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Channel: ज्ञान दर्पण
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जब एक थानेदार ने दर्ज की आईजी पुलिस के खिलाफ रपट

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Sant Thanedar Ramsingh Bhati
आपने ऐसे कई प्रसंग सुने होंगे कि फलां थानेदार चाहते हुए उपरी दबाव में किसी अपराधी के खिलाफ कार्यवाही नहीं कर पाया| इस देश में आज भी कई थानेदार, पुलिसकर्मी या अन्य विभागों में सरकारी कर्मचारी, अधिकारी है जो ईमानदारी से काम करना चाहते है पर वे ऊपर के विभागीय या राजनैतिक दबाव के चलते निष्पक्ष कार्य नहीं कर पाते| ऐसे में संत थानेदार एक प्रेरणास्पद व्यक्तित्व है जो कभी भी ऊपरी दबाव नहीं आये और उन्होंने किसी भी मामले में न्यायोचित जाँच व कार्यवाही की| यह उनकी ईमानदारी व कर्यव्यपरायणता का ही कमाल है कि आज भी उस संत थानेदार का समाधि मंदिर और आश्रम आध्यात्मिक-पथ अनुगामियों के साथ आं जनता के लिए आस्था व आकर्षण का केंद्र है|
जी हाँ ! हम बात कर रहे है संत थानेदार के नाम से विख्यात थानेदार रामसिंह की| जिन्होंने कभी भी पराये धन को हाथ नहीं लगाया| अपने सहायकों से कोई व्यक्तिगत काम नहीं कराया, कभी मुफ्त में रेल बस यात्रा नहीं की| कभी किसी मामले की जाँच में ऊपरी दबाव में नहीं आये| बल्कि उनकी छवि के चलते उनके उच्चाधिकारी उनसे कभी किसी की सिफारिश भी नहीं करते थे| यह थानेदार रामसिंह की कर्तव्यनिष्ठा की पराकाष्ठा ही थी कि एक बार उन्होंने जयपुर राज्य के पुलिस महानिरीक्षक के खिलाफ बिना किसी खौफ के अपने थाने के रोजनामचे में रपट दर्ज कर ली| इस घटना पर संत थानेदार पुस्तक के लेखक शार्दुल सिंह कविया अपनी पुस्तक में लिखते है- "महात्मा गांधी की डांडी यात्रा और नमक सत्याग्रह के फलस्वरूप समूचे देश में चेतना की एक नई लहर फैल गई थी। राजस्थान की देशी रियासतें भी इससे अछूती नहीं रही। राजस्थान में इन्हीं दिनों प्रजामण्डल की स्थापना हुई जिसने आगे चलकर जन-आन्दोलन का रूप धारण कर लिया।

एक बार प्रजामण्डल से प्रेरित होकर ऐसा ही कोई आन्दोलन गीजगढ़ ठिकाने में चला, जिसमें व्यापारी वर्ग अग्रणी था। तत्कालीन जयपुर राज्य में गीजगढ़, चांपावतराठौड़ों का बड़ा ठिकाना था। गीजगढ़ ठाकुर उन दिनों जयपुर स्टेट कौन्सिल के मेम्बर थे और जयपुर राज्य के प्रभावशाली सामन्तों में उनकी गणना की जाती थी। वे नहीं चाहते थे कि उनके यहाँ कोई इस प्रकार का आन्दोलन हो।इसे दबाने के लिए ठाकुरगीजगढ़ने यंग साहबसे परामर्श किया। एफ.एस. यंग एक अंग्रेज अधिकारी थे, जो जयपुरस्टेटमें महानिरीक्षकपुलिस के पद पर आसीन थे।

यंग साहब ने चतुराई से काम लिया। सादा कपड़ों में कुछ लोग गीजगढ़ पहुँचे। इन लोगों ने डंडे के जोर से व्यापारियों का मुँह बन्द करना चाहा। लोगों को डराया-धमकाया और बल प्रयोग किया। इसी आवेश में उनके मुखिया के मुख से यह निकल गया कि हम यंग साहब के आदमी हैं, तुमको सीधा कर देंगे।

आखिर सताये हुए लोगों ने पुलिस थाने में पुकार मचायी। दैवयोग से भाटी रामसिंह थाना प्रभारी थे। वे पुलिस बल लेकर तत्काल गीजगढ़ पहुँचे। वहां जाने पर पता लगा कि जान-माल का नुकसान नहीं हुआ, मारपीटहुई है।मारपीट करनेवाले तब तक फरार हो चुके थे।
थानेदार रामसिंह ने केस दर्ज किया। मामले की तहकीकात की, और बयान कमलबन्द किए। बयानों में यह स्पष्ट उल्लेख आया कि उन डंडाधारी हमलावरों का मुखिया, जिसने कुल्लेदार साफा बाँध रखा था और दिखने में पंजाबी मालूम होता था, कह रहा था कि हम यंग साहब के आदमी हैं। थानेदार भाटी रामसिंह ने बयानों को ज्यों का त्यों लिख लिया और रोजनामचे में एफ.आई.आर. दर्ज कर ली।

क्षेत्र के पुलिस अधिकारी को जब इस रपट का पता लगा तो रोजनामचा अपने कब्जे में ले लिया और कहने लगा, ‘थानेदार साहब ! आपने यंग साहब के खिलाफ रोजनामचा रंगा है, अब आपकी महात्माई चौड़े आ जाएगी।' इस पर थानेदार रामसिंह ने उत्तर दिया, “मैंने अपना फर्ज अदा किया है। अपनी ओर से कोई बात नहीं लिखी है।'
अपनी वफादारी दिखाने के लिए वह डिप्टी रोजनामचा लेकर तुरन्त जयपुर पहुँचा। उस समय काशीप्रसाद तिवाड़ी जयपुर के पुलिस अधीक्षक थे। वह अधिकारी एस.पी. के सामने हाजिर नहीं हुआ और रोजनामचा लेकर सीधा ही जलेब चौक आई.जी.पी. यंग साहब के पास पहुँच गया। अवसर पाकर रोजनामचा पुलिस महानिरीक्षक के समक्ष रख दिया और अर्ज किया, “यह पुलिस थाना बस्सी का रोजनामचा है, इसमें थानेदार रामसिंह ने हुजूर के खिलाफ रपट दर्ज करली।'
यंग साहब सब काम छोड़कर चौकन्ने हुये और रिपोर्ट सुनाने को कहा। डिप्टी मियाँ मन ही मन प्रसन्न हो रहा था। उसने रिपोर्ट सुनाना आरम्भ किया। यंग साहब ने रोजनामचा ध्यान से सुना। जब सुन चुके तो दोनों हाथ फैलाकर कुर्सी की पीठ पर लुढ़ककर दिल खोलकर हँसे। फिर रोजनामचा लाने वाले पुलिस अफसर से कहने लगे, "रामसिंह थानेदार ऐसी रपट लिख सकता है, तुम लोग नहीं लिख सकता, तुम लोग मैला (भिष्टा) खाता है|"

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