Shaury Chakra Vijeta Major Ranveer Singh Shekhawat
19 फरवरी 1982 : 21 सिक्ख रेजीमेंट के चालीस जवान तीन ट्रकों में मणिपुर राज्य के उखरुल क्षेत्र में पहुंची अपनी रेजीमेंट में शामिल होने के लिए, इम्फाल से 34 किलोमीटर दूर, नामथिलोक नामक स्थान के पहाड़ी रास्ते से आगे बढ़ रही थी| सेना की इस टुकड़ी के सैनिक मिजोरम में विद्रोहियों के खिलाफ प्रशिक्षित की गई बटालियन के सदस्य थे| जिनका नेतृत्व मेजर रणवीर सिंह शेखावत कर रहे थे| पहाड़ी रास्ते पर बढ़ते हुए यह सैन्य टुकड़ी एक ऐसे मोड़ पर पहुंची जिसका घुमाव 300 मीटर है| यहाँ सड़क एकदम बायीं ओर घूम जाती है| घुमाव के आखिरी में सड़क फिर एकदम बायीं ओर घुमती है| इस तरह इस मोड़ पर सड़क दोनों तरफ ओझल हो जाती है| इस तरह के तीव्र हेयर पिन बैण्ड मोड़ पर वनस्पतियों से आच्छादित ऊँची पहाड़ियों के मध्य यह टुकड़ी धीरे धीरे सुबह के 8:45 बजे के लगभग आगे बढ़ रही थी| सड़क के दायीं तरफ पानी का गहरा नाला भी था, उसी नाले के कारण यहाँ का नाम नामथिलोक पड़ा| मणिपुरी भाषा में नामथिलोक का मतलब पानी का नाला होता है|
वनस्पतियों से आच्छादित पहाड़ी रास्त्ता, आगे तीव्र मोड़ जहाँ कुछ मीटर के आगे कुछ भी नहीं देखा जा सकता, ऐसे खतरनाक स्थान नागा विद्रोहियों के लिये घात लगाकर सुरक्षा बलों पर हमले के लिए आदर्श स्थान है| आज भी नागा विद्रोहियों के एक गिरोह की आँखे मेजर शेखावत की टुकड़ी पर लगी थी| मेजर शेखावत की टुकड़ी जैसे ही इस खतरनाक मोड़ पर मुड़ी, तभी सामने एक बैलगाड़ी खड़ी होने के चलते मेजर शेखावत के काफिले को एकदम से रुकना पड़ा| मेजर शेखावत सबसे आगे के ट्रक पर सवार थे| रुक कर वे कुछ समझ पाते उससे पहले ही झाड़ियों में छुपे विद्रोहियों ने उन्हें भ्रम में डालने के लिए आस-पास धमाके किये और स्वचालित हथियारों से मेजर शेखावत के काफिले पर अंधाधुंध गोलियां बरसाने शुरू कर दी| अचानक हुए इस हमले में एक गोली मेजर शेखावत के ट्रक की विंडस्क्रीन से होती हुए उनके कंधे को चीरती हुई निकल गई| लेकिन कंधे में गोली लगने के बाद घायल शेखावत ने इस अप्रत्याशित हमले के बावजूद हिम्मत व धैर्य नहीं खोया और अपनी स्टेनगन लेकर वे रैंगते हुए पहाड़ी पर चढ़े और मोर्चा लेते हुए विद्रोहियों पर गोलियों की बौछार करते हुए उनकी ओर बढ़ते रहे| कुछ विद्रोही जहाँ सैनिकों से हथियार लूटने के कार्य को अंजाम देने में लगे थे, वहीं पहाड़ी पर जमे कुछ विद्रोही मेजर शेखावत की चुनौती का उन पर अपनी मशीनगन की गोलियों की बौछार कर मुकाबला करने में जुटे थे| विद्रोहियों की गोलियों से मेजर शेखावत बुरी तरह घायल हो चुके थे पर वे अपनी आखिरी सांस तक विद्रोहियों से मुकाबला करने को डटे थे| आखिर मशीनगन का एक ब्रस्ट उनके पेट में लगा और कुछ देर विद्रोहियों पर गोलियों बरसाते यह अदम्य साहसी वीर भारत माता की गोद में चिरनिंद्रा में सो गया| इस तरह मेजर शेखावत अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ अपने प्राणों का बलिदान कर अमर हो गए|
