौ नै पिंगळ सिरोमणी रौ लिखारौ कुसळलाभ जैन जैसलमेर रावळ हरराज रौ मानीतौ कविसूरि हौ। राजस्थानी रौ मोटौ व्यंगकार रंगरेळौ वीठू चारण, ईसर रतनू डूंगरसी रतनू भाटीपा रा मोटा कवि हा।

जैनध्रम नै आसरौ देय बढावण में भी जैसलमेर नै आछी नांववरी पाई। जैनियां रा पारसनाथ, संभवनाथ, सीतळनाथ, आद ठाढ़ा आठ मिंदर जैसलमेर में है। उठां रा जैन श्रावकां रा तळभंवरां में इतिहास, घ्रम, नीत इत्याद रा घणा अमोलक ग्रंथ सुणीजै है। जैसलमेर रा मिनखां री मजबूती अर उठां रा पसुवां री हींमत पर घणौ बरणन मिलै। जैसलमेर पर कहणगत है-

घोड़ा होवै काठरा, पिण्ड हुदै पाखांण।
बगतर होवै लोह रा, तो जइयौ जैसाण।।


पाखांण पिण्ड रा धणी दुसमणां री अणी सूं झगड़बा नै हमेस ऊंतावळा सा बावळ सा रैया। कमालुदीन रा जैसलमेर धावा रौ बरणन त्रिकूटगढ़ रा रुखाळा री जोमरदी रै साथ सुणीजै-
‘‘तुरकां तूं गढ़ लगाव दो। कांगुरै हाथ घाततां तांई कोई तीर गोळी मत चलावो। सु गढ़रोहो व्है छै। नींसरणियां लागै छै। गढ़ रै ठठरियां ओट जूंझार जाय लागा छै। हाथी पंदरा किवाड़ भांजण तूं आगै किया छै।’’ पछै ढील कठै ! जंग जोधार कंदोई कड़ाव में पापड़, भुजिया तळै ज्यूं दुसमण नै तळ नै पकवान बणा दिया-

क्ेसर मिलक सराजदी, वे मूलू हत्यांह।
जाण कंदोई उथळै, खाजौ मंझ कड़ाह।।


बात पर अड़णौ, बचन पर मरणौ माडेचा रौ पण। नर इज नीं माड री नारियां भी घणी आंटीली। राजस्थान में जैसलमेर री नारियां री घणी सराहणा हवै।
जग चावौ कथन सांभळीजै-

मारवाड़ नर नीपजै, नारी जैसलमेर।
सिंधां तुरी सांतरा, करहा बीकानेर ।।


जैसलमेर री राजकंवरी उमादेवी भटियाणी ख्यातां में रूठीराणी रै नांव सुं ओळखीजै है। उमादे नवकोटी मारवाड़ रा जोमराड़ धणी राव मालदेव राठौड़ ने परणाई ही। उमादे अर राव मालदेव रै सुहागरात रै समै इज अमेळ व्है गयौ। मान री धणियाणी मारवाड़ रा धणी, आप रा पति मालदेव सूं अबोळ रौ प्रण झाल लियौ। सुहागरात रा सपना, मीठी कल्पनावां सैंग समेट आधी फेंकी। अर जीवण भर रावजी री नीं सेज माथै पग दियौ नीं बोली। रावण सौ रढ़, हमीर सौ हठ झाल उमादे रूठी राणी बाजी। मारवाड़ रा प्रतापीक राव मालदेव रै आगै नीं नमी सौ नीं इज नमी। आखी उमर रूठी रैयी अर जद राव मालदेव री काया रौ पात हुवौ झट सहगमण करबा नै चिता रा अंगारां में जा बैसी। उमादे रै धकै असत्यां रा मुंहड़ा काळूट नै लीयाळा सा तेजहीण व्है गया। जूनां भारतीय साहित में आदर्स नारियां मंदोदरी, कौसल्या, कुंता सगळी सती ध्रम नै पांतरी अर पति रै साथै नी बळी, पण जैसलमेरी उमादे आपरी
काया नै पति री चिता रै भेंट किवी-

मंदोदर मेलियौ, राण हेकलौ रावण।
कुंती पाण्डु नरिंद रही, बोळाय विचक्खण।।
कान्ह मरण गोपियां, करग थम्भौ नह दीधौ।
कोसल्या दसरथ, काठ चढ़ साथ न कीधौ।।
पांतरी इति सह वड परब, सनमुख झाळां कुंण सहै।
पांतरूं केम मोटौ परब, कथन अेम ऊमा कहै।।


कुळ कीरत माथै सरबस होमण तांई इज राव हमीर रणतभंवर माथै, रावळ पत्तौ पावागढ़ माथै, राव चूंडौ, नागौर माथै, कान्हड़दे चौवाण जालौर माथै अर रावळ दूदौ जैसलमेर माथै साकौ कियौ जद फेर लाज री जहाज, म्रजादा री मिंदर उमादे कींकर जुग ध्रम व्रत नै बिसारती ?

जेण लाज हम्मीर, मुदौ जूझे रिणथंभर।
जेण लाज पातल्ल, मुदौ पावागढ़ ऊपर।।
जेण लाज चुंडराव, मुवो नागौर तणै सिर।
कान्हड़दे जालौर, अनै दूदौ जैसलगिर।।
वड घरां लाज राखण वडी, करण सधू खत्रवट करै।
सो लाज काज ऊमां सती, मालराव कारण मरै।।


लाज री पाज ऊमादे सत धारण कर जैसलमेर नै जोधपुर, पीहर अर सासरा रै सोना रौ कळस चढ़ाय कीरत पायी। भाटीपा री उण विचक्खण साहसी रूठी
राणी रा रुसणा माथै भाटीपा नै गुमेज है-

ऊमां सतव्रत आंगमे, भई सती भटियाणि।
ऊमै दुरंग उजवाळिया, जोधाणै जैसाणि।।


इण भांत भारत में जैसलमेर रौ दुरंग नै माड री धरती महान कहावै। कीरत पावै। अर भाटीपा रा सूरमां सपूत उतरोध रा किंवाड़, सीमाड़ा रा रुखाळा रौ बिड़द पावै-

भड़ किंवाड़ उत्तर धरा, भाटी झेलण भार।।
वचन रखा विजराव रा, समहर बांधै सार।।


रावळ विजैराव उमरकोट परणबा गयौ जद सासू तोरण आरती कर नै आसीस दियौ- भड़ किंवाड़ उतराध रौ’ बणज्यै सौ भाटियां उण बचन नै पीढीयां तांई पाळियौ।
इतिहास, ख्यात, बात री भांत इज जैसलमेर री कमठांण कळा भी राजस्थान में अजोड़ सिरमौड़ गिणीजै। जाळी झरोखां री कोरणी री छिब देस परदेस में अनुपम भणीजै। पटवां री हवेलियां इन्द्रलोक रै कारीगरां री कारीगरी री हौड साजै। कळा पारखियां रौ मन मोहै।
Jaisalmer Fort, Rawal Jaisal, Jaisalmer History in Rajasthani Bhasha, Jaisalmer Story by Sobhagy singh shekhawat, uma de, rao maldev

राजस्थान रा इतिहास रौ वेदव्यास-नैणसी

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ठाकुर सौभाग्यसिंह जी शेखावत की कलम से............

