पिछले दिनों उतरप्रदेश में आक्रोशित भीड़ के हाथों मारे गए पुलिस अधिकारी की मृत्यु या शाहदत के बाद उपजी परिस्थितियों के बाद राजनैतिक लाभ लेने के लिए सत्ताधारी दल द्वारा जो हथकंडे अपनाये जा रहे है व अधिकारी की शहादत को साम्प्रदायिक व राजनैतिक रंग दिया जा रहा है ने देश के आम आदमी को विचलित सा कर दिया है| इस अधिकारी की शहादत को साप्रदायिक रूप देकर वोट बैंक में बदलने के लिए या वोट बैंक की खातिर उ.प्र. सरकार द्वारा मृतक अधिकारी के आश्रितों को कानून से बाहर जाकर नौकरियों की पेशकश व मुआवजे के रूप में खैरात बाँटने पर देश के युवाओं में उपजा रोष व आक्रोश सोशियल साईटस पर साफ देखा जा सकता है|
मृतक अधिकारी की पत्नी द्वारा वह पद जिस पर उसका मृत पति आसीन था मांगना, उसी जगह नियुक्ति मांगना व अपने भाइयों, बहन, बहनोई आदि के लिए नौकरियां मांगना भी हास्यास्पद लग रहा है| बहन, बहनोई, चचेरे भाई, साडू, साली, साले किसी भी व्यक्ति के आश्रितों की गिनती में कैसे आ सकते है ?
यदि उ.प्र. सरकार वोट बैंक की इसी तुष्टिकरण की अपनी निति का पालन करते हुए मृतक अधिकारी के आश्रितों के नाम पर एक से अधिक नौकरियां देती है तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे| इस मामले का हवाला देकर देशभर में अब तक हुए शहीदों के परिजन भी इस तरह सरकारी नौकरियां पाने के लिए दावे पेश करेंगे जो सरकारों पर भारी पड़ेंगे| इन परिणामों का एक प्रत्यक्ष उदाहरण एक सामाजिक कार्यकर्त्ता द्वारा दायर याचिका से देखा जा सकता है| सामाजिक कार्यकर्त्ता नूतन ठाकुर ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बैंच में जनहित याचिका में समानता के अधिकार के विपरीत प्रदेश सरकार द्वारा पीड़ितों को मुआवजा देने में भेदभाव करने का आरोप लगाया है|
नूतन ठाकुर का आरोप भी सही है क्योंकि उ.प्र. सरकार पिछले दिनों हुए शहीद हुए लोगों को मुआवजा देने में साम्प्रदायिक आधार पर धार्मिक भेदभाव कर अपना साम्प्रदायिक चेहरा उजागर कर रही है|
मजे की बात तो यह है कि सोसियल साईटस पर इस तरह आश्रितों के नाम पर परिजनों व रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाने के मामले पर विरोध करने वालों को छद्म सेकुलर ताकतें जिन्होंने खुद इस शहादत को साप्रदायिक रंग दिया है साम्प्रदायिक घोषित करने में लगी है|
आश्रितों के नाम पर सहायता का जो खेल उ.प्र. सरकार खेल रही है उसका विरोध करने वालों से मेरा अनुरोध है कि- वे इसका विरोध करने के बजाय इसका स्वागत करें और जैसे ही उ.प्र. सरकार आश्रितों के नाम रिश्तेदारों को एक से अधिक नौकरियां देती है उसका उदाहरण देते हुए देश में हाल ही में हुए अन्य शहीदों के परिजनों से भी एक से अधिक आश्रितों के लिए नौकरियां देने का दावा करवा शहीद परिवारों की सहायता करें|
मृतक अधिकारी की पत्नी द्वारा वह पद जिस पर उसका मृत पति आसीन था मांगना, उसी जगह नियुक्ति मांगना व अपने भाइयों, बहन, बहनोई आदि के लिए नौकरियां मांगना भी हास्यास्पद लग रहा है| बहन, बहनोई, चचेरे भाई, साडू, साली, साले किसी भी व्यक्ति के आश्रितों की गिनती में कैसे आ सकते है ?
यदि उ.प्र. सरकार वोट बैंक की इसी तुष्टिकरण की अपनी निति का पालन करते हुए मृतक अधिकारी के आश्रितों के नाम पर एक से अधिक नौकरियां देती है तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे| इस मामले का हवाला देकर देशभर में अब तक हुए शहीदों के परिजन भी इस तरह सरकारी नौकरियां पाने के लिए दावे पेश करेंगे जो सरकारों पर भारी पड़ेंगे| इन परिणामों का एक प्रत्यक्ष उदाहरण एक सामाजिक कार्यकर्त्ता द्वारा दायर याचिका से देखा जा सकता है| सामाजिक कार्यकर्त्ता नूतन ठाकुर ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बैंच में जनहित याचिका में समानता के अधिकार के विपरीत प्रदेश सरकार द्वारा पीड़ितों को मुआवजा देने में भेदभाव करने का आरोप लगाया है|
नूतन ठाकुर का आरोप भी सही है क्योंकि उ.प्र. सरकार पिछले दिनों हुए शहीद हुए लोगों को मुआवजा देने में साम्प्रदायिक आधार पर धार्मिक भेदभाव कर अपना साम्प्रदायिक चेहरा उजागर कर रही है|
मजे की बात तो यह है कि सोसियल साईटस पर इस तरह आश्रितों के नाम पर परिजनों व रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाने के मामले पर विरोध करने वालों को छद्म सेकुलर ताकतें जिन्होंने खुद इस शहादत को साप्रदायिक रंग दिया है साम्प्रदायिक घोषित करने में लगी है|
आश्रितों के नाम पर सहायता का जो खेल उ.प्र. सरकार खेल रही है उसका विरोध करने वालों से मेरा अनुरोध है कि- वे इसका विरोध करने के बजाय इसका स्वागत करें और जैसे ही उ.प्र. सरकार आश्रितों के नाम रिश्तेदारों को एक से अधिक नौकरियां देती है उसका उदाहरण देते हुए देश में हाल ही में हुए अन्य शहीदों के परिजनों से भी एक से अधिक आश्रितों के लिए नौकरियां देने का दावा करवा शहीद परिवारों की सहायता करें|