लगभग आधे घंटे तक चली इस जंग में भारतीय सेना के 1 कमीशन्ड अधिकारी, 2 नॉन कमीशन्ड अधिकारी, 15 जवान तथा एक सिविल कांट्रेक्टर ने वीरगति प्राप्त की| पत्रकार शेखर गुप्ता की रिपोर्ट के अनुसार चालीस लोगों के प्लाटून में से सिर्फ तीन आदमी ऐसे बचे थे जो घायल नहीं हुए थे| उन्होंने फ़ौरन प्रतिक्रियात्मक कार्य किया| फायरिंग के दरमियान ही एक नॉन कमीशन्ड अधिकारी दौड़ निकला और 13 किलोमीटर आगे सी.आर.पी.एफ की पोस्ट पर पहुंचा और वहां से उखरुल व इम्फाल स्थित अपने उच्चाधिकारियों की घटना की जानकरी दी|
19 फरवरी 1982 : 21 सिक्ख रेजीमेंट के चालीस जवान तीन ट्रकों में मणिपुर राज्य के उखरुल क्षेत्र में पहुंची अपनी रेजीमेंट में शामिल होने के लिए, इम्फाल से 34 किलोमीटर दूर, नामथिलोक नामक स्थान के पहाड़ी रास्ते से आगे बढ़ रही थी| सेना की इस टुकड़ी के सैनिक मिजोरम में विद्रोहियों के खिलाफ प्रशिक्षित की गई बटालियन के सदस्य थे| जिनका नेतृत्व मेजर रणवीर सिंह शेखावत कर रहे थे| पहाड़ी रास्ते पर बढ़ते हुए यह सैन्य टुकड़ी एक ऐसे मोड़ पर पहुंची जिसका घुमाव 300 मीटर है| यहाँ सड़क एकदम बायीं ओर घूम जाती है| घुमाव के आखिरी में सड़क फिर एकदम बायीं ओर घुमती है| इस तरह इस मोड़ पर सड़क दोनों तरफ ओझल हो जाती है| इस तरह के तीव्र हेयर पिन बैण्ड मोड़ पर वनस्पतियों से आच्छादित ऊँची पहाड़ियों के मध्य यह टुकड़ी धीरे धीरे सुबह के 8:45 बजे के लगभग आगे बढ़ रही थी| सड़क के दायीं तरफ पानी का गहरा नाला भी था, उसी नाले के कारण यहाँ का नाम नामथिलोक पड़ा| मणिपुरी भाषा में नामथिलोक का मतलब पानी का नाला होता है|
वनस्पतियों से आच्छादित पहाड़ी रास्त्ता, आगे तीव्र मोड़ जहाँ कुछ मीटर के आगे कुछ भी नहीं देखा जा सकता, ऐसे खतरनाक स्थान नागा विद्रोहियों के लिये घात लगाकर सुरक्षा बलों पर हमले के लिए आदर्श स्थान है| आज भी नागा विद्रोहियों के एक गिरोह की आँखे मेजर शेखावत की टुकड़ी पर लगी थी| मेजर शेखावत की टुकड़ी जैसे ही इस खतरनाक मोड़ पर मुड़ी, तभी सामने एक बैलगाड़ी खड़ी होने के चलते मेजर शेखावत के काफिले को एकदम से रुकना पड़ा| मेजर शेखावत सबसे आगे के ट्रक पर सवार थे| रुक कर वे कुछ समझ पाते उससे पहले ही झाड़ियों में छुपे विद्रोहियों ने उन्हें भ्रम में डालने के लिए आस-पास धमाके किये और स्वचालित हथियारों से मेजर शेखावत के काफिले पर अंधाधुंध गोलियां बरसाने शुरू कर दी| अचानक हुए इस हमले में एक गोली मेजर शेखावत के ट्रक की विंडस्क्रीन से होती हुए उनके कंधे को चीरती हुई निकल गई| लेकिन कंधे में गोली लगने के बाद घायल शेखावत ने इस अप्रत्याशित हमले के बावजूद हिम्मत व धैर्य नहीं खोया और अपनी स्टेनगन लेकर वे रैंगते हुए पहाड़ी पर चढ़े और मोर्चा लेते हुए विद्रोहियों पर गोलियों की बौछार करते हुए उनकी ओर बढ़ते रहे| कुछ विद्रोही जहाँ सैनिकों से हथियार लूटने के कार्य को अंजाम देने में लगे थे, वहीं पहाड़ी पर जमे कुछ विद्रोही मेजर शेखावत की चुनौती का उन पर अपनी मशीनगन की गोलियों की बौछार कर मुकाबला करने में जुटे थे| विद्रोहियों की गोलियों से मेजर शेखावत बुरी तरह घायल हो चुके थे पर वे अपनी आखिरी सांस तक विद्रोहियों से मुकाबला करने को डटे थे| आखिर मशीनगन का एक ब्रस्ट उनके पेट में लगा और कुछ देर विद्रोहियों पर गोलियों बरसाते यह अदम्य साहसी वीर भारत माता की गोद में चिरनिंद्रा में सो गया| इस तरह मेजर शेखावत अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ अपने प्राणों का बलिदान कर अमर हो गए|
