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वीर राजा पुरु (पोरूष)

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Raja Veer Puru History in Hindi, King Puru History in Hindi, Raja Porush
झेलम बोल जरा क्यों लाल हुआ तेरा पानी

king Puru राजा पुरु केकय राज्य के चन्द्रवंशी राजा थे। इनका राज्य भारत के पश्चिमोत्तर में इमेलम नदी और चिनाव नदी के मध्य में फैला था। पंजाब के झेलम, गुजरात और शाहपुर जिले तक कैकय राज्य था। ई.पू. 326 के लगभग यूनानी आक्रान्ता सिकन्दर (Sikandar) भारत के पश्चिमोत्तर राज्यों पर आक्रमण करने के लिए बढ़ा। उसकी इच्छा पूरे विश्व को जीत कर जगद्वजेता की उपाधि धारण करने की थी। भारत पर आक्रमण के समय यहाँ के वीरों ने युद्ध क्षेत्र में अपूर्व शौर्य का परिचय दिया, जिसको देखकर उसे वापिस अपने देश लौटना पड़ा।

सिकन्दर तक्षशिला तक भारतीय क्षेत्रों को जीतता हुआ पहुँच गया था। उस समय पश्चिमोत्तर क्षेत्र में छोटे-छोटे राज्य थे। सभी ने जितनी उनकी सामर्थ्य थी, सिकन्दर का विरोध किया। तक्षशिला से सिकन्दर ने पुरु के पास अपना दूत भेजा और कहा कि वह उसकी सेवा में उपस्थित होकर उसका आधिपत्य स्वीकार कर ले। पुरु ने जवाब दिया कि वह युद्ध क्षेत्र में उसके सामने उपस्थित होकर उसका स्वागत करेगा। सिकन्दर की सेना अपने मित्रों के साथ इोलम के पश्चिमी किनारे पर आ डटी। उसका सामना करने के लिए पुरु की सेना झेलम के पूर्वी तट पर एकत्र हुई। महीनों तक दोनों सेनाएँ झेलम के किनारों पर आमने-सामने पड़ी रही किन्तु आक्रमण करने के लिए सिकन्दर का साहस नहीं हुआ।

एक दिन, रात को आँधी और वर्षा हो रही थी, उस समय सिकन्दर अपनी सेना को बीस मील ऊपर ले गया और चुपके से दरिया पार करके पुरु की विशाल सेना पर आक्रमण करने का विचार किया। दोनों सेनाएँ आमने-सामने हो गई। पुरु के पास हाथी, रथ और पैदल धनुषधारियों की सेना थी। खुले मैदान में उसका सिकन्दर से जमकर मुकाबला हुआ। परन्तु दुर्भाग्य से पानी और कीचड़ के कारण पुरु के रथ बेकार हो गए और पैदल सैनिक भी गीली जमीन में भारी और लम्बे धनुषों पर बाण नहीं चढा सके। सिकन्दर के पास विशाल भाले और धनुर्धर घुड़सवार सेना थी। दोपहर तक भारतीयों ने कड़ा मुकाबला किया और एक समय ऐसा मालूम पड़ता था कि यूनानी हार जाएँगे। इसी बीच में बाणों और भालों से घायल हाथियों ने पगलाकर अपने भारतीय सैनिकों को ही कुचलना शुरू कर दिया। पुरु की सेना में भगदड़ मच गई। परन्तु पुरु रणक्षेत्र छोड़कर भागा नहीं। कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि वह एक हाथी पर चढ़कर, लड़ता हुआ सेना का संचालन कर रहा था। स्वयं घायल था, किन्तु उसने द्रोही अम्भि राज पर भाला चलाया परन्तु अम्मि संयोग से बच गया। पुरु घायल हो गया, मूर्छित अवस्था में बन्दी बना लिया गया। उसे सिकन्दर के सामने हाजिर किया गया। सिकन्दर ने पूछा, “तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाए ?’ पुरु ने गर्व से उत्तर दिया, “जैसा राजा लोग दूसरे राजा के साथ करते हैं।’’ पुरु की निर्भीकता, उसके पौरुष, साहस और स्वाभिमान की उच्च भावना से सिकन्दर अत्यधिक प्रभावित हुआ और प्रसन्न होकर उसने पुरु को उसका राज्य लौटा दिया (एरियन)। इस युद्ध में सिकन्दर की विजय बताई गई है जो संदिग्ध लगती है। जैसा कि अन्य इतिहासकारों ने लिखा हैं। “विशालकाय हाथियों में अपार बल था और अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए। उन्होंने पैरो तले बहुत सारे (यूनानी) सैनिकों की हड्डियाँ चकनाचूर कर दी। वे अपने विकराल गजदन्तों से सैनिकों को गोद-गोद कर मार डालते थे।’’ (डियोडोरस)

पुरु की विजय का सबसे बड़ा प्रमाण है कि इस युद्ध के बाद सिकन्दर के सैनिकों ने आगे युद्ध करने से इन्कार कर दिया और स्वदेश लौटने के लिए सिकन्दर पर दबाव डालने लगे। आखिर सिकन्दर को वापस यूनान जाना पड़ा। मार्ग में उसे जगह-जगह विरोध झेलना पड़ा था। यह बिल्कुल गलत है कि इस युद्ध में पुरु को बन्दी बनाकर सिकन्दर ने दया करके छोड़ दिया। क्योंकि सिकन्दर अत्यन्त क्रूर और घमण्डी प्रवृति का था। उसने कई पराजित राजाओं को तड़पातड़पाकर मार डाला था। अपने परिवार के स्वबन्धुओं को भी मार डाला था। यदि सिकन्दर की पुरु पर विजय हुई होती तो इतना कूर और विश्वविजयी का इच्छुक शासक, जिसने अपने जीवन में कभी भी किसी को क्षमा नहीं किया और निर्दयता से नष्ट कर डालता था, पुरु पर इतना उदार क्यों होता। वह अपने साथ विशाल सेना लाया था। वह वापस अपने देश गया तब उसका दिल टूट चुका था। वह खुद घायल अवस्था में था। उसकी सेना बुरी तरह से तहस-नहस हो चुकी थी। पुरु ने झेलम तट पर युद्ध में ऐसा पराक्रम दिखाया कि सिकन्दर का विश्व विजय का स्वप्न साकार नहीं हो सका और उसे अपने देश वापस लौटना पड़ा। तब ही तो कवि ने कहा है कि झेलम के किनारे पर पुरु ने ऐसा भंयकर युद्ध किया, जिससे उसका पानी लाल हो गया अर्थात पुरु ने अपनी तलवार झेलम नदी में झकोळी (धोई) है जिसके कारण झेलम का पानी लाल हो गया।
लेखक : छाजूसिंह, बड़नगर

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