राजस्थान के राजपूत समाज में दलितों को सम्मान देने के लिए सदियों से कई ऐसी परम्पराएं चली आ रही है, जिन्हें आज भी सुचारू रूप से निभाया जाता है| राजस्थान में सदियों तक शासन करने वाली राजपूत जाति द्वारा दलित सम्मान के लिए निभाई जाने वाली परम्पराओं में सबसे ज्यादा सम्मान मेहतर (हरिजन) जाति को मिलता आया है| पूर्व में मैला उठाने वाली मेहतर (हरिजन) जाति दलित जातियों में सबसे छोटी जाति समझी जाती है, जिनके साथ सभी दलित जातियां भयंकर छुआछुत रखती है| ऐसे में एक शासक जाति द्वारा सम्मान देने की परम्परा निभाना मायने रखता है|
क्षत्रिय संस्कृति की इन्हीं परम्पराओं में राजपूत समाज में परिवार के वृद्ध सदस्य के निधन पर बारहवीं के दिन गंगा प्रसादी के आयोजन पर गांव के मेहतर (हरिजन) को विशेष रूप से आमंत्रित कर परिवार के मुख्य सदस्यों द्वारा अपने हाथों से भोजन करवाना है| चूँकि मेहतर जाति के लोग भले ही पूर्व में मैला उठाने, घरों में झाड़ू लगाने जैसे कार्य करते रहे हों, लेकिन उनमें स्वाभिमान भी कम ना था और इसी स्वाभिमान के चलते वे स्वर्ण जातियों के यहाँ भोज आदि में बिना सम्मानपूर्वक आमंत्रण के शामिल नहीं होते थे|
उनके इसी स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए सदियों पहले क्षत्रिय विद्वानों ने उन्हें सम्मानपूर्वक आमंत्रित करने की एक परम्परा कायम की| इस परम्परानुसार उस दिन मेहतर को राजा व मेहतरानी को रानी का संबोधन देते हुए परिवार का मुखिया राजाओं-महाराजाओ की तरह उनकी शोभा यात्रा का आयोजन कर, उन्हें अपने घर तक लाता है| रास्ते में गांव वाले मेहतर व मेहतरानी का राजा रानी की तरह ही फूल आदि बरसाकर स्वागत करते है| आमंत्रित करने वाले परिवार के सदस्य मेहतर जोड़े के ऊपर पुरे रास्ते कपड़े का चंदवा बनाकर छाया करते हुए, रास्ते में कालीन का प्रतीक कपड़ा बिछाते हुए मेहतर जोड़े को उसके घर से अपने घर तक लाते है| कहने का मतलब पुरे रास्ते में उसे वैसा ही सम्मान दिया जाता है, जैसे एक राजा को दिया जाता है|
क्षत्रिय संस्कृति की इन्हीं परम्पराओं में राजपूत समाज में परिवार के वृद्ध सदस्य के निधन पर बारहवीं के दिन गंगा प्रसादी के आयोजन पर गांव के मेहतर (हरिजन) को विशेष रूप से आमंत्रित कर परिवार के मुख्य सदस्यों द्वारा अपने हाथों से भोजन करवाना है| चूँकि मेहतर जाति के लोग भले ही पूर्व में मैला उठाने, घरों में झाड़ू लगाने जैसे कार्य करते रहे हों, लेकिन उनमें स्वाभिमान भी कम ना था और इसी स्वाभिमान के चलते वे स्वर्ण जातियों के यहाँ भोज आदि में बिना सम्मानपूर्वक आमंत्रण के शामिल नहीं होते थे|
उनके इसी स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए सदियों पहले क्षत्रिय विद्वानों ने उन्हें सम्मानपूर्वक आमंत्रित करने की एक परम्परा कायम की| इस परम्परानुसार उस दिन मेहतर को राजा व मेहतरानी को रानी का संबोधन देते हुए परिवार का मुखिया राजाओं-महाराजाओ की तरह उनकी शोभा यात्रा का आयोजन कर, उन्हें अपने घर तक लाता है| रास्ते में गांव वाले मेहतर व मेहतरानी का राजा रानी की तरह ही फूल आदि बरसाकर स्वागत करते है| आमंत्रित करने वाले परिवार के सदस्य मेहतर जोड़े के ऊपर पुरे रास्ते कपड़े का चंदवा बनाकर छाया करते हुए, रास्ते में कालीन का प्रतीक कपड़ा बिछाते हुए मेहतर जोड़े को उसके घर से अपने घर तक लाते है| कहने का मतलब पुरे रास्ते में उसे वैसा ही सम्मान दिया जाता है, जैसे एक राजा को दिया जाता है|
