एक बार एक सेठ अपने गांव के पास ही के एक कस्बे से पैदल ही गांव आ रहा था कि रास्ते में एक डाकू दल मिल गया| डाकू दल ने सेठ को पकड़ कर दो चार लट्ठ जमा दिए तो सेठ ने अपनी जेब में जो धन था वह निकालकर डाकू दल को दे दिया फिर भी डाकुओं ने सेठ की कमीज उतरवा ली| कमीज उतारते ही सेठ की बनियान में भी एक जेब देखकर डाकुओं के सरदार ने सेठ की बनियान भी उतरवा ली| सेठ ने कुछ धन अपनी धोती की अंटी में भी दबा रखा था सो डाकू सरदार ने सेठ की धोती भी खुलवा ली| अब सेठ जी सिर्फ कच्छे में थे|
डाकू सरदार जो पूरी तरह से ताऊत्व को प्राप्त था ने सेठ का कच्छा गौर से देखा तो उसे लगा कि सेठ ने कच्छे में भी कुछ छुपा रखा है| सो डाकू सरदार ने सेठ से पुछा- “कच्छे में भी धन छुपा रखा है क्या ?
सेठ :- जी धन नहीं है ! इसमें मैंने एक पिस्टल छुपा रखी है|
डाकू सरदार :- पिस्टल किस लिए ? तूं क्या करेगा पिस्टल का ? तेरे क्या काम की पिस्टल ?
सेठ :- जी ! समय आने पर व जरुरत के समय मौके पर काम लूँगा !
डाकू सरदार :- बावलीबूच इस से बढ़िया जरुरत वाला समय कब आयेगा ? तेरी धोती, कुर्ता तक लुट गया| तूं कच्छे में नंगा खड़ा है तेरा सारा धन लुट गया फिर भी इस पिस्टल जैसे हथियार का इस्तेमाल करने का तुझे मौका नजर नहीं आया ? लगता है तूं भी भारत के मतदाता की तरह ही बावलीबूच है|
सेठ को डाकू द्वारा अपनी भारतीय मतदाता से तुलना समझ नहीं आई सो उसने डाकू से निवेदन किया –
हे ! ताऊत्व प्राप्त डाकू महाराज ! कम से कम मुझे ये तो बता दीजिये कि मुझ में व भारतीय मतदाता में आपको ऐसी कौनसी समानता नजर आई जो आपने मुझे भारतीय मतदाता के समान बावलीबूच बता दिया|
डाकू कहने लगा :- देख सेठ तूं पिस्टल पास होते हुए भी पूरा लुट गया| धन के साथ तेरे कपड़े तक हमने उतार लिये| फिर भी तूनें अपना धन और कपड़े बचाने को पिस्टल का उपयोग नहीं किया यह ठीक उसी तरह है जैसे भारतीय मतदाता पुरे पांच साल तक सत्ताधारी दल से लुटता हुआ डायलोग मारता रहता है कि अगले चुनाव आने दीजिये अपने वोट रूपी हथियार का इस्तेमाल करते हुए इन नेताओं को सबक सिखाऊंगा|
अब देख भारतीय जनता को नेताओं ने इतना लुटा कि अब उसके तन पर थोड़ा सा कपड़ा मात्र ही बचा है जबकि उसके पास "मत" (वोट) रूपी ऐसा हथियार है जिसके इस्तेमाल से वह नेताओं द्वारा लुटे जाने से आसानी से बच सकता है| पर वह भी तेरी तरह ही सोचता रहता है कि इस चुनाव में नहीं, अगले चुनावों में इस नेता को देखूंगा ! और इसी तरह देखने का इंतजार करते करते भारतीय मतदाता नेताओं के हाथों लुटता रहता है ठीक वैसे ही जैसे तुम हथियार होने के बावजूद हमसे लुट गए|
डाकू सरदार जो पूरी तरह से ताऊत्व को प्राप्त था ने सेठ का कच्छा गौर से देखा तो उसे लगा कि सेठ ने कच्छे में भी कुछ छुपा रखा है| सो डाकू सरदार ने सेठ से पुछा- “कच्छे में भी धन छुपा रखा है क्या ?
सेठ :- जी धन नहीं है ! इसमें मैंने एक पिस्टल छुपा रखी है|
डाकू सरदार :- पिस्टल किस लिए ? तूं क्या करेगा पिस्टल का ? तेरे क्या काम की पिस्टल ?
सेठ :- जी ! समय आने पर व जरुरत के समय मौके पर काम लूँगा !
डाकू सरदार :- बावलीबूच इस से बढ़िया जरुरत वाला समय कब आयेगा ? तेरी धोती, कुर्ता तक लुट गया| तूं कच्छे में नंगा खड़ा है तेरा सारा धन लुट गया फिर भी इस पिस्टल जैसे हथियार का इस्तेमाल करने का तुझे मौका नजर नहीं आया ? लगता है तूं भी भारत के मतदाता की तरह ही बावलीबूच है|
सेठ को डाकू द्वारा अपनी भारतीय मतदाता से तुलना समझ नहीं आई सो उसने डाकू से निवेदन किया –
हे ! ताऊत्व प्राप्त डाकू महाराज ! कम से कम मुझे ये तो बता दीजिये कि मुझ में व भारतीय मतदाता में आपको ऐसी कौनसी समानता नजर आई जो आपने मुझे भारतीय मतदाता के समान बावलीबूच बता दिया|
डाकू कहने लगा :- देख सेठ तूं पिस्टल पास होते हुए भी पूरा लुट गया| धन के साथ तेरे कपड़े तक हमने उतार लिये| फिर भी तूनें अपना धन और कपड़े बचाने को पिस्टल का उपयोग नहीं किया यह ठीक उसी तरह है जैसे भारतीय मतदाता पुरे पांच साल तक सत्ताधारी दल से लुटता हुआ डायलोग मारता रहता है कि अगले चुनाव आने दीजिये अपने वोट रूपी हथियार का इस्तेमाल करते हुए इन नेताओं को सबक सिखाऊंगा|
अब देख भारतीय जनता को नेताओं ने इतना लुटा कि अब उसके तन पर थोड़ा सा कपड़ा मात्र ही बचा है जबकि उसके पास "मत" (वोट) रूपी ऐसा हथियार है जिसके इस्तेमाल से वह नेताओं द्वारा लुटे जाने से आसानी से बच सकता है| पर वह भी तेरी तरह ही सोचता रहता है कि इस चुनाव में नहीं, अगले चुनावों में इस नेता को देखूंगा ! और इसी तरह देखने का इंतजार करते करते भारतीय मतदाता नेताओं के हाथों लुटता रहता है ठीक वैसे ही जैसे तुम हथियार होने के बावजूद हमसे लुट गए|