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गिलोय : जो मरे ना किसी को मरने दे

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लेखक : डा. रघुनाथ सिंह राणावत
आयुर्वेद में गिलोय का अपना महत्वपूर्ण स्थान है, गिलोय के बारे में कहा जाता है कि गिलोय ना खुद करती है ना किसी रोगी को मरने देती है| इस वाक्य के बाद आप गिलोय की चिकित्सा जगत में महत्ता आसानी से समझ सकते है. गिलोय को आप काट कर कहीं भी फैंक दीजिये, इसके डंठल को सुखा दीजिये, सूखा डंठल भी थोड़ी सी नमी पाकर बेल के रूप में परिवर्तित हो जायेगा, नीम पर चढ़ी गिलोय सबसे उत्तम, मानी जाती है. गिलोय अमृता अलग अलग क्षेत्रों में विभिन्न नामो से जानी जाती है. जैसे - गडुची, कुण्डलिनी, चक्कर लक्षणा, चिन्नरुहा, वत्साद्नी, छिन्नीद्भ्वा, हिंदी में गिलोय, बंगाली में गुलंच, गुजराती में गलों,मराठी में गुलवेल, कोकणी में गरुडवेळ, सिंहली में गिलोर, कच्छ में गडू,कन्नड़ में अमरद्वलील, तमिल में तिप्ततिगें, मलयालम में चिट्टामृतम, पैप्यमृतम और लेटिन tinospora cordifolia

गिलोय वर्णन – मांसल लता के रूप, बड़े वृक्षों पर चढने वाली बहुवर्षायु होती है. पत्ते हृदय आकृति एकान्तर होते हैं. इसके काण्ड से अवरोह मूल निकलते है. फुल पीले रंग छोटे छोटे गुच्छो के रूप में निकलते हैं. लाल रंग के फल निकलते हैं. बाहरी त्वचा सफेद रंग की होती हैं, ताजे काण्ड हरे रंग के गुद्देदार और अंदर की त्वचा हरे रंग की मांसल होती हैं. इसकी बाहरी त्वचा भूरे रंग की होती हैं, इसको कटाने पर चक्कर के रूप में दिखाती हैं. बाजार में इसके सूखे काण्ड छोटे बड़े मिलते हैं, जो बेलनाकार 1 इंच व्यास के होते है. स्वाद में ये तीखी होती हैं.परन्तु इन का कोई रंग नही होता हैं.इस की छाल को आसानी से अलग किया जा सकता हैं. इसकी पहचान के इए आसानी का तरीका इसके क्वाथ में आयोडीन का घोल डाला जाता है तो गहरा नीला रंग होता हैं| वैसे इसमें मिलावट कम होती. नीम, आम, पलास, पीपल, बोर, और बबूल आदि पेड़ों पर पाई जाने वाली गिलोय की गुणवत्ता अच्छी मानी जाती है|