राजस्थान री धरती सूरां वीरां री कर्तव्य भौम, प्रेम रा पुजारियां री रंग-थळी, साध-संतां री साधना स्थळी नै जती-मुनियाँ री भ्रमण भौम रैयी है। जुद्ध अनै प्रेम, हिंसा नै अहिंसा, भौतिक नै आध्यात्मिक कमाँ रौ अैड़ौ अेक-दूजा सूं मेळ किणी बीजा भूखण्ड में नीं मिलै। मरुथळ रै नांव सूं ओळखीजण वाळी आ धरती भांत-भांत रा विस्मयां रौ अखूट आगार, अणतोल भण्डार रैयो है। अठै अेक सूं अेक बधता जोधार-जूंझार, अेक सूं अेक बधता उदार-दातार, अेक सूं अेक बधता सम्रथ साध नै अेक सूं अेक बधता साहित-इतिहास रा सिरजणवाळा निपजिया है। अैड़ी नरां री खाण, प्रतंग्या री पाळगर, म्रजादा रै खातर मौत सूं गळबाथ घाळणियां सूरमां भौम में मुहणोत कुळ रौ सिरमौड़। आंटीला पण रौ आंक। निडरता रौ नाहर। साहस रौ सेर नै टेक रौ अेकल गिड़ बाराह नैणसी निपजियौ।


राजस्थानी इतिहास, साहित नै संस्क्रति रा, इण नंुवा वेद व्यास रौ जलम आज सूं साढे तीन सौ साल पैली ओसवाळ महाजनां रै मुहणोत गोत्र में १६६७ रै मंगसर मास रै चानणै पखवाडै री चोथ सुकरवार रै दिन हुवौ। नैणसी री माता रौ नाँव सरूपदे नै पिता रौ नांव जैमल्ल हौ। सरूपदे री कूख सूं नैणसी, सुन्दरदास, आसकरण अर निरसिंघदास चार भायां रौ जळम हुयौ। जैमल्ल री बीजी जोड़ायत सुहागदे सूं जगमाल नांव रौ अेक डीकरौ निपजियौ। इण भांत जैमल्ल रै पाण्डव जैड़ा पांच पुरसारथी बेटा हुवा पण उणां पाँचों में सगळा सूं सम्रथ, सबळा, कुळ री करत रा कळस, मरदांनगी रा मुगट, जग चावा, नांव कमावा, नैणसी नै सुन्दरदास हुवा। अेक सूरज तौ बीजौ चांद, अेक पारथ तौ दूजौ भींम। साहित रा सौदागर। जस रा ग्राहक। खळ-खेटां रा खेतरपाळ। कलम क्रपाण रा करामाती। सैणां रा साथी नै अणभावतां अण सुहावतां रा जड़ मूळ ऊपाड़। राड़ रा रसिया। खगाटां रै धकै अणभै धसिया। अैड़ा दो भाई नैणसी नै सुन्दरसी। पौरस रा पौरसा। सामध्रम रा सांपरत काळा गोरा भैरव।

ओसवाळां री मुहणोत साखा रौ निकास नौकोटि मुरधरा रा धणी राठौड़ां सू मानीजै। राठौड़ां रै आद पुरख राव सिया (सं. १३००-१३३०) रै पड़पोतै राव रायपाल रै चौथै सुत मोहण सूं मुहणोत गोत्र रौ चलण कहीजै। कहणगत है कै मोहणजी सिकार में अेक हिरणी मारी। बा हिरणी भारी पेट हुंती। मरती वेळ अेक बचियौ हुवौ। बचियौ पांखा बाहर होतौ इज दूध रै खातर हिरणी रा थणां नै थबोड़बा ढूकौ नै हिरणी रौ हंसली उड गयौ। माटी हुई लास धरती माथै जाय पड़ी। इण चकाबा नै देख मोहणजी रौ हियौ उझळ पड़ियौ। दया रौ दरियाव ज्वार भाटा रौ रूप ले लियौ। बाळमीक रै कराँकुळ पंखेरुवा री मौत रै समान मोहणजी पिछताबा लागा नै उठै इज आप रौ सिकार रौ सराजाम नांख नै अहिंसा भाव धार लियौ। पछै जैनाचारज जती सिवसेन रै संग नै उपदेस सूं प्रभावित व्हैनै १३५१ री साल जैन धर्म अंगेजलियौ। जद सूं राठौड़ मोहणजी रामपालोत री ओलाद मुहणोत ओसवाळ बाजबा लागी।

मोहणजी रै सुभटसेण हुवौ। सुभटसेण जदपि महाजन जात में जनमिया पण उणां रा संस्कार नै प्रक्रत राजसी हुंती। बै विणज, व्योपार रै कारबार री ठौड़ आपरै नैड़ै रा सासक भाई राव कन्नपाल राठौड़ महेवा (खेड़) रा धणी री प्रधानगी रौ काम संभाळियौ। सुभटसेण संवत १३७१ रै लगै ढगै देही त्यागी। पछै क्रमवार महेस, देवीचन्द, सादूळ, नगराज अर सूजौ हुवा। मोहणोतां री इणां दस चार पीढ़ियां री घणी विगत, हाल चाल नीं मिलै । इणरी छाण-बीण इतिहासां-ख्यातां रा पंडितां -पांगियां नै करणौ जोग है। पण, ख्यातां में मेघराज री विगत में ओ मिळे है कै राठौड़ मंडोर री ठोड़ जोधपुर नै आप रौ रायथान थरपियौ जद मेघराज संवत १५२६ रै सईकै जोधपुर कोट री तळेटी में आपरै रहवास री हेली बणाई ।

सूजा रौ जायौ अचळौ हुवौ। अचळौ आपरी रहणी-करणी, सामधम, हिम्मत दिलेरी नै समझै सयणप में टणकौ कहीजियौ। जोधपुर रा रावचन्द्रसैण ओगै घणौ मानीजियौ। रावजी री मूंछ रौ बाळ नै आघमान रौ धणी हुवौ। चन्द्रसेन रा विखा में डील साथै छांवळीं री रीत साथ रैयौ। विपत्त में कदै छेह नी दियौ। आपत सूं अळसायौ नीं। कष्टां सूं कुमळायो नीं। धकचाळा सूं घबड़ायौ नीं। सेल अणी री भांत सदा ऊंचौ होसलौ राखियौ। अन्त में १६३५ री सांवण बद ईग्यारस रै दिन सोजत रै पाखती सवराड़ गांव रै झगड़े में राव चन्द्रसेण री हिमायत करतौ थकौ जैमल नैतसियोत उहड़ समेत अकबर रै सेनानायक सैयद हासिम नै सैयद कासिम री फौज सूं जूंझ नै काम आयौ। अचळा री वीर मौत रौ बरणन कविसरां घणौ कियौ है। अठै साख रूप में जूनी दो ओळियां बांचीजै

नेस तजै चन्द्रसैण नीसरे, देस मरण छळ दीठो।
अचळ प्रसाद पडंतै अचळो, नांखे खयंग नतीठो।।

इण तरै अचळो इण संसार में आपरी कोरत नै अचळ-अडग बणाय नै जसनामो कियौ।

अचळा रौ बेटौ जैसौ हुयौ। जैसौ आरण-अखाड़ां रौ सांप्रत मल्ल इज हुवौ। घणी झगड़ायती ठोड़ां री देखरेख किवी। जैसा रौ बेटौ जैमल्ल हुवौ। जैमल्ल रौ जळम ३१ जनवरी, १५८२ ई. रै साल हुवौ। बादसाह जहांगीर रै समै जोधपुर रा धणी सूरसिंध री तरफ सूं जैमल्ल सन् १६०६ री साल पट्टण सरकार रै बड़नगर री हाकमी किवी। १६१५ ई. तांई जैमल्ल उठा रौ हाकम रैयौ। पछै राजा सूरसिंध रै फलोधी पट्टे हुई तद सूरसिंघ जैमल्ल नै फलोधी री हाकमी दिवी। जठा पछै राजा गजसिंघ रै समै जालौर रौ आखो भर-भार जैमल्ल नै सौंपीजियौ। जैमल्ल जैड़ौ जबरौ इन्तजामी मांटी हुवौ उणी बरौबर लड़ैतौ जोध भी हुवौ। साहजहां रै समै नवाब महावतखां रै उपद्रव रै कारण भेजियोड़ी सेना रौ सेनापत जैमल्ल इज बणायौ गयौ। पछै सूराचन्द, पोकरण, राड़घरा, महेवा माथै फौज कसी करनै उणां सूं डंड लेय अर जोधपुर हेटै घालिया। जठां पछै सिंघवी सिरैमल अर जैमल नै देस दीवाण रौ पद दियौ गयौ। उण रै पछै जैमल्ल राव अमरसिंघ नागौर री दिवाणगी पांच साल तांई किवी। जैमल्ल घणा मिन्दरां री मरम्मत कराई नै उणाँ में प्रतिमावां री थापना किवी। गिरनार, आबू सेत्रुजा तीरथां री जात्रावां किवी। इण भांत लोक हितां रा घणा लूंठा काम करिया। जैमल्ल रै देवलोक हुवां पछै उणां नै चितारतां थका कह्यौ है-

