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नबाब रहीम खानखाना के रोचक किस्से

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राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री सौभाग्यसिंह जी शेखावत की कलम से नबाब रहीम खानखाना के कई रोचक किस्से (Nabab Rahim Khankhana Ke Rochak Kisse) राजस्थानी भाषा में.........

पारस रौ पूतळौ

नबाब रहीम खानखानौ पारस रौ पूतळौ नै सोना रौ पौरसौ इज हौ। लोक कथावां में सोना रां पौरसा रौ घणौ बरणन मिळै। पण उण नै दीन दुनी मांय कुंण दीठौ। पण खानखानौ जीवतौ पारस हुवौ। अेक बार री बात है खानखानौ सहल सवारी सूं आय नै घोड़ा रा पागड़ा सूं पग धरती पर मेल्यौ इज हौ कै एक डगमग नाड़ हालती जईफ डोकरी आपरी काख में दाबियोडै लोह रा तवा नै काढ़ियौ अर खानखाना रै डील सूं रगड़बा लागी। नौकर चाकर ‘ना-ना’ करता थका डोकरी नै रोकण नै दौड़िया । खानखानौ उणां नै अळगा इज थांम नै चाकरां नै कैयौ- उण बूढी माई नै इण रा तवा रै बरौबर सोनौ खजाना सू तुलवाय देवौ। जद पोतादार इण रौ अरथ पूछियौ- खानखानौ कैयौ- डोकरी आ जांचण नै आई ही कै बूढ़ा बडेरा औ केवै है कै पातसाह अर राजा नबाब पारस हुवै है। उण रौ औ कथण सांची है कै कूड़। अर अबार रा समै मांय भी अेड़ा लोग है कै नीं है।

अक टोपौ आबरू

खानखाना री दान दुगाणी री बातां रा कांई ओड़ आवै। एक दिन रौ किस्सौ है कै खानखाना री सवारी जावती ही। अेक मोटौ दाळदी अेक काच री सीसी में अेक टोपो पाणी रौ नांख अर खानखानै नै दिखायौ अर सीसी नै ऊंधी करी। जद पाणी री बूंद धरत्यां पड़बालागी जद पाछी सीधी करली। उण रौ रूप रंग सूं ठा पड़ै हौ कै बौ किणी भरापूरा घर नै आछा कुळ रौ मांणस हुवै। पण समै रौ फेर भी कुजरबौ हुवै है। अणहोणी आय पड़ै जणा क्यूं इज कारी नीं लागै। बंदौ दौड़ै चार घड़ी अर भाग दोड़ै रात दिन। करम कमाई रौ मेळ हुवै जणा सुख संपत मिळै। हां, तो खानखानौ आपरा घोड़ा नै थथोप नै उण नै नजीक बुलायौ अर आपरै सागै घर लियायौ। घाबा-लता अर रोकड़ मोकळी माल मत्तो देय उणनै पाछौ मोकळियौ।

साथ रा लोगबाग पूछी- औ कांई ? खानखानौ कैयौ- थां लोग जाणिया नीं। बात ब्योपाया सूं म्यानौ नीसरै है। पढ़ियां लिखियां कीं हुवै मूळ बात तो गुणियां हुवै। उण री सीसी रौ अरथ औ हौ कै आवरू तौ ही जद घणी इज ठाढ़ी ही पण अब एक बूंद ईजत इज जीयां-तीयां बाकी बची है। अर अब बा भी गिरबा वाळी ही है। साथ रा लोग खानखाना री चात्रगता पर अचरज कर राजी हुवा।

दोय कीली

अेक दिन खानखानौ आपरा रहवास सूं आमखास कांनी जावतौ हौ। अेक मोटौ ताजौ मलीड़ घुड़सवार पांचूं सस्तर-पाती बांधियां साम्हौ आय ऊभो रैयौ। सलाम करी। जद खानखानै पूछी-बोल कांई चावै। उण कही नौकरी। उण में विसैस बात आ ही कै उण री पाघ में माथै पर लोह री दोय तीखी कीली भी खसोलियोड़ी ही। खानखानै पूछी ठीक है। पण, लोह रा पाघ में टांकियोड़ा कीलां रौ कांई अरथ है ? अै किंण रीत बांध मेली है ? उण पडूतर दियौ- इण में अेक कीलौ तौ उण मिनख तांई है जिकौ चाकर राख नै उण नै पगार नीं देवै। अर दूसरौ उण चाकर तांई है जिकौ रोजीनौ तौ लेवै पण काम बजायनै नीं करै। खाली बातां री ब्याळंू नै भोपा डोफर करतौ फिरै अर धणी सूं खोट-कपट बिंणजै।

