औरंगजेब का शासनकाल हिन्दुओं के लिए संकट का समय था. हालाँकि हिन्दू राजाओं के साथ उसकी संधियाँ और राज्य की सुरक्षा के लिए उन पर निर्भरता उसके साम्प्रदायिक शासन पर एक तरह से अंकुश लगाने में कामयाब रही फिर भी हिन्दु उत्पीड़न हेतु उसके हथकण्डे जारी ही रहे| उसे जहाँ मौका मिलता वह अपनी क्रूर धार्निक मानसिकता परिचय अक्सर करवा ही दिया करता था|उसकी बढ़ी हुई धार्मिक कट्टरता की वजह से दक्षिण भारत में उसके आक्रमण के समय वहां के ब्राह्मणों को सबसे ज्यादा खौफ इस बात का रहता था कि बादशाह की मुस्लिम सेना उनकी महत्त्वपूर्ण धार्मिक पुस्तकें नष्ट कर देगी| इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार "मुसलमानों के हाथों अपनी हस्तलिखित पुस्तकें नष्ट किये जाने की अपेक्षा वे कभी कभी उन्हें नदियों में बहा देना श्रेयस्कर समझते थे| संस्कृत ग्रंथों के इस प्रकार नष्ट किये जाने से हिन्दू संस्कृति के नाश हो जाने की पूरी आशंका थी|"
ऐसी दशा में इस महत्त्वपूर्ण बौद्धिक सामग्री को बचाने के लिए बीकानेर के विद्यानुरागी महाराजा अनूप सिंह जी (1669-1698) ने बहुत बड़ा कार्य किया| महाराजा अनूपसिंह जी औरंगजेब की ओर से दक्षिण के कई अभियानों में शामिल रहे| अपनी दक्षिण तैनाती में महाराजा अनूपसिंह जी ने इस बौद्धिक सामग्री के महत्त्व को देखते हुए इसे बचाने का निर्णय लिया और उन्होंने ब्राह्मणों को प्रचुर धन देकर उनसे पुस्तकें खरीदकर बीकानेर के सुरक्षित दुर्ग स्थित पुस्तक भंडार में भिजवानी शुरू कर दी| बीकानेर के इतिहास में इतिहासकार ओझा जी लिखते है- "यह कार्य कितने महत्त्व का था, यह वही समझ सकता है, जिसे बीकानेर राज्य का सुविशाल पुस्तकालय देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हो| यह कहने की आवश्यकता नहीं कि महाराजा अनूपसिंह जी जैसे विद्यारसिक शासकों के उद्योग फलस्वरूप ही उक्त पुस्तकालय में ऐसे ऐसे बहुमूल्य ग्रन्थ अब तक सुरक्षित है, जिनका अन्यत्र मिलना कठिन है| मेवाड़ के महाराणा कुम्भा के बनाये हुए संगीत-ग्रन्थों का पूरा संग्रह केवल बीकानेर के पुस्तक भंडार में ही विद्यमान है| ऐसे ही और भी कई अलभ्य ग्रन्थ वहां विद्यमान है| ई.स.1880 में कलकत्ते के सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डाक्टर राजेन्द्रलाल मित्र ने इस बृहत् संग्रह की बहुत-सी संस्कृत पुस्तकों की सूची 745 पृष्ठों में छपवाकर कलकत्ते से प्रकाशित की थी| उक्त संग्रह में राजस्थानी भाषा की पुस्तकों का बहुत बड़ा संग्रह है|"
ऐसी दशा में इस महत्त्वपूर्ण बौद्धिक सामग्री को बचाने के लिए बीकानेर के विद्यानुरागी महाराजा अनूप सिंह जी (1669-1698) ने बहुत बड़ा कार्य किया| महाराजा अनूपसिंह जी औरंगजेब की ओर से दक्षिण के कई अभियानों में शामिल रहे| अपनी दक्षिण तैनाती में महाराजा अनूपसिंह जी ने इस बौद्धिक सामग्री के महत्त्व को देखते हुए इसे बचाने का निर्णय लिया और उन्होंने ब्राह्मणों को प्रचुर धन देकर उनसे पुस्तकें खरीदकर बीकानेर के सुरक्षित दुर्ग स्थित पुस्तक भंडार में भिजवानी शुरू कर दी| बीकानेर के इतिहास में इतिहासकार ओझा जी लिखते है- "यह कार्य कितने महत्त्व का था, यह वही समझ सकता है, जिसे बीकानेर राज्य का सुविशाल पुस्तकालय देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हो| यह कहने की आवश्यकता नहीं कि महाराजा अनूपसिंह जी जैसे विद्यारसिक शासकों के उद्योग फलस्वरूप ही उक्त पुस्तकालय में ऐसे ऐसे बहुमूल्य ग्रन्थ अब तक सुरक्षित है, जिनका अन्यत्र मिलना कठिन है| मेवाड़ के महाराणा कुम्भा के बनाये हुए संगीत-ग्रन्थों का पूरा संग्रह केवल बीकानेर के पुस्तक भंडार में ही विद्यमान है| ऐसे ही और भी कई अलभ्य ग्रन्थ वहां विद्यमान है| ई.स.1880 में कलकत्ते के सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डाक्टर राजेन्द्रलाल मित्र ने इस बृहत् संग्रह की बहुत-सी संस्कृत पुस्तकों की सूची 745 पृष्ठों में छपवाकर कलकत्ते से प्रकाशित की थी| उक्त संग्रह में राजस्थानी भाषा की पुस्तकों का बहुत बड़ा संग्रह है|"
जैसा कि ओझा जी ने पुरातत्ववेत्ता डाक्टर राजेन्द्रलाल द्वारा प्रकाशित उक्त पुस्तकालय की पुस्तक सूची के पृष्ठों की संख्या देखने से ही पता चलता है कि बीकानेर के पुस्तकालय में कितनी किताबें सुरक्षित है| महाराजा अनूपसिंह जी चूँकि संस्कृत के बड़े विद्वान थे, उन्होंने स्वयं संस्कृत में कई ग्रन्थों की रचना की थी ने औरंगजेब के साथ रहते हुए कूटनीति के बल पर बड़े महत्त्व की संस्कृत पुस्तकें व पांडुलिपियों को बचाकर, उनका संरक्षण कर देश की महत्त्वपूर्ण बौद्धिक सामग्री को बचाने की दिशा में शानदार कार्य किया|
सिर्फ बौद्धिक सम्पदा ही नहीं, महाराजा अनूपसिंह जी ने दक्षिण में रहते हुए सर्वधातु की बनी बहुत सी मूर्तियों की भी रक्षा की और उन्हें मुसलमानों के हाथ लगने से पहले बीकानेर पहुंचा दिया, जहाँ के किले के एक स्थान में सब की सब अबतक सुरक्षित है और वह "तैंतीस करोड़ देवताओं के मंदिर" के नाम से प्रसिद्ध है|
सिर्फ बौद्धिक सम्पदा ही नहीं, महाराजा अनूपसिंह जी ने दक्षिण में रहते हुए सर्वधातु की बनी बहुत सी मूर्तियों की भी रक्षा की और उन्हें मुसलमानों के हाथ लगने से पहले बीकानेर पहुंचा दिया, जहाँ के किले के एक स्थान में सब की सब अबतक सुरक्षित है और वह "तैंतीस करोड़ देवताओं के मंदिर" के नाम से प्रसिद्ध है|
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