परालब्ध पलट्या परा, दीजै किण नै दोख।
जैमल्ल जलेबी ले गयो, साधां करो संतोख।।
जैमल्ल रै पछै नैणसी अर सुन्दरदास पांच भाई हुवा। अेक छप्पै में मुहणोतां री पीढ़िया इण भांत बखाणी मिळे-
धुर धूहड़ रायपाळ तास मोहण बळ रक्खण।
सुभटसैण माहेस वळे देवीचन्द विचक्खण।।
सादूळ देवीदास खेत अमरो मेहराजण।
सूरचन्द अर भोज काळ बखतो मोहण।।
सांवता नगौ सूजौ सगह अचळौ जस-खाटण अचड़।
तिण वंस तिलक जैमाल तण, नैणसी सुन्दर निवड़।।

नैणसी आप रा जुग रौ धाड़-फाड़ पुरख हुवौ। जठै उण जुद्धां में घणा प्रवाड़ा खाटिया उठै मारवाड़ री विगत नै नैणसी री ख्यात जैड़ा दोय महताऊ ग्रन्थ लिखिया। ख्यात में राजस्थान रा सीमाड़ाँ नै बीजा राजपूत वंसा रौ इतिहास नै रैयत री राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक हालत रौ आछौ ओपतौ वरतांत लिखियौ। नैणसी राजवंसां रा इतिहास रौ बोईज काम कियौ जिकौ रघुवंस रै इतिहास खातर वालमीक नै कवि किरीट कालीदास कियौ नै द्वापर में महाभारत रचनै वेदव्यास कियौ। पातसाह अकबर रै इतिहास तांई अबुलफजल कियौ। मारवाड़ रा पड़गना री विगत तौ नैणसी री कीरत रौ अखैबड़ इज गिणीजण जोग है। मारवाड़ इज नीं ढूंढाड़, माड, मेवाड़, बागड़. हाड़ौती किणी भी ठोड़ नैणसी री जोड़ रौ नर रतन नीं जळमियौ। बणियाणी जाया तो कांई राणी जायां में भी नैणसी जोड़ नै कोई नीं पूगै-सांच मानौ-‘राणियां रा जायोड़ां सूं बणिया विशेष है।’ नैणसी माथै सवा सोळा आना सही उतरै है। जद इज तौ कविसरां कहयौ है-

बीजौ नको वीकपुर बूंदी, ढाल उथाळ नको ढूंढाड़।
जैमल रा सारीखां जोड़ा, मारू नको नको मेवाड़।।

ख्यात अर विगत रै पछै नैणसी रौ खास काम तौ जोधपुर राज री सेवा चाकरी रौ हौ। उण समै उणाँ री नामवरी नै मानतान रौ कारण राज री सैवा रौ काम ही इज हौ। नैणसी महाराजा जसवंतसिंघ रै बखत दिलजान सूं जीव झोक नै राज री पैदास री बधोतरी रौ काम कियौ। राज सेवा में नैणसी रौ पैलापहल नांव महाराजा गजसिंघ रै समै १६८६ में मगरा रा मेरां रा गौधमधाड़ नै भेटण रै रूप में मिळे। नैणसी मेरां पर चढ़ाई कर नै मारिया-कूटिया नै उंणा नै ठिकाणै लगाया। पछै १६६४-६५ री साल फळोधी पर बलोचां री खेड़ पर धावौ मारनै उणां पर विजै पायी। बळोचां नै सर करणै सूं नैणसी री भली ख्याति हुई। उणरै पछै तो नैणसी रा नांव सूं मारवाड़ में हिरण खोड़ा हुवण लागा। जिका ठिकाणा मातै फौजकसी करी जीत इज हुई। संवत १७०० में राड़धड़ा रा धणी रावळ महेसदास महेचा पर चढ़ाई करनै उणनै पराजित कियौ नै उण री ठौड़ रावळ जगमाल तेजसिंघोत नै राड़धरा माथै थापियौ। इण भांत मालाणी रा सरजोर आपी-थापी सावंतां री ताकत तोड़नै उणांनै दरबार रै पगां लगाया।

नैणसी नै सुंदरदास नै संवत १७०५ विक्रम में सौजत रै गांव कूकड़ा, कराणा नै मांकड़ पर धावां मारनै उठै कूकड़ा बुलाय दिया। उठारा रावत नारायणदास नै हराय नै उठा सूं बारै काढ़ियौ। इण भांत मारवाड़ में ठौड़-ठौड़ खूंटा सा रुपियोड़ा, राज सूं बारोठिया बैवण वाळा जागीरदारां रा खूट-बूंठ ऊपाड़ नै राज जमायौ।
संवत १७०६ में साही हुकम सूं महाराजा जसवंतसिंघ री तरफ सूं मारवाड़ री फौज जैसलमेर माथै गई नै रावळ सबळसिंघ नै जैसलमेर माथै बैठाणियौ। इण चढाई में रियां रौ धणी गोपाळदास मेड़तियौ, पाली रौ ठाकर विठळदास चांपावत, मुंहणोत नैणसी नै आसीप रौ सरदार नाहरखांन फौज रा आगीवांण हा। पछै पौकरण विजै पर जसवंतसिंघजी नैणसी नै सिरोपाव देय नै पौकरण री थाणादारी सौंपी।
कविराज बांकीदास री ख्यात रै कहणै माफक पतौ चालै कै नैणसी बाड़मेर नै फतै करनै उठां री पोळ रा किंवाड़ जालौर लेगयौ। नैणसी देवड़ा रै राज सिरोही नै विजै करणै रौ भी अेक छप्पै में बरणन मिलै है-

थह सूतो भर घोर करतो सादूळो।
उनींदो ऊठियो वडा रावतां सझूळो।।
पोहतौ तीजी फाळ त्रिजड़ हाथळ तोलंती।
मेछ दळां मूगळां घात सीकार रमंतो।।
मारियो सिरोही मुगल मिळ, खड़ग डसण धड़छै खळै।
गड़ड़ियौ सिंध जैमाल रौ, नैणसी भरियौ नळे।।

छपै में नैणसी रौ सिंघ रै साथ ओपतौ रूपक बांधियौ है। सिरोही में मुसलमानां नै मारणै रौ औ बरणन इतिहासां में नी हुवौ है।
पातसाह साहजहां रै सायजादां रै बनारस, उजीण नै धोलपुर रा झगड़ां पछै महाराजा जसवंतसिंघ मियां फरासत नै राजकाज सूं हटाय नै नैणसी नै दीवाणगी दिवी नै सुंदरदास नै आपरौ तन दीवाण बणायौ। जुवराज प्रिथीसिंघ री भणाई पढ़ाई रौ भार भी नैणसी रा कंधां माथै सौंपिजियौ। नैणसी आप री चात्रगता, अकल हुसियारी सूं मारवाड़ रौ आछौ इंतजाम बांधियौ। कुबधी-कुपैड़ी मिनखां री चालां मेटी। राज री आमद में बधौतरी किवी। भौम-लगाण, रेख-चाकरियां आद रा कायदां रौ पालण करायौ। इण सूं राज रा ठगां, चोरां नै छळ छेतरगारां री चालां रै ताळा जड़ीजग्या। नैणसी रै कारण जिणां लोगां री सूक, रिसबत नै ठगाई बंद व्हैगी ही बै सगळा नैणसी सुंदरदास नै कद चावता । चोर नै कदै चानणौ भावै ? नीं राजा रै तो कान हुवै आंख नीं हुवै सौ जिणां लोगां री खजणोटी बंद व्हैगी ही बै लोग मिळ नै लौटे लूण गाळियौ। महाराजा जसवंतसिंघ रा कान भरणै लागा। कान भरणियां जबरा हुवै है। जियां लहराता फूलां री बाड़ी रा सौरम बिखेरता फूलां नै वायकंुड उडाय नै धूळघाणी कर नांखै उणी रीत चुगली-चाडी चाट-चमचा लोग आपरी वाणी री करामात सूं सतपुरसां रा मनां में भरम रौ जुरड़ौ घाल देवै। सावचेत मिनखां नै भी भ्रम री चकरी चढाय देवै। सौ महाराजा जसवंतसिंघ रा कान लगा मिनखां उणां रै चित में नैणसी सुंदरदास रै बाबत कूड़-कपट करनै लोभ री लाय लगाय दी। फळ औ निकळियौ कै जसवंतसिंघजी १७२३ रै संवत में नैणसी सुंदरदास नै दखिण रै औरंगाबाद तेड़ नै अेक लाख रुपया रौ डंड घाल दियौ। पछै इयांही हांम सांच चालती रैयी। आखर चाडीगारां रा चकर में आयोड़ा आखता हुवा दोनों भाई १७२७ रै भादवा में अपघात करनै काम आया। नैणसी सुंदरदास री इण अणायी मौत रौ समझदारां घणौ दुख कियौ। महाराजा नै खुलौ ओळंमो दियौ।
पण कबाण सूं तीर छूटियां पछै कांई हुवै। तांबौ दैण तलाक री प्रत्यंगा रा धणी दोनूं भाई मारवाड़ सूं कोसां अळगा जीव त्याग नै परा गया। महाराजा जसवंतसिंघ री इण सूं बड़ी अपकीरत हुई। नैणसी सुंदरदास री सामध्रमी नै सांच माथै घणा गीत कवित मिलै। उण री निरदोषता अेक गीत में सुणीजै-