लगभग आधे घंटे तक चली इस जंग में भारतीय सेना के 1 कमीशन्ड अधिकारी, 2 नॉन कमीशन्ड अधिकारी, 15 जवान तथा एक सिविल कांट्रेक्टर ने वीरगति प्राप्त की| पत्रकार शेखर गुप्ता की रिपोर्ट के अनुसार चालीस लोगों के प्लाटून में से सिर्फ तीन आदमी ऐसे बचे थे जो घायल नहीं हुए थे| उन्होंने फ़ौरन प्रतिक्रियात्मक कार्य किया| फायरिंग के दरमियान ही एक नॉन कमीशन्ड अधिकारी दौड़ निकला और 13 किलोमीटर आगे सी.आर.पी.एफ की पोस्ट पर पहुंचा और वहां से उखरुल व इम्फाल स्थित अपने उच्चाधिकारियों की घटना की जानकरी दी|
इस हमले में पहले ट्रक में जितने जवान थे, उनके सभी के हथियार विद्रोही उठा ले गए, लेकिन मेजर शेखावत के शव के पास स्टेनगन मौजूद थी| इसका मतलब विद्रोही आखिरी वक्त तक उनके मुकाबला करते रहने के कारण उन तक नहीं पहुँच पाये और उनकी चुनौती के चलते अन्य ट्रकों में रखे काफी सारे हथियार छोड़कर भाग निकले|
नागा विद्रोही ईशाक तथा टी. मुईवाह के नेतृत्व में एन.एस.सी.एन. तथा पी.एल.ए. के विद्रोहियों द्वारा किये इस हमले का अदम्य साहस, कर्तव्यपरायणता, प्रेरणादायक नेतृत्व के साथ, वीरतापूर्वक मुकाबला करते हुए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले मेजर शेखावत को मरणोपरांत कृतज्ञ राष्ट्र के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिंह द्वारा 16 अप्रेल 1983 को राष्ट्रपति भवन में शौर्य चक्र प्रदान किया गया| जिसे मेजर शेखावत की धर्मपत्नी श्रीमती पुष्पाकँवर ने ग्रहण किया|
मेजर शेखावत का जन्म 10 जुलाई 1945 को राजस्थान की वीरप्रसुता भूमि के शेखावाटी आँचल के झुंझुनू जिले में टाई नामक गांव में राजस्थान प्रशासनिक सेवा अधिकारी श्री पन्ने सिंह शेखावत की धर्मपत्नी श्रीमती सिरेह कँवर की कोख से हुआ| मेजर शेखावत की प्रारंभिक शिक्षा जयपुर व उच्च शिक्षा देश की प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान पिलानी स्थित बिट्स से हुई| पढाई के साथ आप बास्केटबाल टीम के कप्तान भी रहे| अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोतर की पढाई के दौरान ही आपका चयन भारतीय सेना में हो गया| आईएमए देहरादून के 40 वें नियमित कोर्स को पूर्ण करने के बाद आपको 16 दिसंबर 1967 को भारतीय थल सेना की सिक्ख रेजीमेंट में (इन्फेंट्री) में कमीशन्ड अधिकारी के पद पर नियुक्ति मिली|
20 नवम्बर, 1976 को चुरू जिले के ठाकुर हेमसिंह राठौड़ की सुपुत्री पुष्पाकँवर के साथ आपका पाणिग्रहण संस्कार संपन्न हुआ| मेजर शेखावत के घर 12 मई, 1972 को पुत्री वैशाली व 13 नवम्बर, 1976 को पुत्री भावना ने जन्म लिया| पुत्री वैशाली का विवाह अलवर जिले का गांव चौबारा के रहने वाले राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री संदीपसिंह चौहान व पुत्री भावना का विवाह ग्राम बिजौलिया, जिला भीलवाड़ा के श्री कौशल पंवार जो भारतीय सेना में कर्नल के पद पर कार्यरत है के साथ हुआ|