गुण विधान – गिलोय त्रिदोष हर वाप-पित्त-कफ को मिटने वाली, कटुपौष्टिक होती हैं, पित्तसारक, पित्त को मिटने वाली पेट के घाव [अल्सर] हो ठीक करने वाली, त्वचा के रोग को मिटने वाली, मूत्रजनन [मूत्र को पैदा करना] और मूत्रविचरनीय [मूत्र को निष्कासन, गति प्रदान करना], मूत्रेन्द्रिय रोगों में विभिन्न अनुपात में दिया जाती हैं, सभी प्रकार के प्रमेह में गिलोय का सत्व या स्वरस दिया जाता हैं, बस्ती शोथ में गिलोय सत्व बहुत ही गुणकारक हैं, नये सुजाक रोगों से गिलोय का स्वरस देने से मूत्र का जलना कम होता हैं, मुत्रेंन्द्रीय के अभिष्यंद प्रधान गिलोय को ग्वारपाठ के साथ देने से लाभदायक स्थति रहती हैं, गिलोय से भूख खुलकर लगती हैं भोजन को हजम करती हैं जिससे खून बढ़ता हैं और ऊर्जावान शरीर बनता हैं. बुखार या अन्य कारणों से दुर्बलता आती इससे ठीक होता हैं| गिलोय से पित्त का बहना सुगमता से होता हैं जिससे यकृत की पित्तवाहिनियो का एवं आमाशय के अंदर श्लेष्म त्वचा का अभिष्यंद कम होता हैं, इससे पाचन नलिका की अधिक अम्लता कम और संतुलित होती हैं| इस कारण से कुपचन पेट दर्द और पीलिया में लाभदायक होता हैं. बार बार आने वाले बुखार अज्ञात कारणों से आने वाले बुखार को ये सफलतापूर्वक उसको दूर करती अर्थात मिटाती हैं. और आधुनिक दवाइयों के अत्धिक सेवन से जो दुर्बलता पेट और शरीर को आती तो इसके सेवन से आराम आता हैं, मलेरिया और टायफायड जैसे बीमारियों के लिए ये आचर्य जनक प्रभाव दिखाती हैं साथ कमजोरी को भी दूर करती हैं, यह पेट की अग्नि दीपन करती जिससें भूख खुलकर लगती और भोजन अच्छी तरह से हजम हो जाता हैं, पीलिया पांडू, कमालिया रोग की एक प्रमाणिक दवा हैं, गिलोय को आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी और प्राकृतिक चिकित्सालय में सफलतापूर्वक उपयोग में लिया जाता हैं,यह बल्य प्रदान करने के साथ साथ उत्तम कोटि की रसायन हैं, जो आयु को बढ़ाती हैं|

संग्रह और सरंक्षण -ताजा गिलोय का प्रयोग आधिक गुणकारी और फायदेमंद होता है अत: इसे ताज़ा ही प्रयोग करना चाहिए फिर भी यदि आप संग्रह करना चाहते है तो वर्षा ऋतू के आगमन से पूर्व इस को लाकर छाया में छाल निकाल कर सुखाना चाहिए, संग्रह की हुई गिलोय का प्रयोग चार माह से अधिक ना करें| बाजार में इसका घन सत्व मिलता हैं जिसको गिलोय घनसत्व नाम से जाना जाता हैं|

उपयोग और प्रयोग –अज्ञात कारणों से आने वाले बुखार की अवस्था में गिलोय ही एक ऐसी औषधि है जो उस बुखार से निजात दिलाने में सक्षम है, इसके ताजा काण्ड (डंठल) को सिलबट्टे पर या स्टील के हमाम दस्ते में कुचल कर मिटटी या स्टील के बर्तन में रात भर रख दें और सुबह छान कर सेवन करे, अथवा ताजा गिलोय को सिलबट्टे कुचल कर छान कर सेवन कर सकते हैं, ये विधि मेरी परीक्षित विधि हैं., कुछ वैद्य या आयुर्वेदाचार्य इस को पका कर भी सेवन करने की सलाह देते हैं, गिलोय को काया कल्प योग के रूप में प्रयुक्त किया जाता हैं. शहद के साथ देने से कमजोरी दूर होती हैं. गिलोय के पत्र और काण्ड दोनों काम में लिया जाता हैं| अल्प रक्तचाप में इसका सेवन फायदेमंद साबित होता हैं, गिलोय का सिद्ध तेल चर्म रोग में काम लिया जाता हैं, रक्त विकार, ह्रदय की दुर्बलता और निम्न रक्तचाप में भी उपयोग किया जा सकता हैं, गिलोय को मिश्री के साथ पित्त की वृद्दि में लिया जाता हैं, गिलोय को घी के साथ वात विकार में लिया जाता हैं, गिलोय को शहद से कफ विकार में लिया जाता हैं, यह तीनो दोषों को मिटाती हैं, यह रसायन होने से वीर्य की न्यूनता में प्रयोग करने से वीर्य की वृद्धि होती और शक्राणु हीनता में आशातीत लाभदायक हैं| मेरे से अनुभूत है. कुलमिला कर एक अच्छा रसायन होने से शरीर शोधक और शक्ति वर्धक काया कल्प योग हैं, फिर किसी अनुभवी से परामर्श आवश्यक होता हैं|



Giloy

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