महाराज जैसा इसा क्यूं मारिजै, सूरवर आभरण नैणसी सूर।।

नैणसी रा दो ब्याह हुवा। पैलौ भंडारी नारायणदास री बेटी संू नै दूजौ मेहता भींवराज री सुता सूं। भींवराज री बेटी री कूख सूं करमसी, वैरसी नै समरसी तीन बेटा हुवा। करमसी भी आपरा पिता रै जैड़ौ इज वीर हुवौ। उजीण रै जुध में करमसी घावां पड़नै ऊबरियौ। करमसी रै भगवतसी नै उण रै सूरतराम हुवा। सूरतराम राजाधिराज बखतसिंघ रै समै राज रा फौजबक्षी हुवौ। दोय पीढ़ियां रै पछै मुंहणोतां रा दिन पाछा बावड़ नै घरै आया। विपदा रा काळा बादळ फंटिया। मारवाड़ रा अेक मानैता घराणा री जिकी रापटरोळ हुई इतिहासकारां सूं छांनी नीं हैं। ‘‘घर रौ दाझ्यौ बन गयौ, बन में लागी लाय’’ सो नागौर में भी नैणसी रै कुटम्ब कबीला में बीती जिसी तो किणी इज में नी बीतै। लाख रौ घर खाक में मिळग्यौ। करमसी नै भी लार पड़ियौ काळ-केड़ौ खाय नै लार छोड़ी। दिन करै जैड़ी दुसमण भी न कर सकै।
सूरतराम कठैई जाय नै पछै पाछा थागड़ा हुवा। आपो संभाळियौ। राजाधिराज बखतसिंघ री क्रपा हुई। सूरतराम पाछा जोधपुर आय नै आपरी बेटियां रौ ब्याव जोधपुर में कियौ। बीजा नैणसी इज बाजिया। राजदरबारां में चावा हुया। कवेसरां रा कंठां में गायीजिया। ‘सूरतराम रूपक’ कायब में कह्यौ है-

जैमल सुत गुणजाण, ब्रमै मंत्री नैणागर।
दळथंभ सुंदरदास, सकज खागां बुधसागर।।
नैणा सुतन नरनाह, सबळ करमैत प्रथीसर।
सत दत कोट संग्राम, मही सिंणगार मित्रैसर।।
भगवंतसिंघ ओठंभ भड़ां सत भाखण बुध सक्खरां।
जोधाण सहर चाढ़ण सुजळ सूरतराम मित्रेसरां।।


ओसवाळां में मोहणोत पिरवार वडौ सामघ्रमी, बचनवीर पुरसारथी अर करतब धणी हुवौ। बात री पकड़ अर सांच पर अकड़ इण खानदान रौ गुण रैयौ है। विखमी वेळां में नेही सनेहियां री मदत अर पर पीड़ में साथ देवणौ मिनखपणा रा गुण नैणसी री औलाद में चालै।
इण भांत मुंहणोत कुळ जोधपुर रौ अेक नामाजादिक कुळ रैयौ है। राजकाज रै साथै-साथै विधा, कळा, साहित, इतिहास नै पनपावण में सगळा रौ मेढ़ीं कह्यौ जा सकै है। नैणसी नै सुंदरदास तौ आप रै जुग में भी अजोड़ मिनख बाजिया। कलम नै क्रपाण रा धणी-लेखण नै खड़ग रा करामाती बेहूं भायां नै लाख-लाख घन। क्रीड़-कोड़ रंग।

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स्वतंत्रता सेनानी डूंगजी जवाहरजी

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लेखक : सौभाग्यसिह शेखावत

भारतीय स्वतन्त्रता के लिए संघर्षरत राजस्थानी योद्धाओं में शेखावाटी के सीकर संस्थान के बठोठ पाटोदा के ठाकुर डूंगरसिंह (Dungji), ठाकुर जवाहरसिंह शेखावत (Jawaharji), बीकानेर के ठठावते का ठाकुर हरिसिंह बीदावत, भोजोलाई का अन्नजी (आनन्दसिंह), ठाकुर सूरजमल ददरेवा, जोधपुर के खुशालसिंह चांपावत, ठाकुर बिशनसिंह मेड़तिया गूलर, ठाकुर शिवनाथसिंह प्रासोप, ठाकुर श्यामसिंह बाड़मेरा चौहट्टन, सिरोही राज्य के भटाना का ठाकुर नाथूसिंह देवड़ा, बूदी राज्य के गोठड़ा का महाराज बलवन्तसिंह तथा कोटा नरेश के अनुज महाराज पृथ्वीसिंह हाड़ा प्रादि का पंक्तिय स्थान गिना जाता है।

बठोठ पाटोदा के डूंगरसिंह जवाहरसिंह (Dungji-Jawaharji) का विद्रोहात्मक संघर्ष बड़ा संगठित, सशक्त और अग्रेज सत्ता को आतंकित कर देने वाला था। ठाकुर जवाहरसिंह और ठाकुर डूंगरसिंह के साथ शेखावाटी के खीरोड़, मोहनवाड़ी, मझाऊ, खड़ब तथा देवता ग्रामों के सल्हदीसिंहोत, ठाकुर सम्पतसिंह के नेतृत्व में आ मिले थे। यह अंग्रेज विरोधी संघर्ष केवल ठाकुर जागीरदारों तक ही सीमित नहीं था अपितु जाट, मीणें, गूजर, लुहार, नाई आदि जातियों के जागृत लोगों के सक्रिय सहयोग से आरम्भ हुआ था। सांवता मीणा, लोटिया जाट, बालिया नाई, करणिया मीणा आदि के उल्लेख से यह तथ्य स्पष्ट ही सत्य प्रकट होता है। इस संगठित अभियान को संचालित करने में ठाकुर जवाहरसिह प्रमुख थे।

ठाकुर जवाहरसिंह और डूंगरसिह चचेरे भ्राता थे। सीकर के अधिपति राव शिवसिंह शेखावत (सं. 1778-1805) के लघुपुत्र ठाकुर कीर्तिसिंह के पुत्र ठाकुर पदमसिह को बठोठ पाटोदा की जागीर मिली थी। ठाकुर पदमसिंह ने सीकर के पक्ष में सं. 1837 में खाटू के प्रसिद्ध युद्ध में भाग लिया था। तदनन्तर वि.सं. 1844 में कासली के युद्ध में काम आए। ठाकुर पदमसिंह के दलेलसिंह, बख्तसिंह, केशरीसिह और उदयसिंह चार पुत्र थे। पदमसिंह के वीरगति प्राप्त करने के बाद दलेलसिंह बठोठ का स्वामी बना और उपरोक्त नाम निर्देशित तीनों भ्राताओं को पाटोदा दिया गया। ठाकुर दलेलसिंह बठोठ के पुत्र विजयसिंह और जवाहरसिह तथा उदयसिंह के डूंगरसिंह और रामनाथसिंह थे। इस प्रकार जवाहर सिंह तथा डूंगरसिंह चचेरे भ्राता थे।