19 फरवरी 1982 को अदम्य साहस के साथ देश के गद्दारों से मुकाबला करते हुए मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की उत्सर्ग करने वाले मेजर रणवीर सिंह शेखावत को ज्ञान दर्पण.कॉम टीम शत शत नमन करती है और आशा करती है कि मेजर शेखावत जैसे देशभक्तों के बलिदान से आने वाली पीढियां प्रेरणा लेकर मातृभूमि के लिए प्राणोत्सर्ग करने की परम्परा को कायम रखेगी|
नागा विद्रोही ईशाक तथा टी. मुईवाह के नेतृत्व में एन.एस.सी.एन. तथा पी.एल.ए. के विद्रोहियों द्वारा किये इस हमले का अदम्य साहस, कर्तव्यपरायणता, प्रेरणादायक नेतृत्व के साथ, वीरतापूर्वक मुकाबला करते हुए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले मेजर शेखावत को मरणोपरांत कृतज्ञ राष्ट्र के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिंह द्वारा 16 अप्रेल 1983 को राष्ट्रपति भवन में शौर्य चक्र प्रदान किया गया| जिसे मेजर शेखावत की धर्मपत्नी श्रीमती पुष्पाकँवर ने ग्रहण किया|
मेजर शेखावत का जन्म 10 जुलाई 1945 को राजस्थान की वीरप्रसुता भूमि के शेखावाटी आँचल के झुंझुनू जिले में टाई नामक गांव में राजस्थान प्रशासनिक सेवा अधिकारी श्री पन्ने सिंह शेखावत की धर्मपत्नी श्रीमती सिरेह कँवर की कोख से हुआ| मेजर शेखावत की प्रारंभिक शिक्षा जयपुर व उच्च शिक्षा देश की प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान पिलानी स्थित बिट्स से हुई| पढाई के साथ आप बास्केटबाल टीम के कप्तान भी रहे| अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोतर की पढाई के दौरान ही आपका चयन भारतीय सेना में हो गया| आईएमए देहरादून के 40 वें नियमित कोर्स को पूर्ण करने के बाद आपको 16 दिसंबर 1967 को भारतीय थल सेना की सिक्ख रेजीमेंट में (इन्फेंट्री) में कमीशन्ड अधिकारी के पद पर नियुक्ति मिली|
20 नवम्बर, 1976 को चुरू जिले के ठाकुर हेमसिंह राठौड़ की सुपुत्री पुष्पाकँवर के साथ आपका पाणिग्रहण संस्कार संपन्न हुआ| मेजर शेखावत के घर 12 मई, 1972 को पुत्री वैशाली व 13 नवम्बर, 1976 को पुत्री भावना ने जन्म लिया| पुत्री वैशाली का विवाह अलवर जिले का गांव चौबारा के रहने वाले राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री संदीपसिंह चौहान व पुत्री भावना का विवाह ग्राम बिजौलिया, जिला भीलवाड़ा के श्री कौशल पंवार जो भारतीय सेना में कर्नल के पद पर कार्यरत है के साथ हुआ|
19 फरवरी 1982 को अदम्य साहस के साथ देश के गद्दारों से मुकाबला करते हुए मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की उत्सर्ग करने वाले मेजर रणवीर सिंह शेखावत को ज्ञान दर्पण.कॉम टीम शत शत नमन करती है और आशा करती है कि मेजर शेखावत जैसे देशभक्तों के बलिदान से आने वाली पीढियां प्रेरणा लेकर मातृभूमि के लिए प्राणोत्सर्ग करने की परम्परा को कायम रखेगी|