खानखानौ उण रौ रोजीनौ टै’रा लियौ अर आपरै साथै लै लियौ। नुंवौ चाकर दरबार में साथै ही गयौ। सगळा दरबारी उण रै बांकै पैहराव नै देखण ढूका। जद खानखानौ उण चाकर नै पूछियौ- मिनख री आवड़दा घणी सूं घणी किता बरसां री हुवै। उण कहयौ-कुदरत रा लेखा सूं ज्यादा सूं ज्यादा छैबीसी साल आदमी जीवै।

खानखानै आपरा खवास नै तेड़ाय नै पोतादार नै बुलायौ अर उण नै कैयौ-इण मिनख नै आखी उमर री पगार चुका देवौ। अर उण सिपाई नै कैयौ-ल्यौ हजरत, लोह री एक कील रौ बोझ तो अबार सूं थां अपणै माथै सूं उतार देवौ। अब दूजी कील रौ तन्नै इकत्यार है।

दरबारी लोग उण दिन सांचमांच में खानखानै में राजा भोज सरीखी बुध अर उदारता अर वीर विकरमादीत-सी हींमत नै परख देखी।

राजा मान कछावौ नै नबाब रहीमखान

आमेर रा राजा मानसिंघ अर हिंदी रौ मोटौ कवि नै पातसाह अकबर रौ गिनायत खानखानौ अबदुररहीम दोनूं पातसाही रा भारीखम थांभा हुंता। अकबर इणां री घणी मानतान, काण, म्रजाद राखतौ। दोनों में आछौ भलौ मेळ-मिलाप नै प्रेम-प्रीति हुंती। अेक दिन ठालैड़ रा बखत में दोनू कंधार रा किला में बैठा सतरंज रमै हा। खेल में होड आ हुई कै जिकौ जीतै बौ हारे जिण सूं चावै जिका अेक जिनावर री बोली बुलावेलौ। खानखाना री बाजी दबबा लागी। मानसिंघ मुळकबा लागा कै मैं तौ मिनकी री बोली बुलावस्यूं। खानखानौ साहस करतौ रैयौ। पण छैवट चार-पांच चालां पछै उण री हींमत छूटबा लागी। खानखानौ वडौ डावौ मिनख हौ। बाजी जाती देख खेल संू उठणौ मांड्यौ अर कहयौ-अरर ! म्हैं तो बीसम्रत ही व्है गयौ। चोखौ हुवौ जिकौ इण समै याद आ गयौ।

राजा मानसिंघ गोटी चलाय नै कैयौ- यां चाल्या। नबाब रहीम कैयौ पातसाह सलामत म्हनैं अेक काम ओडायौ हौ ! बौ काम अबार इज याद आयौ। म्हैं तुरत-फुरत सूं उण काम रौ परबंध कर आवूं हूं। राजा कैयौ-ना, आ कींकर हुवै। पैली बिलाई री बोली बोलौ अर फेर जावौ। इयां कैय नै नबाब रा जामा री कळी पकड़ली अर फेर कैयौ, पैली मिनकी री बोली बोलौ नै पछै जावौ।

खानखाना कैयौ-राज म्हांरौ पल्लौ छोड़ौ-मे आयम्-मे आयम्। मैं आऊं हूं-इण भांत फारसी बोली में आपरी बात ही चात्रगता सूं कैय दीन्ही अर बिल्ली री बोली म्यांवू री नकल भी कर दिवी। बै भी हंस दिया अर अै भी हंस दिया। कितरी ऊंची चात्रगता है इण में जो आपरी बात भी कैय दी अर पैला री बात भी पूरी कर दिवी।



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