जयपुर राज्य की सन् 1818 ई. में अंग्रेजों के साथ संधि हुई। यह संधि शेखावाटी के स्वामियों को पसंद नहीं थी। राव हनुवन्तसिंह शाहपुरा, रावराजा लक्ष्मणसिंह सीकर और ठाकुर श्यामसिह बिसाऊ आदि शेखावत जयपुर अंग्रेज संधि के विरुद्ध थे। फलतः शेखावाटी प्रदेश के रावजी के, लाडखानी और सल्हदीसिंहोत शेखावतों ने अपनी शक्तिसामर्थ्वानुसार अंग्रेज शासित भू-भागों में धावे मारकर अराजकता की स्थिति उत्पन्न की। बीकानेर के चूरू तथा जोधपुर के डीडवाना क्षेत्र के स्वतन्त्रा प्रमी ठाकुरों ने शेखावाटी का अनुसरण कर ब्रिटिश सत्ता को चुनौती-सी दे दी। संवत् 1890 वि. रावराजा लक्ष्मणसिंह का देहान्त हो गया ओर उनके पुत्र रावराजा रामप्रतापसिंह सीकर की गद्दी पर बैठे तब जयपुर में शिशु महाराजा रामसिंह द्वितीय सिंहासनारूढ़ थे। जयपुर की जनता ने अंग्रेज विरोधी भावना से उद्वेलित होकर जयपुर के पोलिटिकल एजेण्ट के सहायक अंग्रेज अधिकारी मि. ब्लेक को मार डाला। इस घटना से अंग्रेज और भी भयभीत और सतर्क हुए और जयपुर के सुसंगठित शेखावत संगठन का दमन करने के लिए ‘‘शेखावाटी ब्रिगेड’’ अभिधेय सैनिक संगठन गठित किया और मिस्टर फास्टर को उसका कमाण्डर नियुक्त किया।

शेखावाटी ब्रिगेड की स्थापना का उद्देश्य शेखावाटी, तंवरावटी, चूरू और लुहारू क्षेत्र में पनप रहे ब्रिटिश सत्ता विरोधी विद्रोह को शान्त करना था। यद्यपि राजनैतिक परिस्थितियों से पीड़ित रियासती राजाओं ने अंग्रेजों से संधियां की थीं, पर वस्तुतः वे भी अंग्रेजों के बढ़ते हुए प्रभाव को पसन्द नहीं कर रहे थे। किन्तु खुले रूप में अथवा खुले मैदान में उनका विरोध करने का साहस भी उनमें नहीं था। सबसे प्रबल कारण तो यह था कि मरहठों और पिंडारियों की लूट-खसोट और आए दिन के बखेड़ों से अंग्रेजों के माध्यम से छुटकारा मिला था। मरहठों की लोलुपता और अत्याचारों का धुंआ थोड़ा-थोड़ा दूर ही हुआ था। इसलिए राजाओं के सामने सांप-छुंछूदर की सी स्थिति थी। पर ठिकानेदार, छोटे भू-स्वामी और जनमानस अंग्रेजों के साथ हुए संधि समझौते से क्षुब्ध थे और वे अग्रेजों की छत्रछाया को अमन चैन के नाम पर गलत मानते थे। फलतः अंग्रेज सत्ता और उनके प्रच्छन्न-अप्रच्छन्न समर्थक सहयोगियों से स्वातंत्रयचेता वीर अनवरत सक्रिय विरोध करते आ रहे थे।
शेखावाटी ब्रिगेड में शेखावाटी के ठाकुर अजमेरीसिंह पालड़ी और ठाकुर डूंगरसिह पाटोदा प्रभावशाली व्यक्ति थे। डूंगरसिंह पाटोदा तो अश्वारोही सेना में रिसलदार के पद पर थे।

सीकर के रावराजा रामप्रतापसिंह और उनके उत्तराधिकारी वैमात्रेय भ्राता रावराज भैरवसिंह, खवासवाल भ्राता मुकुन्दसिंह सिंहरावट, हुकमसिंह सीवोट रामसिंह नेछवा आदि के पारस्परिक अनबन चल रही थी। राव राजा रामप्रतापसिंह के सगोत्रीय बंधु ठिकानेदार बठोठ, पाटोदा तथा सिंहासन और पालड़ी के अधीनस्थ जागीरदार रावराजा के विरुद्ध उनके वैमातृक भ्राता भैरवसिंह तथा खवासवाल बंधुओं की सहायता कर रहे थे। इधर अंग्रेज सत्ता इस विग्रह के सहारे सीकर और शेखावाटी में अपने हाथ-पैर फैलाने का अवसर दूंढ रही थी और उधर राव राजा रामप्रतापसिंह अपने बल से उन्हें दबाने में सबल नहीं थे। अतएव अंग्रेजों की सहायता से वे उनका दमन करना चाहने लगे। शेखावाटी की इस राजनैतिक परिस्थिति की अनुभूति कर ठाकुर डूंगरसिह सं. 1891 वि. में अपने कुछ साथियों को तैयार कर शेखावाटी ब्रिगेड से विद्रोह कर बैठा और वहां से शस्त्र, घोड़े और ऊंट छीनकर विद्रोही बन गया। वह अंग्रेज शासित गांवों में लूट मार करने लगा। उधर सिंहरावट के खवासवाल ठाकुर बन्धु सीकर और अंग्रेज सरकार का विरोध कर ही रहे थे। इस स्थिति की विषमता का मूल्यांकन कर कर्नल एल्विस ने बीकानेर के महाराजा रतनसिंह से प्रबल अनुरोध किया कि डूंगरसिंह को येनकेन प्रकारेण बन्दी बनाया जाय। डूंगरसिंह की सिंहरावट के जागीरदारों के साथ सक्रिय सहानुभूति थी। बीकानेर नरेश ने लोढ़सर के ठाकुर खुमानसिंह को विद्रोहियों का पता लगाने पर नियत किया। वह ठाकुर जवाहरसिंह बठोठ का साला था और स्वयं भी अंग्रेजों के विरुद्ध था। उसने उनका मार्गण कर किशनगढ़ राज्य के ढसूका नामक गांव में उनकी उपस्थिति की सूचना दी। डूंगरसिंह ने इसी काल में मथुरा के एक धनाढ्य सेठ की हवेली पर धावा मारकर पर्याप्त द्रव्य लूट लिया और सेठ के परिवार को धन के लिए अपमानित भी किया। ठाकुर डूंगरसिंह और जवाहरसिंह का अजमेर मेरवाड़ा के प्रमुख भूपति राजा बलवन्तसिंह भिनाय तथा राव देवीसिंह खरवा तथा झड़वामा के गौड़ भैरवसिंह से निकट का सम्बन्ध था। राजा बलवन्तसिह के उत्तराधिकारी राजा मंगलसिंह का पणिग्रहण भोपालसिंह बठोठ की पुत्री तथा राव देवीसिंह खरवा के पुत्र कु. विजयसिंह करणेस का विवाह डूंगरसिह की सहोदरा के साथ हुआ था और डूंगरसिंह स्वयं भड़वासा के गौड़ों के वहां विवाहा था। डूंगरसिंह का इसलिए भी अजमेर मेरवाड़ा में आवागमन बना रहता था।

राव राजा रामप्रतापसिंह की असमर्थताजन्य आपत्ति पर कर्नल सदरलैड ने शेखावाटी ब्रिगेड के सर्वोच्च अंग्रेज अफसर फास्तर को जयपुर, सीकर और अपनी अधीनस्थ सेना सहित आदेश दिया कि सिंहरावट दुर्ग को हस्तगत कर विद्रोह को समाप्त करें। मेजर फास्तर ने सिंहरावट को चारांे ओर से घेरकर किले पर श्राक्रमण किया। ठाकुर मुकुंदसिंह वगैरह एक माह तक सामुख्य कर अन्त में यकायक किला त्यागकर लड़ते हुए निकल गए।

उधर डूंगरसिह ने संवत् 1893 चैत्रमास में सीकर राज्य के कतिपय गांवों पर धावे मारकर ठाकुर जवाहरसिंह के ससुराल लोड़सर ठाकुर खुमानसिंह के पास चला गया। बीकानेर राज्य की सेना ने ठाकुर हरनाथसिंह मघरासर और माणिक्यचन्द सुराना के नेतृत्व में लोढ़सर दुर्ग पर आक्रमण किया। तब ठाकुर जवाहरसिंह, भीमसिंह और ठाकुर खुमानसिंह बीदावत लोढ़सर से निकल कर जोधपुर की ओर चले गए।

