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खेजड़ला ठिकाने का इतिहास | History of Khejrla Fort

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खेजड़ला ठिकाने का इतिहास | History of Khejrla Fort : जैसलमेर के रावल केहर के छोटे भाई हमीर के वंशज जैसलमेर से मछवाला गांव आये और मछवाला से पोकरण | पोकरण रहने के कारण भाटियों की यह शाखा पोकरणा भाटी कहलाई | पोकरण रहने के काफी समय बाद भाटी वंश की यह शाखा बीकानेर क्षेत्र के मोरखाना आ गई | मोरखाना में इस वंश में अर्जुनसिंह भाटी हुए जिन्होंने महाराणा अमरसिंह जी के साथ कई सैन्य अभियानों में भाग लिया और मेवाड़ के पक्ष में युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुये | अर्जुनसिंह जी के बाद उनके वंशज अर्जुनोत भाटी कहलाये | अर्जुनसिंह जी के पुत्र कुछ समय बीकानेर राज्य की सेवा में रहे, बाद में बादशाह जहाँगीर के मनसबदार रहे |

जहाँगीर से अनबन होने के बाद गोपालदासजी भाटी जोधपुरके महाराजा सूरसिंहजी की सेवा में आ गये | जोधपुर आते समय पिचयाक गांव में बादशाह की सैन्य टुकड़ी ने इन पर हमला भी किया पर भाटियों ने बहादुरी से मुकाबला करते हुये सैन्य टुकड़ी को पराजित कर भगा दिया और जोधपुर पहुँच गये | जोधपुर महाराजा ने विक्रम संवत 1666 में गोपालदासजी को खेजड़ला गांवकी जागीर दी | गोपालदासजी के बाद उनके पुत्र दयालदासजी हुए जिन्होंने जालौर युद्ध में लड़ते हुये वीरगति प्राप्त की | इनके बाद इस परिवार की कई पीढ़ियों ने मारवाड़ राज्य की सेवा की और मारवाड़ राज्य की ओर से लड़े गये युद्धों में शहादत दी | जिसके बदले मारवाड़ नरेशों ने समय समय पर दी शहादत के बदले अर्जुनोत भाटी वंश के योद्धाओं को लगभग 25 जागीरें दी |

गोपालदासजी को खेजड़ला की जागीर मिलने के बाद उनके उतराधिकारियों ने विक्रम संवत 1695 में इस किले की नींव रखकर निर्माण शुरू किया जो वि.सं. 1705 में पूरा हुआ और उसके बाद भी यहाँ के विभिन्न शासकों ने समय समय पर निर्माण कर इसे विस्तृत रूप दिया | मारवाड़ राज्य का ऐसा कोई युद्ध नहीं था, जिसमें खेजड़ला के अर्जुनोत भाटी परिवार की तलवार ने जौहर ना दिखलाया हो | इसी कारण यह ठिकाना मारवाड़ राज्य के प्रथम श्रेणी ठिकानों में शामिल रहा | मारवाड़ राज्य की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले इस ठिकाने ने आजादी के बाद भी स्थानीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है | राजस्थान की प्रसिद्ध सलेमाबाद पीठ की नींव भी खेजड़ला के ठाकुर सिहोजी द्वारा रखी गई थी, जो यहाँ के शासकों की धर्मपरायणता की परिचायक है | आपको बता दें शेरशाह सूरी ने भी पुत्र प्राप्ति के लिए सलेमाबाद पीठ से मन्नत मांगी थी | मन्नत पूर्ण होने पर सूरी ठाकुर सिहोजी के साथ सलेमाबाद पीठ पहुंचा और तत्कालीन महात्मा को एक दुसाला भेंट किया | बताया जाता है कि महात्मा ने बादशाह का दिया दुसाला धूणी में डाल दिया, जिसका शेरशाह सूरी ने विरोध किया | तब महात्मा ने धूणी में हाथ डाला और ढेर सारे दुसाले निकाले और कहा कि इनमें से जो तुम्हारा है वह ले लो | तब शेरशाह सूरी बहुत प्रभावित हुआ और महात्मा के कहने पर गौचर के लिए भूमि दान की |

देश की आजादी के बाद यहाँ के ठाकुर भैरूसिंहजी प्रदेश में गठित पॉपुलर सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे | ठाकुर भैरूसिंहजी 1952 में हुए आम चुनाव में स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर देसूरी विधानसभा से विधायक चुने गये | वे स्वतंत्र पार्टी के चीफ कंपेनर भी थे | वर्ष 1957 में ठाकुर भैरूसिंहजी बिलाड़ा विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गये | वे चौपासनी विद्यालय, जोधपुर व मारवाड़ राजपूत सभा के अध्यक्ष भी रहे | भैरुंसिंहजी के पुत्र ठाकुर दुर्गादासजी भी छ: बार सरपंच, बिलाड़ा के प्रधान और जिले के उप जिला प्रमुख रहे | वर्तमान ठाकुर दिलीपसिंहजी व उनके परिवार के कई सदस्य गांव के सरपंच रह चुके हैं | आज भी गांव में इस परिवार के प्रति श्रद्धा व आदर का भाव है | किले में वर्तमान में होटल बना जहाँ देश विदेश के हजारों सैलानी आते हैं और इस शानदार किले में रुक कर राजसी ठाठ बाट का आनन्द उठाते हैं | यदि आप भी इस किले को देखना चाहते हैं तो गूगल में खेजड़ला फोर्ट सर्च कर होटल में बुकिंग कराएं और अपने परिवार के साथ शाही अंदाज में रुकने का मजा लें और यह शानदार किला देखें |


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