अक्सर लोग पूछते है मुझसे , ऐ बावरी, अपनी मुहब्बत का क्या नाम रखा है।
गज़ब ! कैसे जान गया जमाना , तेरे नाम को मैंने अपनी नज्मो में छिपा रखा है।
अजीब ! एक तुम थे जिसने गुनगुनायी थी मेरे संग संग राहो में दिलकश ग़ज़ल।
दे गयी थी राहत मेरे सोजे दिल को कितने सुहाने थे तेरे साथ जो बीते वोह मंज़र।
तेरे शहर की मस्त बहती नदियां मुझे आज भी तेरे अहसास की गहराईया दे जाती है।
कच्चे धागों का यह बन्धन , मेरी रूहे जान भी तेरी गली की हवा में मदहोश रहती है।
लेखिका: कमलेश चौहान (गौरी) : Copy Right at ( Saat Janam Ke Baad)
गज़ब ! कैसे जान गया जमाना , तेरे नाम को मैंने अपनी नज्मो में छिपा रखा है।
दे गयी थी राहत मेरे सोजे दिल को कितने सुहाने थे तेरे साथ जो बीते वोह मंज़र।
तेरे शहर की मस्त बहती नदियां मुझे आज भी तेरे अहसास की गहराईया दे जाती है।
कच्चे धागों का यह बन्धन , मेरी रूहे जान भी तेरी गली की हवा में मदहोश रहती है।