संबत् 1895 वि. ठाकुर जवाहरसिंह, डूंगरसिंह, ठाकुर खुमानसिह बीदावत लोढ़सर, हरिसिंह बीदावत, अन्नजी बीदाबत भोजोलाई तथा कर्णसिह बीदावत रूतेली आदि ने बीकानेर के लक्ष्मीसर आदि अनेक ग्रामों को लूट लिया और बाीकानेर से जोधपुर, किशनगढ़ होते हुए अजमेर मेरवाड़ा की ओर चले गए। ठाकुर डूंगरसिह अपने ससुराल भड़वासा (अजमेर से दक्षिण में 10 मील दूर) स्थान पर विश्रांति के लिए जा ठहरा। उपयुक्त घटनाओं से अंग्रेज सत्ता और भी आतंकित होकर उत्तेजित हो गयी और इन स्वातंत्रय संग्राम के सक्रिय योद्धाओं को पकड़ने, मारने और विश्रंखलित करने के लिए सभी उपाय करने लगी। भड़वासे का भैरवसिह गौड़ डूंगरसिंह का सम्बन्धी और विक्षुब्ध व्यक्ति था। अंग्रेजों ने उसे भय, आतंक और लोभ दिखाकर डूंगरसिंह को पकड़वाने के लिए सहमत कर लिया। भैरवसिंह गौड़ ने डूंगरसिंह के साथ कृत्रिम प्रात्मीयता प्रकट कर उसे दावत दी और छल पूर्वक मद्यपान से छकाकर अर्द्ध संज्ञाहीन कर दिया और उधर गुप्त रूप से अजमेर नसीराबाद में सूचना भेज दी। अजमेर और नसीराबाद की छावनी स्थित अंग्रेज सेना ने युद्ध सज्जा में सुसज्जि होकर भड़वासा में विश्राम करते उस स्वातंत्रय समर के पंक्तिय योद्धा को यकायक जा घेरा। गौड़ों ने उसके शस्त्र पहिले ही अपने अधिकार में कर लिए थे। ऐसी अर्द्धचेतन-अवस्था में उस नर शार्दूल डूंगरसिह को अंग्रेजों ने बन्दी बनाकर सुरक्षा की दृष्टि से राजपूताना से दूर अगरा के लालकिले की कारागार में ले जाकर बन्द कर दिया। इस छलाघात से जहां गौड़ों की पुष्कल निन्दा हुई वहां शेखावतों और डूंगरसिह के सहयोगियों में अपार रोष भड़क उठा। वे लोग प्रतिशोध के लिए उद्यत होकर आगरा दुर्ग पर आक्रमण कर डूंगरसिह को कारावास से मुक्त करवाने के लिए कटिबद्ध हो गए।

ठाकुर जवाहरसिंह ने आगरा दुर्ग पर आक्रमण कर डूंगरसिंह और उन्हीं की तरह पकड़े गए अन्य कतिपय ब्रिटिश साम्राज्य विरोधी स्वतन्त्रता सेनानियों को उन्मुक्त करने की योजना बनाई। इस योजना की सफलता के लिये अपने ग्राम बठोठ के नीठारवाल गोत्र के जाट, लोटिया और मीणा जाति के योद्धा सांवता को आगरे भेजा तथा वहां की अन्तःबाह्य स्थिति की जानकारी मंगवाई और समस्त सूचनाएं प्राप्त कर विक्रमी संवत् 1903 में ठाकुर जवाहरसिंह ने ठाकुर भोपाल सिंह, ठाकुर बख्तावरसिंह श्यामसिंहोत श्यामगढ़ (शेखावाटी), ठाकुर खुमान सिंह बीदावत लोढ़सर, अलसीसर, कानसिंह, उजीणसिंह मींगणा, जोरसिंह खारिया-बैरीशालसिंह, हरिसिंह प्रभृति बीदावत योद्धा तथा हठीसिह कांधलोत, मानसिंह लाडखानी, सिंहरावट के हुकमसिंह, चिमनसिंह, लोटिया जाट, सांवता, करणिया मीणा, बालू नाई और बरड़वा के लाडखानी शेखावतों आदि कोई चार सौ पांच सौ वीरों ने बारात का बहाना बना कर आगरा की ओर प्रस्थान किया और उपयुक्त अवसर की टोह में दूल्हा के मामा के निधन का कारण बना कर पन्द्रह दिन तक आगरा में रुके रहे। तदन्तर मुहर्रम के ताजियों के दिन यकायक निश्रयणी (सीढ़ी) लगा कर दुर्ग में कूद पड़े। किले के रक्षकों, प्रहरियों और अवरोधकों को मार काट कर डूंगरसिंह सहित समस्त बंदियों को मुक्त कर निकाल दिया। इस महान् साहसिक कार्य से अंग्रेज सत्ता स्तब्ध रह गई। अंग्रेजों की राजनैतिक पैठ उठ गई। आजादी के बलिदानी योद्धाओं के देश भर में गुण गीत गूजने लगे। आगरा के कथित युद्ध में ठाकुर बख्तावरसिंह शेखावत श्यामगढ़, ठाकुर उजीणसिह मींगणा (बीकानेर) हणू तदान मेहडू चारण ग्राम दांह (सुजानगढ़ तहसील) आदि लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

ठाकुर जवाहरसिंह के प्रयत्न से उन्मुक्त भारतीय आजादी के दिवाने डूंगरसिह वगैरह ने आगरा से प्रस्थान कर भरतपुर तथा अलवर राज्य के गिरि भागों को त्वरिता से पार करते हुए भिवानी समीपस्थ बड़बड़ भुवाणां ग्राम के विकट अरण्य में विश्राम लिया। तदुपरांत बठोठ पाटोदा में पहुंच कर राजस्थान के अंग्रेजों के पांव उखाड़ने की योजना तैयार करने लगे। अन्त में आगरा दुर्ग से मुक्त होने के कुछ ही समय पश्चात् सीकर राज्य के सेठों के रामगढ़ के धनाढ्य सेठ अनंतराम घुसमिल पोद्दार गौत्र के अग्रवाल वैश्यों से पन्द्रह हजार की नकद राशि प्राप्त कर ऊंट, घोड़े और अस्त्र-शस्त्रों की खरीद कर राजस्थान के मध्य में अजमेर के निकटस्थ सैनिक छावनी नसीराबाद पर आक्रमण किया। शेखावाटी, बीकानेर और मारवाड़ के अंग्रेज विरोधी वीरों को सुनिश्चित स्थान, समय तथा कार्यक्रम की सूचना देकर ठाकुर जवाहूरसिंह व ठाकुर डूंगरसिंह ने बठोठ पाटोदा से प्रस्थान किया। अंग्रेजों के आदेश पर बीकानेर नरेश रतनसिंह ने शाह केशरीमल को डूंगरसिंह को पकड़ने के लिए सेना देकर भेजा। बीकानेर के पूंगल तथा बरसलपुर के पास दोनों पक्षों में मुठभेड़ हुई उसमें नव विद्रोही पकड़े गये और शेष लड़ते हुए सेना को चीर कर निकल गये।

नसीराबाद के आक्रमण में स्वातंत्रय सेनानियों ने तीन समूहों में विभिन्न दिशाओं से कूच किया था। एक दल शेखावाटी की ओर से प्रस्थान कर जयपुर राज्य के मालपुरा खण्ड से होते हुए रात्रि को डिग्गी ठिकाने के ग्राम में ठहरा और वहां से प्रयाण कर किशनगढ़ राज्य के करकेड़ी, रामसर होता हुआ नसीराबाद पहुंचा। डिग्गी ठिकाने के ग्राम में रात्रि विश्राम करने के कारण अंग्रेजों ने डिग्गी के ठाकुर मेघसिंह के दो ग्राम जप्त कर लिए थे।