घर पहुँचने पर परिवार का मुखिया मेहतर राजा को अपने हाथ से भोजन कराता है और भोजन के बाद इस परम्परानुसार उसे अन्य वस्तुओं के साथ एक सोने से बनी प्रतीकात्मक झाड़ू व टोकरी भेंट की जाती है| मेहतर राजा के भोजन करने के पश्चात् ही ब्राह्मणों सहित मेहमानों को भोजन कराया जाता है|
यह परम्परा निभाना आर्थिक रूप से काफी महंगी पड़ती है अत: समाज का हर व्यक्ति या परिवार इस महंगी परम्परा को निभाने में समर्थ नहीं है| पर राजपूत समाज के समर्थ व्यक्ति इस परम्परा को आज भी प्राचीन काल की तरह निभाते है|
पर अफ़सोस राजपूत शासनकाल में दलित सम्मान के लिए इस तरह की अनूठी परम्पराओं के बावजूद आजादी के बाद देश के कथित नेताओं ने अपना वोट बैंक बनाने के चक्कर में दलितों को उनके शोषण की झूठी कहानियों द्वारा दुष्प्रचार कर आम राजपूतों के खिलाफ भड़का दिया और जो जाति दलितों का सबसे ज्यादा सम्मान करती थी, उन्हें संरक्षण देती थी के बीच अविश्वास की खाई खोद दी|
हाल ही नागौर जिले के युवा नेता श्याम प्रताप सिंह राठौड़, पुलिस अधिकारी श्री महावीरसिंह जी राठौड़ की दादीसा के स्वर्गगमन के बाद, 9 सितम्बर 2016 को गंगा प्रसादी कार्यक्रम में क्षत्रिय संस्कृति की इस अनूठी परम्परा का निर्वहन देखा| नागौर जिले के रुंवा गांव में आयोजित इस कार्यक्रम में गांव के सुल्ताना राम मेहतर (हरिजन) की राजाओं-महाराजाओ की तरह शोभा यात्रा निकाली गई, फिर सादर सत्कार के साथ आमन्त्रित कर उन्हें परिवार के सदस्यों ने अपने हाथो से भोजन कराया|
यह परम्परा निभाना आर्थिक रूप से काफी महंगी पड़ती है अत: समाज का हर व्यक्ति या परिवार इस महंगी परम्परा को निभाने में समर्थ नहीं है| पर राजपूत समाज के समर्थ व्यक्ति इस परम्परा को आज भी प्राचीन काल की तरह निभाते है|
पर अफ़सोस राजपूत शासनकाल में दलित सम्मान के लिए इस तरह की अनूठी परम्पराओं के बावजूद आजादी के बाद देश के कथित नेताओं ने अपना वोट बैंक बनाने के चक्कर में दलितों को उनके शोषण की झूठी कहानियों द्वारा दुष्प्रचार कर आम राजपूतों के खिलाफ भड़का दिया और जो जाति दलितों का सबसे ज्यादा सम्मान करती थी, उन्हें संरक्षण देती थी के बीच अविश्वास की खाई खोद दी|
हाल ही नागौर जिले के युवा नेता श्याम प्रताप सिंह राठौड़, पुलिस अधिकारी श्री महावीरसिंह जी राठौड़ की दादीसा के स्वर्गगमन के बाद, 9 सितम्बर 2016 को गंगा प्रसादी कार्यक्रम में क्षत्रिय संस्कृति की इस अनूठी परम्परा का निर्वहन देखा| नागौर जिले के रुंवा गांव में आयोजित इस कार्यक्रम में गांव के सुल्ताना राम मेहतर (हरिजन) की राजाओं-महाराजाओ की तरह शोभा यात्रा निकाली गई, फिर सादर सत्कार के साथ आमन्त्रित कर उन्हें परिवार के सदस्यों ने अपने हाथो से भोजन कराया|
यह प्रथा राजस्थान के राजपूत समाज के साथ ही राजपुरोहित, चारण व जैन समुदाय सहित कई स्वर्ण जातियों में भी प्रचलित है।
------