दूसरा मारवाड़ की ओर का दल अजमेर नांद, रामपुरा, पिसांगन होता हुआ मसूदा के पास से गुजरा और तृतीय दल मेवाड़ के बनेड़ा के वनों से निकल कर नसीराबाद आया। तीनों दल जिनके पास एक सौ ऊंट और चार सौ घोड़े थे-ने मिल कर अर्द्धनिशा में जनरल ब्योरसा द्वारा सुरक्षित छावनी पर धावा मारा और छावनी के प्रहरियों में से छह को मार तथा सात को गिरफ्तार कर बक्षीखाने के कोष से कोई 27 हजार रुपए लूट लिए। सेना के तम्बू जल दिए। यह राशि सैनिकों को वेतन चुकाने के लिए एक दिन पूर्व नसीराबाद छावनी के कोष में जमा हुई थी। यों लूट-मार कर जांगड़ी दोहों के सस्वर बोल-सुनते हुए शाहपुरा राज्य के प्रसिद्ध माताजी के मन्दिर धनोप में देवी को द्रव्य भेंट कर मेवाड़, मारवाड़, सांभर तथा नांवां की ओर यत्र तत्र निकल गये। नसीराबाद के आक्रमण में स्वतन्त्रता सेनानियों में दूजोद का कालूसिंह चांदसिंहोत भी शामिल था।

नसीराबाद की इस प्रथित छावनी तथा राजकीय कोष की परिहृती से अंग्रेजों का राजस्थान से प्रभाव विलीन होकर चारों ओर अपार परिवाद फैल गया। स्वतंत्रता भिलाषी जनमानस में असीम गौरव का संचार हो गया। कवियों, याचकों और विरुद्ध वाचकों के कण्ठों पर जवाहरसिंह डूंगरसिंह के नाम नृत्य करने लगे। तब कर्नल जे. सदरलैंड ने राजस्थान के राजाओं को डूंगरसिंह जवाहरसिंह को पकड़ने के लिए सशक्त आदेश भेजे और कैप्टिन डिक्सन, मेजर फास्तर, कप्तान शां और बीकानेर के सेनानायक ठाकुर हरनाथसिंह नारणोत मधरासर के नेतृत्व में सेनायें भेजी गई। जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह ने मेहता विजयसिंह, कुशलराज सिंघवी तथा किलादार औनाड़सिंह के नेतृत्व में राजकीय सेना भेजी और जोधपुर के जागीरदारों को अपनी जमीयत के साथ इनकी सहायतार्थ सम्मिलित होने का आदेश भेजा। फलतः ठाकुर इन्द्रभानु जोधा भाद्राजून, ठाकुर केशरीसिंह मेड़तिया जावला, ठाकुर बहादुरसिंह लाडनंू, ठाकुर विजयसिंह लूणवा और ठाकुर शार्दूलसिंह पिपलाद आदि रियासती सेना में शामिल हुए। ब्रिटिश सेना के ई. एच. मेकमेसन तथा कप्तान हार्डकसल भी डीडवाना पहुंच कर सदल-बल उससे जा मिले। घड़सीसर ग्राम में उभय पक्षों में सामुख्य हुआ। दोनों ओर जम कर लड़ने के बाद स्वतन्त्रताकांक्षी विद्रोही योद्धा शासकीय सेना के घेरे में फंस गये। ठाकुर हरनाथसिह कैप्टिन शां के विश्वास, आग्रह और नम्रता के व्यवहार से आश्वस्त होकर ठाकुर जवाहरसिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया। ठाकुर जवाहरसिंह को तदनंतर बीकानेर ले जाया गया जहां महाराजा रतनसिंह ने ससम्मान अपने वहां रखा और अंग्रेजों को प्रयत्न पूर्वक मांगने पर भी उन्हें नहीं सौंपा।

ठाकुर डूंगरसिंह घड़सीसर के सैनिक घेरे से निकल कर जैसलमेर राज्य की ओर चला गया। जैसलमेर के गिरदड़े ग्राम के पास मेड़ी में हुकमसिंह और मुकुन्दसिंह भी उससे जा मिले। राजकीय सेना ने फिर उन्हें जा घेरा। दिन भर की लड़ाई के बाद ठाकुर प्रेमसिह लेड़ी तथा नींबी के ठाकुर आदि के प्रयत्न से मरण का संकल्प त्याग कर आत्म समर्पण कर दिया। हुकमसिंह और चिमनसिह को जैसलमेर के भज्जु स्थान पर शस्त्र त्यागने के लिए सहमत किया गया।

इस प्रकार राजस्थान में भारतीय स्वतन्त्रता के संघबद्ध सशस्त्र प्रयत्न का प्रथम दौर संवत् 1904 वि. में समाप्त हुआ।


Dung ji Jawahar ji Freedom Fighter of Rajasthan, Dungar Singh Shekhawat and Jawahar Singh Shekhawat Freedom Fighter of Shekhawati

राजस्थान रो ख्यात साहित्य

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साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्यसिंह जी शेखावत की कलम से.....

राजस्थानी भासा रा पद्य री भांत गद्य भी घणौ सबळौ है। जूनै गद्य में ख्यातां, बातां, वचनिकावां, हकीकतां, विगतां, वंसावळियां पट्टावळियां, आद कई भांत रा गद्य रौ चलण पायौ जावै। अै सगळा गद्य री न्यारी-न्यारी विधावां या प्रकार कहीजै। आं प्रकारां में अठै ख्यात री ओळखाण माथै विचार करीजै। ख्यात रै पर्याय सबद रौ अर्थ इतिहास मानीजै। ख्यात नै इतिहास अर तवारीख कैवै। राजस्थान में ख्यात रौ चलण कद सू चालियौ ? औ तौ बतावणौ अबखौ काम है, पण पैली इतिहास गद्य री ठौड़ पद्य में लिखीजतौ। आ बात प्रमाण प्रगट है। पद्य नै याद राखणौ सोरौ नै सरल काम हो। इण वास्तै जूना इतिहास काव्य में लिखियौड़ा इज घणा मिलै। राजस्थान में भी ख्यातां रा गद्य सूं इतिहास रा पद्य ग्रंथ वत्ता मिळे। भलांई उणांनै इतिहास नांव नी दियौ है पण वां में घटनावां तो घणकरी इतिहास री इज है। जिण तरै कान्हड़दे प्रबंध जालौर रा सोनगिरां रौ, वंसभासकर चौहाण कोटा बूंदी रा धणियां रौ, रायसल जस सरोज सेखावतां रौ, सूरजप्रकास नै अनोपवंस वर्णन जोधपुर बीकानेर रा राठौड़ां रौ अर राणा रासी, राजप्रकास मेवाड़ रा सीसोदियां रौ ग्रंथ इतिहास इज है। इणां रा नांव भलांई प्रकास, विलास, रूपक, सरोज, सुधाकर, महार्णव, विनोद इत्याद चावै जो हुवौ। काव्य री वारनिस कुचर नै कल्पनावां रा रंगै रोगन नै उतारियां पछै लारै सारौ इतिहास इज इणां में बचियोड़ौ मिळै।

इणी रीत गद्य में भी ख्यात, पीढ़ी, वंसावळी, पट्टावळी आद सगळी रचनावां इतिहास-गद्य री गिणत में आवै। इणां में विस्तार में, सार फैलाव में, संकड़ाव में इतिहास बुखाणियौ गयौ है। ख्यात इतिहास में जून राजवंसां अर उण वंसा में बखणवा जोग पुरखा रा बखाणं लिखीजता। आपरा बंडेरां रा बखाण जोग बिड़दाद माथै कुण नी गरबीजै, कुण नी मोदीजै। सो अैड़ी ख्यातां रौ घणौ महत्व गिणीजियौ।

राजस्थान री ख्यातां रै बारा में इतिहासकार आ धारणा राखै कै पातसाह अकबर रा वखत में अबुलफजल सूं ‘अकबरे आईनी’ अर ‘अकबर नामौ’ लिखवायौ जद उण वखत रा राजस्थानी रजवाड़ां रा बडेरां रौ इतिहास भी लिखण री प्रथा ई चाली। पछै ख्यातां रौ लिखीजणों चालू हुवौ। इण बात में इतरौ तौ सार हैई कै अकबर इतिहास रौ प्रेमी हो। मुगलां रै दरबार री कई बातां राजस्थानी चलण में ई आई। पण इण कथण रौ कोई पकाऊ सबूत नीं मिलै। राजस्थान में जिकी ख्यातां मिलै उणा रौ समै बादसाह साहजहां रै समै रै औळी दौळी धूमतौ निजर आवै। राजस्थान रौ टणकैल ख्यातकार नैणसी मोहणोत, उदैभाण चांपावत, गुरां नारायणदास, तिलोकचंद आद लेखक इणी बखत में हुया। नैणसी री ख्यात तौ फगत राजस्थान री इज नी राजस्थान रा अड़ौसी पड़ौसी प्रदेस गुजरात, माळवा माथै भी पुरसळ प्रकास न्हांख नै जूनै इतिहास नै उजागर करै।

अै ख्यातां दोय प्रकार री गिणीजै । अेक तौ सलंग वर्णन जिकी में सिलसिलावार खांपां रौ वर्णन अर पीढ़ियां रा पुरखां रौ क्रमवार इतिहास हुवै। जियां दयाळदास सिंढायच री बीकानेर री ख्यात। इण में बीकानेर रा राठौड़ वंस रौ विगतवार वर्णन है। अठै दयाळदास री ख्यात रौ मेड़ता रा राव वीरमदे मेड़तिया रौ वर्णन देखीजै -

‘‘तद वीरमदेजी रायमल सेखावत कनै गया नै रायमल (सगा जाण) वरस अेक बडा हीड़ा किया। पछै वीरमदेजी उठै सूं सीखकर विदा हुवा सूं गांव बंवळी लिवी नै बणहटौ वरवाड़ौ लियौ नै अठै बसग्या।’’

इण तरै औ ऊपरलौ उदाहरण सलंग ख्यात रौ है। इणी’ज भांत नैणसी मोहणोत री ख्यात में न्यारी-न्यारी छूटक बातां है। नैणसी री ख्यात दूजी प्रकार री गिणती में आवै। सलंग ख्यातां में नैणसी री ख्यात रै सिवाय उदैभांण चांपावत री, भंडारियां री पोथी, राठौड़ां री ख्यात, कछवाहां राजावतां री ख्यात, पातलपौतां री ख्यात, वणसूर महादान री जोधपुर राज री ख्यात सिरै गिणीजण जैड़ी ख्यातां है। नैणसी री ख्यात में तौ ठौड़-ठौड़ साख नै प्रमाण रा दोहा, सोरठा, कवित छंदां रै अलावा ख्यात री घटनावां रा बताबावाळा नै लिखण वाळां रौ भी नांव-ठांव दियौ है। खींचीवाड़ा री बादसाही चढाई रा प्रसंग में लिखियौ है-‘अकबर पातसाह खींचीवाड़ा ऊपर कछवाहा मानसिंघ भगवंत दासोत नूं कंवर पदै फौज दै मेलियौ हुतौ। तद मानसिंघ खींची रायसल वेढ़ हुई। मानसिंघ वेढ़ जीती। रायसल वेढ़ हारी। राव प्रथीराज हरराजोत रायसल रौ चाकर राव देवीदास सूजावत रौ पोतरौ काम आयौ।’

नैणसी री ख्यात में गद्य री बड़ी कसावट नै खूबी आ है कै फालतू री लांबी बरणाव शैली नीं है। फीटौ-फिट बात चूड़ी उतार तरै ज्यूं नैणसी लिखी है। नैणसी पछै उदैभाण चांपावत रै संग्रह री ख्यात राठौड़ां रा इतिहास लेखै घणी माहिती देवण वाळी है। इण में राव सीहाजाी संू महाराजा जसवंतसिंघजी पैलड़ां तांई रौ इतिहास देयनै पछै राठौड़ां री समूची खांपां रौ ब्यौरावार बखाण दियौ है। इणमें खास-खास साखावां रा प्रधान पुरसां रौ उल्लेख जोग बखाण कियौ है।

गुरां नारायणदास री ख्यात अधूरी मिळी है। पण इणमें राठौड़ां री जोगावत खंगारोत खांप, करमसोतां नै बीका बीदावत बीकानेर रा धणियां रौ आछौ बरणन है। जोगावत, बाला, करमसोतां री खांपां रौ इण ख्यात में ठावौ इतिहास मिळे। अठै जोगावत खंगारोत राठौड़ खांप रा चन्दरभाण रा वर्णन इण भांत है-

‘चंदरमाण दुवारिकादासोत वडौ ठाकुर हुवौ। महाराजा जसवंतसिंघजी घणी मया करता। वडौ उमराव। पाटण रै सोबे वीरमगांव घणा दिन फोजदार रह्मा। पहिलां हजूर रह्मा तद गाढ़ेराव हाथी सूं मालौ औरंगाबाद रा डेरा वडौ पराक्रम कियौ। हाथी नाठौ तिण रौ गीत छै। पछै महाराजा सुरग पधारिया तद दिल्ली पातसाही फौजां औरंगसाही विदा किवी। सातौ चौकी। तद पहिलां अजीतसिंघजी नै मारवाड़ पहुंचाया। वडी बुद्धी किवी। पछै काम आया।’ कविराज बांकीदास आसिया री ख्यात तौ साव छोटा छोटा टिप्पण ज्यूं। अेक-अेक दो-दो ओळियां री छोटी छोटी जानकारी इण में दियोड़ी। अेक दो नमूना जोइजै- ‘‘लाडणंू डाहळियां रजपूत बसायौ। पछै, जोहिया मालक हुवा। जोहियां कनां मोहिलां, मोहिलां कनां सूं रावजी मालदेवजी लाडणंू ठिकाणौ लियौ।’’

‘‘मेड़तै चतुर्भुजजी रा मंदिर कनै मंदिरां रा कोट मांहै सोनगरौ सूरजमलजी पूजीजै है। चतुर्भुजजी रै भोग लागोड़ौ थाळ सूरजमलजी रै भोग लागै। पछै अै थाळ ठाकुरजी रा रसोवड़ा दाखळ हुवै।’’

इण भांत अै जूनी ख्याातां खाली राजा, जागीरां रा धणियांरा बिड़द बखाणं री बात नीं है परंतु देस-समाज में समय-समय माथै घटी घटणावां नै उणां घटनावां रौ प्रभाव परतख ख्यातां में मिळै। लोक समाज, मिनख, राज काज री विधां तरीका, मिनखां री माली हालत, काळ-दुकाळ, सदी-ब्याव, राज-दुराजी, लड़ाई-झगड़ा, कोट-कचेड़ी, गढ़ा परकोटां रा निरमाण, कूवा बावड़ियां खिणावण री विगत आद कितरी इज महताऊ जाणकारी ख्यातां में मिळै। राजस्थान रा मानखां री नै समाज री रीत-नीत रा घणा प्रसंग ख्यातां में गुंथीजियोड़ा मिळै। समाज रा साख-सीर, रिश्ता-नाता, खाण-पाण, रहवास, पैरवास, जात-पांत पांत पंच-पंचायत न्याव-थपाद रा सूत्र ख्यातां में घणा मिळै। भोजन में मुंजाई न्याव में बह झलाणौ, रहवास में कोट संवराणौ, जान सजाय नै जावणौ, तरवार या भाल रै साथ फेरा देयनै परणीजणौ, डोल आवणौ पींजस री सवारी, अै सगळी बातां इतिहास बण सकै है।

इण भांत ख्यात रौ महत्तव खाली राजा-रजवाड़ां रा इतिहास इज नीं है। आम समाज री बात भी बतावै। पुराणा समाज री, राज री, धरम री, व्यौहार री, व्यापार री, जीविका री, अर रहण रै तरीका अै सगळी ही बातां ख्यातां में मिळै। निखालिस इतिहास रै साथै अैतिहासिक भूगोल भी ख्यातां में पायी जावै। नैणसी री विगत जिकी मारवाड़ रा राजनैतिक इतिहास रै सागे-सागे मारवाड़ रा भौगोलिक अर आर्थिक जूना इतिहास री अजोड़ पोथी है। इतिहासकारां उणनै गजेटियर रौ नाम दियौ है।

यां ख्यातां नै लोग प्रमाणित मानै, इण खातर जूनी साख रा पद भी ठौड़-ठौड़ दिया जाता। कारण पैली गद्य री ठौड़ इतिहास कंठों पर चलण रै तांई पद्य में लिखीजतौ ही। पीढ़ियां रा दूहा, साख रा दूहा, सायदी रा दूहा, बखांण रा दूहा अै सगळा बतावै के छंदां में इतिहास बणाय नै याद राखियो जावतौ। अब आ परंपरा खतम सी व्हैगी है। बड़वा, बहीबंचां री पौथियां इज ख्यात रै नांव सूं लिखीजै है। आगै ख्यातां रौ लिखण बंद सौ इज हुय गयौ है।
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